Prashant Kishor: गांधी फैमिली की कमजोरी, पार्टी की ब्यूरोक्रेसी, तो प्रशांत किशोर का प्लान कांग्रेस में हो जाता फेल

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Prashant Kishor: गांधी फैमिली की कमजोरी, पार्टी की ब्यूरोक्रेसी, तो प्रशांत किशोर का प्लान कांग्रेस में हो जाता फेल

Prashant Kishor: गांधी फैमिली की कमजोरी, पार्टी की ब्यूरोक्रेसी, तो प्रशांत किशोर का प्लान कांग्रेस में हो जाता फेल

नई दिल्ली: चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर के प्लान पर कांग्रेस ने एकबार फिर मौका गंवा दिया। कांग्रेस के अंदर की उधेड़बुन खत्म होने का नाम नहीं ले रही है। अब ऐसे में सवाल उठता है कि कांग्रेस का भविष्य क्या रह गया है? कांग्रेस का नीचे गिरना थोड़ी अटपटी करने वाली बात है। एक बड़ी पार्टी जिसके पास बेहतर सोशल गठजोड़ रहा हो। लेकिन धीरे-धीरे इसमें क्षरण हुआ। अभी पार्टी के भीतर समस्या बाहरी बदलाव की नहीं है बल्कि इसे स्वीकार करने की है। या साफ-साफ कहें कि कांग्रेस के भीतर ऐसे गुट हैं जो लगातार बदलाव की कोशिशों को झटका दे रहे हैं।

प्रशांत के प्लान को लगा पलीता
प्रशांत किशोर के प्लान की जो मुख्य बातें थी उसमें जमीनी स्तर पर पार्टी को मजबूत करना, पक्षपात की जगह मेरिट के आधार पर टिकट बंटवारा, संगठन के चुनाव, कम्युनिकेशन रणनीति में बड़े बदलाव शामिल थे। लेकिन एक बात समझ में नहीं आती है कि क्यों कांग्रेस इस दिशा में आगे नहीं बढ़ पा रही है।
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कांग्रेस के पुराने ढांचे को बदलना मुश्किल
इसका उत्तर ये हो सकता है कि कांग्रेस का नौकरशाहीकरण हो जाना है। पार्टी में जमीन से नहीं जुड़े और स्वार्थी लोगों का स्थायी शक्ति ढांचा है। पार्टी में गांधी फैमिली के करीबी लोगों को ही जगह मिलती है। ये लोग सामान्य राजनीतिक प्रक्रिया से कोसो दूर होते हैं। कांग्रेस की सबसे बड़ी कमी है राज्य से स्थानीय स्तर पर नेताओं को सामने नहीं लाने की। आप पार्टी में प्रतिभाशाली नेताओं की कमी को ऐसे समझ सकते हैं कि इस साल के शुरुआत तक राज्यों के अध्यक्ष रहे नवजोत सिंह सिद्धू, आर रेड्डी और नाना पटोले या तो बीजेपी या फिर टीडीपी से आए हुए लोग हैं। प्रशांत किशोर से बातचीत करने के लिए बनाई गई कमिटी में पी चिदंबरम, अंबिका सोनी, जयराम रमेश, मुकुल वासनिक, प्रियंका गांधी वाड्रा, के सी वेणुगोपाल और रणदीप सिंह सुरजेवाला शामिल थे। इसमें सुरजेवाला को छोड़कर कोई भी 2014 से विधानसभा या लोकसभा चुनाव नहीं लड़ा है। सुरजेवाला को 2019 में अपने विधानसभा सीट से हार का सामना करना पड़ा था। पार्टी ने नाराज चल रहे नेता संदीप दीक्षित ने कहा था कि पार्टी में खराबी पैदा करने वाले को ही किशोर से बातचीत करने को कहा गया है।

