MP News : कान्हा टाइगर रिजर्व पार्क बन रहा नक्सलियों का गढ़? अलर्ट पर पुलिस h3>
भोपाल : मध्यप्रदेश के कान्हा टाइगर रिजर्व पार्क (kanha tiger reserve park news) में माओवादियों की उपस्थिति काफी बढ़ गई है। इसमें इनवॉयलेट कोर भी शामिल है। इनसे निपटने के लिए राज्य पुलिस ने कोर क्षेत्र में माओवादियों से निपटने के लिए तीन चौकी स्थापित करने का फैसला किया है। इसके साथ ही देश के सबसे पुराने विनियमित वन में केंद्रीय पुलिस रिजर्व बल के चार बटालियन की तैनाती की मांग भी की है। कान्हा टाइगर रिजर्व पार्क एमपी-छत्तीसगढ़ की सीमा से लगता है। 2010 के अनुमान के अनुसार यहां 110 बाघ हैं और देश के दलदली हिरणों की आबादी भी 80 फीसदी है।
एक अंग्रेजी अखबार से बात करते हुए अधिकारियों ने पुष्टि की कि इसके छह में से चार क्षेत्रों में भी माओवादियों की मौजूदगी है। टाइगर रिजर्व के फिल्ड डायरेक्टर एसके सिंह ने कहा कि केटीआर के चार कोर जोन में हमारे पास सशस्त्र माओवादियों की नियमित आवाजाही है। छत्तीसगढ़ में इंद्रावती और झारखंड में पलामू स्थित बाघ अभ्यारण में भी माओवादियों की मौजूदगी है।
एक पुलिस अधिकारी ने कहा कि उनकी योजना अनूपपुर जिले के अमरकंट में जंगल के माध्यम से अपने प्रभाव क्षेत्र को फैलाने की है। कान्हा में विद्रोहियों की मौजूदगी को स्वीकार करते हुए बालाघाट एसपी समीर सौरभ ने कहा कि उनकी मौजूदगी के बावजूद, माओवादी विरोधी ताकतें और स्थानीय पुलिस क्षेत्र पर हावी है। कान्हा में उनका प्रभाव बढ़ रहा है, उन्हें नियंत्रित करने के लिए चौकियों की स्थापना और अतिरिक्त बटालियन प्राप्त करना महत्वपूर्ण है।
दरअसल, माओवादियों ने छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में अपना आधार बढ़ाने के प्रयास में करीब पांच साल पहले एमपी के बालाघाट जिले में प्रवेश करना शुरू किया था। 2022 में एमपी के तीन जिलों को नक्सल प्रभावित घोषित किया गया था। इसमें बालाघाट, मंडला और डिंडोरी शआमिल है। पुलिस रेकॉर्ड बताते हैं कि पिछले चार वर्षों में पुलिस के साथ मुठभेड़ में सात माओवादी मारे गए और एक को गिरफ्तार किया गया। इसके साथ ही माओवादियों ने तीन ग्रामीणों और एक संविदा कर्मचारी को पुलिस मुखबिर बताकर मार डाला है। परसटोला फॉरेस्ट बीट गार्ड के सहायक 25 वर्षीय सुखदेव पार्टे की 23 मार्च को गोली मारकर हत्या कर दी गई थी।
कान्हा का साल-बांस का जंगल है, बीच-बीच में घास के मैदान हैं, साथ ही माओवादियों को एक गांव से दूसरे गांव में उनके आंदोलन के लिए एक आदर्श कवर प्रदान करता है। पहाड़ी सतपुड़ा पर्वतमाला के विपरीत कान्हा में पैदल चलना आसान है। छत्तीसगढ़ के कबीर धाम और मुंगेली जिले यहां से बहुत करीब हैं। माओवादी पुलिस ऑपरेशन के दौरान वहां भाग जाते हैं।
वहीं, कान्हा भारत का सबसे पुराना और संरक्षित वन है। एक पूर्व अधिकारी ने माओवादियों की मौजूदगी को लेकर सरकार को अगाह किया थआ। उन्होंने कहा था कि शांतिपूर्ण माहौल और आसान इलाका माओवादियों के लिए सुरक्षित पनाहगाह बन गया है। कुछ महीने पहले केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने राज्य सरकार को पत्र लिखकर कान्हा में माओवादियों के बढ़ते प्रभाव से निपटने के लिए कार्य योजना बनाने की मांग की थी।
