Punjab Election Result: ‘फूल’ के साथ ‘तखड़ी’ को भी… डेरा सच्चा सौदा के 40 लाख वोट, क्या पंजाब चुनाव में करेंगे बड़ा खेल? h3>
चंडीगढ़: पंजाब की 117 विधानसभा सीटों पर मतदान हो चुके हैं। अब सबको 10 मार्च का इंतजार है जिस दिन नतीजे घोषित होंगे। इस बीच चर्चा यह है कि पंजाब के रिजल्ट पर डेरों का क्या असर रहेगा? जिस तरह सियासी दलों के नेता चुनाव से पहले अलग-अलग डेरे पर डोरे डालते नजर आए उससे कयास लगाए जा रहे हैं कि नतीजों में बड़ा खेल हो सकता है। सूत्रों के मुताबिक डेरा सच्चा सौदा ने तो अपने 40 लाख फॉलोवर्स को वोटिंग से पहले मेसेज भिजवाया था कि बीजेपी के साथ अकाली दल को भी वोट करना है। पंजाब के नतीजों पर इसका क्या असर हो सकता है जानिए आगे-
पंजाब का चुनाव इस बार बहुकोणीय मुकाबला रहा। मतदाताओं का किसी भी दल को लेकर रुख तय नहीं है। पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने को लेकर भी कोई दल आश्वस्त नहीं है। ऐसे में डेरों का महत्व और भी बढ़ गया है। वोटिंग से पहले डेरा सच्चा सौदा ने अचानक सुर्खियां बटोरी जब इसके चीफ गुरमीत राम रहीम को फरलो पर रिहा किया गया।
फिर मीडिया रिपोर्ट्स के हवाले से जानकारी सामने आई कि वोटिंग से एक दिन पहले डेरा सच्चा सौदा की ओर से अपने समर्थकों को मेसेज पहुंचाया गया। सूत्रों के मुताबिक 19 फरवरी की रात डेरा के समर्थकों को बीजेपी को वोट डालने का मेसेज भेजा गया लेकिन फिर नया मोड़ आ गया।
भक्तों को मेसेज भिजवाया गया कि ‘फूल’ के साथ ‘तखड़ी’ को भी वोट देना है। फूल बीजेपी का तो तखड़ी यानी तराजू अकाली दल का चुनावी चिह्न है। डेरा सच्चा सौदा का सबसे अधिक असर मालवा क्षेत्र में है। डेरा सच्चा सौदा करीब 35 सीटों पर प्रभावशाली है। ऐसे में डेरे के एक मेसेज से नतीजों में तस्वीर बदल सकती है।
हालांकि पंजाब के राजनीति विश्लेषक इससे वाकिफ नहीं है। वरिष्ठ पत्रकार सरबजीत पंढेर नवभारत टाइम्स ऑनलाइन से बातचीत में कहते हैं, ‘इस चुनाव से पहले पंजाब में कभी सांप्रदायिक या जातिगत राजनीति नहीं होती थी। हालांकि इस बार कांग्रेस और बाकी पार्टियों का प्रयास रहा है कि दलित वोटों को कैसे समाहित करें। दलित समाज को पहले राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक रूप से हाशिये पर धकेल रखा था लेकिन अब उन्हें स्पेस देने की बात हो रही है।’
वह आगे कहते हैं, ‘अब पंजाब में तीन दशकों से दलित पहचान का अंडरकरेंट था जो अब सरफेस होकर सामने आ रहा है। चन्नी को सीएम बनाने से कुछ लेवल पर एक्सप्रेशन मिला है। डेरा अगर यह कहता है कि दलित पहचान को इग्नोर करके जहां कहा जा रहा है वहां वोट डालो तो इस पर भी संघर्ष हुआ होगा। मेरा मानना है कि रिजल्ट पर डेरा का बहुत ज्यादा असर नहीं होगा। यह नतीजों के बहुत सारे फैक्टर में से एक फैक्टर जरूर हो सकता है लेकिन डिसाइडिंग नहीं।’
एक तथ्य यह भी है कि 2015 में बेअदबी मामला और फिर 2020 में किसान आंदोलन के चलते राम रहीम के भक्त बीजेपी से नाराज चल रहे हैं। राम रहीम को सजा के लिए भी बीजेपी को जिम्मेदार मानते हैं। मालवा के ग्रामीण क्षेत्रों में डेरा समर्थक आम आदमी पार्टी को भी समर्थन दे रहे हैं।
पंजाब में मौजूदा समय में एक हजार से अधिक छोटे-बड़े डेरे बताए जाते हैं। इन डेरों के फॉलोवर्स लाखों की संख्या में हैं। पंजाब की कुल जनसंख्या का 70 फीसदी हिस्सा किसी न किसी डेरे से जुड़ा हुआ है। चुनाव से कुछ महीने पहले से ही अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल, मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी, कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी, गृहमंत्री अमित शाह, अरविंद केजरीवाल, पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह पंजाब के धार्मिक डेरों के चक्कर लगा रहे थे।
