Manju Rani: परिवार का शुरुआती विरोध, आर्थिक तंगी ने किया जीना मुश्किल, अब भारत का नाम किया रोशन h3>
नई दिल्ली: मंजू रानी के लिए खेल में करियर बनाना आसान नहीं था। छठी कक्षा में ही उन्हें अपने परिवार से दूर होना पड़ा और उनकी दादी ने उन्हें घर से दूर जाने की परमिशन देने से इनकार कर दिया था लेकिन उनके पिता ने अपनी बेटी की एथलीट बनने की इच्छा को समझा और उन्हें मुक्तसर जिले के बादल के साइ केंद्र में जाने की इजाजत दी। मंजू पंजाब के मनसा जिले के छोटे से गांव खैरा खुर्द की रहने वाली हैं और उनकी मां का निधन हो चुका है।ऐसे में परिवार से दूर रहने की परमिशन मिलना आसान नहीं था। हालांकि यह बुरा जुआ नहीं था। चौबीस साल की मंजू अब देश की शीर्ष पैदल चाल खिलाड़ी हैं। मंजू ने पीटीआई से कहा, ‘पापा को मनाने में काफी मशक्कत करनी पड़ी। एक लड़की को परिवार से दूर रहने देना सामान्य बात नहीं थी। साइ का ट्रेनिंग केंद्र मेरे गांव से 100 किलोमीटर दूर था। मेरी ‘दादी’ अनुमति देने से इनकार करती रहीं।’
उन्होंने कहा, ‘एक दिन चाय पीते हुए पापा राजी हो गए लेकिन मुझे कहा कि परिवार के सम्मान को दाग मत लगाना।’ मंजू ने अपना वादा निभाया और 35 किलोमीटर पैदल चाल स्पर्धा तीन घंटे से कम समय में पूरी करने वाली पहली भारतीय महिला बनकर अपने परिवार और पंजाब को नाम रोशन किया। उन्होंने फरवरी में रांची में राष्ट्रीय पैदल चाल चैंपियनशिप में दो घंटे 57 मिनट 54 सेकेंड का समय लिया जो एशियाई खेलों में क्वालीफाई करने के लिए पर्याप्त था।
भुवनेश्वर में अंतर राज्यीय राष्ट्रीय एथलेटिक्स चैंपियनशिप में हिस्सा लेते हुए मंजू ने फिर गोल्ड मेडल जीता लेकिन तेज गर्मी के कारण तीन घंटे 21 मिनट और 31 सेकेंड के समय में कॉम्पिटिशन पूरा किया। हालांकि मंजू शुरुआत में हैंडबॉल खिलाड़ी बनना चाहती थीं। उन्होंने स्कूल में चयन ट्रायल में भी हिस्सा लिया लेकिन उम्मीद के मुताबिक प्रदर्शन नहीं कर पाईं।
तब वहां एक कोच ने उन्हें पैदल चाल में भाग्य आजमाने की सलाह दी। मंजू ने कहा, ‘मैंने इससे पहले कभी पैदल चाल में हिस्सा नहीं लिया था लेकिन मैं तीसरे स्थान पर रहने में सफल रही। कोच मेरे प्रदर्शन से प्रभावित हुए और मुझे सलाह दी कि अगर मुझे बेहतर खिलाड़ी बनना है तो बेहतर स्थान पर जाकर ट्रेनिंग करनी होगी।’
उन्होंने कहा, ‘मेरे पिता ने समर्थन किया और मेरी यात्रा की शुरुआत 2015 में हुई। तीन महीने में मैंने राज्य स्तर की जूनियर चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीता। इसके बाद राष्ट्रीय स्कूल खेलों में मुझे रजत पदक मिला। मैं 2017 तक बादल केंद्र में रही।’
मंजू के परिवार, विशेषकर उनकी दादी को उन पर गर्व है। उन्होंने कहा, ‘उन्हें मुझ पर गर्व है। अब वे कहते हैं कि प्रत्येक परिवार में मेरे जैसी बेटी होनी चाहिए। मेरी ट्रेनिंग को लेकर विरोध सिर्फ एक महीने तक था। मुझे अपने परिवार का पूरा समर्थन हासिल है।’ यह पूछने पर कि उन्होंने पैदल चाल को ही क्यों चुना, मंजू ने कहा, ‘दौड़ते हुए आपको अपने घुटने को निश्चित तरीके से उठाना होता है। लेकिन जब मैं दौड़ती थी तो भी लगता था कि मैं पैदल चल रही हूं। मेरी कोच प्रीतपाल कौर ने इस पर गौर किया और सलाह दी कि मुझे पैदल चाल की खिलाड़ी के रूप में ट्रेनिंग करनी चाहिए।’
