Mahavir Jayanti 2022 : ग्वालियर से बुंदेलखंड तक फैली हैं जैन संतों की तपस्थलियां | Mantras resonate in six siddha and 30 Atishay areas of jainism | Patrika News

189
Mahavir Jayanti 2022 : ग्वालियर से बुंदेलखंड तक फैली हैं जैन संतों की तपस्थलियां | Mantras resonate in six siddha and 30 Atishay areas of jainism | Patrika News

Mahavir Jayanti 2022 : ग्वालियर से बुंदेलखंड तक फैली हैं जैन संतों की तपस्थलियां | Mantras resonate in six siddha and 30 Atishay areas of jainism | Patrika News

ग्वालियर से खुलेगी जैन कॉरिडोर की राह, धार्मिक पर्यटन बनेगा सबसे बड़ा प्रोजेक्ट

छह सिद्ध और 30 अतिशय क्षेत्रों में गूंजते हैं मंत्र : Jain Socity

भोपाल

Published: April 14, 2022 01:41:02 pm

ग्वालियर से जैन कॉरिडोर की राह खुलेगी। यहां से बुंदेलखंड तक जैन धर्म की ध्वजा फहरा रही है। जैनों के लिए ग्वालियर से बुंदेलखंड तक की यात्रा तीर्थ यात्रा है। इस यात्रा में छह सिद्ध क्षेत्र 30 के करीब अतिशय क्षेत्र है। दो बड़े सिद्ध क्षेत्र ग्वालियर स्थित गोपाचल पर्वत और ग्वालियर से दतिया के बीच सिद्ध क्षेत्र सोनागिर में पर्वत पर मंदिरों की शृंखला है। गोपाचल पर्वत पर छह इंच से 57 फीट तक ऊंची जैन भगवानों की प्रतिमाएं हैं।

jain samaj

ग्वालियर के किले पर सिद्ध एवं अतिशय क्षेत्र है। यह स्थान जैन मूर्तियों के समूह के लिए प्रसिद्ध है। पर्वत को तराशकर 1398 से 1536 के बीच लगभग 15 हजार जैन मूर्तियों का निर्माण किया गया था…

तोमरवंश के राजा वीरमदेव, डूंगरसिंह व कीर्तिसिंह के शासनकाल में इन विशाल मूर्तियों का निर्माण किया गया था। यहां जैन धर्म के तीर्थंकरों की मूर्तियां बनाई गई हैं। इनमें छह इंच से लेकर 57 फीट तक की मूर्तियां शामिल हैं। इन मूर्तियों को मुगलकाल में खंडित किया गया था।

gopachal

यहां प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ की 57 फीट ऊंची खडगासन मूर्ति है संभवत विश्व में इतनी ऊंची जैन मूर्ति कहीं नहीं है। इसके साथ ही भगवान पाश्वनाथ की भी 42 फीट ऊंची मूर्ति भी यहां है।

फैला है अतिशय क्षेत्र
ग्वालियर से बुंदेलखंड तक जैन तीर्थ और अतिशय क्षेत्र फैले हुए हैं। इनमें से ग्वालियर किले पर गोपाचल सिद्ध क्षेत्र जहां सैकड़ों प्रतिमाओं को समेटे हुए हैं तो वहीं सोनागिर में पर्वत पर जैन भगवानों के मंदिरों की पूरी श्रृंखला है। सोनागिर के पर्वत समेत नीचे करी 103 मंदिर हैं तो बुंदेलखंड टीकमगढ़ के सिद्ध क्षेत्र पपोराजी में भी 108 जैन मंदिर स्थापित हैं इनमें कई अतिप्राचीन हैं। इन सभी सिद्ध क्षेत्रों इतिहास काफी प्राचीन है।

