Narco Terror : गिरफ्तारी से पहले तीन दिन और दो रात कहां रुका था आतंकी करणदीप? गांव वालों ने खोला एक राज

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Narco Terror : गिरफ्तारी से पहले तीन दिन और दो रात कहां रुका था आतंकी करणदीप? गांव वालों ने खोला एक राज

Narco Terror : गिरफ्तारी से पहले तीन दिन और दो रात कहां रुका था आतंकी करणदीप? गांव वालों ने खोला एक राज

प्रतिबंधित खालिस्तानी आतंकी संगठन बब्बर खालसा इंटरनेशनल का गुर्गा करणदीप यादव होली के दिन मधेपुरा के कुमारखंड थाना क्षेत्र से अपने दो साथियों के साथ गिरफ्तार किया गया है। उसके बाद मधेपुरा और सुपौल के लोग सकते में हैं। पंजाब पुलिस के अनुसार करणदीप नार्को टेरर मॉड्यूल का अहम हिस्सा था। मूल रूप से सुपौल जिले के छातापुर प्रखंड अंतर्गत भट्टाबारी वार्ड 08 निवासी करणदीप गिरफ्तारी के दो दिन पहले से कुमारखंड थाना क्षेत्र में अपने मामा के घर छिपा हुआ था। शुक्रवार को उसकी गिरफ्तारी की गई। अब जानकारी सामने आ रही है कि कुमारखंड जाने के पहले करणदीप अपने पैतृक गांव पहुंचा था। वहां वह तीन दिन और दो रात के लिए रुका था। वह गांव से यह कह कर निकला था कि वह सीधा पंजाब जाएगा।

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दोनों मोबाइल का डाटा वॉश, फोरेंसिक जांच में भेजा गया

गांव में रहने के दौरान करणदीप पंजाबी में ही बातचीत करता था, इसलिए परिजनों को भी उसकी पूरी बात समझ में नहीं आती थी। करीब 60 घंटे से अधिक समय गांव में गुजारने के दौरान करणदीप महज कुछ घंटों के लिए तीन से चार बार ही बाजार के लिए निकला। वह लंबे समय बाद अपने गांव पहुंचा था और गांव के किसी भी व्यक्ति से उसकी कोई जान-पहचान भी नहीं थी। गांव से अरसे पहले गए मनोज यादव उर्फ मन्नू के बेटे करणदीप का संबंध आतंकी संगठन से होने की बात से लोग हैरान हैं। इधर, गिरफ्तारी के दौरान पंजाब पुलिस ने आतंकियों के पास से नेपाली करेंसी सहित दो मोबाइल जब्त किए हैं। हालांकि दोनों मोबाइल का डाटा वॉश किया गया है। पुलिस ने मोबाइल को फोरेंसिक जांच के लिए भेज दिया है और डाटा रिकवर करने का प्रयास किया जा रहा है।

सुपौल स्थित पैतृक गांव में करणदीप की दादी व अन्य परिजन।

चार भाइयों में दूसरा है करणदीप का पिता, कभी-कभार ही घर आता था

स्थानीय ग्रामीण बताते हैं कि गंगा प्रसाद यादव के चार पुत्र हैं। जिसमें गजेंद्र यादव, मनोज यादव, बबलु यादव और पप्पु यादव शामिल हैं। सभी भाई परिवार के भरण-पोषण के लिए बाहर रहते हैं। तीन भाइयों का अक्सर घर आना-जाना लगा रहता है और उनके परिवार के सदस्य भी गांव में ही रहते हैं। जबकि मनोज अपने गांव में मन्नू नाम से पहचाना जाता है। मनोज बीते 20 सालों से पंजाब में सपरिवार रह रहा है। परिजनों के अत्यधिक अनुरोध पर ही शादी समारोह, किसी परिजन की मृत्यु या खास कार्यक्रम में बमुश्किल एक दिन के लिए उनका घर आना होता था। अगले ही दिन वह वापस चला जाता था। ग्रामीणों का कहना है कि मन्नू यादव सीधा-साधा इंसान है। हालांकि, करणदीप के बारे में सभी अनभिज्ञता जात रहे हैं। कुछ महीने पहले गांव में उसके गलत कामों में संलिप्तता की चर्चा हुई थी, जुड़ाव नहीं रहने के कारण लोगों ने इस पर ध्यान नहीं दिया।

सुपौल स्थित पैतृक गांव में करणदीप की दादी व अन्य परिजन।

सुपौल स्थित पैतृक गांव में करणदीप के पिता का घर।

दादी बोली- पता नहीं था, पोता क्या करता है

मनोज के पड़ोसियों ने बताया कि गांव के अन्य लोग भी पंजाब में रहते हैं, लेकिन मनोज किसी से संपर्क नहीं रखता है। इधर, करणदीप के गिरफ्तारी की जानकारी गांव के परिजनों को नहीं थी। पोते के आतंकी संगठन से जुड़े होने की बात से अनजान दादी कौशल्या देवी ने बताया कि मन्नू कुंवारे से ही बाहर रहता है। बाकी तीन बेटों का घर आना-जाना लगा रहता है, लेकिन मन्नू अपनी पत्नी और बच्चों के साथ पंजाब में स्थायी रूप से बस गया है। परिजनों के अनुरोध पर ही वह कभी-कभार गांव आता है। वह बताती है कि होली से पहले करणदीप करीब पांच साल के बाद घर आया था। दो-तीन दिन रुकने के बाद पंजाब जाने की बात कह कर घर से निकला था। बताया कि करणदीप पंजाबी में बात करता था, जो वह समझ नहीं पाती थी। केवल खाने और सोने की बात इशारे से समझती थी। करणदीप क्या करता है, यह पता नहीं था।

सुपौल स्थित पैतृक गांव में करणदीप की दादी व अन्य परिजन।

सुपौल स्थित पैतृक गांव में करणदीप के घर अब भी फूस का इसी तरह बना है।

बिल्डर मनोज का पैतृक घर फूस का, मां भी उसी में रहती है

पंजाब पुलिस की गिरफ्त में आया आतंकी करणदीप का पिता मनोज यादव अमृतसर में बिल्डर का काम करता है। वहीं पंजाब पुलिस की मानें तो 21 वर्षीय करणदीप दिखावे के लिए शटरिंग का काम करता है। वह दरअसल नार्को-टेरर मॉड्यूल गिरोह का सरगना है। सुपौल के छातापुर प्रखंड अंतर्गत भट्टाबारी वार्ड 08 में मनोज का पैतृक घर अभी भी फूस का है। मनोज के अन्य तीन भाइयों के पत्नी और बच्चे सहित उसकी मां भी फूस के घर में ही रहती हैं। परिजन कहते हैं कि हम अभी भी मुफलिसी में जीवन गुजार रहे हैं। हमें उम्मीद भी नहीं थी कि हमारे परिवार का कोई सदस्य ऐसे काम करेगा।

(इनपुट- केशव, सुपौल)

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