Salt City Review: एंटरेटनमेंट का नमक नहीं है इसमें, कमजोर कथा-पटकथा ने पानी फेरा ऐक्टरों के परफॉरमेंस पर h3>
निर्देशकः ऋषभ अनुपम सहाय
सितारेः दिव्येंदु शर्मा, पीयूष मिश्रा, गौहर खान, मनीष आनंद, नवनी परिहार, ईशा चोपड़ा, जितिन गुलाटी, प्रणय पचौरी, मोनिका चौधरी
रेटिंग **
प्लेटफॉर्मः सोनी लिव
यह इश्क का नहीं, मुंबई का नमक है. यहां की नमी में मौजूद नमक की भारी मात्रा चीजों और इंसानों, दोनों की सेहत के लिए ठीक नहीं. इस महानगर की हवाओं में कामयाबी के जुनून का ऐसा नमक है, जो रिश्तों को जर्जर बना देता है. सोनी लिव पर आज रिलीज हुई वेबसीरीज सॉल्ट सिटी इसी नमक के खारेपन को सामने लाने की कोशिश करती है. तेईस-चौबीस साल पहले उत्तर भारत से मुंबई आए हरीश बाजपेयी (पीयूष शर्मा) का परिवार हाई-फाई लाइफ और चादर से बाहर पैर पसारते हुए, लगातार बिखरता जाता है. हालात यह हैं कि उनके तीनों बेटों में से एक भी जिंदगी में खुश नहीं है. बेटी पति से तलाक लेने के लिए तैयार है. उनके साथ रहने वाली भतीजी ईला (मोनिका चौधरी) भी किशोरवय में हुए हादसे के बाद शादी की तैयारियों के बीच सामान्य नहीं पा रही है. खुद हरीश साहब एक विवाहेतर संबंध का हिस्सा हैं.
अपना-अपना गणित
साल्ट सिटी की पूरी कहानी इन्हीं किरदारों के चारों तरफ घूमती है और इन सबके साथ बहुत सारी समस्याएं हैं. सात एपिसोड की इस कहानी को बनाने-पकाने में तमाम हाथ और दिमाग लगे हैं. कोई अपने हिसाब से तरकारी काटता गया, कोई अपने अंदाज में चूल्हे की आग धीमी-तेज करता गया. मसाला-नमक-मिर्च डालने वालों का अपना गणित. आधिकारिक रूप से इसे तीन लोगों ने मिल कर लिखा और ऋषभ अनुपम सहाय ने डायरेक्ट किया. इसलिए जितने मुंह उतनी बातें टाइम जितने रचने वाले, उतना ही बिखराव यहां दिखता है. कहीं कोई संतुलन नजर नहीं आता और पहले ही एपिसोड से रायता बिखर जाता है. वेबसीरीज बुरी तरह से निराश करती है और इसे देखना वक्त को बर्बाद करना है.
उथले किरदार
हरीश और उनकी पत्नी (नवनी परिहार) के साथ सबसे छोटा बेटा सौरभ (दिव्येंदु शर्मा) रहता है, जो दुनिया हिसाब से नाकाम है. लेकिन सेवाभावी है. बड़ा बेटा अमन (मनीष आनंद) अपनी पत्नी गुंजन (गौहर खान) के साथ ससुर के दिए घर में और छोटा निखिल (प्रणय पचौरी) अपनी गर्लफ्रेंड के साथ लिव-इन में रहता हैं. दोनों करिअर को ऊंचाई देने के चक्कर में दिखावे की जिंदगी में उलझे हैं. लेखक-निर्देशक (ऋषभ अनुपम सहाय, शशांक कुंवर, प्रांजल सक्सेना) कहानी को सही ढंग से स्थापित नहीं कर पाते. कमजोर दृश्यों के साथ सीरीज शुरू होती है.
सौरभ और हरीश बाजपेयी के अलावा बाकी सभी किरदार बहुत उथले ढंग से लिखे गए हैं. हालांकि इन दोनों किरदारों में भी बहुत गहराई नहीं आ पाती. पीयूष शर्मा और दिव्येंदु बढ़िया ऐक्टर हैं, लेकिन ऐसा कोई दृश्य या संवाद नहीं है, जिसमें वह असर छोड़ पाते हों. हरीश के रूप में पीयूष का केरेक्टर उलझन के साथ शुरू होता है, जिसमें पहली बार वह एक महिला के साथ उसके घर में दिखते हैं, जिससे उनका विवाहेतर-संबंध बताया गया है. जबकि दूसरे सीन में वह अपनी पत्नी (नवनी परिहार) के पास अपने घर में आ जाते हैं.