ग्वालियर से लगभग 60 किलोमीटर दूर सोनागिर के पर्वत पर 9वीं शताब्दी के बाद के कई जैन मंदिर हैं…
जैन ग्रंथों के अनुसार 8वें तीर्थंकर चंद्रप्रभु के समय से साढ़े पांच करोड़ तपस्वियों ने यहां मोक्ष (मुक्ति) प्राप्त की है। यहां चंद्रप्रभु की 11 फीट की मूर्ति चट्टान को काटकर बनाई गई है। यह 5 वीं से 6 वीं शताब्दी की है। पहाड़ी पर 77 और गांव में 23 के साथ कुल 103 मंदिर है जो स्वेत हैं। यह एक अनोखा स्थान है जो लघु सम्मेद शिखर के नाम से जाना जाता है। यहां भगवान चंद्रप्रभु का समवशरण 17 बार अया था। सोनागिर : 9वीं शताब्दी के बीच निर्माण।

जैन तीर्थक्षेत्र देवगढ़
ललितपुर से 33 किलोमीटर दूर देवगढ़ ऐतिहासिक स्थल है। इसके प्राचीन किले के भीतर 31 जैन मंदिर हैं…

मंदिरों में सबसे सुंदर जैन तीर्थंकर शांतिनाथ का मंदिर है। इन मंदिरों की सजावट चंदेल राजाओं ने की थी। इसके अलावा मंदिर की दीवारों पर महाभारत और रामायण के चित्र बी बने हुए हैं।

अतिशय सिद्ध क्षेत्र आहार
टीकमगढ़ जिले में आहारजी जैन सिद्ध क्षेत्र है। भगवान शांतिनाथ की मूर्ति मय पाषाण शिलालेख के 21 फीट की है…

यहां भगवान कुंथुनाथ की और अरहनाथ की 11-11 फीट की मूर्तियां हैं। प्रतिमाओं पर रत्नों की पालिश है। भगवान शांतिनाथ और कुंथुनाथ की मूर्ति 133 वर्ष पूर्व रेत के टीले की खुदाई में मिली थीं।

पपोराजी जैन तीर्थ
टीकमगढ़ से पांच किलोमीटर दूर सागर-टीकमगढ़ मार्ग पर पपौराजी जैन तीर्थ है जो बहुत ही प्राचीन है..

यहां 108 जैन मंदिर हैं जो सभी प्रकार के आकार के बने हुए हैं जैसे रथ आकार, कमल आकार। पपौरा क्षेत्र पर चौबीसी बनी है वह भारत मेंं कहीं और नहीं देखने को मिलती है। इसमें एक बड़े मंदिर के चारों ओर प्रत्येक दिशा में 6-6 मंदिर हैं। प्रत्येक वेदिका कि अलग से परिक्रमा को चतुर्दिक झरोंखों के रूप में जिस तरह से बनाया गया है वह वास्तुकला का अद्भुत नमूना है।

अतिशय क्षेत्र थूबोनजी
अशोकनगर से 32 किलोमीटर दूर दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र थूबोनजी है…

इस पवित्र तीर्थ का उद्भव 12 वीं शताब्दी में पाड़ाशाह द्वारा कराया गया था…यहां 26 जिन मंदिर हैं। यहां जिन मंदिरों में भव्य चित्ताकर्षक जिन प्रतिमाएं विराजमान हैं। यहां भगवान अदिनाथ की 28 फीट ऊंची खडगासन प्रतिमा है। यह क्षेत्र तपोवन के रूप में प्रसिद्ध है।

अतिशय क्षेत्र सिहोनियां
मुरैना से 55 किलोमीटर दूर शांतिनाथ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र है…
यहां टीले से निकली 11 वीं सदी की भगवान शांतिनाथ कीक 116 फीट ऊंची, अरहनाथ की 10 फीट और कुथिनाथ की 10 फीट की पाषाण की खडगासन प्रतिमाएं विराजमान हैं। यहीं नहीं यहां टीले पर अभी भी प्रतिमाएं मिलति रहती हैं।

