कर्ज की वजह से एयर इंडिया की बिक्री में मुश्किलें।

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कर्ज की वजह से एयर इंडिया की बिक्री में मुश्किलें।

लगातार नुक्सान का सामना करती हुई एयर इंडिया को सरकार की तरफ से पूरी तरह बेच देने का विकल्प दिया गया है साथ ही दूसरा विकल्प में मारुती मॉडल अपनाने का दिया है। जिसके तहत सरकार ने 50 प्रतिशत से ज्यादा शेयर सुजुकी को दिए है। जिसके लिए सरकार को प्रीमियम मिला है। मारुति में सरकारी शेयर का एक हिस्सा नीलामी प्रक्रिया के जरिए देश के बैंकों और वित्तीय संस्थानों को भी बेचा गया।

एयर इंडिया के विनिवेश का मुद्दा तब से ही गहमागहमी में है जब नीति आयोग ने सरकार को एयर इंडिया का कर्ज राइट ऑफ करने के साथ-साथ इसकी शत प्रतिशत हिस्सेदारी बेचने का सुझाव दिया। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने भी आयोग के इस विचार का समर्थन किया और उन्होंने इस मुद्दे पर कम-से-कम एक बार नागरिक उड्डयन मंत्री ए गणपति राजू के साथ बातचीत भी की।

सूत्रों की मानें तो विनिवेश प्रक्रिया जल्द ही आएगी साथ ही खबर मिल रही है कि केंद्रीय कैबिनेट के सामने कोई प्रस्ताव से पहले विकल्पों पर विचार किया जा रहा है और जल्द ही आखिरी फैसला ले लिया जाएगा।
मगर, प्रस्ताव को कैबिनेट में जाने से पहले इस के बारे में सिविल एविएशन मिनिस्ट्री को यह तय करना होगा कि किसी विदेशी एयरलाइंस को एयर इंडिया में 50 प्रतिशत से ज्यादा हिस्सेदारी खरीदने की अनुमति दी जाए या नहीं। कतर एयरवेज भारत में घरेलू एयरलाइन की इच्छा पहले जता चुका है। जबकि, उसने स्टार्टअप के लिए अभी तक कोई आवेदन नहीं दिया है।

पिछले वर्ष जून में मोदी सरकार ने विदेशी कंपनियों को भारतीय एयरलाइन कंपनियों पर पूरा मालिकाना हक रखने की अनुमति दी थी। जबकि, विदेशी एयरलाइन कंपनियों को भारत की एयरलाइन कंपनियों में अपना हिस्सा 49 प्रतिशत तक सीमित रखना होगा। बाकी के 51 प्रतिशत हिस्से के लिए वह सॉवरन वेल्थ फंड या इंस्टिट्यूशनल इन्वेस्टर जैसे विदेशी भागीदार तो चुन सकते हैं, लेकिन भारतीय भागीदार नहीं।

फिर भी, सरकार एयर इंडिया में विनिवेश के कुछ अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों पर गौर कर रही है। इनमें यह मुद्दा भी शामिल है कि इसकी डील को वित्तीय कौन सी रूप-रेखा दी जाए और क्या सरकार को इसमें कुछ शेयर रखना चाहिए। एयर इंडिया और इसकी दो सहायक कंपनियों की संपत्तियों का वित्तीय लाभ कैसे लिया जाए और कार्यकर्ताओं के भविष्य का क्या होगा?