Russia Ukraine War : एनर्जी मार्केट में कितना अहम है रूस? क्या यूक्रेन युद्ध से दुनिया में बदल जाएगा तेल का खेल

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Russia Ukraine War : एनर्जी मार्केट में कितना अहम है रूस? क्या यूक्रेन युद्ध से दुनिया में बदल जाएगा तेल का खेल

Russia Ukraine War : एनर्जी मार्केट में कितना अहम है रूस? क्या यूक्रेन युद्ध से दुनिया में बदल जाएगा तेल का खेल

नई दिल्ली: सोवियत संघ के पतन के बाद के दशकों में दुनिया का एनर्जी मार्केट अनपेक्षित तरीके से बदला। रूस और उसके विशाल हाइड्रोकार्बन भंडार दुनिया के लिए उपलब्ध हो गए, जो पहले नहीं थे। इस तरह से रूस को एक भरोसेमंद सप्लायर समझा जाने लगा। वह प्राकृतिक गैस का दुनिया में सबसे बड़ा निर्यातक बन गया। जी हां, दुनिया में रोज 98 मिलियन बैरल तेल (क्रूड कंडेंसेट और रिफाइन प्रोडक्ट्स) की आपूर्ति होती है जिसमें से अकेले रूस से ही 7.5 मिलियन की सप्लाई होने लगी। लेकिन ये हालात एक महीने पहले यानी रूस के यूक्रेन पर हमले (Russia Ukraine News) से पहले तक थे। अब दुनिया का एनर्जी मार्केट बदलता दिख रहा है।

व्लादिमीर पुतिन ने रूस की सेना को यूक्रेन पर हमले का आदेश ऐसे समय में दिया जब वैश्विक ऊर्जा बाजार में तंगी देखी जा रही थी। पुतिन को अंदेशा रहा होगा कि पश्चिमी देश विरोध करेंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इसकी बजाय जनभावना को देखते हुए तमाम देशों ने रूसी तेल और गैस पर अपनी निर्भरता पर फिर से सोचना शुरू कर दिया। अमेरिका, जापान और दक्षिण कोरिया ने रूसी तेल का आयात रोक या खत्म कर दिया। रूसी तेल से अपनी 8 फीसदी जरूरतें पूरी करने वाले यूके ने कहा है कि वह भी इस साल के आखिर तक ऐसा करेगा। यूरोजोन में बैन के लिए मांग जोर पकड़ रही है। ट्रेडिंग कंपनियों के लिए रूसी तेल के खरीदार मिलने में मुश्किल हो रही है और रूसी डॉक्स पर तेल लोडिंग घट गई है। ऐसे में सवाल उठता है कि यूक्रेन युद्ध वैश्विक ऊर्जा के नक्शे के कैसे बदलेगा?

रूस से निर्यात

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अर्थशास्त्री और अमेरिकी एनर्जी एक्सपर्ट डैनिएल यर्गिन ने एक लेख में अनुमान लगाया है कि युद्ध के बाद रूस की एनर्जी पावर घटेगी। उन्होंने कहा कि फिलहाल वह एक महत्वपूर्ण सप्लायर बना हुआ है लेकिन निश्चित रूप से उसकी भूमिक घटने वाली है। लोगों की भावनाओं को अलग रखते हुए सरकारों को एक व्यावहारिक नजरिया अपनाना होगा। महामारी के दो साल के बाद दुनिया भारी महंगाई का सामना कर रही है। ऐसे में उस देश से सप्लाई बैन करने का सही समय नहीं है, जो सऊदी अरब के लगभग बराबर तेल का उत्पादन करता है। पहले ही, रूस पर प्रतिबंधों के चलते तेल की कीमतें आठ वर्षों में उच्चतम स्तर पर पहुंच गई हैं। गैस की कीमतें भी 40 प्रतिशत बढ़ गई हैं।

