Nitin Gadkari Hydrogen car: नितिन गडकरी ने की हाइड्रोजन कार की सवारी, जानिए इसमें क्या है भारत की तैयारी h3>
नई दिल्ली: केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी (Nitin Gadkari) बुधवार को ग्रीन हाइड्रोजन (Green Hydrogen) से चलने वाली कार से संसद पहुंचे। पेट्रोल और डीजल की बढ़ती कीमतों में बीच उनकी यह कार सबसे लिए जिज्ञासा का विषय बन गई। यह एक एडवांस कार है जिसमें एडवांस फ्यूल सेल का इस्तेमाल किया गया है। यह कार ऑक्सीजन और हाइड्रोजन के मिश्रण से पैदा होने वाली बिजली से चलती है। इसमें उत्सर्जन के रूप में केवल पानी निकलता है। इस तरह पर्यावरण के लिहाज से यह कार काफी फायदेमंद है।
पेट्रोल-डीजल की लगातार बढ़ रही कीमत और इनसे होने वाले प्रदूषण से बचने के लिए दुनियाभर में वैकल्पिक ईंधन पर चलने वाली गाड़ियों पर जोर है। गडकरी की इस कार को जापान की कंपनी टोयोटा ने पायलट प्रोजेक्ट के तहत बनाया है। इस कार का नाम ‘Mirai’ है, जिसका हिंदी में अर्थ होता है भविष्य। इस कार का खासियत यह है कि एक बार टंकी फुल करने पर यह 600 किमी का सफर कर सकती है। इसकी कीमत दो रुपये प्रति किलोमीटर पड़ेगी। इसकी टंकी पांच मिनट में ही फुल हो जाती है।
कैसे बनती है ग्रीन हाइड्रोजन
मोदी सरकार ने देश को हाइड्रोजन पावर बनाने के लिए एक अहम कदम उठाया है। इसके तहत सरकार ने नई ग्रीन हाइड्रोजन पॉलिसी (Green Hydrogen Policy) बनाई गई है। इसके तहत 2030 तक 50 लाख टन हाइड्रोजन बनाने की योजना है। जब पानी से बिजली गुजारी जाती है तो हाइड्रोजन पैदा होती है। इस हाइड्रोजन का इस्तेमाल बहुत सारी चीजों को पावर देने में होता है। अगर हाइड्रोजन बनाने में इस्तेमाल होने वाली बिजली किसी रिन्यूएबल सोर्स से आती है, मतलब ऐसे सोर्स से आती है जिसमें बिजली बनाने में प्रदूषण नहीं होता है तो इस तरह बनी हाइड्रोजन को ग्रीन हाइड्रोजन कहा जाता है।
क्या हैं इसके फायदे
हाइड्रोजन का इस्तेमाल कई तरह के सेक्टर में हो रहा है। इनमें केमिकल, आयरन, स्टील, ट्रांसपोर्ट, हीटिंग और पावर शामिल हैं। हाइड्रोजन के इस्तेमाल से प्रदूषण नहीं होता है। पिछले कुछ समय से दुनिया की बड़ी ऑयल और गैस कंपनियों की दिलचस्पी ग्रीन हाइड्रोजन में बढ़ी है। जानकारों का कहना है कि हर चीज के लिए इलेक्ट्रिक का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है। ऐसे में कुछ इंडस्ट्रियल प्रोसेस और हेवी ट्रांसपोर्टेशन के लिए गैस का इस्तेमाल किया जा सकता है। रिन्यूएबल हाइड्रोजन पूरी तरह से स्वच्छ है। रिन्यूएबल एनर्जी की कीमत घटने के साथ ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन की लागत में कमी आ रही है।
भारत बनेगा ग्रीन हाइड्रोजन का हब
