Russian Military Buildup in Arctic : आर्कटिक में इतनी दिलचस्पी क्यों दिखा रहे पुतिन? रूस की इतनी बड़ी सैन्य तैनाती का मकसद जानें

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Russian Military Buildup in Arctic : आर्कटिक में इतनी दिलचस्पी क्यों दिखा रहे पुतिन? रूस की इतनी बड़ी सैन्य तैनाती का मकसद जानें

Russian Military Buildup in Arctic : आर्कटिक में इतनी दिलचस्पी क्यों दिखा रहे पुतिन? रूस की इतनी बड़ी सैन्य तैनाती का मकसद जानें

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मॉस्को: यूक्रेन पर आक्रमण के बाद से रूस (Russian invasion of Ukraine) ने आर्कटिक सर्कल में अपनी सैन्य उपस्थिति (Russian Military Presence in Arctic Circle ) काफी बढ़ा दी है। नॉर्वे पहुंचे ब्रिटिश रक्षा मंत्री बेन वालेस ने दावा किया है कि आर्कटिक में रूसी सैन्य गतिविधियां (Russian Navy in Arctic) काफी बढ़ गई हैं। उन्होंने कहा कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन (Vladimir Putin) आर्कटिक में रूसी सैनिकों और हथियारों की तैनाती कर पश्चिमी देशों पर दबाव बढ़ाना चाहते हैं। नॉर्वे भी आर्कटिक के किनारे बसा नाटो का एक प्रमुख सहयोगी देश है। इस देश में ब्रिटिश और नाटो सेनाए कोल्ड रिस्पांस 2022 नाम से एक ट्रेनिंग मिशन को अंजाम दे रही हैं। इसे पिछले 30 साल में नाटो का सबसे बड़ा सैन्य अभ्यास बताया जा रहा है। ऐसे में आसपास के इलाके में रूस की मौजूदगी (Russian Military Buildup in Arctic) से नाटो देश टेंशन में हैं। इस इलाके में रूसी नौसेना (Russian Navy Ships) के उत्तरी कमान में शामिल युद्धपोत और पनडुब्बियां गश्त लगा रही हैं।

आर्कटिक में इतनी दिलचस्पी क्यों दिखा रही दुनिया
आर्कटिक की कठोर जलवायु और मानव जीवन के लिए प्रतिकूल तापमान लंबे समय से विकास और संसाधनों के दोहन में एक प्राकृतिक बाधा के रूप में काम किया है। इसके बावजूद जलवायु संकट तेजी से इसे बदल रहा है। आर्कटिक महासागर के किनारे छह देश स्थित हैं, इनमें रूस, कनाडा, संयुक्त राज्य अमेरिका, डेनमार्क, नॉर्वे और आइसलैंड शामिल हैं। ऐसे में अब तक वीरान पड़ा यह इलाका अब तेजी से आबाद हो रहा है। ग्लोबल वार्मिंग के विनाशकारी प्रभावों ने ध्रुवीय बर्फ के विशाल चट्टानों को पिघला दिया है। ऐसे में दसियों खरब डॉलर मूल्य के संसाधनों तक पहुंच बनाने के लिए दुनिया के सभी देश तेजी से इस इलाके में घुसपैठ कर रहे हैं। आर्कटिक में दुनिया की बढ़ती आबादी को खिलाने के लिए मछलियां हैं और इस्तेमाल के लिए जीवाश्म ईंधन के विशाल भंडार भी हैं।

कई देशों ने आर्कटिक में की है सैन्य तैनाती
ऐसे में आर्कटिक में हर देश की रूचि बढ़ती जा रही है। इस कारण पैदा हुई अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा ने सैन्य खर्च को बढ़ावा दिया है। हर देश ने दावों और और अपने हितों की रक्षा के लिए क्षेत्र में विशेष बलों की तैनाती की है। आर्कटिक के आसपास के देशों के बीच क्षेत्र में दावों और समुद्र की सतह के नीचे महत्वपूर्ण संसाधनों के लिए दौड़ अब भी जारी है। इस दौड़ में सबसे ज्यादा हावी देश रूस है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण ध्रुवीय बर्फ तेजी से घट रही है और कुछ अनुमानों का अनुमान है कि आर्कटिक 2035 तक गर्मियों की समुद्री बर्फ से पूरी तरह मुक्त हो जाएगा। अब गर्मियों के महीनों के दौरान जहाजों के लिए यूरोप और उत्तरी एशिया के रास्ते में आर्कटिक के माध्यम से जाना संभव है। ये नए मार्ग स्वेज या पनामा नहरों के माध्यम से क्लासिक व्यापार मार्गों की तुलना में काफी छोटे और किफायती हैं।

