MP के 16 शहरों में बड़ा जल संकट, 10 मीटर गिरा वॉटर लेवल, क्रिटिकल स्टेज पर पहुंचा शहर | Water crisis in 16 cities of Madhya Pradesh, water level dropped by 10 meters | News 4 Social h3>
कई वर्ष पहले बने रिचार्ज पिट अनदेखी से हो गए खराब
सेंट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड (सीजीडब्ल्यूबी) की रिपोर्ट के अनुसार, इंदौर में भूजल का स्तर क्रिटिकल स्थिति में पहुंच गया है। इसी तरह लगातार भूजल दोहन के कारण भविष्य में सूखे का खतरा बढ़ सकता है। भूजल स्तर पिछले 10 वर्षों में 10 मीटर से अधिक गिर गया है। यह गिरावट बढ़ती आबादी, अनियंत्रित भूजल दोहन, अनियंत्रित शहर विस्तार और जल संचय की कमी के कारण हुई है। इसके लिए करीब 8-10 वर्ष पहले शहरभर में 100 से अधिक रिचार्ज पिट बनाए गए थे। यह रहवासी, व्यवसायिक और सार्वजनिक स्थानों पर थे, ताकि बल्क में निकलने वाला पानी यहां पहुंचे और फिर से यह पानी भूमि जल में मिल सके। यह रिचार्ज पिट अब खराब हो चुके हैं। पिट में जमा गाद को निकाल कर फिल्टर मैटेरियल डालना है। इसमें मामूली खर्च ही होगा।
10 साल में 10 मीटर गिरा वॉटर लेवल
जानकारी के मुताबिक, इंदौर में भूजल का स्तर 2012 में 150 मीटर था, जो 2023 में 160 मीटर से अधिक हो गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि यदि भूजल दोहन इसी गति से जारी रहा, तो 2030 तक भूजल स्तर 200 मीटर से अधिक गहरा हो सकता है। भूजल स्तर में गिरावट के कई गंभीर परिणाम हो सकते हैं।
जल पुनर्भरण के काम में लापरवाही
इंदौर शहर में पानी की आपूर्ति का मुख्य स्रोत नर्मदा नदी है। नर्मदा नदी का पानी शहर में पाइपलाइन के माध्यम से पहुंचाया जाता है। हालांकि, बढ़ती आबादी और अनियंत्रित भूजल दोहन के कारण नर्मदा नदी पर भी दबाव बढ़ रहा है। इसके साथ ही शहर में पानी सप्लाइ के लिए यशवंत सागर भी मददगार साबित होता है, लेकिन रिपोर्ट में हवाला दिया गया कि इंदौर और आसपास के क्षेत्र में जितना पानी का दोहन किया जा रहा है, उससे कम जल संचय और पुनर्भरण किया जा रहा है, जो घातक है।
इंदौर क्रिटिकल और आसपास के क्षेत्र सेमी क्रिटिकल
शहर में पिछले कई सालों से पानी बचाने की बातें की जा रही हैं, लेकिन पर्याप्त प्रयास नहीं किए गए। इसी का नतीजा है कि इंदौर शहर का ग्राउंड वाॅटर क्रिटिकल (गंभीर) कैटेगरी में आ गया है। इंदौर में महू सेमी क्रिटिकल कैटेगरी में है। इंदौर अर्बन क्रिटिकल और देपालपुर, इंदौर और सांवेर ओवर एक्सप्लाॅइटेड कैटेगरी में है। यहां क्षमता से अधिक पानी का दोहन किया जा रहा है। शहर में कई क्षेत्र ऐसे भी हैं, जहां जल स्तर बढ़ा है, लेकिन पानी दोहन अधिक किया गया जबकि संचय कम हुआ है।
अफसरों का जल संचय पर ध्यान नहीं
शहर के भूजल की मौजूदा स्थिति को जानने के बाद भी जिम्मेदार अफसरों की ओर से पर्याप्त प्रयास नहीं किए जा रहे हैं। हाल ही में एमआइसी बैठक में शहरभर में जलसंकट से निपटने के लिए टैंकरों के संचालन के लिए योजना बना ली गई, लेकिन जल का पुनर्भरण कैसे हो ? इसका संचय कैसे हो ? इस पर अब भी कोई खास ध्यान नहीं है। शहरभर में एक साल पहले एक लाख से अधिक रेन वाॅटर हार्वेस्टिंग सिस्टम इंस्टाल किए गए थे, लेकिन वर्ष 2023 में सिर्फ तीन हजार रैन वाॅटर हार्वेस्टिंग ही हो सके। कई सरकारी भवनों में ही रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम काम नहीं कर रहे हैं। बावजूद शहर में धड़ल्ले से बोरिंग किए जा रहे हैं। इस साल भी अब तक निगम ने वाॅटर हार्वेस्टिंग के लिए कोई कार्य योजना नहीं बनाई है, जबकि कई कंपनियां सीएसआर से यह काम करने को तैयार भी हैं।
ऐसे होता है कैटेगरी का आंकलन
