Rohit Jangid Wushu: खेलोगे कूदोगे बनोगे खराब, बॉडी बनाकर बनेगा गुंडा… अब इस ‘सिंघम’ के सदके में झुकती है दुनिया!

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Rohit Jangid Wushu: खेलोगे कूदोगे बनोगे खराब, बॉडी बनाकर बनेगा गुंडा… अब इस ‘सिंघम’ के सदके में झुकती है दुनिया!


Rohit Jangid Wushu: खेलोगे कूदोगे बनोगे खराब, बॉडी बनाकर बनेगा गुंडा… अब इस ‘सिंघम’ के सदके में झुकती है दुनिया!

नई दिल्ली: भारत में क्रिकेट धर्म की तरह माना जाता है। कभी ऐसा ही हॉकी और फुटबॉल का जादू हुआ करता था। फिर टेनिस और बैडमिंटन ने भी ऊंचाइयां छुईं। अब कुछ ऐसे गेम्स भी सीना तानकर सामने आ रहे हैं, जो भविष्य में काफी पॉपुलर हो सकते हैं। ऐसा ही एक गेम है वुशु। इस खेल के एक होनहार खिलाड़ी हैं राजस्थान के जयपुर में रहने वाले रोहित जांगिड़। एक समय था जब रिश्तेदार उन्हें ताना मारते थे। कहते थे कि खेल कूद से कुछ नहीं मिलता। बर्बाद हो जाएगा। बॉडी बनाकर गुंडा बन रहा है। इन्हीं तानों की वजह से पिता भी सपोर्ट करने से कतराने लगे थे, लेकिन अब जब बेटा इंटरनेशनल लेवल पर आग लगा रहा है तो वही रिश्तेदार पानी पी-पीकर तारीफ करते नहीं थकते हैं।

नवभारत टाइम्स ऑनलाइन से हुई खास बातचीत में राजस्थान पुलिस में कांस्टेबल रोहित जांगिड़ ने अपना दर्द बताते हुए कहा- अगर सपोर्ट किया जाए तो कोई भी कुछ भी कर सकता है, लेकिन अगर समर्थन नहीं मिले तो हारना नहीं चाहिए। खुद में विश्वास रखना चाहिए और अपनी कोशिश दोगुनी कर देनी चाहिए। अपने खेल की शुरुआत के बारे में उन्होंने बताया- मैं शारीरिक रूप से काफी कमजोर था। आप जानकर हंसेंगे कि 9वीं क्लास में मेरा वजन सिर्फ 32 किलोग्राम था। जो भी चाहे रौंद देता था। कुछ साथी पकड़कर पीट देते थे। मैं खौफ में रहने लगा था।

सीनियर से मिली सीख ने बना दिया वुशु खिलड़ी
उन्होंने आगे बताया- एक दिन मैंने देखा कि मेरे एक सीनियर को मेडल मिल रहे थे। वह मेरे घर के करीब के रहने वाले थे तो मैं उनसे मिला। पूछने पर पता चला कि वह खिलाड़ी हैं। उन्होंने बताया कि वुशु खेलते हैं तो मैंने सारी जानकारी लेने के बाद तय किया कि मैं भी वुशु खिलाड़ी बनूंगा। वजह नहीं पता थी। बस कुछ करना चाहता था। मजबूत होना चाहता था। मैंने कोशिश शुरू तो कर दी, लेकिन यह इतना आसान नहीं था। परिवार का उस लेवल पर समर्थन नहीं था।

रोहित जांगिड़।

पिता करते हैं कारपेंटर का काम
2012 में पहला नेशनल मेडल जीतने वाले जांगिड़ कहते हैं- मेरे पिता कारपेंटर हैं। जाहिर सी बात है मोटी रकम मुझपर खर्च नहीं कर सकते थे। मेरी लाख कोशिशों के बाद उन्होंने प्रतिदिन 10 रुपये देना तय किया। इसमें 3 रुपये मेरे घर रामगढ़ मोढ़ (जल महल, जयपुर के करीब) से 5 किमी दूर चौगान स्टेडियम जाने और 3 रुपये वापस आने के थे। बाकी बचे से डाइट मेंटेन करना था। मैंने वर्कआउट शुरू कर दिया। एक वर्ष में ही मैंने खुद को नेशनल के लिए तैयार किया और वेस्ट जोन चैंपियनशिप 2012 में ब्रॉन्ज मेडल जीता।

टीम इंडिया में हुआ सिलेक्शन तो घबरा गया
इसके बावजूद पिता को आगे के खेल के लिए कन्विंस कर पाना मुश्किल था तो रोहित ने स्कूलों में ट्रेनर के रूप में काम करना शुरू कर दिया। वह बताते हैं- स्कूलों से मिले पैसे से गेम फिर शुरू किया तो जिंदगी में मजा आने लगा। धीरे-धीरे ही सही अपने लक्ष्य की ओर बढ़ने लगा। इस दौरान 2014 में टीम इंडिया में मेरा सिलेक्शन हुआ तो परेशानी बढ़ गई। मैं घबरा गया। दरअसल, मेरे पास पैसे ही नहीं थे कि मैं इंटरनेशनल वुशु चैंपियनशिप के लिए हॉन्गकॉन्ग जाऊं, लेकिन यह सब बड़ी मुश्किल से हुआ।

4 इंटरनेशनल मेडल और 4 वर्ष पहले राजस्थान पुलिस में बन गए सिंघम
इंटरनेशनल लेवल पर 4 मेडल देश के लिए जीत चुके रोहित का 4 वर्ष पहले ही स्पोर्ट्स कोटे से राजस्थान पुलिस में सिलेक्शन हुआ। वह फिलहाल 65 किलोग्राम भारवर्ग में वर्ल्ड रैंकिंग में 4 चौथे नंबर पर हैं। वह नवंबर-दिसंबर में सांडा वुशु कप 2022 की तैयारियों में जुटे हुए हैं। माना जा रहा है कि यह टूर्नामेंट ऑस्ट्रेलिया या थाइलैंड में हो सकता है। बता दें कि वह वर्तमान में अनुभवी कोच राजेश टेलर के साथ प्रशिक्षण ले रहे हैं जो ‘गुरु वशिष्ठ पुरस्कार पुरस्कार’ और भारतीय वुशु मुख्य कोच हैं। रोहित अपनी सफलता का श्रेय अपने कोच राजेश टेलर को अपनी मां (सुनीता जांगिड़) और पिता (राजेश जांगिड़) को देते हैं।

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