MP News: ‘समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने में जल्दबाजी नहीं करे’… सुप्रीम कोर्ट से एमपी सरकार h3>
भोपाल: मध्यप्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से बुधवार को अनुरोध किया कि वह समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने में जल्दबाजी नहीं करे। साथ ही कहा है कि अगले कदम के बारे में फैसला संसद पर छोड़ दे, अन्यथा पूरा सामाजिक तानाबाना तार-तार हो सकता है। बीजेपी शासित राज्य का न्यायालय में प्रतिनिधित्व कर रहे वकील ने कहा कि बदलाव को स्वीकार करने के लिए समाज का तैयार होना जरूरी है। चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच जजों की बेंच समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने पर सुनवाई कर रही है।
एमपी सरकार ने यह अनुरोध तब किया है जब यह बेंच इस पर सातवें दिन सुनवाई कर रही थी। सुप्रीम कोर्ट केंद्र के अलावा, याचिकाओं का विरोध कर रहे कुछ राज्यों की दलीलें सुन रहा है। पीठ के सदस्यों में जस्टिस एस के कौल, जस्टिस एस आर भट, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस पी एस नरसिम्हा भी शामिल हैं। मध्यप्रदेश सरकार की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने कहा कि ये याचिकाएं विशेष विवाह अधिनियम में आमूलचूल बदलाव करने के लिए दायर की गई हैं।
उन्होंने कहा कि संसद, जिसके हाथों में जनता की नब्ज है, अगला कदम उठाने के बारे में फैसला करने और इसका समय तय करने के लिए सर्वश्रेष्ठ स्थिति में है… इसे थोपे नहीं, अन्यथा पूरा सामाजिक तानाबाना तार-तार हो जाएगा। वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा कि हम नहीं जानते कि क्या परिणाम होगा। इस तरह के विषयों में तेजी से नहीं, बल्कि धीमी गति से आगे बढ़ना सही रहता है।
इसके साथ ही उन्होंने कहा कि बदलाव स्वीकार करने के लिए समाज का तैयार होना भी समान रूप से जरूरी है। इसलिए हमें जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए। द्विवेदी ने कहा कि इस मामले पर सामाजिक अनुकूलन की जरूरत है और केवल संसद ही इस पर फैसला करने की स्थिति में है कि कैसे और कब अगला कदम उठाना है।
पीठ ने द्विवेदी से सवाल किया कि यदि समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता दी जाती है तो पुरुष-महिला दंपति की गरिमा कैसे प्रभावित होगी। उन्होंने जवाब दिया कि क्योंकि प्राचीन काल से ही पति और पत्नी के बीच एक उद्देश्यपूर्ण संबंध है। पीठ ने कहा कि तो क्या आप यह कह रहे हैं कि विवाह को पुरुष-महिला दंपति के बीच एक संयोजन समझा जाए। इससे अलग किसी चीज को मान्यता देकर आप (न्यायालय) पारंपरिक मूल्यों को प्रभावित कर रहे हैं।
कोर्ट ने कहा कि संविधान में मूल अधिकारों को लागू करने के प्रावधान हैं, जो समलैंगिक जोड़ों को भी उपलब्ध हैं। उनका अस्तित्व ऐसी कोई चीज नहीं है जो किसी दूसरे जगह से लाया गया हो, बल्कि यह भारतीय समाज का हिस्सा है।
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एमपी सरकार ने यह अनुरोध तब किया है जब यह बेंच इस पर सातवें दिन सुनवाई कर रही थी। सुप्रीम कोर्ट केंद्र के अलावा, याचिकाओं का विरोध कर रहे कुछ राज्यों की दलीलें सुन रहा है। पीठ के सदस्यों में जस्टिस एस के कौल, जस्टिस एस आर भट, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस पी एस नरसिम्हा भी शामिल हैं। मध्यप्रदेश सरकार की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने कहा कि ये याचिकाएं विशेष विवाह अधिनियम में आमूलचूल बदलाव करने के लिए दायर की गई हैं।
उन्होंने कहा कि संसद, जिसके हाथों में जनता की नब्ज है, अगला कदम उठाने के बारे में फैसला करने और इसका समय तय करने के लिए सर्वश्रेष्ठ स्थिति में है… इसे थोपे नहीं, अन्यथा पूरा सामाजिक तानाबाना तार-तार हो जाएगा। वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा कि हम नहीं जानते कि क्या परिणाम होगा। इस तरह के विषयों में तेजी से नहीं, बल्कि धीमी गति से आगे बढ़ना सही रहता है।
इसके साथ ही उन्होंने कहा कि बदलाव स्वीकार करने के लिए समाज का तैयार होना भी समान रूप से जरूरी है। इसलिए हमें जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए। द्विवेदी ने कहा कि इस मामले पर सामाजिक अनुकूलन की जरूरत है और केवल संसद ही इस पर फैसला करने की स्थिति में है कि कैसे और कब अगला कदम उठाना है।
पीठ ने द्विवेदी से सवाल किया कि यदि समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता दी जाती है तो पुरुष-महिला दंपति की गरिमा कैसे प्रभावित होगी। उन्होंने जवाब दिया कि क्योंकि प्राचीन काल से ही पति और पत्नी के बीच एक उद्देश्यपूर्ण संबंध है। पीठ ने कहा कि तो क्या आप यह कह रहे हैं कि विवाह को पुरुष-महिला दंपति के बीच एक संयोजन समझा जाए। इससे अलग किसी चीज को मान्यता देकर आप (न्यायालय) पारंपरिक मूल्यों को प्रभावित कर रहे हैं।
कोर्ट ने कहा कि संविधान में मूल अधिकारों को लागू करने के प्रावधान हैं, जो समलैंगिक जोड़ों को भी उपलब्ध हैं। उनका अस्तित्व ऐसी कोई चीज नहीं है जो किसी दूसरे जगह से लाया गया हो, बल्कि यह भारतीय समाज का हिस्सा है।
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