देवों ने एक ही रात में की मंदिर की रचना
भगवान महावीर स्वामी की समोशरण स्थली बरासो : भिण्ड से 20 किलोमीटर दूर स्थित है अति प्राचीन अतिशय क्षेत्र बरासो। जिनश्रुति केवली के अनुसार भगवान महावीर स्वामी का समोशरण अतिशत क्षेत्र बरासो आया था। भगवान महावीर स्वामी का समोशरण यहां एक बार नहीं तीन बार आया था। देवों ने स्मृति रूप में एक ही रात में जिन मंदिर की रचना की थी। यहां मूल नायक जिन प्रतिमाओं पर कोई चिह्न नहीं है। यहां विराजित प्रतिमाएं 1500 से 2000 वर्ष पुरानी हैं।

 जैन तीर्थ स्थल

महावीर स्वामी की माता त्रिशला : ग्वालियर किले पर सिद्ध क्षेत्र गोपाचल पर्वत पर महावीर स्वामी ही नहीं उनकी मां त्रिशला की भी मूर्ति है। संभवत यह देश की इकलौती बड़ी मूर्ति है। गोपाचल से जुड़े लोग बताते हैं कि गुफा में माता त्रिशला की अदमकद लेटी प्रतिमा है। लाल वस्त्र धारण किए हुए यह प्रतिमा माता के पूरे शृंगार में है। यहां जैन धर्म के ही नहीं दूसरे धर्म के लोग भी दर्शन करने आते हैं क्योंकि वे इसे माता स्वरूपा मानते हैं। यह प्रतिमा काफी आकर्षक है।

स्वर्ण मंदिर भी ग्वालियर में
ग्वलियर के गस्त का ताजिया डीडवाना ओली में जैन स्वर्ण मंदिर है। इस मंदिर का निर्माण 1761 में हुआ था।

इस मंदिर में 80 किलो सोने का उपयोग स्वर्ण चित्रकारी के लिए किया गया है। इस मंदिर में 163 मूर्तियां हैं जो चांदी, मूंगा, स्फटिक मणि,पाषाण, संगममरमर की हैं। यह जैन मंदिर देश का अद्भुभुत मंदिर है। मंदिर में छह वेदियां है एवं कलापूर्ण समवशरण है जिसमें स्वर्ण चित्रकारी का काम सोने की की कलम से बारीकी से किया गया है।

जैन संतों की तपस्थली है अंचल बुंदेलखंड व मालवा : विहर्षसागर महाराज, जैन मुनि एवं राष्ट्रसंत
ग्वालियर अंचल, बुंदेलखंड व आधा मालवा जैन संतों की तपस्थली रही है। यहां न सिर्फ अति प्राचीन जैन मंदिर बल्कि पर्वतीय तीर्थ भी हैं। इसे जैन कॉरिडोर बनाना ही चाहिए इसमें देर नहीं लगाना चाहिए। सरकार को इस पर विचार करना चाहिए और जैन समाज को भी इसके लिए पहल करना होगी।

तो काफी मदद मिलेगी : पं. अजित कुमार, जैन प्रतिष्ठाचार्य ग्वालियर
सोनागिर-बरई के पर्वत पर बने जैन भगवानों के मंदिर, ग्वालियर दुर्ग पर जैन तीर्थ गोपाचल पर्वत पर महावीर स्वामी की माता त्रिशलादेवी की भारत की एक मात्र शैयासन मूर्ति विश्व के पर्यटकों को आकर्षित करने सक्षम है। समाज और शासन प्रयास करे तो अंचल का विकास होगा।

ग्वालियर : ग्वालियर शहर की बात करें तो यहां 65 के करीब जैन मंदिर हैं…
इनमें से करीब 38 मंदिर प्राचीन है जबकि 27 मंदिर नए बनाए गए हैं। शहर में जैन समाज की आबादी करीब 60 हजार के आसपास है।

