MCD में बहुमत होने के बाद भी क्यों मेयर नहीं बना पा रही AAP, LG या बीजेपी है रुकावट या कोई और वजह? जानिए एक्सपर्ट्स की राय

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MCD में बहुमत होने के बाद भी क्यों मेयर नहीं बना पा रही AAP, LG या बीजेपी है रुकावट या कोई और वजह? जानिए एक्सपर्ट्स की राय

MCD में बहुमत होने के बाद भी क्यों मेयर नहीं बना पा रही AAP, LG या बीजेपी है रुकावट या कोई और वजह? जानिए एक्सपर्ट्स की राय

नई दिल्ली: राजधानी दिल्ली की छोटी सरकार यानी एमसीडी में इन दिनों अलग सियासी जंग जारी है। दिल्ली एमसीडी में बहुमत हासिल करने के बाद भी आम आदमी पार्टी अपना मेयर और डिप्टी मेयर नहीं बना पा रही है। 250 वार्ड वाली एमसीडी में आप को 134 सीटें मिली हैं, इसके बाद भी पार्टी को अपना नेता चुनने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। हाल ही में इसे लेकर सदन के भीतर पार्षद आपस में भिड़ भी गए थे। इसे लेकर एक्सपर्ट्स का कहना है कि दिल्ली नगर निगम (डीएमसी) अधिनियम इस प्रक्रिया को जटिल बना रहा है। पहले भी राजनीतिक पार्टियों को इस तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ा है।

एमसीडी एक्ट एलजी को देता है कई शक्तियां
दिल्ली विधानसभा के पूर्व सचिव एसके शर्मा ने कहा कि निगम डीएमसी एक्ट के अनुसार काम करता है क्योंकि यह विधायिका नहीं है। उन्होंने कहा, ‘संविधान में केवल विधायिका जैसे विधानसभा और संसद के लिए नियम हैं, जहां कानून बनाए जाते हैं। नगर निगम अधिनियम में अलग तरह के नियम हैं। संशोधित डीएमसी अधिनियम, 2022 ने केंद्र या दूसरे शब्दों कहें तो एलजी को सभी शक्तियां दे दी हैं, जिससे आप के लिए चीजें मुश्किल हो गई हैं। इसमें साफ तौर पर कहा गया है कि एलजी 10 एल्डरमैन नियुक्त करेंगे। इसी तरह, 14 विधायकों को विधानसभा अध्यक्ष द्वारा नामित किया जाता है।’
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क्या कहते हैं एक्सपर्ट?
संवैधानिक एक्सपर्ट सुभाष कश्यप ने कहा, ‘दिल्ली एक केंद्र शासित प्रदेश है,जहां एलजी को निर्वाचित सरकार की तुलना में प्रमुख शक्तियां दी गई हैं।’ कश्यप ने आगे कहा कि शुक्रवार की घटना के पीछे शक्ति परीक्षण मुख्य कारण था। उन्होंने कहा, ‘एमसीडी चुनाव के नतीजों के बाद भी बीजेपी ने दावा किया कि मेयर उनकी पार्टी का होगा। माना जा रहा है कि आप को यह डर था कि कहीं ये बयान सच न हो जाए, इसलिए आप बहुमत होने के बावजूद मनोनीत सदस्यों की शपथ का विरोध कर रही है।’ एमसीडी के मामले में दल-बदल विरोधी कानून लागू नहीं होने से पार्षदों की क्रॉस वोटिंग संभव है। 2014 में, कांग्रेस पार्षद प्रवीण राणा निर्दलीय के समर्थन से तत्कालीन दक्षिण निगम के डिप्टी मेयर चुने गए थे, जबकि भाजपा सत्ता में थी।
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7 दिसंबर को एमसीडी के परिणामों की घोषणा के बाद, भाजपा आईटी विभाग के प्रमुख अमित मालवीय ने कहा कि अब दिल्ली का मेयर चुनने की बारी है। अब यह देखना पड़ेगा कि करीबी मुकाबले में किसका पलड़ा भारी रहता है। उन्होंने चंड़ीगढ़ का उदाहरण देते हुए इस बात को कहा, जहां सदन में आप सबसे बड़ी पार्टी है लेकिन इसके बाद भी मेयर बीजेपी का है।
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‘पूरे विवाद को आसानी से टाला जा सकता था’
एमसीडी में प्रेस और सूचना के पूर्व निदेशक दीप माथुर ने कहा कि पहले कभी भी मनोनीत सदस्यों को अन्य सदस्यों से पहले शपथ नहीं दिलाई गई। इस पूरी गड़बड़ी को आसानी से टाला जा सकता था। हमेशा दो सदस्य जीतकर सदन में आते हैं उन्हें पहले शपथ दिलाई जाती रही है, क्योंकि वो प्रत्यक्ष निर्वाचन के माध्यम से आते हैं। पहले जब केवल 4-5 एल्डरमैन को मनोनीत किया जाता था तो उन्हें सदन की सामान्य बैठकों के मध्य में शपथ दिलाई जाती थी।’
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‘पीठासीन का अधिकार किसे पहले दिलाएं शपथ’
यूनिफाइड एमसीडी के पूर्व कमिश्नर केएस मेहरा ने कहा, ‘हालांकि निर्वाचित सदस्यों को पहले शपथ लेने का पूरा अधिकार है, लेकिन एमसीडी के मामले में, जो सीधे केंद्र या एलजी के अधीन आता है, यह पीठासीन अधिकारी का विशेषाधिकार है कि पहले किसे आमंत्रित करना है इसका फैसला करें।’

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