padma awards 2022: एमपी के पांच लोगों को मिला पद्मश्री, जानिए इनके बारे में h3>
वर्ष 2022 के लिए घोषित पद्म पुरस्कारों में एमपी के पांच लोगों को चुना गया है। इन सभी को पद्मश्री पुरस्कार से नवाजा गया है।
डॉ एनपी मिश्रा- चिकित्सा
मध्य प्रदेश में चिकित्सा जगत के पितामह के रूप में मशहूर डॉ एनपी मिश्रा का पिछले साल 5 सितंबर को निधन हो गया था। डॉ. एनपी मिश्रा ने गांधी मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस की डिग्री ली और कॉलेज के मेडिसिन विभाग के एचओडी बने। वे गांधी मेडिकल कॉलेज के डीन भी रहे। भोपाल गैस त्रासदी के समय डॉ. मिश्रा ने अपनी सूझबूझ से हमीदिया अस्पताल में कम समय में हजारों पीड़ितों के इलाज की व्यवस्था की थी।
रामसहाय पांडे- कला
बुंदेलखंड के लोक कलाकार रामसहाय पांडे जाने माने राई नर्तक हैं। उन्होंने राई जैसे परंपरागत नृत्य को मृदंग के साथ लयकारी देकर एक नया इतिहास रचा। उनका जन्म 11 मार्च, 1933 को एक गरीब ब्रह्मण परिवार में हुआ था। छह साल की उम्र में पिता और 11 साल की उम्र में उनकी मां का निधन हो गया। मृदंग बजाने की धुन में उन्होंने स्कूल जाना छोड़ दिया। उन्हें समाज की प्रताड़नाएं झेलनी पड़ीं, लेकिन राई नृत्य बजाना नहीं छोड़ा। आज वे किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। उन्हें कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुके हैं।
दुर्गाबाई व्याम- कला
मध्य प्रदेश में मंडला जिले के बुरबासपुर में पैदा हुईं दुर्गाबाई की चित्रकारी की सर्वाधिक आकर्षक विशेषता कथा कहने की उनकी क्षमता है। जब वह छह साल की थीं, तभी से उन्होंने अपनी मां से डिगना की कला सीखी। यह शादी-विवाह और उत्सवों के मौकों पर घरों की दीवारों और फर्शों पर चित्रित की जाने वाली परंपरागत चित्रकारी है। दुर्गाबाई के चित्र गोंड प्रधान समुदाय के देवकुल पर आधारित हैं। वे लोककथाओं को भी चित्रित करती हैं। इसके लिए वह अपनी दादी की आभारी हैं जो उन्हें अनेक कहानियां कहती थीं।
अर्जुन सिंह धुर्वे- कला
मध्य प्रदेश के डिंडोरी जिले के रहने वाले अर्जुन सिंह धुर्वे बैगा लोककला के ध्वजवाहक हैं। बैगा लोकगीत और नृत्य के लिए वे मशहूर हैं। पिछले चार दशकों से वे जनजातीय कला को लोकप्रिय बनने के काम में लगे हैं।
अवध किशोर जाड़िया- साहित्य
बुंदेली कवि अवध किशोर जाड़िया का जन्म हरपालपुर में 17 अगस्त, 1948 को हुआ था। हरपालपुर में शुरुआती शिक्षा के बाद उन्होंने ग्वालियर से बीएएमएस की डिग्री ली। इसके बाद सरकारी सेवा में रहते हुए वे बुंदेली साहित्य को आगे बढ़ाने में लगातार लगे रहे। वंदनीय बुंदेलखंड, ऊधव शतक, कारे कन्हाई के कान लगी है और विराग माला प्रमुख रचनाओं में शामिल हैं।
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डॉ एनपी मिश्रा- चिकित्सा
मध्य प्रदेश में चिकित्सा जगत के पितामह के रूप में मशहूर डॉ एनपी मिश्रा का पिछले साल 5 सितंबर को निधन हो गया था। डॉ. एनपी मिश्रा ने गांधी मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस की डिग्री ली और कॉलेज के मेडिसिन विभाग के एचओडी बने। वे गांधी मेडिकल कॉलेज के डीन भी रहे। भोपाल गैस त्रासदी के समय डॉ. मिश्रा ने अपनी सूझबूझ से हमीदिया अस्पताल में कम समय में हजारों पीड़ितों के इलाज की व्यवस्था की थी।
रामसहाय पांडे- कला
बुंदेलखंड के लोक कलाकार रामसहाय पांडे जाने माने राई नर्तक हैं। उन्होंने राई जैसे परंपरागत नृत्य को मृदंग के साथ लयकारी देकर एक नया इतिहास रचा। उनका जन्म 11 मार्च, 1933 को एक गरीब ब्रह्मण परिवार में हुआ था। छह साल की उम्र में पिता और 11 साल की उम्र में उनकी मां का निधन हो गया। मृदंग बजाने की धुन में उन्होंने स्कूल जाना छोड़ दिया। उन्हें समाज की प्रताड़नाएं झेलनी पड़ीं, लेकिन राई नृत्य बजाना नहीं छोड़ा। आज वे किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। उन्हें कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुके हैं।
दुर्गाबाई व्याम- कला
मध्य प्रदेश में मंडला जिले के बुरबासपुर में पैदा हुईं दुर्गाबाई की चित्रकारी की सर्वाधिक आकर्षक विशेषता कथा कहने की उनकी क्षमता है। जब वह छह साल की थीं, तभी से उन्होंने अपनी मां से डिगना की कला सीखी। यह शादी-विवाह और उत्सवों के मौकों पर घरों की दीवारों और फर्शों पर चित्रित की जाने वाली परंपरागत चित्रकारी है। दुर्गाबाई के चित्र गोंड प्रधान समुदाय के देवकुल पर आधारित हैं। वे लोककथाओं को भी चित्रित करती हैं। इसके लिए वह अपनी दादी की आभारी हैं जो उन्हें अनेक कहानियां कहती थीं।
अर्जुन सिंह धुर्वे- कला
मध्य प्रदेश के डिंडोरी जिले के रहने वाले अर्जुन सिंह धुर्वे बैगा लोककला के ध्वजवाहक हैं। बैगा लोकगीत और नृत्य के लिए वे मशहूर हैं। पिछले चार दशकों से वे जनजातीय कला को लोकप्रिय बनने के काम में लगे हैं।
अवध किशोर जाड़िया- साहित्य
बुंदेली कवि अवध किशोर जाड़िया का जन्म हरपालपुर में 17 अगस्त, 1948 को हुआ था। हरपालपुर में शुरुआती शिक्षा के बाद उन्होंने ग्वालियर से बीएएमएस की डिग्री ली। इसके बाद सरकारी सेवा में रहते हुए वे बुंदेली साहित्य को आगे बढ़ाने में लगातार लगे रहे। वंदनीय बुंदेलखंड, ऊधव शतक, कारे कन्हाई के कान लगी है और विराग माला प्रमुख रचनाओं में शामिल हैं।