NCR में बिल्डर-बैंक नेक्सेस की होगी CBI जांच: नोएडा ग्रेटरनोएडा में 70 हजार बायर्स को नहीं मिला फ्लैट, सबवेंशन स्कीम में ऐसे फंसे बायर्स – Noida (Gautambudh Nagar) News h3>
एनसीआर में बिल्डरों और बैंकों और एनबीएफसी के बीच कथित सांठगांठ की जांच सीबीआई करेगी। ये आदेश सुप्रीम कोर्ट ने बायर्स की याचिका पर दिया है। यह निर्णय उन हजारों घर खरीदारों की शिकायतों के बाद आया है, जो सालों से अपने फ्लैटों का कब्जा नहीं पा सके हैं, ज
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क्या है कोर्ट का आदेश इसे जाने सुप्रीम कोर्ट के अपने आदेश में कहा कि एनसीआर में बिल्डर-बैंकों के गठजोड़ की सीबीआई जांच होगी। इस मामले में सीबीआई निदेशक को एसआईटी बनाने के निर्देश दिए गए है। यूपी और हरियाणा डीजीपी को सीबीआई को पुलिस अफसर मुहैया कराने के आदेश दिया गया है। इनमें एक PE सुपरटेक के खिलाफ होगी। मामले की मॉनिटरिंग खुद सुप्रीम कोर्ट करेगा। इस मामले में सीबीआई से मांगी अंतरिम स्टेटस रिपोर्ट मांगी गई है। इस मामले में हर महीने सुप्रीम कोर्ट सुनवाई करेगा।
बायर्स को फंसाने के लिए बिल्डर लेकर आया सबवेंशन स्कीम क्या है?
सबवेंशन स्कीम रियल एस्टेट डेवलपर्स द्वारा बैंकों के सहयोग से शुरू की गई एक भुगतान योजना थी। जिसका उद्देश्य घर खरीदने वालों के लिए संपत्ति खरीदना अधिक आसान और आकर्षक बनाना था। इस योजना के तहत खरीदार एक छोटे से शुरुआती निवेश के साथ घर बुक कर सकते थे। जबकि बिल्डर ने कब्जा मिलने तक लोन ब्याज (प्री-ईएमआई) का भुगतान करने की जिम्मेदारी ली थी।
सबवेंशन स्कीम कैसे काम करती है
- घर खरीदने वाला व्यक्ति एक अग्रिम राशि का भुगतान करता था, जो आमतौर पर कुल संपत्ति लागत का 5% से 20% होता था।
- बैंक शेष राशि के लिए होम लोन स्वीकृत करता था और कुल लागत का 80-95% सीधे डेवलपर को वितरित करता था।
- बिल्डर परियोजना पूरी होने और कब्जा सौंपे जाने तक लोन पर केवल ब्याज (प्री-ईएमआई) का भुगतान करने के लिए सहमत हुआ।
- जब खरीदार को संपत्ति का कब्जा मिल गया, तो उसने शेष राशि का भुगतान किया और लोन पर पूरी ईएमआई का भुगतान करना शुरू कर दिया।
कैसे बायर्स हो गए डिफाल्टर
बिल्डर की योजना में बायर्स आ गए। उन्होंने कुल लागत का 5 से 20 प्रतिशत तक पैसा बिल्डर को देकर फ्लैट बुक कराया। इसके बाद बिल्डर ने बैंक से प्रॉपर्टी पर 80 प्रतिशत का लोन दिलाया। ये लोन बिल्डर के पास गया। योजना के तहत बिल्डर को लोन की ईएमआई पर लगने वाले ब्याज का भुगतान बैंक को करना था। कुछ किस्ते भरने के बाद बिल्डर ने ब्याज देना बंद कर दिया। ये पैसा अन्य परियोजना में डायवर्ट किया। साथ ही निर्माण कार्य भी बंद कर दिया। ऐसे में बायर्स को न तो फ्लैट मिला ब्याज और किस्त जमा नहीं होने पर वो डिफाल्टर हो गया।
नोएडा ग्रेटरनोएडा में इसका असर अदालत ने पाया कि सुपरटेक के 6 शहरों में 21 से अधिक प्रोजेक्ट हैं। जिनमें 19 वित्तीय संस्थान हैं। इनमें से कम से कम 800 पीड़ित घर खरीदार हैं। रिपोर्ट में सिफारिश की गई है कि सुपरटेक और 8 बैंकों के बीच अंतर्निहित साठगांठ की प्राथमिकता के आधार पर जांच की जानी चाहिए। इसके अलावा दिल्ली एनसीआर के अन्य शहरों में भी बिल्डर और बैंक के कथित साठगांठ की जांच की जाए।
दरअसल नोएडा और ग्रेटरनोएडा में अब भी करीब 70 हजार से ज्यादा फ्लैट बायर्स है जिनको फ्लैट नहीं मिला है। इसमें सुपरटेक , जेपी, यूनीटेक और आम्रपाली के फ्लैट बायर्स है। प्रदर्शन के दौरान इनका हर बार यहीं कहना होता है कि हम बिल्डर को पूरा पैसा दे चुके है। लेकिन अब तक हमे घर नहीं मिला। जबकि ईएमआई लगातार जारी है। सीबीआई जांच के बाद इस बड़े नेक्सेस का खुलासा होगा।