NEWS4SOCIALएक्सप्लेनर- जातिगत जनगणना के पीछे क्या है सियासी गणित: जो कांग्रेस के एजेंडे में था, अचानक BJP क्यों हुई तैयार; 10 जरूरी सवालों के जवाब

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NEWS4SOCIALएक्सप्लेनर- जातिगत जनगणना के पीछे क्या है सियासी गणित:  जो कांग्रेस के एजेंडे में था, अचानक BJP क्यों हुई तैयार; 10 जरूरी सवालों के जवाब

NEWS4SOCIALएक्सप्लेनर- जातिगत जनगणना के पीछे क्या है सियासी गणित: जो कांग्रेस के एजेंडे में था, अचानक BJP क्यों हुई तैयार; 10 जरूरी सवालों के जवाब

मोदी सरकार ने ऐलान कर दिया है कि अगली जनगणना में जाति के आधार पर गिनती भी होगी। ये फैसला चौंकाने वाला है, क्योंकि विपक्ष की मांग के बावजूद अब तक बीजेपी इसे टाल रही थी। इस घोषणा के बाद राहुल गांधी बोले- कहा था ना, मोदी जी को ‘जाति जनगणना’ करवानी ही पड

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कैसे और कब तक होगी जातिगत जनगणना, मोदी सरकार इसके लिए क्यों तैयार हुई और क्या अब आरक्षण की 50% लिमिट को भी बढ़ाया जाएगा; NEWS4SOCIALएक्सप्लेनर में ऐसे 10 जरूरी सवालों के जवाब जानेंगे…

सवाल-1: जातिगत जनगणना को लेकर केंद्र सरकार ने क्या फैसला लिया है?

जवाब: 30 अप्रैल 2025 को राजनीतिक विषयों की कैबिनेट कमेटी ने जातिगत जनगणना कराने का फैसला लिया। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने मीडिया को बताया कि जातियों की गणना अब आने वाली मूल जनगणना में ही शामिल होगी।

राजनीतिक मामलों की कैबिनेट कमेटी के अध्यक्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं। इसके अलावा इस कमेटी में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, गृह मंत्री अमित शाह, सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल भी इसमें शामिल हैं।

अश्विनी वैष्णव ने कहा,

1947 से जाति जनगणना नहीं की गई। कांग्रेस की सरकारों ने हमेशा जाति जनगणना का विरोध किया। 2010 में पीएम मनमोहन सिंह ने कहा था कि जाति जनगणना के मामले पर कैबिनेट में विचार किया जाना चाहिए। इसके लिए मंत्रियों का एक समूह बनाया गया था। ज्यादातर राजनीतिक दलों ने जाति जनगणना की सिफारिश की। इसके बावजूद भी कांग्रेस ने महज खानापूर्ति का ही काम किया। उसने सिर्फ सर्वे कराना ही उचित समझा।

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सवाल-2: इस घोषणा के बाद अब जाति जनगणना कब तक पूरी होगी?

जवाब: देश में पिछली जनगणना 2011 में हुई थी। इसे हर 10 साल में किया जाता है। इस हिसाब से 2021 में अगली जनगणना होनी थी, लेकिन कोविड-19 महामारी के कारण इसे टाल दिया गया था।

बिहार में अक्टूबर-नवंबर में चुनाव हैं, इसलिए कयास लगाए जा रहे हैं कि सरकार सिंतबर में ही जनगणना की शुरुआत कर सकती है। इसे पूरा होने में कम से कम 1 साल लगेगा, इसलिए जातिगत जनगणना के अंतिम आंकड़े 2026 के अंत या 2027 की शुरुआत तक आ सकते हैं।

जाति जनगणना के ऐलान के बाद राहुल गांधी ने कहा- हम इसे सपोर्ट करते हैं, लेकिन सरकार को इसकी समय सीमा बतानी होगी। हमने तेलंगाना में कास्ट सेंसस कराया, इसे मॉडल बनाया जा सकता है। हमें कास्ट सेंसस से आगे जाना है। किस जाति की ऊंचे पदों में कितनी हिस्सेदारी है, ये पता करनी है।

सवाल-3: ये जनगणना कैसे होगी, आम लोगों से क्या सवाल पूछे जाएंगे?