भारत दुनिया में कच्चे तेल के बड़े आयातक देशों में से एक है। देश के आयात बिल में कच्चे तेल में हिस्सेदारी बहुत अधिक है। लेकिन जल्दी ही यह स्थिति बदल सकती है। भारत दुनिया में एनर्जी का बड़ा एक्सपोर्टर बन सकता है। ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के मुताबिक रिलायंस इंडस्ट्रीज (Reliance Industries) की ग्रीन एनर्जी योजना से भारत हाइड्रोजन (Hydrogen) के उत्पादन में हब बनकर उभर सकता है। एशिया के सबसे बड़े रईस और रिलायंस के चेयरमैन अंबानी ने ग्रीन एनर्जी में 75 अरब डॉलर के निवेश की घोषणा की है। कंपनी हाइड्रोजन पर जोर दे सकती है।
जानकारों के मुताबिक रिलायंस ग्रीन हाइड्रोजन इकॉनमी की पूरी वैल्यू चेन को अपने हाथ में लेने की तैयारी में है। कंपनी को इसमें भविष्य दिख रहा है। ग्रीन हाइड्रोजन को उत्सर्जन की समस्या से निपटने के लिए अहम माना जा रहा है। हालांकि रिलायंस ने अभी इस बात का खुलासा नहीं किया है कि 75 अरब डॉलर के निवेश में से कितना हिस्सा हाइड्रोजन के लिए होगा। अडानी एंटरप्राइजेज, एनटीपीसी (NTPC Ltd.) और आईओसी (Indian Oil Corp.) ने भी ग्रीन हाइड्रोजन के लिए योजना बनाई है। अभी ग्रीन हाइड्रोजन की कीमत 5 डॉलर प्रति किलो के आसपास है। लेकिन हाइड्रोजन कार की सोच को सही से जमीन पर उतारने को लेकर चुनौती कीमत को एक डॉलर प्रति किलो तक लाने की है। इसमें सबसे बड़ी चुनौती उत्पादन लागत में कमी लाना है।
कैसे हासिल होगा लक्ष्य
अंबानी ने एक डॉलर प्रति किलो के भाव पर ग्रीन हाइड्रोजन बनाने का लक्ष्य रखा है। यह इसकी मौजूदा लागत से 60 फीसदी कम है। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए इलेक्ट्रोलाइजर्स की कीमत में भारी कमी की जरूरत होगी। ग्रीन हाइड्रोजन बनाने के लिए इस इक्विपमेंट की जरूरत होती है। इसके अलावा 80 फीसदी से ज्यादा कैपेसिटी यूटिलाइजेशन की जरूरत होगी और हर घंटे तीन सेंट प्रति किलोवाट से भी कम कीमत पर बिजली सप्लाई चाहिए।
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पेट्रोल-डीजल की लगातार बढ़ रही कीमत और इनसे होने वाले प्रदूषण से बचने के लिए दुनियाभर में वैकल्पिक ईंधन पर चलने वाली गाड़ियों पर जोर है। गडकरी की इस कार को जापान की कंपनी टोयोटा ने पायलट प्रोजेक्ट के तहत बनाया है। इस कार का नाम ‘Mirai’ है, जिसका हिंदी में अर्थ होता है भविष्य। इस कार का खासियत यह है कि एक बार टंकी फुल करने पर यह 600 किमी का सफर कर सकती है। इसकी कीमत दो रुपये प्रति किलोमीटर पड़ेगी। इसकी टंकी पांच मिनट में ही फुल हो जाती है।
कैसे बनती है ग्रीन हाइड्रोजन
मोदी सरकार ने देश को हाइड्रोजन पावर बनाने के लिए एक अहम कदम उठाया है। इसके तहत सरकार ने नई ग्रीन हाइड्रोजन पॉलिसी (Green Hydrogen Policy) बनाई गई है। इसके तहत 2030 तक 50 लाख टन हाइड्रोजन बनाने की योजना है। जब पानी से बिजली गुजारी जाती है तो हाइड्रोजन पैदा होती है। इस हाइड्रोजन का इस्तेमाल बहुत सारी चीजों को पावर देने में होता है। अगर हाइड्रोजन बनाने में इस्तेमाल होने वाली बिजली किसी रिन्यूएबल सोर्स से आती है, मतलब ऐसे सोर्स से आती है जिसमें बिजली बनाने में प्रदूषण नहीं होता है तो इस तरह बनी हाइड्रोजन को ग्रीन हाइड्रोजन कहा जाता है।