जमीनी स्तर पर मशीनरी नहीं
कांग्रेस की दिक्कत ताकतवर हाईकमान नहीं है। भारत में ज्यादातर राजनीतिक दलों के शक्तिशाली हाईकमान होता है और जमीनी स्तर पर प्रभावशाली मशीनरी भी होती है। ऐसे दलों में स्थानीय नेता सीधे शीर्ष नेतृत्व से जुड़े होते हैं। ये एक तरह से केंद्रीयकृत मॉडल होता है। क्षेत्रीय दल जैसे टीएमसी, एसपी, आरजेडी, वाईएसआर या टीआरएस ऐसे मॉडल से चलते हैं।
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गांधी फैमिली की कमजोरी?
वास्तव में कांग्रेस की समस्या है कि उसका शीर्ष बेफिक्र है। मध्य क्रम में पार्टी मैनेजर्स लेकिन जमीनी कार्यकर्ता यहां हैं ही नहीं। शीर्ष पर गांधी फैमिली की तिकड़ी उतनी ताकतवर नहीं दिखती है जितनी चर्चा होती है। क्या किसी दूसरे दल का हाईकमान अपनी पार्टी में जी-23 जैसे बागियों को बर्दाश्त करती? इधर, सोनिया गांधी जी-23 के नेताओं से बात करती हैं और उन्हें अहम समीतियों में नियुक्त भी करती हैं।

राजीव ने उठाया था कठोर कदम
ये गांधी परिवार की कमजोरी दिखाती है। राजीव गांधी ने 1985 में सत्ता से करीबी और रसूखदार लोगों से संपर्क साधा जिन्होंने कांग्रेस के लाखों सामान्य कार्यकर्ताओं को हाशिए पर रखा था। राजीव गांधी ने आरोप लगाया कि इन लोगों ने एक जन आंदोलन को सामंती कुलीनतंत्र में बदल दिया था। लेकिन राजीव ने इन तमाम लक्षणों के बाद भी क्या किया? कुछ नहीं। विधानसभा चुनावों में हार के बाद राजीव ने फिर वही पुराना रास्ता अपना लिया। आर के धवन को पार्टी में फिर से पुराना रुतबा थमा दिया गया।
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कांग्रेस की ब्यूरोक्रेसी

सोनिया गांधी के समय में भी क्षेत्रीय क्षत्रपों का प्रभाव जारी ही था। बाद में पार्टी ब्यूरोक्रेसी को पहले की भांति ही चलने दिया गया। इसके अलावा गांधी मिथ भी चलता रहा। गांधी मिथ की तीन बातें अहम थीं। पहला, गांधी कांग्रेस मूल्यों के समाहित रखने वाले हैं। दूसरा, कुर्बानी और कांग्रेस में गांधी फैमिली की लीगेसी। तीसरा, बिना गांधी फैमिली के गाइडेंस के कांग्रेस में कोई लीडरशिप नहीं हो सकती है।

तो कांग्रेस का क्या है भविष्य?
इस मिथ को स्थिर बनाए रखना न केवल गांधी फैमिली के लिए जरूरी था बल्कि पार्टी ब्यूरोक्रेसी के लिए भी उतना ही अहम था। इस बीच, पार्टी ने एक और चिंतन शिविर के आयोजन का फैसला किया है। ताकि पार्टी के भविष्य की योजनाओं को आगे बढ़ाया जा सके। इसके लिए पुराने पार्टी मैनेजरों की एक कमिटी का गठन किया गया है। इन कमिटी के सचेतकों की औसत उम्र 72 साल है। कांग्रेस के रिवाइव के लिए पार्टी ब्यूरोक्रेसी को खत्म करना जरूरी है। इसके अलावा यहां कांग्रेस ब्रैंड को मजबूत करने की जरूरत है। पुरानी नीतियां तब काम करतीं जब कांग्रेस का राज्यों के संसाधनों पर अधिकार होता। मूलभूत तरीके से बदल चुके भारत और बिना बदला हुआ कांग्रेस का भारत में कोई भविष्य नहीं है।



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