सोनागिर की तर्ज पर बन रहा है बरई में जिनेश्वर धाम तीर्थ

शहर से लगभग 22 किलोमीटर दूर बरई हाईवे के नजदीक जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ की मोक्ष स्थली कैलाश पर्वत मान सरोवर की तरह पर्वत पर जिनेश्वर धाम तीर्थ स्थल बनकर तैयार हो रहा है।

jain temple

वर्तमान में भगवान आदिनाथ की मोक्ष स्थली चीन की सीमा में है वहां तक पहुंचना कठिन है इसलिए यहां छोटे रूप में इस तीर्थ को बनाया जा रहा है। ग्वालियर अंचल का यह तीसरा पर्वतीय तीर्थ बनकर तैयार हो रहा है। यह तीर्थ सोनागिरि तीर्थ की तर्ज पर पहाड़ पर बनाया जा रहा है। पहाड़ी पर 15वीं सदी का तोमर राजवंश कालीज चार जैन मंदिरों का समूह है।

यह भी जानें
जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ स्वामी की मोक्ष स्थली कैलाश पर्वत मान सरोवर है। जैन शास्त्रों में इसे अष्टापद पर्वत भी कहा जाता है।

इस पर्वत से ही भगवान आदिनाथ को मोक्ष प्राप्त हुआ था, इस कारण यह पर्वत जैन अनुयायियों के लिए पूज्य तीर्थ माना जाता है।

इसी को ध्यान मेें रखते हुए ग्वालियर के नजदीक बरई में जिनेश्वर धाम तीर्थ की तलहटी में इस तीर्थ को छोटे रूप में बनाया गया है। जिसका फिनिशिंग वर्क चल रहा है।

नेमीनाथ भगवान की प्रतिमाएं : प्रदेश का पहला इतना विशाल जैन तीर्थ स्थल
इस तीर्थ के उपर पहाड़ी पर एक प्राचीन मंदिर है जहां 13वीं शताब्दी की लगभग 700 वर्ष पुरानी 17 फीट की चन्द्राप्रभू भगवान की 17 फीट की मुनिसुव्रतनाथ भगवान एवं 21 फीट की नेमीनाथ भगवान की प्रतिमाएं विराजित है। 72 मंदिरों के साथ कैलाश पर्वत 3 माह में बनकर तैयार हो जाएगा प्रदेश का यह पहला तीर्थ होगा जहां इतनी विशाल प्रतिमा के साथ कैलाश पर्वत होगा।

जमीन से 41 फीट ऊंची भगवान आदिनाथ की प्रतिमा
जनेश्वर धाम तीर्थ के अध्यक्ष पं अजीत कुमार शात्री एवं जैन समाज के प्रवक्ता ललित जैन ने बताया कि बरई स्थित इस तीर्थ पर 15 फीट के प्लेटफार्म पर 5 फीट का 5 क्विंटल वजनी कमल रखा गया उसके उपर 21 फीट उंची भगवान आदिनाथ की प्रतिमा खड़ी की गई है। इस तरह यह प्रतिमा जमीन से 41 फीट उंची है। जो आगरा मुम्बई हाईवे से भी दिखाई देती है।

72 मंदिरों के साथ बनाया गया है कैलाश पर्वत
भगवान की प्रतिमा के नीचे गोल पत्थर एवं मिटटी का पर्वत बनाया गया है जिसमें तीन फीट उंचे 72 मंदिर बनाए गए है, सभी मंदिरों में भगवान की प्रतिमा विराजित की जाएगी। जिनके दर्शन करने से कैलाश पर्वत पर भव्य जिनालय की कल्पना की जा सकती हैं।

1. जैन तीर्थक्षेत्र देवगढ़ : ललितपुर 31 मंदिर हैं किले के अंदर : 33 किलोमीटर दूर ललितपुर से

2. पपोराजी जैन तीर्थ : टीकमगढ़ 108 मंदिर तीर्थ स्थल हैं यहां : 05 टीकमगढ़ से है दूर : यहां 108 जैन मंदिर हैं जो कई आकार में बने हुए हैं

3. भिंड : 1500-2000 पुरानी प्रतिमाएं : 20 किलोमीटर दूर स्थित है भिण्ड से अतिशय क्षेत्र : यहां मूल नायक जिन प्रतिमाओं पर कोई चिह्न नहीं है।

newsletter

अगली खबर

right-arrow



उमध्यप्रदेश की और खबर देखने के लिए यहाँ क्लिक करे – Madhya Pradesh News