Real Estate: क्या घर खरीदारों की मदद में नाकाम रहा है दिवाला कानून? जानें क्या कहते हैं आंकड़े h3>
हाइलाइट्स:
- रियल एस्टेट एकमात्र ऐसा क्षेत्र है, जहां सरकार ने घर खरीदारों को ऑपरेशनल लेनदारों की श्रेणी से वित्तीय लेनदारों की श्रेणी में लाकर एक अपवाद क्रिएट किया।
- उन्हें नए रिजॉल्यूशन आवेदक को तय करने में समान अधिकार दिया गया।
- अन्य सेक्टर्स के मुकाबले रियल एस्टेट में ज्यादा जटिलताएं हैं।
नई दिल्ली
भारत में कई रियल एस्टेट प्रॉजेक्ट (Real Estate Projects) अटके पड़े हैं। इसकी वजह से लाखों घर खरीदार सालों से अपने घर के पूरे होने का इंतजार कर रहे हैं। लेकिन उन्हें वह घर कब मिलेगा, इसे लेकर अनिश्चितता बरकरार है। 5 साल पहले देश में इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (IBC) अधिसूचित हुआ था। 5 साल बाद इसके तहत रियल एस्टेट सेक्टर के केवल 8 रिजॉल्यूशन प्लान मंजूर हुए हैं, जबकि मार्च 2021 तक सबमिट हुए मामलों की संख्या 205 थी। यह जानकारी इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी बोर्ड ऑफ इंडिया के आंकड़ों से सामने आई है।
इस आधार पर रियल एस्टेट के मामले में IBC (Insolvency and Bankruptcy Code) की सक्सेस रेट 4 फीसदी से भी कम है। अन्य सेक्टर्स के मामले में बैंक या ऑपरेशनल क्रेडिटर्स जैसे कि सप्लायर कंपनियों को नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल लेकर गए। वहीं रियल एस्टेट सेक्टर में घर खरीदारों के हितों की रक्षा करने की अतिरिक्त चुनौती है, जो अपनी जीवन भर की बचत का निवेश करते हैं।
नए रिजॉल्यूशन आवेदक को तय करने में होमबायर को समान अधिकार
रियल एस्टेट एकमात्र ऐसा क्षेत्र है, जहां सरकार ने घर खरीदारों को ऑपरेशनल लेनदारों की श्रेणी से वित्तीय लेनदारों की श्रेणी में लाकर एक अपवाद क्रिएट किया। उन्हें नए रिजॉल्यूशन आवेदक को तय करने में समान अधिकार दिया गया। एनारॉक कैपिटल के एमडी व सीईओ शोभित अग्रवाल के मुताबिक, अन्य सेक्टर्स के मुकाबले रियल एस्टेट में ज्यादा जटिलताएं हैं। केवल IBC ही नहीं बल्कि रेरा पर भी नजर डालनी चाहिए। इसके अलावा नियमों में बदलाव होता रहता है, जिससे जब कोई डेवलपर किसी प्रॉजेक्ट को टेक ओवर करना चाहता है तो नए दिशानिर्देशों का पालन करना मुश्किल हो जाता है। मूल रूप से ये प्रावधान और दिशानिर्देश प्रगति पर हैं और इन्हें और बदलाव की जरूरत है। यह भी नहीं भूलना चाहिए कि पहले रियल एस्टेट के लिए कोई प्रावधान और रिड्रेसल मैकेनिज्म नहीं था। उस हिसाब से तो नए प्रावधान बड़े अपग्रेड कहे जा सकते हैं।
यह भी पढ़ें: अटके पड़े प्रॉजेक्ट्स में फंसे हैं 5 लाख से ज्यादा घर, क्या कदम उठाए जाने की है जरूरत?
IBC में नहीं है प्रॉजेक्ट या ग्रुप इन्सॉल्वेंसी प्रावधान
जटिल मामलों की बात करें तो इसमें रियल एस्टेट की कीमतों में गिरावट शामिल है, जिससे प्रॉजेक्ट रिजॉल्यूशन आवेदकों के लिए अव्यवहारिक बन जाता है। रिजॉल्यूशन प्रोफशनल चंद्र प्रकाश कहते हैं कि यदि निर्माण की लागत रिसीवेबल से अधिक है और वित्तीय लेनदारों में वित्तीय संस्थान और होमबायर शामिल हैं, तो प्रॉजेक्ट्स आमतौर पर व्यावसायिक रूप से व्यावहारिक नहीं होंगे। कई मामलों में फंड डायवर्ट किया जाता है और कंपनी के पास यूनिट का निर्माण करने के लिए पर्याप्त पैसा नहीं होता। ऐसे मामलों में प्रॉजेक्ट अटक जाते हैं। इसके अलावा मार्केट के पास भी रियल एस्टेट मामलों को सपोर्ट करने के लिए पर्याप्त लिक्विडिटी नहीं होती है।
अगर जमीन पर एक से ज्यादा एंटिटी का हक है तो दूसरी जटिलताएं पैदा हो जाती हैं। ऐसे मामलों में प्रॉजेक्ट इन्वॉल्वेंसी कानूनों को लागू किया जाना चाहिए, जबकि IBC में हमारे पास प्रॉजेक्ट या ग्रुप इन्सॉल्वेंसी प्रावधान नहीं हैं।
