Post Covid Vitamin-D Deficiency: कोविड सेकंड वेव के बाद बच्चों और युवाओं में विटामिन-D की कमी, सूडो फ्रैक्चर होने से परेशान

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Post Covid Vitamin-D Deficiency: कोविड सेकंड वेव के बाद बच्चों और युवाओं में विटामिन-D की कमी, सूडो फ्रैक्चर होने से परेशान

Post Covid Vitamin-D Deficiency: कोविड सेकंड वेव के बाद बच्चों और युवाओं में विटामिन-D की कमी, सूडो फ्रैक्चर होने से परेशान

नई दिल्लीः लॉकडाउन के बाद से घर में रहने की जीवन शैली की वजह से काफी लोग विटामिन- डी की कमी के चपेट में आ रहे हैं। पूरे शरीर में भारीपन रहना, जोड़ों में दर्द, सुस्ती और चिड़चिड़ापन के लक्षण के साथ मरीज अस्पतालों में आ रहे हैं। वहीं, हड्डी के डॉक्टर्स का कहना है कि इन दिनों बच्चों और युवाओं में ‘सूडो फ्रैक्चर’ के काफी मामले सामने आ रहे हैं। एलबीएस अस्पताल में ऑर्थो डिपार्टमेंट के एचओडी डॉ. संजीव गंभीर ने बताया कि कोविड के सेकंड वेव के बाद ऐसे मरीजों की संख्या काफी बढ़ गई है, जो विटामिन-डी की कमी की वजह से पूरे शरीर में दर्द की समस्या के साथ अस्पतालों में पहुंच रहे हैं। जांच के बाद लगभग 80 से 90 प्रतिशत लोगों में विटामिन डी की कमी पाई जा रही है। उन्होंने बताया कि इस तरह के मरीज पहले भी आते थे, लेकिन इनकी संख्या बहुत कम होती थी।

12 से 20 साल तक के उम्र के बच्चों में सूडो फ्रैक्चर

एलबीएस अस्पताल में स्पोर्ट्स इंजरी के स्पेशलिस्ट डॉ. वरुण सिंह ने बताया कि पहले हड्डियों में सूडो फ्रैक्चर के मामले बहुत कम देखने मिलते थे। अब 12 से 20 साल तक के उम्र के बच्चों में सूडो फ्रैक्चर की दिक्कतें देखने को मिल रही हैं। ये मरीज जोड़ों में दर्द की शिकायत के साथ अस्पतालों में पहुंच रहे हैं। जांच के बाद पहले विटामिन-डी की भारी कमी पाई जा रही है। इसके बाद वह जिस जगह दर्द की शिकायत बताते हैं, वहां एक्स-रे के बाद पता चलता है कि सूडो फ्रैक्चर है। डॉ. वरुण ने बताया कि सूडो फ्रैक्चर हड्डी में चोट लगने की वजह से नहीं बल्कि विटामिन-डी की कमी से हड्डी के कमजोर होने से होता है।

80 से 90 प्रतिशत मरीजों में विटामिन डी की कमी के केस

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स्वामी दयानंद अस्पताल के ऑर्थोपेडिक सर्जन डॉ. गौरव शर्मा ने बताया कि युवाओं में जोड़ों के दर्द के साथ जो अस्पताल में पहुंच रहे हैं, इसमें से 80 से 90 प्रतिशत मरीजों में विटामिन डी और उसकी वजह से कैल्शियम की कमी पाई जा रही है। जीटीबी अस्पताल के सीनियर फिजिशियन डॉ. अमितेश अग्रवाल मानते हैं कि मेडिसिन डिपार्टमेंट में 30 प्रतिशत तक ऐसे मरीजों की संख्या बढ़ी है, जो विटामिन डी की कमी से बीमार हो कर आ रहे हैं। उन्होंने बताया कि भारत में सामान्य तौर पर लोगों में विटामिन डी की कमी देखने को मिलती है। लेकिन डार्क स्किन होने की वजह से हम लोग सूरज की रौशनी को बहुत कम अब्जॉर्ब कर पाते हैं।

ओरल डोज कम, इंजेक्शन ज्यादा नुकसानदायक

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विटामिन डी एक महत्वपूर्ण प्रोहोर्मोन है जो स्वस्थ हड्डियों और कैल्शियम के स्तर को बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है। शोध बताते हैं कि यह कुछ ऑटोइम्यून बीमारियों और मेटाबॉलिक सिंड्रोम के जोखिम को कम करने में भूमिका निभाता है। हालांकि, बदलती जीवनशैली और सूर्य के प्रकाश के संपर्क में कमी के कारण, अधिकांश भारतीयों में महत्वपूर्ण पोषक तत्वों की कमी होती है, जैसा कि शोध से पता चलता है। यही कारण है कि डॉक्टरों द्वारा नियमित रूप से इसके सप्लिमेंट्स दिए जाते हैं। हालांकि, कई बार लोग इसे दवा काउंटर से खुद भी खरीदते हैं। फोर्टिस सी-डॉक के चेयरमैन डॉ. अनूप मिश्रा ने कहा कि विटामिन डी की कमी को पूरा करने के लिए ओरल डोज अधिक नुकसान नहीं पहुंचाती है। समस्या तब होती है जब इंजेक्शन के रूप में बड़ी खुराक दी जाती है।

विटामिन डी की ओवरडोज खतरनाक

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वहीं, एम्स के रुमेटोलॉजी विभाग की प्रोफेसर व प्रमुख डॉ. उमा कुमार ने कहा कि डॉक्टर के पर्चे की त्रुटियों और लंबे समय तक विटामिन डी की हाई सप्लिमेंट्स लेने के कारण विषाक्तता हो सकती है। इसके उपचार में विटामिन डी का सेवन रोकने और कैल्शियम के स्तर को कम करना जरूरी है। इसके लिए लगातार मॉनिटरिंग भी जरूरी है। उन्होंने कहा कि बिना चिकित्सकीय सलाह के सप्लीमेंट ना लें, विशेष रूप से इंजेक्शन के रूप में क्यों,कि यह वसा में घुलनशील है और लंबे समय तक शरीर में रहता है।

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