MP Politics- प्रदेश अध्यक्ष के बदलाव की पटकथा सप्ताहभर पहले ही लिखी गई थी, कमलनाथ ने मांगी थी कामकाज की रिपोर्ट | NSUI’s Manjul Script written a week ago, Kamal Nath asked for report | Patrika News h3>
मंजूल को हटाने की पटकथा सप्ताहभर पहले ही लिखी जा चुकी थी। पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने विगत सप्ताह उनके कामकाज की रिपोर्ट मांगी थी। बता दें कि मंजुल रीवा इकाई के अध्यक्ष रहते हुए छात्रों की समस्याओं की आवाज उठाते रहे हैं, लेकिन प्रदेश अध्यक्ष बनते ही छात्रों की समस्याओं से अधिक उनका फोकस राजनैतिक गतिविधियों पर रहा है। यही उनके लिए सबसे बड़ी कमजोरी बनी।
जिलों में नई इकाइयां भी नहीं बना पाए थे
बीते साल दो अक्टूबर को विपिन वानखेड़े की जगह मंजुल को अध्यक्ष बनाया गया था। कमलनाथ ने शुरुआत में ही कहा था कि हर जिले में मजबूत संगठन तैयार करना है। साथ ही हर कॉलेज इकाई में भी एनएसयूआइ को मजबूत बनाना है। इस मामले में मंजुल खरे नहीं उतरे और प्रदेश संगठन के साथ ही जिलों में भी नई इकाइयां नहीं गठित कर पाए। सप्ताहभर पहले ही कमलनाथ ने रिपोर्ट मांगी थी, वह भी उनकी ओर से प्रस्तुत नहीं की गई। इसकी वजह से आशुतोष चौकसे को नया अध्यक्ष बनाए जाने की अनुशंसा कर दी गई।
इनकी अनुशंसा पर बने थे अध्यक्ष
आशुतोष को पहले भी प्रदेश अध्यक्ष बनाने के लिए पूर्व अध्यक्ष विपिन वानखेड़े सक्रिय रहे हैं। लेकिन, रीवा के शहर अध्यक्ष गुरमीत सिंह मंगू एवं अमरपाटन के पूर्व विधायक एवं पूर्व मंत्री राजेन्द्र सिंह की अनुशंसा पर मंजुल त्रिपाठी को प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंपी गई थी।
आठ महीने के कार्यकाल में उन्होंने रीवा में अपने स्थान पर नए अध्यक्ष का नाम तय करने में अब तक का समय लगा दिया। इसी तरह प्रदेश के अन्य जिलों में भी इकाइयों का गठन नहीं हुआ। कांग्रेस के क्षेत्रीय नेताओं के साथ भी समन्वय ठीक नहीं रहा। विंध्य में अजय सिंह सहित अन्य नेताओं के साथ भी समन्वय कमजोर रहा।
केवल चार बड़े आंदोलन कर पाए
प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद से मंजुल नेताओं की रैलियों में जरूर दिखाई दे रहे थे, लेकिन छात्र आंदोलन नहीं खड़ा कर पाए। जबकि कई समस्याएं छात्रों की रही हैं। पिछड़ा वर्ग के छात्रों की छात्रवृत्ति के मामले में कमलनाथ के कहने के बाद भी एनएसयूआइ का प्रदर्शन नहीं हुआ। इसके चलते उन्हें स्वयं बयान जारी करना पड़ा। भोपाल, सतना और ग्वालियर में ही प्रदर्शन सीमित रह गया। रीवा जहां से छात्र राजनीति की शुरुआत की, यहां कोई बड़ा प्रदर्शन नहीं हुआ, जबकि रीवा में एक और कन्या महाविद्यालय के लिए आंदोलन भी चलाया जा रहा था, इसमें प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद वह धार नहीं दे पाए। अब कांग्रेस आगामी चुनाव की तैयारियों में जुट गई है, इसलिए निष्क्रिय नेताओं को किनारे कर नए नेतृत्व को उभारने का प्रयास शुरू किया है।
और फिर नेतृत्व से बाहर विंध्य
विंध्य में कांग्रेस को कम सीटें मिलने का मामला बार-बार चर्चा में आता रहा है, यहां के नेताओं को संगठन में तरजीह देने की मांग लगातार उठती रही है। इसी के चलते मंजुल त्रिपाठी को एनएसयूआइ का प्रदेश अध्यक्ष बनाकर मांग पूरी की गई थी। महिला कांग्रेस में भी प्रदेश अध्यक्ष की दावेदारी थी लेकिन नहीं मिला। इसके अलावा कई बड़े नेता इस अंचल में हैं पर उन्हें महत्वपूर्ण जवाबदेही नहीं मिली है। मंजूल अपनी जिम्मेदारियाें पर खरे नहीं उतर पाए और विंध्य एक बार फिर नेतृत्व से बाहर हो गया।