हालांकि मंजू को फाइनेंशियल चुनौतियों का भी सामना करना पड़ा। उनके पिता को अपनी जमीन गिरवी रखनी पड़ी जबकि मंजू को 2019 में आठ लाख रुपये का निजी ऋण भी लेना पड़ा। उन्हें एक प्रायोजक की तलाश है जिससे कि ट्रेनिंग का खर्चा निकल सके।
उन्होंने कहा, ‘एक दिन चाय पीते हुए पापा राजी हो गए लेकिन मुझे कहा कि परिवार के सम्मान को दाग मत लगाना।’ मंजू ने अपना वादा निभाया और 35 किलोमीटर पैदल चाल स्पर्धा तीन घंटे से कम समय में पूरी करने वाली पहली भारतीय महिला बनकर अपने परिवार और पंजाब को नाम रोशन किया। उन्होंने फरवरी में रांची में राष्ट्रीय पैदल चाल चैंपियनशिप में दो घंटे 57 मिनट 54 सेकेंड का समय लिया जो एशियाई खेलों में क्वालीफाई करने के लिए पर्याप्त था।
भुवनेश्वर में अंतर राज्यीय राष्ट्रीय एथलेटिक्स चैंपियनशिप में हिस्सा लेते हुए मंजू ने फिर गोल्ड मेडल जीता लेकिन तेज गर्मी के कारण तीन घंटे 21 मिनट और 31 सेकेंड के समय में कॉम्पिटिशन पूरा किया। हालांकि मंजू शुरुआत में हैंडबॉल खिलाड़ी बनना चाहती थीं। उन्होंने स्कूल में चयन ट्रायल में भी हिस्सा लिया लेकिन उम्मीद के मुताबिक प्रदर्शन नहीं कर पाईं।
तब वहां एक कोच ने उन्हें पैदल चाल में भाग्य आजमाने की सलाह दी। मंजू ने कहा, ‘मैंने इससे पहले कभी पैदल चाल में हिस्सा नहीं लिया था लेकिन मैं तीसरे स्थान पर रहने में सफल रही। कोच मेरे प्रदर्शन से प्रभावित हुए और मुझे सलाह दी कि अगर मुझे बेहतर खिलाड़ी बनना है तो बेहतर स्थान पर जाकर ट्रेनिंग करनी होगी।’
उन्होंने कहा, ‘मेरे पिता ने समर्थन किया और मेरी यात्रा की शुरुआत 2015 में हुई। तीन महीने में मैंने राज्य स्तर की जूनियर चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीता। इसके बाद राष्ट्रीय स्कूल खेलों में मुझे रजत पदक मिला। मैं 2017 तक बादल केंद्र में रही।’
मंजू के परिवार, विशेषकर उनकी दादी को उन पर गर्व है। उन्होंने कहा, ‘उन्हें मुझ पर गर्व है। अब वे कहते हैं कि प्रत्येक परिवार में मेरे जैसी बेटी होनी चाहिए। मेरी ट्रेनिंग को लेकर विरोध सिर्फ एक महीने तक था। मुझे अपने परिवार का पूरा समर्थन हासिल है।’ यह पूछने पर कि उन्होंने पैदल चाल को ही क्यों चुना, मंजू ने कहा, ‘दौड़ते हुए आपको अपने घुटने को निश्चित तरीके से उठाना होता है। लेकिन जब मैं दौड़ती थी तो भी लगता था कि मैं पैदल चल रही हूं। मेरी कोच प्रीतपाल कौर ने इस पर गौर किया और सलाह दी कि मुझे पैदल चाल की खिलाड़ी के रूप में ट्रेनिंग करनी चाहिए।’
हालांकि मंजू को फाइनेंशियल चुनौतियों का भी सामना करना पड़ा। उनके पिता को अपनी जमीन गिरवी रखनी पड़ी जबकि मंजू को 2019 में आठ लाख रुपये का निजी ऋण भी लेना पड़ा। उन्हें एक प्रायोजक की तलाश है जिससे कि ट्रेनिंग का खर्चा निकल सके।