Tax On Housewife Savings News: घर में की गई बचत पर टैक्स लगा तो गृहिणी पहुंची कोर्ट, जानिए क्या फैसला हुआ
हाइलाइट्स:
- रियल एस्टेट एकमात्र ऐसा क्षेत्र है, जहां सरकार ने घर खरीदारों को ऑपरेशनल लेनदारों की श्रेणी से वित्तीय लेनदारों की श्रेणी में लाकर एक अपवाद क्रिएट किया।
- उन्हें नए रिजॉल्यूशन आवेदक को तय करने में समान अधिकार दिया गया।
- अन्य सेक्टर्स के मुकाबले रियल एस्टेट में ज्यादा जटिलताएं हैं।
भारत में कई रियल एस्टेट प्रॉजेक्ट (Real Estate Projects) अटके पड़े हैं। इसकी वजह से लाखों घर खरीदार सालों से अपने घर के पूरे होने का इंतजार कर रहे हैं। लेकिन उन्हें वह घर कब मिलेगा, इसे लेकर अनिश्चितता बरकरार है। 5 साल पहले देश में इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (IBC) अधिसूचित हुआ था। 5 साल बाद इसके तहत रियल एस्टेट सेक्टर के केवल 8 रिजॉल्यूशन प्लान मंजूर हुए हैं, जबकि मार्च 2021 तक सबमिट हुए मामलों की संख्या 205 थी। यह जानकारी इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी बोर्ड ऑफ इंडिया के आंकड़ों से सामने आई है।
इस आधार पर रियल एस्टेट के मामले में IBC (Insolvency and Bankruptcy Code) की सक्सेस रेट 4 फीसदी से भी कम है। अन्य सेक्टर्स के मामले में बैंक या ऑपरेशनल क्रेडिटर्स जैसे कि सप्लायर कंपनियों को नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल लेकर गए। वहीं रियल एस्टेट सेक्टर में घर खरीदारों के हितों की रक्षा करने की अतिरिक्त चुनौती है, जो अपनी जीवन भर की बचत का निवेश करते हैं।
नए रिजॉल्यूशन आवेदक को तय करने में होमबायर को समान अधिकार
रियल एस्टेट एकमात्र ऐसा क्षेत्र है, जहां सरकार ने घर खरीदारों को ऑपरेशनल लेनदारों की श्रेणी से वित्तीय लेनदारों की श्रेणी में लाकर एक अपवाद क्रिएट किया। उन्हें नए रिजॉल्यूशन आवेदक को तय करने में समान अधिकार दिया गया। एनारॉक कैपिटल के एमडी व सीईओ शोभित अग्रवाल के मुताबिक, अन्य सेक्टर्स के मुकाबले रियल एस्टेट में ज्यादा जटिलताएं हैं। केवल IBC ही नहीं बल्कि रेरा पर भी नजर डालनी चाहिए। इसके अलावा नियमों में बदलाव होता रहता है, जिससे जब कोई डेवलपर किसी प्रॉजेक्ट को टेक ओवर करना चाहता है तो नए दिशानिर्देशों का पालन करना मुश्किल हो जाता है। मूल रूप से ये प्रावधान और दिशानिर्देश प्रगति पर हैं और इन्हें और बदलाव की जरूरत है। यह भी नहीं भूलना चाहिए कि पहले रियल एस्टेट के लिए कोई प्रावधान और रिड्रेसल मैकेनिज्म नहीं था। उस हिसाब से तो नए प्रावधान बड़े अपग्रेड कहे जा सकते हैं।
यह भी पढ़ें: अटके पड़े प्रॉजेक्ट्स में फंसे हैं 5 लाख से ज्यादा घर, क्या कदम उठाए जाने की है जरूरत?
IBC में नहीं है प्रॉजेक्ट या ग्रुप इन्सॉल्वेंसी प्रावधान
जटिल मामलों की बात करें तो इसमें रियल एस्टेट की कीमतों में गिरावट शामिल है, जिससे प्रॉजेक्ट रिजॉल्यूशन आवेदकों के लिए अव्यवहारिक बन जाता है। रिजॉल्यूशन प्रोफशनल चंद्र प्रकाश कहते हैं कि यदि निर्माण की लागत रिसीवेबल से अधिक है और वित्तीय लेनदारों में वित्तीय संस्थान और होमबायर शामिल हैं, तो प्रॉजेक्ट्स आमतौर पर व्यावसायिक रूप से व्यावहारिक नहीं होंगे। कई मामलों में फंड डायवर्ट किया जाता है और कंपनी के पास यूनिट का निर्माण करने के लिए पर्याप्त पैसा नहीं होता। ऐसे मामलों में प्रॉजेक्ट अटक जाते हैं। इसके अलावा मार्केट के पास भी रियल एस्टेट मामलों को सपोर्ट करने के लिए पर्याप्त लिक्विडिटी नहीं होती है।
अगर जमीन पर एक से ज्यादा एंटिटी का हक है तो दूसरी जटिलताएं पैदा हो जाती हैं। ऐसे मामलों में प्रॉजेक्ट इन्वॉल्वेंसी कानूनों को लागू किया जाना चाहिए, जबकि IBC में हमारे पास प्रॉजेक्ट या ग्रुप इन्सॉल्वेंसी प्रावधान नहीं हैं।
Tax On Housewife Savings News: घर में की गई बचत पर टैक्स लगा तो गृहिणी पहुंची कोर्ट, जानिए क्या फैसला हुआ