Pizza-Pasta: ज्यादा पिज्जा और पास्ता खाते हैं तो आपको भी हो सकता है ‘विदेशी डायरिया’ | If you eat more pizza-pasta then you may also have ‘foreign diarrhea’ | Patrika News h3>
गेस्ट्रोएंट्रोलॉजिस्ट की वर्कशॉप में विशेषज्ञों ने कहा- सिलिएक में गेहूं की रोटी भी हो सकती है जानलेवा, इसका सबसे बड़ा कारण है अव्यवस्थित जीवनशैली और बिगड़ा डाइट प्लान।
भोपाल
Updated: April 10, 2022 01:09:04 am
भोपाल. कुछ सालों पहले तक डायरिया एक सामान्य बीमारी ही मानी जाती थी, लेकिन अब देश में विदेशी डायरिया का खतरा लगाता बढ़ रहा है। इसका सबसे बड़ा कारण है अव्यवस्थित जीवनशैली और बिगड़ा डाइट प्लान। दरअसल गेहूं में पाया जाने वाला ग्लूटेन विदेशी डायरिया कहे जाने वाले सिलिएक का सबसे कारण होता है। गेहूं के आटे से बनने वाले पिज्जा और पास्ता के अधिक सेवन से अब सिलिएक के साथ आईबीडी, इरिटबेल बाउल सिंड्रोम जैसे डायरिया की समस्या हो रही है। इसके मरीज को जीवन भर के लिए गेहूं का सेवन बंद करना पड़ता है। यह बात राजधानी भोपाल में देश भर के गेस्ट्रोएंट्रोलॉजिस्ट की दो दिवसीय वर्कशॉप ‘बिग अपडेट्स 2022’ में शामिल होने आए एम्स दिल्ली में गेस्ट्रोएंट्रोलॉजी विभाग के एचओडी डॉ.विनीत आहूजा ने कही। डॉ. विनीत आहूजा ने बताया कि सीलिएक रोग का कोई इलाज नहीं है। लेकिन इसे रोका जा सकता है। इसके लिए गेहूं समेत वे सभी अनाज छोडऩा पड़ते हैं जिनमें ग्लूटेन मौजूद रहता है।
दर्दनिवारक से बन सकते हैं पेट में छाले
इंडियन सोसाइटी ऑफ गेस्ट्रोएंट्रोलॉजी के पूर्व प्रेसिडेंट डॉ.राकेश कोचर (चंडीगढ़) ने बताया कि हमारे देश में पेनकिलर्स या सामान्य दर्दनिवारक दवा के सेवन का बहुत प्रचलन है। लेकिन बिना डॉक्टरी सलाह के इनका सेवन जानलेवा हो सकता है। उन्होंने बताया कि पेनकिलर्स के सेवन से पेट में जख्म हो जाते हैं जो जानलेवा भी हो सकता है। अगर भूख में कमी हो रही हो, वजन कम हो रहा या उल्टी और दस्त में खून आए तो डॉक्टर्स को दिखाना जरूरी होता है। यह भी डायरिया का एक प्रकार है। कई बार बच्चों में भी यह दिक्कत पाई जाती है और बच्चों का मृत्यु का बड़ा कारण भी होता है।
बच्चे को पीलिया हो, स्टूल सफेद आए तो भांपे खतरा
लखनऊ के पीडियाट्रिक गेस्ट्रोएंट्रोलॉजी विभाग के एचओडी डॉ.उज्जवल पोद्दार ने बताया कि भारत के ग्रामीण क्षे्त्रो में जन्म के बाद नवजात में अक्सर पीलिया हो जाता है, जो उपचार के बाद ठीक हो जाता है। लेकिन इस दौरान बच्चे के स्टूल (मल) में सफेदी दिखे तो तुरंत ऑपरेशन की जरूरत होती है। बच्चों में उम्र के अनुसार अलग—अलग प्रकार की बीमारियां हो सकतीं हैं। बच्चों में मोटापा बड़ी समस्याएं पैदा कर रहा है। फैटी लिवर की प्रॉब्लम लंबे समय तक रहने भविष्य में लिवर कैंसर, लिवर सिरोसिस जैसी प्रॉब्लम की वजह बनता है। बच्चों की आउटडोर एक्टिविटी, खेलकूद कम हो गए हैं मोबाइल, टीवी, लैपटॉप पर स्क्रीन टाइम बढ़ गया है। इसपर ध्यान देने की जरूरत है।
तीन प्रकार का होता है डायरिया
फ्लेमेटरी बाउल डिजीज (आईबीडी): यह सबसे खतरनाक और लाइलाज बीमारी है। इससे पाचन तंत्र में दीर्घकालिक सूजन की समस्या हो सकती है। जीवन भर दवाएं चलतीं हैं।
सिलिएक डिसीज: आईबीडी की तुलना में यहकम गंभीर होती है लेकिन इसके मरीज को ताउम्र गेहूं का सेवन बंद करना पड़ता है। बच्चों को दस्त के साथ हीमोग्लोबिन कम हो रहा हो तो ब्लड़ टेस्ट और एंडोस्कोपी करानी चाहिए।
इरिटेबल बाउल ङ्क्षसड्रोम: समय से सही इलाज किया जाए तो इस बीमारी को दवाओं से ठीक किया जा सकता है। इसमें कोई अल्सर नहीं बनता। नियमित उपचार जरूरी होता है।
