Russia Ukraine War : वाइट फास्फोरस बम ने डॉनबास पर कहर बरपाया जिसे नाजी कहते थे फ्लेमिंग अनियन, जानिए कितना है खतरनाक

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Russia Ukraine War : वाइट फास्फोरस बम ने डॉनबास पर कहर बरपाया जिसे नाजी कहते थे फ्लेमिंग अनियन, जानिए कितना है खतरनाक

Russia Ukraine War : वाइट फास्फोरस बम ने डॉनबास पर कहर बरपाया जिसे नाजी कहते थे फ्लेमिंग अनियन, जानिए कितना है खतरनाक

कीव: रूस और यूक्रेन (Russia Ukraine War) के बीच लगातार 19वें दिन भी युद्ध जारी है। इस युद्ध में अभी तक दोनों ही देशों के हजारों लोगों की मौत हो चुकी है। मृतकों में ज्यादातर यूक्रेन के आम नागरिक हैं, हालांकि दोनों देशों की सेनाओं (Russia Ukraine Crisis) को भी युद्ध में काफी नुकसान पहुंचा है। इस बीच यूक्रेन ने दावा किया है कि रूसी सेना ने रविवार को पूर्वी लुहांस्क क्षेत्र के पोपासना शहर पर रात भर प्रकिबंधित सफेद फास्फोरस बम (White Phosphorus Munitions) से हमला किया है। यूक्रेनी रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता मार्कियान लुबकिवस्की ने चेतावनी दी कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन सीरिया की रणनीति का इस्तेमाल कर रहे हैं। उन्होंने दावा किया कि पुतिन का इरादा यूक्रेन के कई शहरों को अलेप्पो बनाने का है। अलेप्पो सीरिया का एक बड़ा शहर है, गृह युद्ध के दौरान बशर अल असद सरकार की सहायता करने पहुंची रूसी सेना पर आरोप लगा था कि उन्होंने इस शहर पर प्रतिबंधित फास्फोरस बम (White Phosphorus Formula) का इस्तेमाल किया था।

बेहद घातक होते हैं सफेद फास्फोरस से बने विस्फोटक
सफेद फास्फोरस म्यूनिशन संयुक्त राष्ट्र से प्रतिबंधित हथियार है। इसका इस्तेमाल धुएं, रोशनी और युद्ध के दौरान बम को अधिक घातक बनाने के लिए किया जाता है। यह हथियार इसलिए खतरनाक है, क्योंकि हवा के संपर्क में आने के बाद यह तेजी से जलता है। जिससे पैदा हुई भयंकर गर्मी और जहरीला धुआं इंसान को तुंरत मार सकता है। इसके जरिए कपड़ों, ईंधन, गोला-बारूद और अन्य ज्वलनशील पदार्थों में आग लगाई जा सकती है। जिस कारण दुश्मन को बड़ा नुकसान झेलना पड़ता है। सफेद फास्फोरस एक अच्छा धुआं उत्पादक पदार्थ भी है। यह हवा के साथ प्रतिक्रिया कर फॉस्फोरस पेंटोक्साइड नाम का सफेद धुआं उत्सर्जित करता है।

धुएं का आवरण तैयार करने के लिए भी होता है इस्तेमाल
यह बहुत ही प्रचलित युद्ध सामग्री भी है। इसका इस्तेमाल पैदल सेना खुद को शत्रुओं की नजर से छिपाने के लिए करती है। पैदल सैनिकों को सफेद फास्फोरस से भरे हथगोले दिए जाते हैं, जिससे धुआं पैदा होता है। इसके अलावा टैंक और अन्य बख्तरबंद वाहनों पर सुरक्षा के लिए लगाए गए स्मोक ग्रेनेड में भी इनका ही इस्तेमाल किया जाता है। इन हथियारों का काम सफेद धुएं का बादल पैदा कर दृश्यता को शून्य करना होता है। इनका प्रयोग प्रतिबंधित नहीं है, लेकिन किसी विस्फोटक के साथ इनका इस्तेमाल वैधानिक तौर पर नहीं किया जा सकता है। क्योंकि, सफेद फास्फोरस की चपेट में आने से मौत बहुत ही दर्दनाक होती है। इस विस्फोटक के इस्तेमाल से मौत से ज्यादा लोग बुरी तरह से जलने से घायल हो जाते हैं।

2,760 डिग्री सेल्सियस पर जलता है सफेद फास्फोरस
सफेद फास्फोरस 2,760 डिग्री सेल्सियस (5,000 डिग्री फारेनहाइट) तक के तापमान पर जलता है। ऐसे में विस्फोट से पैदा हुए इसके लाखों कण चारों दिशाओं में सफेद धुएं के एक गुबार के साथ फैलते हैं। इसकी चपेट में आने से किसी भी इंसान की तुरंत मौत हो सकती है। इसके कण इंसानी शरीर के अंदर तक घुस जाते हैं। ऐसे में अगर कोई व्यक्ति सफेद फास्फोरस से जलने के बाद भी इलाज करवाता है तो उसके बचने की संभावना बहुत कम होती है। इनके कण तब तक जलते रहते हैं, जब तक कि वे खुद ही खत्म न हो जाएं या फिर उन्हें ऑक्सीजन मिलनी बंद न हो।