कहानी की कमजोरी
लेखक-निर्देशकों ने अमन-गुंजन और निखिल का त्रिकोण रचा है, जो नैतिक दृष्टि से गलत दिखता है. देवर-भाभी के बीच परस्पर यौन-आकर्षण की का यह ट्रेक इस कहानी में कुछ नहीं जोड़ता. बनाने वाले सिर्फ दर्शकों को उत्तेजित करने के लिए इसे रचते हैं और आगे बढ़ाने का साहस नहीं करते. यह कमजोरी है. इसी तरह कहानी में ईला के साथ उसके जीजा द्वारा की गई जबर्दस्ती भी नकली और बासी कहानी मालूम पड़ती है. हीरोइन से कमजोर आर्थिक स्थिति वाला हीरो, जो अमीर नायिका के पिता के दफ्तर में नौकरी करते हुए खुद को दबा हुआ महसूस करता है, यह घिसी-पिटी बात है. कुल मिला कर कहानी और स्क्रिप्ट में नयापन नहीं है. उल्टे यह मुंबई को बदनाम करती है.
उल्टा पड़ा दांव
हरीश बाजपेयी (पीयूष शर्मा) अपना परिवार बिखरने और उसके साथ होने वाले हादसों का ठीकरा मुंबई महानगर के सिर पर फोड़ते हैं. वास्तव में जिस शहर में आप रहते हैं, उसके साथ आपके संबंध कहीं न कहीं आपके ही चरित्र को बयान करते हैं. इस लिहाज से पूरा बाजपेयी परिवार यहां बहुत कमजोर साबित होता है. सीरीज बहुत धीमी गति से चलती है और इसमें कई भी रफ्तार नहीं आती. कहीं-कहीं यह टीवी सीरियल जैसा भी एहसास कराती है. औसतन 35-35 मिनिट की सात कड़ियां आपका अच्छा खासा समय ले लेती हैं. शुरू से अंत तक वेबसीरीज का लेखन-निर्देशन कमजोर है और यह दर्शक को जरा भी नहीं बांध पाती. एंटरटेनमेंट का नमक यहां लगभग नहीं है. ऐसे में अगर आपके पास बहुत सारा खाली समय हो और कुछ भी देखने के लिए न हो, तभी सॉल्ट सिटी की सैर कर सकते हैं.
निर्देशकः ऋषभ अनुपम सहाय
सितारेः दिव्येंदु शर्मा, पीयूष मिश्रा, गौहर खान, मनीष आनंद, नवनी परिहार, ईशा चोपड़ा, जितिन गुलाटी, प्रणय पचौरी, मोनिका चौधरी
रेटिंग **
प्लेटफॉर्मः सोनी लिव
यह इश्क का नहीं, मुंबई का नमक है. यहां की नमी में मौजूद नमक की भारी मात्रा चीजों और इंसानों, दोनों की सेहत के लिए ठीक नहीं. इस महानगर की हवाओं में कामयाबी के जुनून का ऐसा नमक है, जो रिश्तों को जर्जर बना देता है. सोनी लिव पर आज रिलीज हुई वेबसीरीज सॉल्ट सिटी इसी नमक के खारेपन को सामने लाने की कोशिश करती है. तेईस-चौबीस साल पहले उत्तर भारत से मुंबई आए हरीश बाजपेयी (पीयूष शर्मा) का परिवार हाई-फाई लाइफ और चादर से बाहर पैर पसारते हुए, लगातार बिखरता जाता है. हालात यह हैं कि उनके तीनों बेटों में से एक भी जिंदगी में खुश नहीं है. बेटी पति से तलाक लेने के लिए तैयार है. उनके साथ रहने वाली भतीजी ईला (मोनिका चौधरी) भी किशोरवय में हुए हादसे के बाद शादी की तैयारियों के बीच सामान्य नहीं पा रही है. खुद हरीश साहब एक विवाहेतर संबंध का हिस्सा हैं.
अपना-अपना गणित
साल्ट सिटी की पूरी कहानी इन्हीं किरदारों के चारों तरफ घूमती है और इन सबके साथ बहुत सारी समस्याएं हैं. सात एपिसोड की इस कहानी को बनाने-पकाने में तमाम हाथ और दिमाग लगे हैं. कोई अपने हिसाब से तरकारी काटता गया, कोई अपने अंदाज में चूल्हे की आग धीमी-तेज करता गया. मसाला-नमक-मिर्च डालने वालों का अपना गणित. आधिकारिक रूप से इसे तीन लोगों ने मिल कर लिखा और ऋषभ अनुपम सहाय ने डायरेक्ट किया. इसलिए जितने मुंह उतनी बातें टाइम जितने रचने वाले, उतना ही बिखराव यहां दिखता है. कहीं कोई संतुलन नजर नहीं आता और पहले ही एपिसोड से रायता बिखर जाता है. वेबसीरीज बुरी तरह से निराश करती है और इसे देखना वक्त को बर्बाद करना है.
