Manish Sisodia News: सिसोदिया को SC ने सुनाया, कहा- आप दिल्ली में हैं, इसका यह मतलब नहीं कि सीधे सुप्रीम कोर्ट आ जाएंगे
आपने हाई कोर्ट के बजाय सुप्रीम कोर्ट का रास्ता चुना?
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की बेंच ने कहा कि याचिकाकर्ता सिसोदिया हाई कोर्ट जा सकते हैं, लेकिन उन्होंने सीधे अनुच्छेद-32 का इस्तेमाल कर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है? चीफ जस्टिस ने कहा कि आपने एफआईआर को चुनौती दी है, आपने जमानत की मांग की है और यह अनुच्छेद-32 के तहत रिट दाखिल कर मांग की गई है, जबकि आपके पास सीआरपीसी की धारा-482 में हाई कोर्ट जाने का रास्ता बचा हुआ है। अभिषेक मनु सिंघवी ने अर्नब गोस्वामी और विनोद दुआ के केस का हवाला दिया और कहा कि आर्टिकल-32 का तब भी इस्तेमाल किया गया था और अति विशेष परिस्थितियों में जमानत दी जा सकती है। चीफ जस्टिस ने कहा कि अर्नब मामले में पहले हाई कोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट में केस आया था। विनोद दुआ के खिलाफ रिपोर्ट के मामले में केस था। लेकिन मौजूदा मामला तो भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत दर्ज है।
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सुबह मेंशन किया गया था केस
एक्साइज पॉलिसी मामले में गिरफ्तार किए गए सिसोदिया की ओर से सुप्रीम कोर्ट में जमानत अर्जी दाखिल कर मामले में तुरंत सुनवाई की गुहार लगाई गई। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली बेंच ने कहा कि वह मामले में संवैधानिक बेंच की सुनवाई के बाद इस मामले को 3 बजकर 50 मिनट पर टेकअप करेंगे। चीफ जस्टिस की अगुवाई वाली बेंच के सामने सिसोदिया की ओर से सीनियर एडवोकेट अभिषेक मनु सिंघवी पेश हुए और कहा कि इस मामले में तुरंत सुनवाई की जरूरत है। सुप्रीम कोर्ट से जमानत की गुहार लगाई गई। सिसोदिया की ओर से सीबीआई की गिरफ्तारी को चुनौती दी गई है।
विनोद दुआ केस का हवाला दिया
चीफ जस्टिस ने कहा कि गिरफ्तारी के मामले में उनके पास सीआरपीसी में दिल्ली हाई कोर्ट जाने का कानूनी रास्ता बचा हुआ है, वहां वह जमानत और वहीं केस खारिज करने की गुहार लगा सकते हैं। इस दौरान सिंघवी ने दलील दी कि सुप्रीम कोर्ट ने 32 जजमेंट दिए हुए हैं और यह केस विनोद दुआ केस में दिए गए जजमेंट के दायरे में आता है। दुआ के खिलाफ दिल्ली में हुए दंगे मामले में आपत्तिजनक बयान देने के मामले में केस दर्ज किया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने जर्नलिस्ट विनोद दुआ को प्रोटेक्शन दिया था और किसी भी दंडात्मक कार्रवाई पर रोक लगाई थी। सुप्रीम कोर्ट में इसी कारण सीधे गुहार लगाई गई है और आर्टिकल-32 के तहत सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया गया है।
सिंघवी ने कहा कि इस मामले में सात साल से कम सजा का प्रावधान है और गिरफ्तारी जरूरी नहीं थी। इस मामले में ट्रिपल टेस्ट देखना होगा। कोई फ्लाइट रिस्क यानी भागने का अंदेशा नहीं है, समन को अवहेलना की बात नहीं है और न ही क्रिमिनल दखलंदाजी की बात है। सिंघवी ने कहा कि रिमांड इस आधार पर मांगा गया है कि छानबीन में सहयोग नहीं कर रहे हैं। इस पर चीफ जस्टिस ने कहा कि आपने ये सारी दलील हाई कोर्ट के सामने क्यों नहीं रखी। जस्टिस नरसिम्हा ने कहा कि घटना दिल्ली की है इसका मतलब यह नहीं है कि आप सीधे सुप्रीम कोर्ट को अप्रोच करें। हम इस स्टेज पर आपकी याचिका पर विचार नहीं करेंगे।