मंद‍िर छोड़कर जा चुकी है मां चंडी… अब स‍िर्फ बचा है फ्रेम! कहीं सिर तो कहीं धड़ की होती है पूजा, जानिए इस मंदिर का रहस्‍य

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मंद‍िर छोड़कर जा चुकी है मां चंडी… अब स‍िर्फ बचा है फ्रेम! कहीं सिर तो कहीं धड़ की होती है पूजा, जानिए इस मंदिर का रहस्‍य

मंद‍िर छोड़कर जा चुकी है मां चंडी… अब स‍िर्फ बचा है फ्रेम! कहीं सिर तो कहीं धड़ की होती है पूजा, जानिए इस मंदिर का रहस्‍य

सागर, अमित प्रभु मिश्रा : उत्तरप्रदेश और मध्यप्रदेश की सीमा पर हरे भरे जंगलों के बीच स्थित मां चंडी मंदिर दोनों प्रदेशों के श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र है। नवरात्र में बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं। उत्तरप्रदेश के नाराहट से यह स्थान दो किलोमीटर दूर दौलतपुर गांव के पास है तो वहीं एक अन्य रास्ता मध्य प्रदेश के सागर जिले के मालथौन के अटा गांव से होकर पहुंचता है। यहां माता के मंदिर में मूर्ति का फ्रेम ही दिखाई देता है, जिसमें चारों ओर अस्त्र-शस्त्र हैं लेकिन मुख्य स्वरूप की प्रतिमा नहीं है। एक तरह से माता के निराकार दर्शन करने श्रद्धालु पहुंचते जरूर हैं।

कहीं सिर तो कहीं धड़ की होती है पूजा
बताया जाता है कि यहां से गायब हुई प्रतिमा के तार चंदेरी तक जुड़े हुए हैं। कहीं धड़ तो कहीं माता के सिर की पूजा होती है। मान्यता के अनुसार मां चंडी अपने मढ़ की छत तोड़कर चंदेरी मध्य प्रदेश के पर्वत की तलहटी में पहुंच गई थीं, जहां उन्हें जागेश्वरी माता के नाम से जाना जाता है। लेकिन लोगों की आस्था इस क्षेत्र से सैकड़ों साल से बनी हुई है। यहां चंदेल कालीन मूर्तियां, मंदिर के स्तंभों दरवाजे के नाले में बिखरे अवशेष सैकड़ों साल के इतिहास की गवाही देते हैं। इस क्षेत्र को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने संरक्षित स्मारक घोषित किया है। ऐतिहासिक महत्व की बात करें तो यहां विशेषज्ञ बताते हैं कि यहां आल्हा-ऊदल की कचहरी लगा करती थी, इस लिहाज से यह बुंदेलखंड के प्रमुख स्थानों में शामिल हो जाता है। वहीं, यहां घाटी में पड़े प्राचीन आस्था केंद्रों के अवशेष मूर्तिकाला का सौंदर्य चंदेल काल को दर्शाते हैं इसे लेकर शोधकार्य भी जारी है।

रहस्यों से भरा है यह स्थान
इस स्थान के विषय में कहा जाता है कि यह तंत्र साधना और दैवीय महत्व का विशेष स्थल है। यहां सैकड़ों वर्ष पुरानी षोडश मात्रिका व गणेश प्रतिमाएं घाटी में पड़ी हुई हैं। वहीं, घाटी के ऊपर एक मंदिर नुमा प्राचीन भवन है जिसके द्वार पर गणेश या भैरव नहीं बल्कि भगवान शंकर की आकृति उकेरी हुई है। लगभग सभी मूर्तियां सांकेतिक रूप से खंडित हैं। तो यहां की प्राकृतिक सुंदरता कदम-कदम पर रहस्य समेटे हुए है।

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प्राकृतिक सुंदरता देखने आते हैं सैलानी
इस स्थान पर पहुंचना दुर्गम है लेकिन नवरात्रि में बड़ी संख्या में आसपास के गांव के लोग यहां पूजा करने पहुंचते हैं। वहीं, बारिश में निकलने वाले इस घाटियों और झरनों से भरे मनोरम जंगली नाले को देखने सैलानी जोखिम उठाकर पहुंचते हैं। यहीं पास ही कनकद्दर का झरना है जो पर्यटकों का पसंदीदा स्थल है। लेकिन, वहां पहुंचने का रास्‍ता भी जोखिम भरा है।

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