जवाब: पूरे देश में जनगणना के लिए सरकारी कर्मचारियों की नियुक्ति होती है, इन्हें एन्यूमेरेटर कहते हैं। ये तय किए गए इलाकों में पहुंचकर तमाम जानकारियां जुटाते हैं। जनगणना दो हिस्सों में होती है-

  • हाउस लिस्टिंग और हाउस सेंसस: 1 से दो महीने के समय में सभी कच्चे-पक्के घरों की गिनती, बिजली, पेयजल, शौचालय, प्रॉपर्टी जैसे सवाल पूछे जाते हैं। अप्रैल-मई 2010 में इसमें 45 दिन का समय लगा था।
  • पापुलेशन काउंटिंग: इसमें करीब 1 महीने का समय लगता है। इसमें लोगों की उम्र, लिंग, परिवार, जन्म की तारीख, वैवाहिक स्थिति, पता, रोजगार, धर्म और SC/ST हैं तो उसकी डिटेल्स पूछी जाती हैं।

जनगणना का रिकॉर्ड बताता है कि हर बार पूछे जाने वाले सवालों की संख्या बढ़ जाती है। मसलन, 2001 की तुलना में 2011 की जनगणना में कई एक्स्ट्रा सवाल पूछे गए। जैसे- जहां आप नौकरी करते हैं वो जगह आपके घर से कितनी दूर है। गांव का नाम भी पहली बार पूछा गया था।

आखिर में इस डेटा को इकठ्ठा करके इसे नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर में दर्ज किया जाता है। जनगणना अधिनियम 1948 के तहत जनगणना का विस्तृत डेटा गोपनीय रखा जाता है।

2011 तक जनगणना फॉर्म में कुल 29 कॉलम होते थे। इनमें नाम, पता, व्यवसाय, शिक्षा, रोजगार और माइग्रेशन जैसे सवालों के साथ केवल SC और ST कैटेगरी से ताल्लुक रखने को रिकॉर्ड किया जाता था। अब जाति जनगणना के लिए इसमें एक्स्ट्रा कॉलम जोड़े जा सकते हैं।

जनगणना में कुछ इस तरह का फॉर्म भरना होता है।

सवाल-4: मुसलमानों में भी कई तरह की जातियां हैं, क्या उनकी भी जनगणना होगी?

जवाब: पॉलिटिकल एनालिस्ट रशीद किदवई कहते हैं कि मुसलमानों में कई पिछड़ी जातियां हैं। उनकी भी गिनती की जाएगी। मुख्य समस्या जनगणना के बाद शुरू होगी, जब इसे लेकर योजनाएं और रिजर्वेशन लागू करने की मांग होगी। मुसलमानों के अलावा महिलाओं या किसी भी अन्य जाति वर्ग को लेकर भी नए सिरे से एक बहस छिड़ेगी।

सवाल-5: क्या भारत में इससे पहले भी जाति आधारित जनगणना हुई है?

जवाब: साल 1881 में अंग्रेजों ने पहली बार जनगणना करवाई थी। इसमें जातियों की भी गिनती होती थी। 1931 तक ऐसा ही चलता रहा। तब पूर्ण जातिगत जनगणना हुई थी। 1941 में जातिगत जनगणना तो हुई, लेकिन इसके आंकड़े सार्वजनिक नहीं किए गए।

इसके बाद आजाद भारत की पहली कैबिनेट में शामिल नेहरू, पटेल और आंबेडकर जैसे नेताओं ने तय किया कि जातिगत जनगणना नहीं करवाई जाएगी, क्योंकि इससे समाज में बंटवारा होगा।

आजादी के बाद 1951 में पहली जनगणना हुई, इसमें सभी जातियों के बजाय सिर्फ अनुसूचित जातियों (SC) और अनुसूचित जनजातियों (ST) की गिनती हुई। यानी SC और ST का डेटा दिया गया लेकिन OBC और दूसरी जातियों का डेटा नहीं दिया गया।

तब से ऐसा ही चला आ रहा है। हर दस साल में होने वाली जनगणना में SC और ST के अलावा दूसरी किसी भी जाति का डेटा नहीं दिया जाता है।

सवाल-6: सिर्फ SC/ST की जातिगत जनगणना क्यों होती है?

जवाब: 1951 से 2011 तक हर 10 साल पर जनगणना होती रही है। इसके पीछे संवैधानिक कारण हैं। दरअसल, संविधान की धारा 330 और 332 में यह प्रावधान है कि SC और ST समुदायों की जनसंख्या के आधार पर उनके लिए लोकसभा और राज्यसभा में सीटें रिजर्व की जाएं।

बिना सही जनसंख्या का पता लगाए उस अनुपात में सीटें रिजर्व करना संभव नहीं है, इसीलिए हर 10 साल में होने वाली जनगणना के साथ ही SC और ST के आंकड़े भी जारी किए जाते हैं। 2021 में जनगणना हुई नहीं है, इसलिए अभी SC और ST सीटों का रिजर्वेशन 2011 की जनगणना के आधार पर ही किया जाता है।

समय-समय पर पिछड़ी जातियों के रिजर्वेशन के लिए सभी जातियों की जनगणना की भी मांग की जाती रही है, लेकिन इसके लिए संविधान में कोई प्रावधान नहीं है।

हालांकि साल बिहार और कर्नाटक जैसे राज्यों में जातिगत सर्वे कराए गए हैं। 2023 में बिहार सरकार ने इसके आंकड़े भी जारी किए थे।

सवाल-7: बिहार और कर्नाटक जैसे राज्यों में हुए जातिगत सर्वे और इस जनगणना में क्या फर्क है?

