मुंबई: भारत के कई हिस्सो में कोरोना वायरस की दूसरी लहर से हालात काफी बिगड़ गए हैं. इसी को देखते हुए अब पूरे मुंबई शहर में करीब 175 मौलाना झुग्गी बस्तियों में जाकर लोगों को बताएंगे कि मास्क पहनना क्यों जरूरी है और इसका इस्लामिक महत्त्व क्या है? अब जब मुंबई में मस्जिदें खुल गई हैं तो मस्जिदों में कैसे सोशल डिस्टेंसिंग का पालन किया जाए, इन बातों को लेकर भी मौलाना लोगों को सचेत करेंगे.
दिल्ली समेत देश के कई हिस्सों में कोरोना की दूसरी लहर देखने को मिल रही है. ऐसे में मौलाना मतलूब अहमद अंसारी अपने कुछ साथियों के साथ मिलकर मुंबई की छोटी-छोटी झुग्गी, झोपड़ियों में जाकर लोगों को समझा रहे हैं कि इन दिनों मास्क पहनना क्यों जरूरी है और इसके इस्लामिक मायने क्या हैं?
बता दें कि अभी हाल ही में मुंबई समेत पूरे महाराष्ट्र में धार्मिक स्थल खोल दिए गए हैं. ऐसे में कई मस्जिदों में भारी भीड़ देखने को मिली, इसलिए मौलाना मतलूब अहमद अंसारी झुग्गी, झोपड़ियों में रहने वाले गरीब तबके के लोगों को ये भी समझा रहे हैं कि मस्जिदों में नमाज पढ़ने के लिए जाना जरूरी नही हैं.
अगर आप जा भी रहे हों तो वजू (हाथ, पैर और शरीर को पानी से अच्छी तरह से धोना) अपने घर से ही करके जाएं ताकि मस्जिद में भीड़ ना लगे. इस मुहिम में मौलाना मतलूब अहमद अंसारी अकेले नहीं हैं. उनके साथ पेशे से डॉक्टर मोहम्मद अनवर शेख भी लोगों के पास जाकर इसी तरह समझा रहे हैं ताकि दीन के साथ-साथ लोगों को कोरोना से जुड़ी तकनीकी बातें भी बताई जा सकें.
गौरतलब है कि तबलीगी जमात के ऊपर शुरुआत में कोरोना फैलाने के कई आरोप लगे थे. काफी दिनों तक मुंबई में कोरोना के आंकड़े ज्यादा आने के बाद अब स्थिति थोड़ी सुधरी है. लेकिन कोरोना की दूसरी लहर में हालात ज्यादा खराब ना हों, इसलिए झुग्गी, झोपड़ियों में जाकर गरीब तबके के लोगों को ये समझाया जा रहा है कि किस तरह से खुद को और दूसरों को इस कोरोना महामारी से बचाना है.
हालांकि कई बार लोग इसे अपने धर्म से जुड़ी बात कह कर सवाल जवाब भी करते हैं लेकिन कोशिश इस बात की है कि मौलाना मौलवी ही लोगों को ये बात बताएं. इसलिए पूरे मुंबई शहर में करीब 175 मौलाना अब इस काम में जुट गए हैं. NGO के साथ मिलकर इन मौलानाओं को ट्रेनिंग दी जाती है ताकि लोग आसानी से इनकी बात समझ सकें.
NGO भामला फाउंडेशन के आसिफ भामला बताते हैं कि अभी फिलहाल उन जगहों पर मौलाना, मौलवी और डॉक्टर्स की टीम के साथ जाकर ये जागरूकता अभियान चला रहे हैं जहां कम पढ़े-लिखे या आर्थिक रूप से कमजोर मुस्लिम समाज के लोग रहते हैं.
उन्होंने आगे कहा कि कानून तोड़ने में यहां के लोगों की संख्या ज्यादा होती है. अब तरीका ये है कि इन लोगों को इनकी ही भाषा में कोरोना के खिलाफ लड़ाई के लिए तैयार किया जाए.