Punjab Election: डेरों पर क्यों डोरे डालने में लगे पंजाब के राजनीतिक दल, क्या है इनका सियासी असर?

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Punjab Election: डेरों पर क्यों डोरे डालने में लगे पंजाब के राजनीतिक दल, क्या है इनका सियासी असर?

Punjab Election: डेरों पर क्यों डोरे डालने में लगे पंजाब के राजनीतिक दल, क्या है इनका सियासी असर?

जालंधर: वैसे तो पंजाब (Punjab Assembly Election) के हर चुनाव में डेरों का असर नजर आता रहा है लेकिन इस बार बहुकोणीय राजनीतिक संघर्ष की स्थिति में डेरों का महत्व और बढ़ गया है। नतीजा ये है कि सभी दलों के नेता इन डेरा प्रमुखों से मिलकर अपने पक्ष में समीकरण बनाने की कोशिश में डटे हैं। हर पार्टी को लग रहा है कि अगर मजबूत डेरों ने उनका समर्थन किया तो इन डेरों के फॉलोअर्स के वोट उनकी ओर आ सकते हैं।

यही नहीं, कई जगह ऐसे समीकरण भी बन सकते हैं कि अगर किसी क्षेत्र में किसी खास डेरे के अनुयायियों के महज दो से पांच हजार वोट भी हैं तो भी वे हार-जीत में निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं।

क्या है डेरों की स्थिति
हालांकि डेरों की संख्या एक हजार से भी अधिक है और माना जाता है कि पंजाब की एक बड़ी आबादी का संबंध किसी न किसी डेरे से है। दरअसल, एक संगठन के अलग-अलग एरिया में डेरे होते हैं। इन डेरों के अनुयायी अपने डेरा प्रमुख का अनुसरण करते हैं। यही वजह है कि राजनीतिक दलों के नेताओं को लगता है कि अगर डेरा प्रमुख ने उनके पक्ष में अपने अनुयायियों से अपील कर दी तो उनके लिए बल्ले-बल्ले हो जाएगी। फिलहाल लगभग एक दर्जन ऐसे डेरा प्रमुख हैं, जिनका पंजाब में काफी प्रभाव माना जाता है।

अतीत में भी रहा है असर
डेरों का असर अतीत में भी चुनाव पर नजर आया है। माना जाता है कि पिछले चुनाव में एक बड़े डेरा प्रमुख की अपील की बदौलत ही चुनाव पर बड़ा असर पड़ा था। 2014 में तो खुद सुषमा स्वराज भी एक डेरा प्रमुख से मिलने पहुंची थीं। इस बार भी सभी राजनीतिक दलों के नेता इन डेरों के चक्कर लगा रहे हैं और इस कोशिश में हैं कि डेरा प्रमुखों का उन्हें आशीर्वाद मिल जाए।

पंजाब के प्रमुख डेरे
पंजाब में जिन डेरों का सबसे अधिक असर माना जाता है, उनमें डेरा सच्चा सौदा, राधास्वामी सत्संग (ब्यास) ए निरंकारी सत्संग, दिव्य ज्योति जागृति संगठन, डेरा ढक्की साहिब, सचखंड बल्लां आदि प्रमुख हैं। स्थानीय पत्रकार संजय गर्ग का कहना है कि इन डेरों में से अधिकांश खुलकर अपने अनुयायियों को वोट डालने की अपील नहीं करते लेकिन वे अपने खास तरीके से अनुयायियों को ये संकेत जरूर दे देते हैं।

पंजाब की पॉलिटिक्स करने वालों का कहना है कि मालवा की 35 सीटें ऐसी हैं, जिनमें डेरा सच्चा सौदा के अनुयायियों की खासी तादाद है। इसके अलावा होशियापुर, बठिंडा जैसे इलाकों में भी इनका असर है। इसी तरह से राधा स्वामी का पटियाला, अमृतसर समेत कई इलाकों में असर माना जाता है। इसी तरह से दिव्य ज्योति जागृति संगठन का जालंधर, मुक्तसर, मलोट, कपूरथला, तरनतारन की कई पॉकेट में असर है। नामधारी संगठन का माझा और मालवा की 10 से अधिक सीटों पर असर है।

अब तक किसी डेरे का संकेत नहीं
बहुकोणीय संघर्ष के बीच इस बार अब तक डेरों से किसी तरह का कोई संकेत नहीं मिलने की वजह से सभी दल अपना जोर लगा रहे हैं। उन्हें लग रहा है कि अंतिम क्षणों में भी उन्हें प्रभावी डेरों का समर्थन मिल जाए तो उन्हें चुनाव में फायदा होगा। हाल ही में डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख की रिहाई को भी चुनाव से जोड़कर देखा जा रहा है। हाल ही में मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने भी डेरा सच्चा सौदा प्रमुख के एक नजदीकी रिश्तेदार से मुलाकात की है।

डेरा सच्चा सौदा (फाइल)



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