RTI में खुलासा : कोर्ट की नहीं सुनती बिहार पुलिस… 56,000 अपराधी मचा रहे तांडव, 4,000 कुर्की भी पेंडिंग h3>
पटना : बिहार में अपराध चरम पर है। आए दिन गोलियों की तड़तड़ाहट से इलाका सहम रहा है। कभी नेता मारे जा रहे हैं तो कभी, कभी उनके रिश्तेदार निशाना बन रहे हैं। अपराधियों के निशाने पर आम लोग भी हैं और खास लोग भी। मन मुटाव भी हत्या का कारण बन जा रहा है। कभी व्यापारी मौत के घाट उतारे जा रहे हैं तो कभी छोटे-मोटे विवाद में बंदूकें घुआं उगलने लग रही हैं। ये हाल पूरे बिहार है। इसके बावजूद पुलिस प्रशसान और प्रदेश के मुखिया कहते हैं बिहार में सुशासन है।
बिहार पुलिस कर रही सुशासन का चीरहरण
राजधानी पटना हो या जिला मुख्यालय या फिर सुदूर देहाती इलाका, अपराधियों के आतंक से आमलोग खौफ जदा हैं। ताजा मामला बक्सर से है जहां रविवार को बीजेपी के पार्षद की दर्जनों लोगों के बीच भीड़भाड़ वाले इलाके में सैलून में घुसकर मोनू राय की हत्या कर दी गई। अब इसे जंगल राज रिर्टन न कहा जाए तो और क्या? वैसे बिहार के डीजीपी के कुछ दिन पुराने बयानों को याद किया जाए तो उन्होंने कागजी डेटा के आधार पर यह सबित करने की कोशिश की कि बिहार में अपराध नियंत्रण में है। वहीं पुलिस विभाग की ओर से जारी एक डेटा में यह भी बताया गया कि बिहार में महिलाओं के प्रति भी अपराध घटे हैं। इस डेटा को सुशासन का चीरहरण कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी।
53 हजार से अधिक आरोप गिरफ्त से दूर, ठेंगे पर कोर्ट का आदेश
जी हां, ये जान कर आश्चर्य होना लाजमी है कि बिहार पुलिस की कार्यप्रणाली इतनी घटिया है कि 53 हजार आरोपी गिरफ्त से दूर हैं। अपराधियों ने यूं ही बिहार को जंगल राज में तब्दील किया हुआ है। इसमें पुलिस कार्यप्रणाली शामिल है। तभी तो राजधानी पटना में चार करोड़ का सोना दिन दहाड़े लूट लिया जाता है। वजह साफ है, आदतन अपराधी और पेशेवर अपराधी पुलिस की गिरफ्त के बाहर हैं। सवाल है पुलिस का इकबाल बचाए रखने के लिए भी तो पुलिस को सख्ती दिखानी होगी। अगर बिहार की पुलिस और डीजीपी एसके सिंघल के बातों में जरा भी दम होता तो न्यायालय के आदेश के बाद भी 53 हजार से अधिक आरोपी पुलिस गिरफ्त से बाहर नहीं होते।
4 हजार कुर्की के मामले लंबित, इतनी नकारा है बिहार पुलिस!
पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाने और बिहार को क्रिमनल स्टेट बनाने में बिहार पुलिस का योददान सराहनीय लगता है। तभी तो आरटीआई एक्टिविस्ट शिवप्रकाश राय की मांगी गई सूचना में इस बात का खुलासा हुआ है कि पुलिस 4 हजार से ज्यादा वारंटियों और पेशेवर अपराधियों की गिरफ्तारी के आदेश को भी बिहार पुलिस दबा कर बैठी है। शिव प्रकाश का कहना है कि अगर अगर न्यायालीय आदेश को दबा कर नहीं बैठती तो कुर्की-जब्ती के 4 हजार मामले पेंडिंग कैसे रहते ? बिहार पुलिस मुख्यालय ने जो जानकारी दी है उसके अनुसार कुल 53 हजार से अधिक फरारियों में बक्सर में 5388, आरा में 5040, बांका, 4036, पटना 3678 शामिल है। इसके अलावे शाहाबाद रेंज में 11991, तिरहुत रेंज 15899, केंद्रीय रेंज पटना 5052, मगध रेंज 3714, पूर्णिया रेंज 5755 हैं। जो बिहार को आपराधिक राजधानी बनाने के लिए ये काफी है।
कोर्ट की भी नहीं सुनती बिहार पुलिस,55689 पेशेवर अपराधी खुले धूम रहे
पुलिस ने कोर्ट के आदेश को भी नहीं माना है। एनबीटी से बातचीत में शिव प्रकाश राय ने बताया कि 55689 जघन्नय अपराधी फरार हैं। कोर्ट की ओर से जिनको पकड़ने का आदेश दिया गया वो भी पुलिस की गिरफ्त से दूर हैं। एटिविस्ट का कहना है बिहार पुलिस का ध्यान बालू और शराब माफियाओं से मिल कर पैसे की उगाही करने में ज्यादा है। शिव प्रकाश का कहना है कि जिन मामले में अपराधी फरार हैं ये उन मामलों को निबटाने में भी कोर्ट का समय और न्याय में देरी कर रहे हैं। साथ ही पेशेवर अपराधी जिनका स्वभाव और काम ही अपराध है ऐसे में वो बिहार में अपराध का भी ग्राफ बढ़ा रहे हैं। ये बिहार सरकार के सुशासन पर भी सवाल है। शिव प्रसाद ने कहा कि पुलिस विभाग में अयोग्य अधिकारी बैठे हैं। जो थानों को नीलाम कर रहे हैं।
शिवप्रकाश राय के आरटीआई से खुलासा
बताते चलें सरकार और पुलिस विभाग की इस मिली भगत का खुलासा एक आरटीआई के जरिए हुआ। जाने-माने आरटीआई एक्टिविस्ट शिव प्रकाश राय ने पुलिस मुख्यालय से कुछ जानकारी मांगी थी। जिसमें इसका खुलासा हुआ कि बिहार पुलिस ही बिहार के अपराध के लिए दोषी है। अपराध अनुसंधान विभाग के पुलिस अधीक्षक ने 31 मई को अप्रैल 2022 तक की जानकारी दी है। आरटीआई एटिविस्ट का कहना है कि ये जानकारियां अब बहुत मुश्किल से मिलती हैं। आरटीआई कानून में सरकार और प्रशासन के काम को दबाने का प्रयास किया जा रहा है।
फरारी पर गिरफ्तार नहीं तो कैसे रुकेगी घटनाएं
आरटीआई एक्टिविस्ट शिवप्रकाश राय कहते हैं कि इसके लिए सरकार दोषी है। अक्षम पुलिस पदाधिकारियों को जिले का कमान संभालने की जिम्मेवारी दी जाती है। वैसे में कोर्ट का आदेश का पालन कैसे होगा। फरारी को पुलिस अगर गिरफ्तार नहीं करेगी तो वे घटना पर घटना करते रहेगे और पुलिस हाथ मलते रहेगी। वे आगे कहते हैं कि बिहार में थानों की भी नीलामी होतीं हैं, डाक में अधिक बोली लगाने
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राजधानी पटना हो या जिला मुख्यालय या फिर सुदूर देहाती इलाका, अपराधियों के आतंक से आमलोग खौफ जदा हैं। ताजा मामला बक्सर से है जहां रविवार को बीजेपी के पार्षद की दर्जनों लोगों के बीच भीड़भाड़ वाले इलाके में सैलून में घुसकर मोनू राय की हत्या कर दी गई। अब इसे जंगल राज रिर्टन न कहा जाए तो और क्या? वैसे बिहार के डीजीपी के कुछ दिन पुराने बयानों को याद किया जाए तो उन्होंने कागजी डेटा के आधार पर यह सबित करने की कोशिश की कि बिहार में अपराध नियंत्रण में है। वहीं पुलिस विभाग की ओर से जारी एक डेटा में यह भी बताया गया कि बिहार में महिलाओं के प्रति भी अपराध घटे हैं। इस डेटा को सुशासन का चीरहरण कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी।
53 हजार से अधिक आरोप गिरफ्त से दूर, ठेंगे पर कोर्ट का आदेश
जी हां, ये जान कर आश्चर्य होना लाजमी है कि बिहार पुलिस की कार्यप्रणाली इतनी घटिया है कि 53 हजार आरोपी गिरफ्त से दूर हैं। अपराधियों ने यूं ही बिहार को जंगल राज में तब्दील किया हुआ है। इसमें पुलिस कार्यप्रणाली शामिल है। तभी तो राजधानी पटना में चार करोड़ का सोना दिन दहाड़े लूट लिया जाता है। वजह साफ है, आदतन अपराधी और पेशेवर अपराधी पुलिस की गिरफ्त के बाहर हैं। सवाल है पुलिस का इकबाल बचाए रखने के लिए भी तो पुलिस को सख्ती दिखानी होगी। अगर बिहार की पुलिस और डीजीपी एसके सिंघल के बातों में जरा भी दम होता तो न्यायालय के आदेश के बाद भी 53 हजार से अधिक आरोपी पुलिस गिरफ्त से बाहर नहीं होते।
4 हजार कुर्की के मामले लंबित, इतनी नकारा है बिहार पुलिस!
पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाने और बिहार को क्रिमनल स्टेट बनाने में बिहार पुलिस का योददान सराहनीय लगता है। तभी तो आरटीआई एक्टिविस्ट शिवप्रकाश राय की मांगी गई सूचना में इस बात का खुलासा हुआ है कि पुलिस 4 हजार से ज्यादा वारंटियों और पेशेवर अपराधियों की गिरफ्तारी के आदेश को भी बिहार पुलिस दबा कर बैठी है। शिव प्रकाश का कहना है कि अगर अगर न्यायालीय आदेश को दबा कर नहीं बैठती तो कुर्की-जब्ती के 4 हजार मामले पेंडिंग कैसे रहते ? बिहार पुलिस मुख्यालय ने जो जानकारी दी है उसके अनुसार कुल 53 हजार से अधिक फरारियों में बक्सर में 5388, आरा में 5040, बांका, 4036, पटना 3678 शामिल है। इसके अलावे शाहाबाद रेंज में 11991, तिरहुत रेंज 15899, केंद्रीय रेंज पटना 5052, मगध रेंज 3714, पूर्णिया रेंज 5755 हैं। जो बिहार को आपराधिक राजधानी बनाने के लिए ये काफी है।
कोर्ट की भी नहीं सुनती बिहार पुलिस,55689 पेशेवर अपराधी खुले धूम रहे
पुलिस ने कोर्ट के आदेश को भी नहीं माना है। एनबीटी से बातचीत में शिव प्रकाश राय ने बताया कि 55689 जघन्नय अपराधी फरार हैं। कोर्ट की ओर से जिनको पकड़ने का आदेश दिया गया वो भी पुलिस की गिरफ्त से दूर हैं। एटिविस्ट का कहना है बिहार पुलिस का ध्यान बालू और शराब माफियाओं से मिल कर पैसे की उगाही करने में ज्यादा है। शिव प्रकाश का कहना है कि जिन मामले में अपराधी फरार हैं ये उन मामलों को निबटाने में भी कोर्ट का समय और न्याय में देरी कर रहे हैं। साथ ही पेशेवर अपराधी जिनका स्वभाव और काम ही अपराध है ऐसे में वो बिहार में अपराध का भी ग्राफ बढ़ा रहे हैं। ये बिहार सरकार के सुशासन पर भी सवाल है। शिव प्रसाद ने कहा कि पुलिस विभाग में अयोग्य अधिकारी बैठे हैं। जो थानों को नीलाम कर रहे हैं।
शिवप्रकाश राय के आरटीआई से खुलासा
बताते चलें सरकार और पुलिस विभाग की इस मिली भगत का खुलासा एक आरटीआई के जरिए हुआ। जाने-माने आरटीआई एक्टिविस्ट शिव प्रकाश राय ने पुलिस मुख्यालय से कुछ जानकारी मांगी थी। जिसमें इसका खुलासा हुआ कि बिहार पुलिस ही बिहार के अपराध के लिए दोषी है। अपराध अनुसंधान विभाग के पुलिस अधीक्षक ने 31 मई को अप्रैल 2022 तक की जानकारी दी है। आरटीआई एटिविस्ट का कहना है कि ये जानकारियां अब बहुत मुश्किल से मिलती हैं। आरटीआई कानून में सरकार और प्रशासन के काम को दबाने का प्रयास किया जा रहा है।
फरारी पर गिरफ्तार नहीं तो कैसे रुकेगी घटनाएं
आरटीआई एक्टिविस्ट शिवप्रकाश राय कहते हैं कि इसके लिए सरकार दोषी है। अक्षम पुलिस पदाधिकारियों को जिले का कमान संभालने की जिम्मेवारी दी जाती है। वैसे में कोर्ट का आदेश का पालन कैसे होगा। फरारी को पुलिस अगर गिरफ्तार नहीं करेगी तो वे घटना पर घटना करते रहेगे और पुलिस हाथ मलते रहेगी। वे आगे कहते हैं कि बिहार में थानों की भी नीलामी होतीं हैं, डाक में अधिक बोली लगाने