MP Election 2023: अंबेडकर की जन्मस्थली जाकर क्या साधेंगे अखिलेश यादव? एमपी में विधानसभा चुनाव लड़ेगी उनकी पार्टी h3>
इंदौर:एमपी विधानसभा चुनाव (MP Vidhan Sabha Chunav) में कुछ महीनों का वक्त बचा है। ऐसे में समाजवादी पार्टी भी यहां सियासी जमीन तलाश रही है। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव एमपी में हैं। वह 14 अप्रैल को डॉ भीमराव अंबेडकर की जन्मस्थली महू जाएंगे। उनके साथ राष्ट्रीय लोकदल के जयंत चौधरी और आजाद समाज पार्टी के संस्थापक चंद्रशेखर आजाद होंगे। सूत्रों के मुताबिक, तीनों नेता बाबा साहब भीम राव अंबेडकर की प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित कर माल्यार्पण करेंगे।
इस कवायद को 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले समाजवादी पार्टी और उसके सहयोगी दलों की रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है। इसके जरिए दलित समुदाय में अपनी पैठ मजबूत करने से जोड़कर देखा जा रहा है। समाजवादी पार्टी के सूत्रों ने कहा कि हालांकि महू में कोई रैली निर्धारित नहीं है लेकिन नेता सभा को संबोधित भी कर सकते हैं। एसपी-आरएलडी गठबंधन ने पूरे राज्य, और खासकर पश्चिम उत्तर प्रदेश, में दलितों को अपने पक्ष में करने के लिए चंद्रशेखर आजाद को अपने साथ मिलाया है।
यही नहीं, इस साल एमपी में विधानसभा के चुनाव भी हैं। पिछले चुनाव में सपा को एक सीट पर जीत मिली थी। अखिलेश यादव ने इंदौर में कहा है कि हमारी पार्टी यहां चुनाव लड़ेगी। वहीं, चंद्रशेखर पहले से ही यहां सक्रिय है। ऐसे में संभावना जताई जा रही है कि दोनों दल विधानसभा चुनाव में साथ आ सकते हैं।
बताया जा रहा है सपा नेता लोहिया और अंबेडकर के अनुयायियों को एक साथ लाने के लिए वर्तमान राजनीतिक परिद्दश्य को अनुकूल सामाजिक माहौल मान रहे हैं। उन्हें विश्वास है कि उनके प्रयासों के पहले से बेहतर परिणाम मिलेंगे। पूर्व में इस तरह के तीन प्रयास किए जा चुके हैं। पहली बार 1956 में जब भीमराव अम्बेडकर और राम मनोहर लोहिया ने सामाजिक न्याय के लिए मिलकर काम करने के लिए एक बैठक की योजना बनाई थी, हालांकि बैठक होने से पहले ही अम्बेडकर का निधन हो गया।
दूसरा प्रयास 1992 में हुआ जब कांशीराम और मुलायम सिंह यादव एक हो गए। तीसरा प्रयास तब किया गया जब अखिलेश यादव ने 2019 में मायावती के साथ गठबंधन किया। इस बार, अंतर यह है कि ज्यादातर दलितों का बसपा से मोहभंग हो चुका है-जिस पार्टी से वे पहले अपनी पहचान रखते थे। अखिलेश दलितों के साथ पुल बनाने की कोशिश कर रहे हैं।
हाल ही में उन्होंने रायबरेली में दिवंगत कांशीराम की प्रतिमा का अनावरण किया था। वह पार्टी विधायक अवधेश प्रसाद को सपा के दलित चेहरे के रूप में भी प्रचारित करते रहे हैं। सपा की लोगों तक पहुंच बनाने की कोशिश पार्टी की उस रणनीति का हिस्सा है जिसे 2021 में तैयार किया गया था, जब अम्बेडकर जयंती पर सपा प्रमुख ने बाबा साहेब वाहिनी के नाम से एक अलग शाखा बनाई थी।
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इस कवायद को 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले समाजवादी पार्टी और उसके सहयोगी दलों की रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है। इसके जरिए दलित समुदाय में अपनी पैठ मजबूत करने से जोड़कर देखा जा रहा है। समाजवादी पार्टी के सूत्रों ने कहा कि हालांकि महू में कोई रैली निर्धारित नहीं है लेकिन नेता सभा को संबोधित भी कर सकते हैं। एसपी-आरएलडी गठबंधन ने पूरे राज्य, और खासकर पश्चिम उत्तर प्रदेश, में दलितों को अपने पक्ष में करने के लिए चंद्रशेखर आजाद को अपने साथ मिलाया है।
यही नहीं, इस साल एमपी में विधानसभा के चुनाव भी हैं। पिछले चुनाव में सपा को एक सीट पर जीत मिली थी। अखिलेश यादव ने इंदौर में कहा है कि हमारी पार्टी यहां चुनाव लड़ेगी। वहीं, चंद्रशेखर पहले से ही यहां सक्रिय है। ऐसे में संभावना जताई जा रही है कि दोनों दल विधानसभा चुनाव में साथ आ सकते हैं।
बताया जा रहा है सपा नेता लोहिया और अंबेडकर के अनुयायियों को एक साथ लाने के लिए वर्तमान राजनीतिक परिद्दश्य को अनुकूल सामाजिक माहौल मान रहे हैं। उन्हें विश्वास है कि उनके प्रयासों के पहले से बेहतर परिणाम मिलेंगे। पूर्व में इस तरह के तीन प्रयास किए जा चुके हैं। पहली बार 1956 में जब भीमराव अम्बेडकर और राम मनोहर लोहिया ने सामाजिक न्याय के लिए मिलकर काम करने के लिए एक बैठक की योजना बनाई थी, हालांकि बैठक होने से पहले ही अम्बेडकर का निधन हो गया।
दूसरा प्रयास 1992 में हुआ जब कांशीराम और मुलायम सिंह यादव एक हो गए। तीसरा प्रयास तब किया गया जब अखिलेश यादव ने 2019 में मायावती के साथ गठबंधन किया। इस बार, अंतर यह है कि ज्यादातर दलितों का बसपा से मोहभंग हो चुका है-जिस पार्टी से वे पहले अपनी पहचान रखते थे। अखिलेश दलितों के साथ पुल बनाने की कोशिश कर रहे हैं।
हाल ही में उन्होंने रायबरेली में दिवंगत कांशीराम की प्रतिमा का अनावरण किया था। वह पार्टी विधायक अवधेश प्रसाद को सपा के दलित चेहरे के रूप में भी प्रचारित करते रहे हैं। सपा की लोगों तक पहुंच बनाने की कोशिश पार्टी की उस रणनीति का हिस्सा है जिसे 2021 में तैयार किया गया था, जब अम्बेडकर जयंती पर सपा प्रमुख ने बाबा साहेब वाहिनी के नाम से एक अलग शाखा बनाई थी।
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