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गेस्ट्रोएंट्रोलॉजिस्ट की वर्कशॉप में विशेषज्ञों ने कहा- सिलिएक में गेहूं की रोटी भी हो सकती है जानलेवा, इसका सबसे बड़ा कारण है अव्यवस्थित जीवनशैली और बिगड़ा डाइट प्लान।
भोपाल
Updated: April 10, 2022 01:09:04 am
भोपाल. कुछ सालों पहले तक डायरिया एक सामान्य बीमारी ही मानी जाती थी, लेकिन अब देश में विदेशी डायरिया का खतरा लगाता बढ़ रहा है। इसका सबसे बड़ा कारण है अव्यवस्थित जीवनशैली और बिगड़ा डाइट प्लान। दरअसल गेहूं में पाया जाने वाला ग्लूटेन विदेशी डायरिया कहे जाने वाले सिलिएक का सबसे कारण होता है। गेहूं के आटे से बनने वाले पिज्जा और पास्ता के अधिक सेवन से अब सिलिएक के साथ आईबीडी, इरिटबेल बाउल सिंड्रोम जैसे डायरिया की समस्या हो रही है। इसके मरीज को जीवन भर के लिए गेहूं का सेवन बंद करना पड़ता है। यह बात राजधानी भोपाल में देश भर के गेस्ट्रोएंट्रोलॉजिस्ट की दो दिवसीय वर्कशॉप ‘बिग अपडेट्स 2022’ में शामिल होने आए एम्स दिल्ली में गेस्ट्रोएंट्रोलॉजी विभाग के एचओडी डॉ.विनीत आहूजा ने कही। डॉ. विनीत आहूजा ने बताया कि सीलिएक रोग का कोई इलाज नहीं है। लेकिन इसे रोका जा सकता है। इसके लिए गेहूं समेत वे सभी अनाज छोडऩा पड़ते हैं जिनमें ग्लूटेन मौजूद रहता है।
दर्दनिवारक से बन सकते हैं पेट में छाले
इंडियन सोसाइटी ऑफ गेस्ट्रोएंट्रोलॉजी के पूर्व प्रेसिडेंट डॉ.राकेश कोचर (चंडीगढ़) ने बताया कि हमारे देश में पेनकिलर्स या सामान्य दर्दनिवारक दवा के सेवन का बहुत प्रचलन है। लेकिन बिना डॉक्टरी सलाह के इनका सेवन जानलेवा हो सकता है। उन्होंने बताया कि पेनकिलर्स के सेवन से पेट में जख्म हो जाते हैं जो जानलेवा भी हो सकता है। अगर भूख में कमी हो रही हो, वजन कम हो रहा या उल्टी और दस्त में खून आए तो डॉक्टर्स को दिखाना जरूरी होता है। यह भी डायरिया का एक प्रकार है। कई बार बच्चों में भी यह दिक्कत पाई जाती है और बच्चों का मृत्यु का बड़ा कारण भी होता है।
बच्चे को पीलिया हो, स्टूल सफेद आए तो भांपे खतरा
लखनऊ के पीडियाट्रिक गेस्ट्रोएंट्रोलॉजी विभाग के एचओडी डॉ.उज्जवल पोद्दार ने बताया कि भारत के ग्रामीण क्षे्त्रो में जन्म के बाद नवजात में अक्सर पीलिया हो जाता है, जो उपचार के बाद ठीक हो जाता है। लेकिन इस दौरान बच्चे के स्टूल (मल) में सफेदी दिखे तो तुरंत ऑपरेशन की जरूरत होती है। बच्चों में उम्र के अनुसार अलग—अलग प्रकार की बीमारियां हो सकतीं हैं। बच्चों में मोटापा बड़ी समस्याएं पैदा कर रहा है। फैटी लिवर की प्रॉब्लम लंबे समय तक रहने भविष्य में लिवर कैंसर, लिवर सिरोसिस जैसी प्रॉब्लम की वजह बनता है। बच्चों की आउटडोर एक्टिविटी, खेलकूद कम हो गए हैं मोबाइल, टीवी, लैपटॉप पर स्क्रीन टाइम बढ़ गया है। इसपर ध्यान देने की जरूरत है।
तीन प्रकार का होता है डायरिया
फ्लेमेटरी बाउल डिजीज (आईबीडी): यह सबसे खतरनाक और लाइलाज बीमारी है। इससे पाचन तंत्र में दीर्घकालिक सूजन की समस्या हो सकती है। जीवन भर दवाएं चलतीं हैं।
सिलिएक डिसीज: आईबीडी की तुलना में यहकम गंभीर होती है लेकिन इसके मरीज को ताउम्र गेहूं का सेवन बंद करना पड़ता है। बच्चों को दस्त के साथ हीमोग्लोबिन कम हो रहा हो तो ब्लड़ टेस्ट और एंडोस्कोपी करानी चाहिए।
इरिटेबल बाउल ङ्क्षसड्रोम: समय से सही इलाज किया जाए तो इस बीमारी को दवाओं से ठीक किया जा सकता है। इसमें कोई अल्सर नहीं बनता। नियमित उपचार जरूरी होता है।
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