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आर्कटिक पर कब्जे से रूस को क्या फायदा होगा
आर्कटिक के रास्ते होकर गुजरने वाले नए व्यापारिक मार्ग कितने महत्वपूर्ण हैं, इसके लिए आपको 50 साल पीछे जाना होगा। 19वीं शताब्दी की शुरुआत में यूरोपीय देश नीदरलैंड के रॉटरडैम से चीन के शंघाई जाने के लिए किसी भी व्यापारिक समुद्री जहाज को दक्षिण अफ्रीका में केप ऑफ गुड होप से होकर यात्रा करनी पड़ती थी। ऐसे में इन दोनों देशों के बंदरगाहों के बीच की दूरी करीब 26,000 किमी के आसपास बैठती थी। 1869 में मिस्र में स्वेज नहर के खुलने के बाद, अफ्रीका के चारों ओर लंबी, कठिन यात्रा कर एशियाई देशों में पहुंचने का रास्ता छोटा हो गया। इससे रास्ता कम से कम 23 फीसदी छोटा हुआ, जिससे यात्रा में लगने वाला खर्च और समय दोनों की बचत होने लगी। ठीक वैसे ही आर्कटिक से होकर पूर्वोत्तर की ओर जाने वाले व्यापारिक मार्ग के खुलने से यात्रा 24 फीसदी तक छोटी हो जाएगी। इस कारण यह रणनीतिक रूप से भी एक महत्वपूर्ण जलमार्ग बन जाएगा।

Russian military buildup in the Arctic 07

रूस की बढ़ती मौजूदगी से टेंशन में हैं नाटो देश
हालांकि, वर्मान समय में इस समुद्री रास्ते से यातायात काफी कम है। संभावना जताई जा रही है कि निकट भविष्य में जहाज इस मार्ग को बिना आइसब्रेकर की मदद के पार करने में सक्षम होंगे। वर्तमान में बड़े-बड़े ताकतवर आइसब्रेकर जहाज समुद्री बर्फ को तोड़ते हुए रास्ता बनाते हैं, जिसके पीछे सामान्य जहाज यात्रा करते हैं। ऐसे में यह रास्ता काफी धीमा और खर्चीला बन जाता है। ऐसे में तेजी से गर्म हो रहा आर्कटिक महासागर बर्फ मुक्त होने के बाद बड़ी मात्रा में यातायात को सुरक्षित रूप से गुजरने देगा। लेकिन इस इलाके में मौजूद देशों के बीच अपने-अपने क्षेत्रीय दावे हैं। ऐसे में इस क्षेत्र से गुजरने वाले समुद्री जहाजों को उनके विशेष आर्थिक क्षेत्रों से होकर गुजरना पड़ेगा। ऐसे में अमेरिका, डेनमार्क, कनाडा और नॉर्वे और आइसलैंड अपने उत्तरी पड़ोसी रूस के आर्कटिक में बढ़ते सैन्य प्रभाव के बारे में गहराई से चिंतित हैं।

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आर्कटिक में रूसी सेना इसलिए बढ़ा रही प्रभाव
यूक्रेन युद्ध से पहले भी आर्कटिक पर रूस का विशेष ध्यान रहा है। ऐसे में आर्कटिक में रूस तेजी से अपनी सेना का विस्तार और आधुनिकीकरण कर रहा है। 11 समय क्षेत्रों में फैले दुनिया का सबसे बड़ा देश रूस आर्कटिक के पिघलते बर्फ से डरा हुआ है। अभी तक समुद्री बर्फ के जमने के कारण उत्तर की ओर से रूस पर हमला करना संभव नहीं है। रूस के आर्कटिक से लगती सीमा की कुल लंबाई 24,000 किलोमीटर की है। ऐसे में बर्फ पिघलने से उसकी समुद्री सीमा के असुरक्षित होने का खतरा भी बढ़ जाएगा। इसी डर के कारण रूस ने आर्कटिक में अपनी सैन्य शक्ति का काफी विस्तार किया है। रूस ने आर्कटिक के इलाके में बड़े-बड़े सैन्य अड्डे बनाएं हैं। रूस ने उत्तर में 50 से अधिक सोवियत काल की सैन्य चौकियों को फिर से खोल दिया है। दस रडार स्टेशनों को अपग्रेड किया गया है, खोज और बचाव स्टेशन स्थापित किए गए हैं और सीमा चौकियों को नया रूप दिया गया है।


रूस ने हवाई और नौसैनिक ताकत में भी किया जबरदस्त इजाफा
आर्कटिक के बड़े इलाके पर नजर रखने के लिए रूस ने अपनी हवाई ताकत में भी जबरदस्त इजाफा किया है। आर्कटिक में रूस की सबसे उत्तरी सैन्य चौकी एलेक्जेंड्रा लैंड द्वीप पर नागरस्कोय में पुराने वायु सेना के अड्डे का विस्तार किया गया है। यहां आधुनिक मिग-31 लड़ाकू विमान के साथ एंटी-शिप और एंटी-एयरक्राफ्ट मिसाइलों को तैनात किया गया है। रूस ने अपनी नौसैनिक ताकत बढ़ाने के लिए उत्तरी कमान को काफी उन्नत किया है। इस बेड़े में रूसी नौसेना ने 13 नए और आधुनिक युद्धपोतों को शामिल किया है। इनमें से कई युद्धपोतों पर दुनिया की सबसे खतरनाक हाइपरसोनिक मिसाइल किंजल को तैनात किया गया है।



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