MP Chunav 2023: सैकड़ों गाडियां, हजारों समर्थक…कुछ इस तरह हुई यूपी की राजनीति में ‘फ्लॉप’ गुड्डू बुंदेला की एमपी में एंट्री h3>
भोपाल। उत्तरप्रदेश के बुंदेलखंड इलाके में एक समय राजपूत क्षत्रप सुजान सिंह बुंदेला की तूती बोलती थी। वह राजनीति में भी सक्रिय थे। उन्होंने सत्तर के दशक के अंत में अपनी राजनीतिक यात्रा शुरू की थी। इस दौरान वह दो बार सांसद भी रहे, लेकिन उन्होंने 2009 में सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लिया।
कभी राजनीतिक रूप से ताकतवर रहे बुंदेलखण्ड के ललितपुर के बुंदेलों का समय अब बदल गया है, लेकिन इसकी सुर्खियों में रहने की आदत है। इस बार बुंदेला परिवार इसलिए सुर्खियों में है क्योंकि, सुजान सिंह बुंदेला के बेटे चंद्र भूषण बुंदेला उर्फ ‘गुड्डू राजा’ ने पार्टी बदलकर मध्यप्रदेश की सियासत में एंट्री की है। एंट्री भी इतनी धांसू कि जैसे साउथ के फिल्म की शूटिंग चल रही हो। उनके काफिले में इतनी कार थीं कि उनको गिनना मुश्किल हो रहा था।
कांग्रेस में शामिल होने के लिए गुड्डु राजा की राजधानी भोपाल में एंट्री एकदम हीरो जैसी थी। भोपाल की सड़कों पर इसके पोस्टर भी लगाए गए थे। जहां से भी उनका काफिला निकला, वहां ट्रैफिक रुक गया। उनका राजनीतिक करियर लंबा रहा है। वह लंबे समय तक सपा के साथ रहे, लेकिन लगातार दो विधानसभा चुनाव हारने की वजह से पार्टी ने उन्हें साइडलाइन कर दिया।
बात अगर सुजान सिंह बुंदेला के भाई पूरन सिंह बुंदेला और वीरेंद्र सिंह बुंदेला की करें, तो वह भी यूपी सरकार में कई बार विधायक और मंत्री रहे हैं। बुंदेला परिवार का क्षेत्र में ग्रेनाइट के खनन पर पूरा नियंत्रण है।
अब एमपी की राजनीति में की एंट्री
यूपी की राजनीति में फ्लॉप गुड्डू बुंदेला ने एमपी चुनावों से ठीक पहले कांग्रेस ज्वॉइन की है। बुंदेला परिवार अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के लिए जाना जाता है। ललितपुर के राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि, ‘बुंदेला परिवार के प्रत्येक सदस्य की गहरी राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं हैं और वे एक-दूसरे पर हमला करने से नहीं कतराते।”
इसकी एक बानगी यूपी के विधानसभा चुनाव में देखने को मिली, जब अपने चाचा वीरेंद्र सिंह बुंदेला की वजह से गुड्डु राजा चुनाव नहीं जीत पाए थे। इस चुनाव में चाचा और भतीजे एक दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ गए।
पिता से मिली राजनीतिक विरासत
1980 में जिला पंचायत अध्यक्ष चुने गए गुड्डु राजा के पिता सुजान सिंह बुंदेला ने उसी साल कांग्रेस के टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। वह 1984 में झांसी से लोकसभा के लिए चुने गए लेकिन 1989 में हार गए। 1999 में वह फिर से झांसी लोकसभा के लिए चुने गए लेकिन 2004 में कांग्रेस ने उन्हें टिकट नहीं दिया।
इससे आहत होकर सुजान सिंह ने पार्टी छोड़ दी और 2009 में राष्ट्रीय समानता दल के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ा लेकिन हार गए। इस तरह दो बार के सांसद सुजान सिंह ने 2009 में सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लिया।
कुछ ऐसा रहा है परिवार का इतिहास
पूरन सिंह बुंदेला (सुजान सिंह बुंदेला के भाई)
वह पहली बार 1991 और फिर 1996 में कांग्रेस के टिकट पर विधायक बने। इसके बाद वह भाजपा में शामिल हो गए और 2002 में मंत्री बने। 2007 में वह बसपा में शामिल हो गए, लेकिन 2012 का विधानसभा चुनाव कांग्रेस के टिकट पर लड़ा। हालांकि हार गए।
वीरेंद्र सिंह बुंदेला (सुजान सिंह बुंदेला के भाई)
2002 में राजनीति में उतरे और कांग्रेस के टिकट पर जीत हासिल की। उन्होंने बसपा की ओर रुख किया और फिर सपा में चले गए। ललितपुर से अपने भतीजे चंद्र भूषण के खिलाफ कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ चुके हैं।
चंद्र भूषण बुंदेला (गुड्डु राजा) (सुजान सिंह बुंदेला के बेटे)