सेफ- 70 प्रतिशत से कम भूमि जल का दोहन
सेमी क्रिटिकल – 70 से 90 प्रतिशत के बीच भूजल का दोहन
क्रिटिकल – 90 प्रतिशत से अधिक और 100 प्रतिशत से कम भूमि जल का दोहन
अतिदोहित – 100 प्रतिशत से अधिक भूमि जल का दोहन
नीति आयोग ने किया अलर्ट
हाल ही में नीति आयोग ने अनुमान लगाया है कि अगले एक दशक में देशभर के करीब 30 शहरों में जल संकट उत्पन्न हो सकता है। इसमें दक्षिण राज्य के कई शहर हैं और एमपी का इंदौर इस सूची में शामिल है।
ये शहर सेमी क्रिटिकल स्थिति में
बड़ोद, कोतमा, इशागड, चंदेरी, राजपुर, बैतूल, मुलताई, बैरसिया, भोपाल उर्बन, फंदा, बुरहानपुर, छतरपुर, बिजावर, नौगाँव, मोखेड़ा, पांदूर्ना, पथरिया, खातेगांव, ग्वालियर अर्बन, महू।
ये शहर अतिदोहित श्रेणी में
नलखेड़ा, पानसेमल, सोनकच्छ, देवास, नालछा, धार, बदनावर, देपालपुर, इंदौर, सांवेर
ये शहर क्रिटिकल श्रेणी में
छिंदवाड़ा, तिरला, इंदौर अर्बन
जल्द सख्ती से होगा पालन
सेंट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड की रिपोर्ट जारी हुई है। जल संचय के लिए अधिक प्रयास अभी से करना होगा, हालांकि पहले से ही नियम है कि सभी स्थानों पर वाॅटर हार्वेस्टिंग किया जाना चाहिए, लेकिन इस नियम का सख्ती से पालन नहीं हो पा रहा है। अब इसका पालन करवाने के लिए प्लान बनाना होगा। जल्द ही इसको लेकर काम शुरू करेंगे।- संजीव श्रीवास्तव, कार्यपालन यंत्री, पीएचई विभाग
बोरिंग पर हो सख्ती से प्रतिबंध
फिलहाल शहर में भूजल स्तर बिलकुल ठीक स्थिति में नहीं है। शहर को जितने पानी की मांग है, उससे कम सप्लाई है। इसके अतिरिक्त पानी की खपत भूमि के पानी से ही पूरी होती है। यह एक तरीके से शहर का फिक्स डिपॉजिट था। अब इसे भी खत्म कर लिया गया है। जल संचय पर काम करना होगा और धड़ल्ले से हो रहे बोरिंग पर रोक लगाना होगी। नहीं तो इसी साल जलसंकट के हालात शहर में होंगे।
सुरेश एम.जी., जल प्रबंधन विशेषज्ञ
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कई वर्ष पहले बने रिचार्ज पिट अनदेखी से हो गए खराब
सेंट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड (सीजीडब्ल्यूबी) की रिपोर्ट के अनुसार, इंदौर में भूजल का स्तर क्रिटिकल स्थिति में पहुंच गया है। इसी तरह लगातार भूजल दोहन के कारण भविष्य में सूखे का खतरा बढ़ सकता है। भूजल स्तर पिछले 10 वर्षों में 10 मीटर से अधिक गिर गया है। यह गिरावट बढ़ती आबादी, अनियंत्रित भूजल दोहन, अनियंत्रित शहर विस्तार और जल संचय की कमी के कारण हुई है। इसके लिए करीब 8-10 वर्ष पहले शहरभर में 100 से अधिक रिचार्ज पिट बनाए गए थे। यह रहवासी, व्यवसायिक और सार्वजनिक स्थानों पर थे, ताकि बल्क में निकलने वाला पानी यहां पहुंचे और फिर से यह पानी भूमि जल में मिल सके। यह रिचार्ज पिट अब खराब हो चुके हैं। पिट में जमा गाद को निकाल कर फिल्टर मैटेरियल डालना है। इसमें मामूली खर्च ही होगा।
10 साल में 10 मीटर गिरा वॉटर लेवल
जानकारी के मुताबिक, इंदौर में भूजल का स्तर 2012 में 150 मीटर था, जो 2023 में 160 मीटर से अधिक हो गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि यदि भूजल दोहन इसी गति से जारी रहा, तो 2030 तक भूजल स्तर 200 मीटर से अधिक गहरा हो सकता है। भूजल स्तर में गिरावट के कई गंभीर परिणाम हो सकते हैं।
जल पुनर्भरण के काम में लापरवाही
इंदौर शहर में पानी की आपूर्ति का मुख्य स्रोत नर्मदा नदी है। नर्मदा नदी का पानी शहर में पाइपलाइन के माध्यम से पहुंचाया जाता है। हालांकि, बढ़ती आबादी और अनियंत्रित भूजल दोहन के कारण नर्मदा नदी पर भी दबाव बढ़ रहा है। इसके साथ ही शहर में पानी सप्लाइ के लिए यशवंत सागर भी मददगार साबित होता है, लेकिन रिपोर्ट में हवाला दिया गया कि इंदौर और आसपास के क्षेत्र में जितना पानी का दोहन किया जा रहा है, उससे कम जल संचय और पुनर्भरण किया जा रहा है, जो घातक है।