नतीजतन वन विभाग ने गृह विभाग को बफर क्षेत्रों में चौकी स्थापित करने की अनुमति दी। मुख्य क्षेत्र में वन विभाग के 118 स्थायी गश्त शिविरों सहित लगभग 130 शिविर हैं। शिविरों में दो लोगों का स्टॉफ होता है एक गार्ड और एक सहायक गार्ड। वे मोबाइल और वायरलेस सेट से लैस हैं जो कि माओवादियों से लड़ नहीं सकते हैं।
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एक अंग्रेजी अखबार से बात करते हुए अधिकारियों ने पुष्टि की कि इसके छह में से चार क्षेत्रों में भी माओवादियों की मौजूदगी है। टाइगर रिजर्व के फिल्ड डायरेक्टर एसके सिंह ने कहा कि केटीआर के चार कोर जोन में हमारे पास सशस्त्र माओवादियों की नियमित आवाजाही है। छत्तीसगढ़ में इंद्रावती और झारखंड में पलामू स्थित बाघ अभ्यारण में भी माओवादियों की मौजूदगी है।
एक पुलिस अधिकारी ने कहा कि उनकी योजना अनूपपुर जिले के अमरकंट में जंगल के माध्यम से अपने प्रभाव क्षेत्र को फैलाने की है। कान्हा में विद्रोहियों की मौजूदगी को स्वीकार करते हुए बालाघाट एसपी समीर सौरभ ने कहा कि उनकी मौजूदगी के बावजूद, माओवादी विरोधी ताकतें और स्थानीय पुलिस क्षेत्र पर हावी है। कान्हा में उनका प्रभाव बढ़ रहा है, उन्हें नियंत्रित करने के लिए चौकियों की स्थापना और अतिरिक्त बटालियन प्राप्त करना महत्वपूर्ण है।
दरअसल, माओवादियों ने छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में अपना आधार बढ़ाने के प्रयास में करीब पांच साल पहले एमपी के बालाघाट जिले में प्रवेश करना शुरू किया था। 2022 में एमपी के तीन जिलों को नक्सल प्रभावित घोषित किया गया था। इसमें बालाघाट, मंडला और डिंडोरी शआमिल है। पुलिस रेकॉर्ड बताते हैं कि पिछले चार वर्षों में पुलिस के साथ मुठभेड़ में सात माओवादी मारे गए और एक को गिरफ्तार किया गया। इसके साथ ही माओवादियों ने तीन ग्रामीणों और एक संविदा कर्मचारी को पुलिस मुखबिर बताकर मार डाला है। परसटोला फॉरेस्ट बीट गार्ड के सहायक 25 वर्षीय सुखदेव पार्टे की 23 मार्च को गोली मारकर हत्या कर दी गई थी।
कान्हा का साल-बांस का जंगल है, बीच-बीच में घास के मैदान हैं, साथ ही माओवादियों को एक गांव से दूसरे गांव में उनके आंदोलन के लिए एक आदर्श कवर प्रदान करता है। पहाड़ी सतपुड़ा पर्वतमाला के विपरीत कान्हा में पैदल चलना आसान है। छत्तीसगढ़ के कबीर धाम और मुंगेली जिले यहां से बहुत करीब हैं। माओवादी पुलिस ऑपरेशन के दौरान वहां भाग जाते हैं।
वहीं, कान्हा भारत का सबसे पुराना और संरक्षित वन है। एक पूर्व अधिकारी ने माओवादियों की मौजूदगी को लेकर सरकार को अगाह किया थआ। उन्होंने कहा था कि शांतिपूर्ण माहौल और आसान इलाका माओवादियों के लिए सुरक्षित पनाहगाह बन गया है। कुछ महीने पहले केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने राज्य सरकार को पत्र लिखकर कान्हा में माओवादियों के बढ़ते प्रभाव से निपटने के लिए कार्य योजना बनाने की मांग की थी।
नतीजतन वन विभाग ने गृह विभाग को बफर क्षेत्रों में चौकी स्थापित करने की अनुमति दी। मुख्य क्षेत्र में वन विभाग के 118 स्थायी गश्त शिविरों सहित लगभग 130 शिविर हैं। शिविरों में दो लोगों का स्टॉफ होता है एक गार्ड और एक सहायक गार्ड। वे मोबाइल और वायरलेस सेट से लैस हैं जो कि माओवादियों से लड़ नहीं सकते हैं।