क्या हैं इसके फायदे
हाइड्रोजन का इस्तेमाल कई तरह के सेक्टर में हो रहा है। इनमें केमिकल, आयरन, स्टील, ट्रांसपोर्ट, हीटिंग और पावर शामिल हैं। हाइड्रोजन के इस्तेमाल से प्रदूषण नहीं होता है। पिछले कुछ समय से दुनिया की बड़ी ऑयल और गैस कंपनियों की दिलचस्पी ग्रीन हाइड्रोजन में बढ़ी है। जानकारों का कहना है कि हर चीज के लिए इलेक्ट्रिक का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है। ऐसे में कुछ इंडस्ट्रियल प्रोसेस और हेवी ट्रांसपोर्टेशन के लिए गैस का इस्तेमाल किया जा सकता है। रिन्यूएबल हाइड्रोजन पूरी तरह से स्वच्छ है। रिन्यूएबल एनर्जी की कीमत घटने के साथ ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन की लागत में कमी आ रही है।
भारत बनेगा ग्रीन हाइड्रोजन का हब
भारत दुनिया में कच्चे तेल के बड़े आयातक देशों में से एक है। देश के आयात बिल में कच्चे तेल में हिस्सेदारी बहुत अधिक है। लेकिन जल्दी ही यह स्थिति बदल सकती है। भारत दुनिया में एनर्जी का बड़ा एक्सपोर्टर बन सकता है। ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के मुताबिक रिलायंस इंडस्ट्रीज (Reliance Industries) की ग्रीन एनर्जी योजना से भारत हाइड्रोजन (Hydrogen) के उत्पादन में हब बनकर उभर सकता है। एशिया के सबसे बड़े रईस और रिलायंस के चेयरमैन अंबानी ने ग्रीन एनर्जी में 75 अरब डॉलर के निवेश की घोषणा की है। कंपनी हाइड्रोजन पर जोर दे सकती है।
जानकारों के मुताबिक रिलायंस ग्रीन हाइड्रोजन इकॉनमी की पूरी वैल्यू चेन को अपने हाथ में लेने की तैयारी में है। कंपनी को इसमें भविष्य दिख रहा है। ग्रीन हाइड्रोजन को उत्सर्जन की समस्या से निपटने के लिए अहम माना जा रहा है। हालांकि रिलायंस ने अभी इस बात का खुलासा नहीं किया है कि 75 अरब डॉलर के निवेश में से कितना हिस्सा हाइड्रोजन के लिए होगा। अडानी एंटरप्राइजेज, एनटीपीसी (NTPC Ltd.) और आईओसी (Indian Oil Corp.) ने भी ग्रीन हाइड्रोजन के लिए योजना बनाई है। अभी ग्रीन हाइड्रोजन की कीमत 5 डॉलर प्रति किलो के आसपास है। लेकिन हाइड्रोजन कार की सोच को सही से जमीन पर उतारने को लेकर चुनौती कीमत को एक डॉलर प्रति किलो तक लाने की है। इसमें सबसे बड़ी चुनौती उत्पादन लागत में कमी लाना है।
कैसे हासिल होगा लक्ष्य
अंबानी ने एक डॉलर प्रति किलो के भाव पर ग्रीन हाइड्रोजन बनाने का लक्ष्य रखा है। यह इसकी मौजूदा लागत से 60 फीसदी कम है। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए इलेक्ट्रोलाइजर्स की कीमत में भारी कमी की जरूरत होगी। ग्रीन हाइड्रोजन बनाने के लिए इस इक्विपमेंट की जरूरत होती है। इसके अलावा 80 फीसदी से ज्यादा कैपेसिटी यूटिलाइजेशन की जरूरत होगी और हर घंटे तीन सेंट प्रति किलोवाट से भी कम कीमत पर बिजली सप्लाई चाहिए।
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