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सफेद फास्फोरस का इतिहास क्या है
माना जाता है कि 19वीं शताब्दी में कार्बन डाइसल्फाइड में घोल के रूप में आयरिश राष्ट्रवादियों (फेनियन) ने पहली बार सफेद फास्फोरस का इस्तेमाल किया था। जब कार्बन डाइसल्फाइड भाप बनकर उड़ जाता था, तब सफेद फास्फोरस के कारण उस जगह भयंकर आग लग जाती थी। इस मिश्रण को फेनियन फायर के नाम से जाना जाता था। 1916 में, प्रथम विश्व युद्ध के शुरुआत से पहले ऑस्ट्रेलिया के सिडनी में पुलिस ने प्रतिबंधित केमिकल का इस्तेमाल करने के लिए 12 औद्योगिक कर्मचारियों को पकड़ा था। इन लोगों के ऊपर सफेद फास्फोरस के इस्तेमाल का आरोप भी लगा था। हालांकि 1920 तक इनमें से अधिकतर आरोपियों को रिहा कर दिया गया।

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प्रथम विश्व युद्ध और द्वितीय विश्व युद्ध में इस्तेमाल
सफेद फास्फोरस का इस्तेमाल प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध दोनों में बड़े पैमाने पर किया गया था। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान 1916 के अंत में ब्रिटिश सेना ने पहली बार फैक्ट्री में बने सफेद फास्फोरस ग्रेनेड को प्रदर्शित किया था। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान अमेरिका, कॉमनवेल्थ के देश और जापानी सेना ने सफेद फास्फोरस से बने बम का खूब इस्तेमाल किया था। इराक में स्थित रॉयल एयर फोर्स ने 1920 के इराकी विद्रोह के दौरान अनबर प्रांत में सफेद फास्फोरस बमों का भी इस्तेमाल किया। इस समय तक सफेद फास्फोरस का इस्तेमाल मोर्टार, गोले, रॉकेट और ग्रेनेड में खूब किया जाता था।

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कोरिया, वियतनाम और चेचेन युद्ध में इस्तेमाल
सफेद फास्फोरस से बने बम का इस्तेमाल कोरिया युद्ध, वियतनाम युद्ध और चेचेन युद्ध में भी खूब किया गया। वियतनाम युद्ध में सफेद फास्फोरस का इस्तेमाल वियत कांग विद्रोहियों के सुरंगों को बर्बाद करने के लिए किया गया था। दरअसल, वियतनाम के कम्युनिस्ट विद्रोहियों ने जंगलों में अंडरग्राउंड सुरंगों का जाल बिछा रखा था। जिसे नष्ट करने और सुरंगों से विद्रोहियों को बाहर निकालने के लिए किया गया था। सफेद फास्फोरस सुरंग के अंदर मौजूद ऑक्सीजन को जला देती थी, जिससे उसमें छिपे विद्रोहियों का दम घुटने लगता था। ब्रिटिश सैनिकों ने भी फॉकलैंड युद्ध के दौरान सफेद फॉस्फोरस ग्रेनेड का खूब इस्तेमाल किया था। चेचन्या में प्रथम चेचन युद्ध के दौरान ग्रोजनी की लड़ाई में रूसी सेना ने सफेद फास्फोरस से बने तोप के गोले दागे थे।

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इन युद्धों में भी इस्तेमाल हुआ है सफेद फास्फोरस
इसके अलावा सफेद फास्फोरस बम का इस्तेमाल इराक युद्ध में अमेरिकी सेना ने खूब किया था। अरब इजरायल संघर्ष के दौरान भी इजरायल पर सफेद फास्फोरस के इस्तेमाल का आरोप लगा था। 2009 में अफगानिस्तान में भी अमेरिकी सेना ने सफेद फास्फोरस बमों को फायर किया था। 2016 के नागोर्नो-कराबाख युद्ध के दौरान 10 मई को अर्मेनियाई सेना ने अजरबैजानी क्षेत्र पर 122 मिमी के सफेद फास्फोरस तोपखाने की गोलीबारी की थी। हालांकि आर्मीनिया ने इसके इस्तेमाल को सिरे से खारिज कर दिया था। सीरियाई गृहयुद्ध में भी अमेरिका ने रूसी सेना पर अलेप्पो में सफेद फास्फोरस से बने हथियारों का इस्तेमाल करने का आरोप लगाया था।



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