हिन्दू धर्म में सती प्रथा की व्याख्या नहीं फिर यह कूप्रथा कैसे चलन में आई?

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भारत में सती प्रथा एक कूप्रथा के तोर पर जानी जाती है। इस प्रथा को खत्म करने में काफी संघर्ष का सामना करना पड़ा। इस प्रथा के अंतर्गत पति के मर जाने के बाद जीवित विधवा पत्नी को उसकी इच्छा से मृत पति की चिता पर जिंदा ही जला दिया जाता था। विधवा हुई महिला अपने पति के अंतिम संस्कार के समय स्वयं भी उसकी जलती चिता में कूदकर आत्मदाह कर लेती थी लेकिन क्या आप जानते है इस कुप्रथा को हिन्दू धर्म का हिस्सा नहीं माना गया है फिर भी हिन्दू धर्म में इस कुप्रथा का चलन इतना ज्यादा कैसे ?

हिन्दू धर्म किसी भी रूप में भारतीय समाज में फैली सती प्रथा का समर्थन नहीं करता है। ऐसा कहीं नहीं लिखा है कि पति की मृत्यु के बाद उसकी पत्नी को उसकी जलती हुई चिता पर बैठकर खुद को भस्म करना होगा। हिन्दू धर्म के चार वेद- ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद एवं अथर्ववेद, इन चारों वेद में से किसी भी वेद में स्त्री को सती करने जैसी व्याख्या शामिल नहीं है।

अगर इसके पीछे के तथ्य को जानने कि कोशिश करे तो यह माना जाता है कि जब मुस्लिम किसी राज्ये पर अपना कब्ज़ा जामा लेते थे या राजाओं के मारे जाने के बाद उनकी रानियां जौहर की रस्म अदा करती थी अर्थात या तो कुएं में कूद जाती थी या आग में कूदकर जान दे देती थी। हिन्दुस्तान पर विदेशी मुसलमान हमलावरों ने जब आतंक मचाना शुरू किया और पुरुषों की हत्या के बाद महिलाओं का अपहरण करके उनके साथ दुर्व्यवहार करते थे। बचने के लिए उनके साथ काफी बुरा सुलुख किया जाता था. इससे बचने के लिए बहुत-सी महिलाओ ने अपनी जान देना बेहतर समझा। उस काल में भारत में इस्लामिक आक्रांताओं द्वारा सिंध, पंजाब, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान आदि के छत्रिय या राजपूत क्षेत्रों पर आक्रमण किया जा रहा था।

जब देश गुलाम था तो सबसे ज्यादा जुलम महिलाओं पर हुए थे। उनके पति के मरने के बाद उनका भविष्य ख़राब हो जाता था। उनमें से कुछ महिलाएं तो वृंदावन या मथुरा जैसी जगह जाकर सन्यास ले लेती थी तो कुछ को वैश्यालयों में धकेल दिया जाता था। कुछ ऐसे समाज थे जहां महिलाओं को सती होने के लिए विवश कर दिया जाता था। हालांकि ऐसी घटनाएं राजस्थान और उससे लगे क्षेत्र में काफी बड़े स्तर पर होती थी। यह समाज महिलाओं पर ऐसे कुप्रथा को थोपता रहा और उनकी ज़िन्दगी बत्तर बनता रहा।

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