जवाब: बिहार ने 2 अक्टूबर, 2023 को जातिगत जनगणना (सर्वे) के आंकड़े जारी किए थे। ऐसा करने वाला देश का पहला राज्य बना था। जातिगत जनगणना और जातिगत सर्वे में तीन बड़े फर्क हैं-

1. जातिगत जनगणना का अधिकार सिर्फ केंद्र को

  • राष्ट्रीय स्तर पर जनगणना करवाना केंद्र सरकार का अधिकार है। 1948 के जनगणना एक्ट के तहत केंद्र सरकार का गृह मंत्रालय जनगणना से जुड़े नियम बनाने, जनगणना के लिए कर्मचारी नियुक्त करने और लोगों से डेटा इकट्ठा करने का काम कर सकता है।
  • संविधान के आर्टिकल 246 के तहत जनगणना संघ सूची का विषय है। इस सूची में डिफेंस, विदेशी मामले, जनगणना और रेलवे जैसे 100 मुद्दे हैं, जिन पर सिर्फ संसद कानून बना सकती है।
  • राज्य सरकारें अपने राज्य में सामाजिक और आर्थिक मामलों से जुड़ी योजनाएं बनाने के लिए सर्वे करवा सकती हैं। 2008 के सांख्यिकी संग्रह अधिनियम के तहत उन्हें इसका अधिकार है।
  • किसी सर्वेक्षण के लिए राज्य सरकार कोई कमेटी या आयोग भी बना सकती है। इसी अधिकार के तहत उत्तराखंड ने यूनिफॉर्म सिविल कोड के लिए कमेटी बनाई और सर्वे करके आंकड़े जुटाए थे।

सैम्पल साइज और डेटा में फर्क

  • जनगणना पूरे देश में चलने वाली एक लंबी प्रोसेस है। इसमें एक तय समय के दौरान पूरे देश के लोगों को शामिल किया जाता है, जबकि जातिगत सर्वे का सैम्पल साइज छोटा होता है।
  • जनगणना में कई तरह के सवाल पूछे जाते हैं, जबकि जातिगत सर्वे में सिर्फ समुदाय, जाति और उपजाति से जुड़े सवाल पूछे जाते हैं। बिहार में हुई जनगणना में सिर्फ 15 सवाल पूछे गए थे।

जनगणना संवैधानिक मुद्दा, जातिगत सर्वे राज्य सरकारों की मर्जी

  • जनगणना करवाने को लेकर संविधान में प्रावधान हैं। वहीं जातिगत सर्वे राज्य सरकारों की अपनी मर्जी से कराए जाते हैं। इसके पीछे अक्सर राजनीतिक मंशा होती है। जबकि तर्क ये दिया जाता है कि इससे योजनाएं और आरक्षण तय करने में मदद मिलेगी।

सवाल-8: सरकार के जातिगत जनगणना के ऐलान का राजनीतिक मकसद क्या है?

जवाब: सबसे पहले जातिगत जनगणना पर सभी पार्टियों का पुराना स्टैंड समझते हैं-

विपक्ष: कांग्रेस समेत BJD, SP, RJD, BSP, NCP शरद पवार देश में जातिगत जनगणना की मांग कर रही हैं। TMC का रुख साफ नहीं है। विपक्ष के नेता और कांग्रेस सांसद राहुल गांधी लगातार जाति जनगणना की मांग करते रहे हैं।

NDA: भाजपा पहले जाति जनगणना के पक्ष में नहीं थी। NDA ने कांग्रेस समेत दूसरी विपक्षी पार्टियों पर आरोप लगाए थे कि ये जातिगत जनगणना के जरिए देश को बांटने की कोशिश कर रही हैं। हालांकि बिहार में भाजपा ने ही जातिगत जनगणना का सपोर्ट किया था।

जातिगत जनगणना की कांग्रेस की मांग के पीछे एक बड़ी वजह OBC वोटर को लुभाना था। दरअसल, आजादी के बाद से लंबे समय तक पिछड़ा वर्ग कांग्रेस का पारंपरिक वोटर रहा था। 2014 में इसका बड़ा चंक बीजेपी की तरफ शिफ्ट हो गया। कांग्रेस लंबे समय से इस वोट शेयर को दोबारा हासिल करने की कोशिश में है।