उथले किरदार
हरीश और उनकी पत्नी (नवनी परिहार) के साथ सबसे छोटा बेटा सौरभ (दिव्येंदु शर्मा) रहता है, जो दुनिया हिसाब से नाकाम है. लेकिन सेवाभावी है. बड़ा बेटा अमन (मनीष आनंद) अपनी पत्नी गुंजन (गौहर खान) के साथ ससुर के दिए घर में और छोटा निखिल (प्रणय पचौरी) अपनी गर्लफ्रेंड के साथ लिव-इन में रहता हैं. दोनों करिअर को ऊंचाई देने के चक्कर में दिखावे की जिंदगी में उलझे हैं. लेखक-निर्देशक (ऋषभ अनुपम सहाय, शशांक कुंवर, प्रांजल सक्सेना) कहानी को सही ढंग से स्थापित नहीं कर पाते. कमजोर दृश्यों के साथ सीरीज शुरू होती है.
सौरभ और हरीश बाजपेयी के अलावा बाकी सभी किरदार बहुत उथले ढंग से लिखे गए हैं. हालांकि इन दोनों किरदारों में भी बहुत गहराई नहीं आ पाती. पीयूष शर्मा और दिव्येंदु बढ़िया ऐक्टर हैं, लेकिन ऐसा कोई दृश्य या संवाद नहीं है, जिसमें वह असर छोड़ पाते हों. हरीश के रूप में पीयूष का केरेक्टर उलझन के साथ शुरू होता है, जिसमें पहली बार वह एक महिला के साथ उसके घर में दिखते हैं, जिससे उनका विवाहेतर-संबंध बताया गया है. जबकि दूसरे सीन में वह अपनी पत्नी (नवनी परिहार) के पास अपने घर में आ जाते हैं.
कहानी की कमजोरी
लेखक-निर्देशकों ने अमन-गुंजन और निखिल का त्रिकोण रचा है, जो नैतिक दृष्टि से गलत दिखता है. देवर-भाभी के बीच परस्पर यौन-आकर्षण की का यह ट्रेक इस कहानी में कुछ नहीं जोड़ता. बनाने वाले सिर्फ दर्शकों को उत्तेजित करने के लिए इसे रचते हैं और आगे बढ़ाने का साहस नहीं करते. यह कमजोरी है. इसी तरह कहानी में ईला के साथ उसके जीजा द्वारा की गई जबर्दस्ती भी नकली और बासी कहानी मालूम पड़ती है. हीरोइन से कमजोर आर्थिक स्थिति वाला हीरो, जो अमीर नायिका के पिता के दफ्तर में नौकरी करते हुए खुद को दबा हुआ महसूस करता है, यह घिसी-पिटी बात है. कुल मिला कर कहानी और स्क्रिप्ट में नयापन नहीं है. उल्टे यह मुंबई को बदनाम करती है.
उल्टा पड़ा दांव
हरीश बाजपेयी (पीयूष शर्मा) अपना परिवार बिखरने और उसके साथ होने वाले हादसों का ठीकरा मुंबई महानगर के सिर पर फोड़ते हैं. वास्तव में जिस शहर में आप रहते हैं, उसके साथ आपके संबंध कहीं न कहीं आपके ही चरित्र को बयान करते हैं. इस लिहाज से पूरा बाजपेयी परिवार यहां बहुत कमजोर साबित होता है. सीरीज बहुत धीमी गति से चलती है और इसमें कई भी रफ्तार नहीं आती. कहीं-कहीं यह टीवी सीरियल जैसा भी एहसास कराती है. औसतन 35-35 मिनिट की सात कड़ियां आपका अच्छा खासा समय ले लेती हैं. शुरू से अंत तक वेबसीरीज का लेखन-निर्देशन कमजोर है और यह दर्शक को जरा भी नहीं बांध पाती. एंटरटेनमेंट का नमक यहां लगभग नहीं है. ऐसे में अगर आपके पास बहुत सारा खाली समय हो और कुछ भी देखने के लिए न हो, तभी सॉल्ट सिटी की सैर कर सकते हैं.