न्यायालय की अवमानना क़ानून का अर्थ और महत्व

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contempt of court
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अभी हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने प्रसिद्ध वकील प्रशांत भूषण को न्यायालय की अवमानना का दोषी पाया गया. इसके साथ ही उनपर 1 रूपये जुर्माना भी लगाया गया. अब मन में सवाल उठता होगा कि ये न्यायालय की अवमानना क्या होती है ? यदि साधारण शब्दों में बताएं तो अदालत के किसी फैसले या अदालत की प्रतिष्ठा के खिलाफ जानबूझकर की गई अवज्ञा यानि आज्ञा ना मानना.

court of contempt

अवमानना दो प्रकार की होती है- एक प्रत्यक्ष अवमानना तथा दूसरी अप्रत्यक्ष अवमानना. प्रत्यक्ष अवमानना जिसका मतलब होता है की अदालत में खड़े होकर यदि अदालत के किसी आदेश को नहीं मानते. दूसरा अप्रत्यक्ष अवमानना जिसमें कोई अदालत के बाहर नारेबाजी या अदालत ने जो फैसला दिया है, उसको ना माने. अदालत के अवमानना के जुर्म मे सजा का प्रावधान होता है.

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संविधान में इससे संबंधित अनुच्छेद – अनुच्छेद 129 सर्वोच्य न्यायालय को अपने आदेश को न मानने के मामले में व्यक्ति को दंडित करने का अधिकार देता है. इसके अलावा अनुच्छेद 142 (2) सर्वोच्य न्यायालय को अवमानना के लिए जांच करने और दंडित करने की शक्ति देता है. अनुच्छेद 125 में सभी उच्च न्यायालय अपनी अवमानना के लिए व्यक्ति को सजा दे सकते हैं.

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हमारे देश में संविधान सबसे ऊपर है,जिसमें लोगों के अधिकारो की रक्षा का काम न्यायपालिका को सौंपा गया है. इसलिए इस कानून का महत्व और भी बढ़ जाता है क्योंकि यदि अदालत के फैसले को मानने से मना किया जाने लगा तो हमारे देश की न्याय व्यवस्था की नींव हिल जाएगी. अदालत के फैसले का सम्मान बहुत जरूरी है, अगर कोई ऐसा नहीं करता है, तो उसके लिए सजा का प्रावधान के द्वारा न्यायपालिका की गरिमा को बचाए रखना ही सबसे बड़ा उद्देश्य हैं.