2024 के लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में वादा किया था कि सत्ता में आने पर जातियों की सामाजिक और आर्थिक स्थितियों को समझने के लिए देश भर में जाति जनगणना करवाएगी।’ राहुल गांधी ने चुनाव प्रचार के दौरान भी जातिगत जनगणना करवाने का वादा किया था।

अश्विनी वैष्णव ने जातिगत जनगणना का ऐलान करते हुए कहा, कांग्रेस और सहयोगी दलों ने जाति जनगणना को केवल एक राजनीतिक टूल के बतौर इस्तेमाल किया है।’ इस ऐलान के बाद राहुल ने कहा है कि हम इसे सपोर्ट करते हैं। कांग्रेस के नेता इसे कांग्रेस की जीत बता रहे हैं।

हालांकि एक्सपर्ट्स कहते हैं कि बीजेपी ने एक झटके में कांग्रेस से उसका एक बड़ा मुद्दा छीन लिया है। पॉलिटिकल एनालिस्ट अमिताभ तिवारी कहते हैं कि इस ऐलान के पीछे बीजेपी के तीन ऑब्जेक्टिव हो सकते हैं-

1. कांग्रेस के मुद्दे को खत्म करना: विपक्ष ने सरकार को वो मुद्दा दिया, जिसको उसने पूरा कर दिया, ऐसे में इसका पूरा क्रेडिट सरकार को जाएगा।

2. अपना पिछड़ा वर्ग का वोट शेयर बढ़ाना: 2024 के लोकसभा चुनाव में खास तौर पर यूपी और बिहार में बीजेपी का गैर यादव OBC वोट शेयर कम हुआ है। इसे वापस हासिल करने के लिए यह फैसला लिया गया।

3. बिहार चुनाव में नए मुद्दे की तलाश: इस फैसले से बीजेपी को बिहार चुनाव में पिछड़े वर्ग के वोटर्स को टारगेट करने में आसानी होगी।

सवाल-9: मोदी सरकार ने ये फैसला अभी ही क्यों किया?

जवाब: अमिताभ तिवारी कहते हैं कि अभी ये फैसला लेने की दो वजहें हैं-

  • इसी साल बिहार के विधानसभा चुनाव: बिहार के पिछले विधानसभा चुनावों में बीजेपी के पास कभी RJD के कथित जंगलराज का मुद्दा था तो कभी नीतीश कुमार के सुशासन का नारा था, इस फैसले से उन्हें चुनाव में नया आधार मिलेगा।
  • पहलगाम हमले के मुद्दे से डायवर्जन: पहलगाम में आतंकी हमले के बाद से अब तक कोई बड़ा मिलिट्री एक्शन नहीं हुआ है, अब उसकी बजाय इस फैसले की चर्चा होगी। 2029 के चुनाव के लिए भी एक बड़ा मुद्दा तैयार हो गया है।

रशीद किदवई भी कहते हैं कि बीजेपी सिर्फ बिहार चुनाव नहीं देख रही, 2024 के उनका 400 सीटें लाने का टारगेट था। अभी देश में जिस तरह का माहौल है, मध्यावधि चुनाव भी हो सकते हैं। उसके मद्देनजर यह फैसला लिया गया है।

हालांकि रशीद किदवई के मुताबिक, पहलगाम हमले से ध्यान हटाने के के लिए यह फैसला नहीं लिया गया। वह कहते हैं, ‘मोदी एक मंझे हुए नेता हैं, बिहार चुनाव और पहलगाम हमले को वह अलग-अलग तरीके से देख रहे हैं।’

सवाल-10: क्या जातिगत जनगणना के बाद आरक्षण पर 50% की लिमिट हट जाएगी?

जवाब: जातिगत जनगणना में सिर्फ अलग-अलग जाति के लोगों की गिनती होगी। इसके आधार पर अभी किसी जाति को कोई फायदा नहीं मिलेगा। हालांकि इस जनगणना के आधार पर जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी की मांग तेजी से उठ सकती है। ऐसे में आरक्षण से 50% कैप हटाने का मुद्दा भी उठेगा।

पॉलिटिकल एनालिस्ट रशीद किदवई कहते हैं कि कांग्रेस की मांग सिर्फ जातिगत जनगणना नहीं थी। उसने घोषणा पत्र में कहा था कि सत्ता में आने पर रिजर्वेशन की सीमा (जो कि अभी अधिकतम 50%) है, उसे बढ़ाने के लिए संवैधानिक कोशिश करेंगे।

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