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अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) के अनुसार, रूस दुनिया में तेल (क्रूड, कंडेंसेट्स और लिक्विड प्रोडक्ट्स) का सबसे बड़ा निर्यातक है। सऊदी अरब के बाद यह क्रूड का दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक है। प्रोडक्ट की कमी और दाम में बढ़ोतरी पर असर के बिना उन चीजों और कच्चे माल को रीप्लेस करना संभव नहीं है। यूरोप का उदाहरण लीजिए, ठंड से पहले उसे तेल और गैस का स्टॉक रखने की जरूरत होगी लेकिन कई यूरोपीय रिफाइनरियों में कुछ हिस्सेदारी रूसी कंपनियों की भी है और वे Druzhba ऑइल पाइपलाइन के साथ जुड़ी हैं।

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दुनिया के टॉप 10 क्रूड आयातक और निर्यातक

अगर पाइपलाइन बंद होती है, इन रिफाइनरियों के लिए तेल समुद्र के रास्ते लाना होगा। लेकिन यूरोप के तेल आयात टर्मिनल इस स्थिति में नहीं है कि वे जल्द ही अतिरिक्त शिपमेंट का समन्वय कर सकें। इतना ही नहीं, वैकल्पिक रूप से मिडिल ईस्ट या अमेरिका से अतिरिक्त तेल और गैस का आयात पाइप सप्लाई की तुलना में काफी महंगा होगा।

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ऐसे में क्या हो सकता है? यर्गिन कहते हैं कि अगले पांच वर्षों में यूरोप को रूसी गैस की बिक्री घटेगी। इस अवधि में सुरक्षा उपाय के तौर पर यूरोप को अक्षय ऊर्जा की क्षमता बढ़ानी होगी। फ्रांस और ज्यादा परमाणु संयंत्र लगाएगा। इलेक्ट्रिक व्हीकल्स की बिक्री तेजी से बढ़ेगी लेकिन थोड़े समय के लिए कोयले का इस्तेमाल बढ़ सकता है। निश्चित रूप से, रूस गेम में बने रहना चाहेगा और वह चीन, भारत और दूसरे एशियाई देशों को अपनी आपूर्ति बढ़ाने की कोशिश करेगा। रूस का 20 फीसदी तेल निर्यात चीन को होता है। पिछले साल भारत ने अपनी जरूरतों का 3 फीसदी तेल रूस से खरीदा था। चीन और भारत दोनों देशों ने रूसी क्रूड की खरीद को पहले ही बढ़ा दिया है।

रूसी क्रूड को बैन करने के बावजूद जापान साखालिन-1 प्रोजेक्ट से सोकेल क्रूड का आयात जारी रख सकता है, जहां एक जापानी कंपनी Sodeco की हिस्सेदारी है। हालांकि रूस को पूर्व की ओर पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स भेजने में कुछ चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। इस तरह से परिवहन और डील करना जिसमें अमेरिकी डॉलर शामिल न हो, यह बड़ी बाधा होगी। अगर यूरोप आपूर्तियों के लिए मिडिल ईस्ट की तरफ रुख करता है, तो भारत और चीन जैसे नियमित ग्राहक देशों के लिए रेट बढ़ता है तो दोनों एशियाई ताकतें डिस्काउंट रेट पर रूसी तेल की डील कर सकती हैं। इसमें सप्लायर की तरफ से शिपिंग की देखरेख करने के साथ ही इंश्योरेंस भी शामिल होगा।

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इस तरह से, दुनिया में तेल की आवाजाही की दिशा बदल सकती है। हालांकि यूक्रेन युद्ध लंबा खिंचा तो रूस के हितों पर गहरी चोट पहुंचेगी क्योंकि पश्चिमी तेल कंपनियां देश में उसके निवेश को बाधित कर सकती हैं। इसके अलावा आशंका इस बात की भी है कि प्रतिबंधों के डर से नए खरीदार भी नहीं मिलेंगे।

ऐसे में भारत समेत पूरी दुनिया को इस बात के लिए तैयार रहना होगा कि तेल की कीमते ऊपर ही रहेंगी। हां, ईरानी और वेनेजुएला से बैरल की सप्लाई शुरू होती है तो हालात बदल सकते हैं जिसके संकेत फिलहाल नहीं मिल रहे हैं। अभी तो दुनिया के एनर्जी पेंडुलम के केंद्र में रूस ही रहने वाला है।



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