मंजूल को हटाने की पटकथा सप्ताहभर पहले ही लिखी जा चुकी थी। पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने विगत सप्ताह उनके कामकाज की रिपोर्ट मांगी थी। बता दें कि मंजुल रीवा इकाई के अध्यक्ष रहते हुए छात्रों की समस्याओं की आवाज उठाते रहे हैं, लेकिन प्रदेश अध्यक्ष बनते ही छात्रों की समस्याओं से अधिक उनका फोकस राजनैतिक गतिविधियों पर रहा है। यही उनके लिए सबसे बड़ी कमजोरी बनी।
जिलों में नई इकाइयां भी नहीं बना पाए थे
बीते साल दो अक्टूबर को विपिन वानखेड़े की जगह मंजुल को अध्यक्ष बनाया गया था। कमलनाथ ने शुरुआत में ही कहा था कि हर जिले में मजबूत संगठन तैयार करना है। साथ ही हर कॉलेज इकाई में भी एनएसयूआइ को मजबूत बनाना है। इस मामले में मंजुल खरे नहीं उतरे और प्रदेश संगठन के साथ ही जिलों में भी नई इकाइयां नहीं गठित कर पाए। सप्ताहभर पहले ही कमलनाथ ने रिपोर्ट मांगी थी, वह भी उनकी ओर से प्रस्तुत नहीं की गई। इसकी वजह से आशुतोष चौकसे को नया अध्यक्ष बनाए जाने की अनुशंसा कर दी गई।
इनकी अनुशंसा पर बने थे अध्यक्ष
आशुतोष को पहले भी प्रदेश अध्यक्ष बनाने के लिए पूर्व अध्यक्ष विपिन वानखेड़े सक्रिय रहे हैं। लेकिन, रीवा के शहर अध्यक्ष गुरमीत सिंह मंगू एवं अमरपाटन के पूर्व विधायक एवं पूर्व मंत्री राजेन्द्र सिंह की अनुशंसा पर मंजुल त्रिपाठी को प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंपी गई थी।
आठ महीने के कार्यकाल में उन्होंने रीवा में अपने स्थान पर नए अध्यक्ष का नाम तय करने में अब तक का समय लगा दिया। इसी तरह प्रदेश के अन्य जिलों में भी इकाइयों का गठन नहीं हुआ। कांग्रेस के क्षेत्रीय नेताओं के साथ भी समन्वय ठीक नहीं रहा। विंध्य में अजय सिंह सहित अन्य नेताओं के साथ भी समन्वय कमजोर रहा।
केवल चार बड़े आंदोलन कर पाए
प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद से मंजुल नेताओं की रैलियों में जरूर दिखाई दे रहे थे, लेकिन छात्र आंदोलन नहीं खड़ा कर पाए। जबकि कई समस्याएं छात्रों की रही हैं। पिछड़ा वर्ग के छात्रों की छात्रवृत्ति के मामले में कमलनाथ के कहने के बाद भी एनएसयूआइ का प्रदर्शन नहीं हुआ। इसके चलते उन्हें स्वयं बयान जारी करना पड़ा। भोपाल, सतना और ग्वालियर में ही प्रदर्शन सीमित रह गया। रीवा जहां से छात्र राजनीति की शुरुआत की, यहां कोई बड़ा प्रदर्शन नहीं हुआ, जबकि रीवा में एक और कन्या महाविद्यालय के लिए आंदोलन भी चलाया जा रहा था, इसमें प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद वह धार नहीं दे पाए। अब कांग्रेस आगामी चुनाव की तैयारियों में जुट गई है, इसलिए निष्क्रिय नेताओं को किनारे कर नए नेतृत्व को उभारने का प्रयास शुरू किया है।
और फिर नेतृत्व से बाहर विंध्य
विंध्य में कांग्रेस को कम सीटें मिलने का मामला बार-बार चर्चा में आता रहा है, यहां के नेताओं को संगठन में तरजीह देने की मांग लगातार उठती रही है। इसी के चलते मंजुल त्रिपाठी को एनएसयूआइ का प्रदेश अध्यक्ष बनाकर मांग पूरी की गई थी। महिला कांग्रेस में भी प्रदेश अध्यक्ष की दावेदारी थी लेकिन नहीं मिला। इसके अलावा कई बड़े नेता इस अंचल में हैं पर उन्हें महत्वपूर्ण जवाबदेही नहीं मिली है। मंजूल अपनी जिम्मेदारियाें पर खरे नहीं उतर पाए और विंध्य एक बार फिर नेतृत्व से बाहर हो गया।