Pakistan Russia Relations: इमरान खान को रूस दौरे से क्या हासिल हुआ? पाक आर्मी चीफ बाजवा की बेल्जियम में बेइज्जती का कनेक्शन जानें h3>
इस्लामाबाद: यूक्रेन पर रूस हमले के बीच पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के मॉस्को दौरे (Imran Khan Russia Visit) की खूब चर्चा हो रही है। जब अंतरराष्ट्रीय मीडिया यूक्रेन पर रूसी आक्रमण को दिखा रही थी, उस समय पाकिस्तानी टीवी चैनल इमरान खान की मॉस्को यात्रा में व्यस्त थे। रूस के दो दिवसीय यात्रा से लौटने के बाद पाकिस्तानी मीडिया में इमरान खान की विदेश नीति (Pakistan Foreign Policy) की जमकर तारीफ की जा रही है। एक्सपर्ट इसे भारत के लिए तगड़ा झटका और पाकिस्तान (Pakistan Russia Relations) के लिए बड़ा फायदा बताते नहीं थक रहे हैं। कई विशेषज्ञ तो इमरान के रूस दौरे को पश्चिम और पूर्व के बीच संबंधों को संतुलित करने और एक स्वतंत्र विदेश नीति बनाने के तौर पर देख रहे हैं। हालांकि, पाकिस्तान के विदेश नीति की स्वतंत्रता का उद्देश्य पूरा होगा या नहीं यह पाकिस्तान की आर्थिक और राजनीतिक क्षमता पर बहुत कुछ निर्भर करता है। हालांकि, इस दौरे से दोनों देशों के बीच कोई ठोस सौदा, आर्थिक सहायता या कोई बड़ा कॉन्ट्रैक्ट देखने को नहीं मिला है। इस बीच पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा के बेल्जियम दौरे (General Bajwa Insult In Belgium) पर भी इसका असर देखेन को मिला
अमेरिका ने पाकिस्तानी बैंक पर ठोका भारी जुर्माना
पाकिस्तान के अंदर इमरान खान की रूस यात्रा को लेकर लोगों के विचार भी काफी हद तक बंटे हुए हैं। एक पक्ष का मानना है कि पाकिस्तान की रूस से नजदीकी पर अमेरिका और ज्यादा नाराज हो सकता है। इसके अलावा कई पश्चिमी देश भी पाकिस्तान को एक विरोधी देश के तौर पर देख सकते हैं। इसका सबसे बुरा असर, विदेशों में नौकरी करने जाने वाले पाकिस्तानियों पर दिख सकता है। कई लोगों ने यह भी बताया कि अमेरिका ने हाल में ही पाकिस्तान को मनी लॉन्ड्रिंग का उल्लंघन करने को लेकर बड़ा जुर्माना लगाया था। यह बताता है कि अमेरिका के लिए पाकिस्तान अब प्राथमिकता वाला देश नहीं रहा है। ऐसे में अमेरिका के लिए पाकिस्तान के किसी भी चूक की अनदेखी करना अब आसान नहीं होगा। दरअसल, हाल में ही पाकिस्तान के नेशनल बैंक पर यूएस फेडरल रिजर्व बोर्ड ने 20.4 मिलियन डॉलर का जुर्माना लगाने के साथ दंडित किया था।
जनरल बाजवा की बेइज्जती से जोड़ा जा रहा कनेक्शन
अब ऐसा नहीं है कि अमेरिका पाकिस्तान को व्लादिमीर पुतिन के रूस के साथ संबंध बनाने के लिए प्रोत्साहित करेगा। दरअसल, वाशिंगटन ने इस्लामाबाद से कहा था कि वह इस दौरे पर नजर रख रहा है। यह संदेश इस्लामाबाद के लिए रूस के साथ बहुत दूर न जाने और अपने आचरण के बारे में सावधान रहने की चेतावनी दोनों था। यूरोप या अमेरिका के लिए रूस के साथ अपनी लड़ाई के बीच पाकिस्तान ने पश्चिमी देशों की नजरों में अपना बचा-खुचा महत्व भी खत्म कर दिया है। इसका असर हाल में ही देखने को भी मिला है। दरअसल, पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा कुछ दिनों पहले बेल्जियम की यात्रा पर गए हुए थे। यहां उन्हें फॉरेन और सिक्योरिटी पर यूरोपीय यूनियन के उच्च प्रतिनिधि जोसेप बोरेल ने मिलने का समय तक नहीं दिया। इसके अलावा बाजवा को यूरोपीय संघ के इंडो पैसिफिक की बैठक और म्यूनिख सिक्योरिटी कॉन्फ्रेंस में भी निमंत्रित नहीं किया गया।
पाकिस्तान चाहकर भी अमेरिका को क्यों नहीं छोड़ सकता
पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी भी विदेश नीति की स्वतंत्रता का ढोल पीटते रहते हैं। इसके बावजूद पाकिस्तान की हर नीति चीन के इशारों पर निर्भर रहती है। रूस के साथ पाकिस्तान के संबंध के पीछे भी चीन का ही हाथ बताया जा रहा है। अमेरिका निश्चित रूप से शीत युद्ध के जमाने के अपने सहयोगी देश पर नजर बनाए हुए है। पाकिस्तान चीन और रूस के साथ अपने संबंधों को मजबूत बनाना चाहता है, लेकिन उसकी अर्थव्यवस्था ऐसा करने नहीं दे रही है। पाकिस्तान को अब भी अपनी अर्थव्यवस्था को चलाने के लिए अमेरिका के कंट्रोल वाले अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) और विश्व बैंक से कर्ज लेना पड़ रहा है। रूस और चीन दोनों इस स्थिति में बिल्कुल नहीं हैं कि वो पाकिस्तान को जब चाहे तब नकद देने के लिए तैयार हों। फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स की ग्रे लिस्ट से बाहर आने के लिए भी पाकिस्तान को अमेरिका और बाकी पश्चिमी देशों के समर्थन की जरूरत है।
पाकिस्तान के अंदर इमरान खान की रूस यात्रा को लेकर लोगों के विचार भी काफी हद तक बंटे हुए हैं। एक पक्ष का मानना है कि पाकिस्तान की रूस से नजदीकी पर अमेरिका और ज्यादा नाराज हो सकता है। इसके अलावा कई पश्चिमी देश भी पाकिस्तान को एक विरोधी देश के तौर पर देख सकते हैं। इसका सबसे बुरा असर, विदेशों में नौकरी करने जाने वाले पाकिस्तानियों पर दिख सकता है। कई लोगों ने यह भी बताया कि अमेरिका ने हाल में ही पाकिस्तान को मनी लॉन्ड्रिंग का उल्लंघन करने को लेकर बड़ा जुर्माना लगाया था। यह बताता है कि अमेरिका के लिए पाकिस्तान अब प्राथमिकता वाला देश नहीं रहा है। ऐसे में अमेरिका के लिए पाकिस्तान के किसी भी चूक की अनदेखी करना अब आसान नहीं होगा। दरअसल, हाल में ही पाकिस्तान के नेशनल बैंक पर यूएस फेडरल रिजर्व बोर्ड ने 20.4 मिलियन डॉलर का जुर्माना लगाने के साथ दंडित किया था।
जनरल बाजवा की बेइज्जती से जोड़ा जा रहा कनेक्शन
अब ऐसा नहीं है कि अमेरिका पाकिस्तान को व्लादिमीर पुतिन के रूस के साथ संबंध बनाने के लिए प्रोत्साहित करेगा। दरअसल, वाशिंगटन ने इस्लामाबाद से कहा था कि वह इस दौरे पर नजर रख रहा है। यह संदेश इस्लामाबाद के लिए रूस के साथ बहुत दूर न जाने और अपने आचरण के बारे में सावधान रहने की चेतावनी दोनों था। यूरोप या अमेरिका के लिए रूस के साथ अपनी लड़ाई के बीच पाकिस्तान ने पश्चिमी देशों की नजरों में अपना बचा-खुचा महत्व भी खत्म कर दिया है। इसका असर हाल में ही देखने को भी मिला है। दरअसल, पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा कुछ दिनों पहले बेल्जियम की यात्रा पर गए हुए थे। यहां उन्हें फॉरेन और सिक्योरिटी पर यूरोपीय यूनियन के उच्च प्रतिनिधि जोसेप बोरेल ने मिलने का समय तक नहीं दिया। इसके अलावा बाजवा को यूरोपीय संघ के इंडो पैसिफिक की बैठक और म्यूनिख सिक्योरिटी कॉन्फ्रेंस में भी निमंत्रित नहीं किया गया।
पाकिस्तान चाहकर भी अमेरिका को क्यों नहीं छोड़ सकता
पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी भी विदेश नीति की स्वतंत्रता का ढोल पीटते रहते हैं। इसके बावजूद पाकिस्तान की हर नीति चीन के इशारों पर निर्भर रहती है। रूस के साथ पाकिस्तान के संबंध के पीछे भी चीन का ही हाथ बताया जा रहा है। अमेरिका निश्चित रूप से शीत युद्ध के जमाने के अपने सहयोगी देश पर नजर बनाए हुए है। पाकिस्तान चीन और रूस के साथ अपने संबंधों को मजबूत बनाना चाहता है, लेकिन उसकी अर्थव्यवस्था ऐसा करने नहीं दे रही है। पाकिस्तान को अब भी अपनी अर्थव्यवस्था को चलाने के लिए अमेरिका के कंट्रोल वाले अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) और विश्व बैंक से कर्ज लेना पड़ रहा है। रूस और चीन दोनों इस स्थिति में बिल्कुल नहीं हैं कि वो पाकिस्तान को जब चाहे तब नकद देने के लिए तैयार हों। फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स की ग्रे लिस्ट से बाहर आने के लिए भी पाकिस्तान को अमेरिका और बाकी पश्चिमी देशों के समर्थन की जरूरत है।