पंजाब में 20 ऐसे डेरे हैं जिनका राजनीतिक असर माना जाता है। इसमें डेरा सच्चा सौदा, राधा स्वामी डेराब्यास, निरंकारी समुदाय, नूरमहल स्थित डेरा दिव्य ज्योति जागृति संस्थान और रूमीवाला डेरा, सच्चखंड बल्लां वगैरह प्रमुख हैं। कई डेरों के पॉलिटिकल विंग भी हैं।
फिर मीडिया रिपोर्ट्स के हवाले से जानकारी सामने आई कि वोटिंग से एक दिन पहले डेरा सच्चा सौदा की ओर से अपने समर्थकों को मेसेज पहुंचाया गया। सूत्रों के मुताबिक 19 फरवरी की रात डेरा के समर्थकों को बीजेपी को वोट डालने का मेसेज भेजा गया लेकिन फिर नया मोड़ आ गया।
भक्तों को मेसेज भिजवाया गया कि ‘फूल’ के साथ ‘तखड़ी’ को भी वोट देना है। फूल बीजेपी का तो तखड़ी यानी तराजू अकाली दल का चुनावी चिह्न है। डेरा सच्चा सौदा का सबसे अधिक असर मालवा क्षेत्र में है। डेरा सच्चा सौदा करीब 35 सीटों पर प्रभावशाली है। ऐसे में डेरे के एक मेसेज से नतीजों में तस्वीर बदल सकती है।
हालांकि पंजाब के राजनीति विश्लेषक इससे वाकिफ नहीं है। वरिष्ठ पत्रकार सरबजीत पंढेर नवभारत टाइम्स ऑनलाइन से बातचीत में कहते हैं, ‘इस चुनाव से पहले पंजाब में कभी सांप्रदायिक या जातिगत राजनीति नहीं होती थी। हालांकि इस बार कांग्रेस और बाकी पार्टियों का प्रयास रहा है कि दलित वोटों को कैसे समाहित करें। दलित समाज को पहले राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक रूप से हाशिये पर धकेल रखा था लेकिन अब उन्हें स्पेस देने की बात हो रही है।’
वह आगे कहते हैं, ‘अब पंजाब में तीन दशकों से दलित पहचान का अंडरकरेंट था जो अब सरफेस होकर सामने आ रहा है। चन्नी को सीएम बनाने से कुछ लेवल पर एक्सप्रेशन मिला है। डेरा अगर यह कहता है कि दलित पहचान को इग्नोर करके जहां कहा जा रहा है वहां वोट डालो तो इस पर भी संघर्ष हुआ होगा। मेरा मानना है कि रिजल्ट पर डेरा का बहुत ज्यादा असर नहीं होगा। यह नतीजों के बहुत सारे फैक्टर में से एक फैक्टर जरूर हो सकता है लेकिन डिसाइडिंग नहीं।’
एक तथ्य यह भी है कि 2015 में बेअदबी मामला और फिर 2020 में किसान आंदोलन के चलते राम रहीम के भक्त बीजेपी से नाराज चल रहे हैं। राम रहीम को सजा के लिए भी बीजेपी को जिम्मेदार मानते हैं। मालवा के ग्रामीण क्षेत्रों में डेरा समर्थक आम आदमी पार्टी को भी समर्थन दे रहे हैं।
पंजाब में मौजूदा समय में एक हजार से अधिक छोटे-बड़े डेरे बताए जाते हैं। इन डेरों के फॉलोवर्स लाखों की संख्या में हैं। पंजाब की कुल जनसंख्या का 70 फीसदी हिस्सा किसी न किसी डेरे से जुड़ा हुआ है। चुनाव से कुछ महीने पहले से ही अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल, मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी, कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी, गृहमंत्री अमित शाह, अरविंद केजरीवाल, पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह पंजाब के धार्मिक डेरों के चक्कर लगा रहे थे।
पंजाब में 20 ऐसे डेरे हैं जिनका राजनीतिक असर माना जाता है। इसमें डेरा सच्चा सौदा, राधा स्वामी डेराब्यास, निरंकारी समुदाय, नूरमहल स्थित डेरा दिव्य ज्योति जागृति संस्थान और रूमीवाला डेरा, सच्चखंड बल्लां वगैरह प्रमुख हैं। कई डेरों के पॉलिटिकल विंग भी हैं।