अपने चाचा और पिता के उलट वह सपा में ही रहे। उन्होंने 2007 और 2012 का विधानसभा चुनाव लड़ा लेकिन हार गए। इसके बाद उन्हें टिकट नहीं मिला तो वह बसपा में शामिल हो गए। अब मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनावों से पहले उन्होंने कमलनाथ के नेतृत्व में कांग्रेस ज्वॉइन कर ली है।
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कभी राजनीतिक रूप से ताकतवर रहे बुंदेलखण्ड के ललितपुर के बुंदेलों का समय अब बदल गया है, लेकिन इसकी सुर्खियों में रहने की आदत है। इस बार बुंदेला परिवार इसलिए सुर्खियों में है क्योंकि, सुजान सिंह बुंदेला के बेटे चंद्र भूषण बुंदेला उर्फ ‘गुड्डू राजा’ ने पार्टी बदलकर मध्यप्रदेश की सियासत में एंट्री की है। एंट्री भी इतनी धांसू कि जैसे साउथ के फिल्म की शूटिंग चल रही हो। उनके काफिले में इतनी कार थीं कि उनको गिनना मुश्किल हो रहा था।
कांग्रेस में शामिल होने के लिए गुड्डु राजा की राजधानी भोपाल में एंट्री एकदम हीरो जैसी थी। भोपाल की सड़कों पर इसके पोस्टर भी लगाए गए थे। जहां से भी उनका काफिला निकला, वहां ट्रैफिक रुक गया। उनका राजनीतिक करियर लंबा रहा है। वह लंबे समय तक सपा के साथ रहे, लेकिन लगातार दो विधानसभा चुनाव हारने की वजह से पार्टी ने उन्हें साइडलाइन कर दिया।
बात अगर सुजान सिंह बुंदेला के भाई पूरन सिंह बुंदेला और वीरेंद्र सिंह बुंदेला की करें, तो वह भी यूपी सरकार में कई बार विधायक और मंत्री रहे हैं। बुंदेला परिवार का क्षेत्र में ग्रेनाइट के खनन पर पूरा नियंत्रण है।
अब एमपी की राजनीति में की एंट्री
यूपी की राजनीति में फ्लॉप गुड्डू बुंदेला ने एमपी चुनावों से ठीक पहले कांग्रेस ज्वॉइन की है। बुंदेला परिवार अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के लिए जाना जाता है। ललितपुर के राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि, ‘बुंदेला परिवार के प्रत्येक सदस्य की गहरी राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं हैं और वे एक-दूसरे पर हमला करने से नहीं कतराते।”
इसकी एक बानगी यूपी के विधानसभा चुनाव में देखने को मिली, जब अपने चाचा वीरेंद्र सिंह बुंदेला की वजह से गुड्डु राजा चुनाव नहीं जीत पाए थे। इस चुनाव में चाचा और भतीजे एक दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ गए।
पिता से मिली राजनीतिक विरासत
1980 में जिला पंचायत अध्यक्ष चुने गए गुड्डु राजा के पिता सुजान सिंह बुंदेला ने उसी साल कांग्रेस के टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। वह 1984 में झांसी से लोकसभा के लिए चुने गए लेकिन 1989 में हार गए। 1999 में वह फिर से झांसी लोकसभा के लिए चुने गए लेकिन 2004 में कांग्रेस ने उन्हें टिकट नहीं दिया।
इससे आहत होकर सुजान सिंह ने पार्टी छोड़ दी और 2009 में राष्ट्रीय समानता दल के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ा लेकिन हार गए। इस तरह दो बार के सांसद सुजान सिंह ने 2009 में सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लिया।
कुछ ऐसा रहा है परिवार का इतिहास
पूरन सिंह बुंदेला (सुजान सिंह बुंदेला के भाई)
वह पहली बार 1991 और फिर 1996 में कांग्रेस के टिकट पर विधायक बने। इसके बाद वह भाजपा में शामिल हो गए और 2002 में मंत्री बने। 2007 में वह बसपा में शामिल हो गए, लेकिन 2012 का विधानसभा चुनाव कांग्रेस के टिकट पर लड़ा। हालांकि हार गए।
वीरेंद्र सिंह बुंदेला (सुजान सिंह बुंदेला के भाई)
2002 में राजनीति में उतरे और कांग्रेस के टिकट पर जीत हासिल की। उन्होंने बसपा की ओर रुख किया और फिर सपा में चले गए। ललितपुर से अपने भतीजे चंद्र भूषण के खिलाफ कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ चुके हैं।
चंद्र भूषण बुंदेला (गुड्डु राजा) (सुजान सिंह बुंदेला के बेटे)
अपने चाचा और पिता के उलट वह सपा में ही रहे। उन्होंने 2007 और 2012 का विधानसभा चुनाव लड़ा लेकिन हार गए। इसके बाद उन्हें टिकट नहीं मिला तो वह बसपा में शामिल हो गए। अब मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनावों से पहले उन्होंने कमलनाथ के नेतृत्व में कांग्रेस ज्वॉइन कर ली है।