इंदौर क्रिटिकल और आसपास के क्षेत्र सेमी क्रिटिकल
शहर में पिछले कई सालों से पानी बचाने की बातें की जा रही हैं, लेकिन पर्याप्त प्रयास नहीं किए गए। इसी का नतीजा है कि इंदौर शहर का ग्राउंड वाॅटर क्रिटिकल (गंभीर) कैटेगरी में आ गया है। इंदौर में महू सेमी क्रिटिकल कैटेगरी में है। इंदौर अर्बन क्रिटिकल और देपालपुर, इंदौर और सांवेर ओवर एक्सप्लाॅइटेड कैटेगरी में है। यहां क्षमता से अधिक पानी का दोहन किया जा रहा है। शहर में कई क्षेत्र ऐसे भी हैं, जहां जल स्तर बढ़ा है, लेकिन पानी दोहन अधिक किया गया जबकि संचय कम हुआ है।
अफसरों का जल संचय पर ध्यान नहीं
शहर के भूजल की मौजूदा स्थिति को जानने के बाद भी जिम्मेदार अफसरों की ओर से पर्याप्त प्रयास नहीं किए जा रहे हैं। हाल ही में एमआइसी बैठक में शहरभर में जलसंकट से निपटने के लिए टैंकरों के संचालन के लिए योजना बना ली गई, लेकिन जल का पुनर्भरण कैसे हो ? इसका संचय कैसे हो ? इस पर अब भी कोई खास ध्यान नहीं है। शहरभर में एक साल पहले एक लाख से अधिक रेन वाॅटर हार्वेस्टिंग सिस्टम इंस्टाल किए गए थे, लेकिन वर्ष 2023 में सिर्फ तीन हजार रैन वाॅटर हार्वेस्टिंग ही हो सके। कई सरकारी भवनों में ही रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम काम नहीं कर रहे हैं। बावजूद शहर में धड़ल्ले से बोरिंग किए जा रहे हैं। इस साल भी अब तक निगम ने वाॅटर हार्वेस्टिंग के लिए कोई कार्य योजना नहीं बनाई है, जबकि कई कंपनियां सीएसआर से यह काम करने को तैयार भी हैं।
ऐसे होता है कैटेगरी का आंकलन
सेफ- 70 प्रतिशत से कम भूमि जल का दोहन
सेमी क्रिटिकल – 70 से 90 प्रतिशत के बीच भूजल का दोहन
क्रिटिकल – 90 प्रतिशत से अधिक और 100 प्रतिशत से कम भूमि जल का दोहन
अतिदोहित – 100 प्रतिशत से अधिक भूमि जल का दोहन
नीति आयोग ने किया अलर्ट
हाल ही में नीति आयोग ने अनुमान लगाया है कि अगले एक दशक में देशभर के करीब 30 शहरों में जल संकट उत्पन्न हो सकता है। इसमें दक्षिण राज्य के कई शहर हैं और एमपी का इंदौर इस सूची में शामिल है।
ये शहर सेमी क्रिटिकल स्थिति में
बड़ोद, कोतमा, इशागड, चंदेरी, राजपुर, बैतूल, मुलताई, बैरसिया, भोपाल उर्बन, फंदा, बुरहानपुर, छतरपुर, बिजावर, नौगाँव, मोखेड़ा, पांदूर्ना, पथरिया, खातेगांव, ग्वालियर अर्बन, महू।
ये शहर अतिदोहित श्रेणी में
नलखेड़ा, पानसेमल, सोनकच्छ, देवास, नालछा, धार, बदनावर, देपालपुर, इंदौर, सांवेर
ये शहर क्रिटिकल श्रेणी में
छिंदवाड़ा, तिरला, इंदौर अर्बन
जल्द सख्ती से होगा पालन
सेंट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड की रिपोर्ट जारी हुई है। जल संचय के लिए अधिक प्रयास अभी से करना होगा, हालांकि पहले से ही नियम है कि सभी स्थानों पर वाॅटर हार्वेस्टिंग किया जाना चाहिए, लेकिन इस नियम का सख्ती से पालन नहीं हो पा रहा है। अब इसका पालन करवाने के लिए प्लान बनाना होगा। जल्द ही इसको लेकर काम शुरू करेंगे।- संजीव श्रीवास्तव, कार्यपालन यंत्री, पीएचई विभाग
बोरिंग पर हो सख्ती से प्रतिबंध
फिलहाल शहर में भूजल स्तर बिलकुल ठीक स्थिति में नहीं है। शहर को जितने पानी की मांग है, उससे कम सप्लाई है। इसके अतिरिक्त पानी की खपत भूमि के पानी से ही पूरी होती है। यह एक तरीके से शहर का फिक्स डिपॉजिट था। अब इसे भी खत्म कर लिया गया है। जल संचय पर काम करना होगा और धड़ल्ले से हो रहे बोरिंग पर रोक लगाना होगी। नहीं तो इसी साल जलसंकट के हालात शहर में होंगे।
सुरेश एम.जी., जल प्रबंधन विशेषज्ञ