सांप सीढ़ी खेल में प्राचीन समय में सांप और सीढियों को किसका प्रतीक मानते थे ?

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सांप सीढ़ी
सांप सीढ़ी

सांप सीढ़ी के खेल की खोज भारत में की गई थी. इस खेल को वर्तमान समय में भी भारत में खेला जाता है. इस खेल को तैयार करने का श्रेय़ 13 वीं शताब्दी में कवि संत ज्ञान देव को दिया जाता है. इस खेल को मूल रूप से मोक्षपट भी कहा जाता था. भारत के इतिहास में इस खेल के आविष्कार को बड़ी खोज माना जाता है. लेकिन सबसे बड़ी रोचक बात यह है कि यह खेल हमें खेल के साथ साथ अध्यात्मिकता का स्मरण भी हमेशा कराता रहता है.

सांप सीढी

ऐसे माना जाता है कि इस खेल में जो डिब्बे हम देखते हैं, वो हमारे जीवन के स्टेजों को दर्शाते हैं. इसके साथ ही जो सीढ़ियां होती हैं, वो वरदान का प्रतीक हैं. इस खेल में आपको सीढियों के साथ साथ कई जगहों पर सांप भी देखने को मिलते हैं. सांप इंसान के अवगुणों का प्रतीक हैं. जिसको जिंदगी में वरदान मिलता है,वो जैसे खेल में सीढियों से तरक्की होती है, ऐसे ही जिंदगी में भी वरदान सिढ़ियों का काम करते हैं. सांप को अवगुणो का प्रतीक माना जाता है. अगर हमारे अंदर अवगुण आएगें तो हम वापस अपनी मंजिल से बहुत दूर चले जाते हैं.

सांप सीढ़ी

इस खेल को कौडियों तथा पांसे के साथ खेला जाता था. लेकिन समय के साथ-साथ इस खेल में भी बहुत बदलाव हुए. लेकिन इस खेल में मूल अर्थ वहीं रहा कि अच्छे कर्म हमें हमेशा मंजिल की तरफ या स्वर्ग की तरफ लेकर जाते हैं वहीं अवगुण या बुरे कर्म हमें जिंदगी के दोबारा मरण जीवन चक्र में डाल देते हैं तथा इंसान अवगुणों को अपनाने के कारण यहीं भटकता रहता है.

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सांप सीढ़ी का खेल जिसका आविष्कार भारत में हुआ. यह एक खेल के साथ ही लोगों को जीवन की सच्चाई से भी अवगत कराता है.