Maharashtra Politics: महाराष्ट्र की राजनीति में क्यों छाया हुआ है औरंगजेब, समझिए सियासी मायने h3>
मुंबई: महाराष्ट्र में बीते कुछ समय से औरंगजेब को लेकर राजनीति तेज हो चली है। यहां पिछले कुछ महीनों में सोशल मीडिया पर मुगल बादशाह औरंगजेब की तारीफ वाले संदेशों और व्हाट्सएप स्टेटस पर बंद का आह्वान और हिंसा हुई। औरंगजेब को लेकर यह स्क्रिप्ट पिछले एक महीने में कोल्हापुर, अहमदनगर, धुले और नासिक में देखने को मिली है। बीजेपी-शिवसेना सरकार की निगरानी में ‘लव जिहाद’ और ‘लैंड जिहाद’ के खिलाफ विरोध मुखर हुआ है, जिसका नतीजा यह रहा कि आयोजित हिंदू जन आक्रोश मोर्चा की रैलियों के मद्देनजर ऐसी घटनाएं सामने आई हैं। सरकार के आलोचकों का कहना है कि अगले साल होने वाले आम और विधानसभा चुनावों से पहले मतदाताओं के ध्रुवीकरण के लिए सांप्रदायिक कलह बोई जा रही है, लेकिन दूसरा पक्ष तनाव फैलाकर सरकार को अस्थिर करने की कोशिश कर रहा है।
सोशल मीडिया पर पोस्ट बनी हिंसा की वजह
शांति और सामुदायिक संबंधों के लिए जाने वाले राज्य में एक पोस्टर से जन्मी हिंसा चिंता बढ़ाने वाली है। पूर्व पुलिस महानिदेशक सतीश माथुर ने कहा, ‘यह विश्वास करना मुश्किल है कि सोशल मीडिया पर एक पोस्ट या स्थिति महाराष्ट्र में बंद या हिंसा का कारण बन सकती है, जो राज्य सांप्रदायिक रूप से कभी इस तरह से नहीं दिखा। यहां तक कि देश के अन्य हिस्सों में भीषण साम्प्रदायिक घटनाओं के दौरान भी महाराष्ट्र काफी हद तक शांतिपूर्ण रहा। इससे साफ मालूम पड़ता है कि जरूर कोई जानबूझकर समुदायों को शांति भंग करने के लिए उकसाने की कोशिश कर रहा है।
औरंगाबाद का नाम बदलने से भड़की चिंगारी
औरंगाबाद का नाम बदलकर छत्रपति संभाजीनगर कर दिया गया, जिसे कि हिंसा की एक चिंगारी माना जा रहा है। खासकर जब सरकार के नेताओं ने इसे ऐतिहासिक गलती करार देते हुए महाराष्ट्र में औरंगजेब के सभी उल्लेखों को मिटा देने के कदम के रूप में पेश किया। हालांकि यह योजना उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली एमवीए सरकार के तहत ही काम कर रही थी। लेकिन भाजपा-शिवसेना सरकार ने फरवरी में इस पर अपनी मुहर लगा दी, जिसके बाद मई में छत्रपति संभाजी महाराज जयंती समारोह मनाया गया। बीते काफी समय से चले आ रहे इस आह्वान ने पुराने विवाद को फिर से ताजा कर दिया।
शिवाजी महाराज के पुत्र की हत्या पुराना घाव
1680 के दशक में छत्रपति शिवाजी महाराज की मृत्यु के बाद औरंगजेब ने दक्कन को अधीन करने के लिए अभियान चलाया। यह उसका पुराना सपना था। यहां तक कि औरंगजेब ने अपने सेनापतियों की सलाह के खिलाफ अपना दरबार औरंगाबाद स्थानांतरित कर दिया और आक्रमणों की बौछार शुरू कर दी। इस दौरान बीजापुर और गोलकुंडा राज्यों ने जल्दी ही घुटने टेक दिए। फिर मराठों ने पकड़ बनाई, जिसके बाद 1689 में मुगल-मराठा आमने-सामने का सबसे खूनी अध्याय आया। शिवाजी के पुत्र और उत्तराधिकारी संभाजी को मुगलों ने पकड़ लिया गया, उन्हें प्रताड़ित कर क्रूरता से मौत के घाट उतार दिया गया। विद्रोही मराठों को दबाने के बजाय, इस कदम ने आक्रोश फैलाया और मराठा समुदाय के इतिहास का यह सबसे बड़ा घाव बन गया।
अधूरे सपने के साथ मरा औरंगजेब
औरंगजेब अपने अधूरे सपने के साथ मर गया, जिसके बाद उसके नाम पर बसे शहर औरंगाबाद के पास खुल्दाबाद में दफनाया गया। इतिहासकारों का कहना है कि दक्कन को जीतने के औरंगजेब के अभियान ने मुगल साम्राज्य को कमजोर कर दिया था। मुस्लिम सत्यशोधक मंडल के अध्यक्ष शमसुद्दीन तंबोली कहते हैं कि औरंगजेब कभी भी क्षेत्र के मुसलमानों के लिए सांस्कृतिक या धार्मिक शख्सियत नहीं रहा। वह मुसलमानों के जरिए मूर्तिमान नहीं है। यह महज किसी के फायदे के लिए समुदायों को भड़काने की साजिश है। अगर औरंगजेब से जुड़े संदेशों पर इतनी तीखी प्रतिक्रियाएं हैं, तो नाथूराम गोडसे के महिमामंडन पर ऐसी ही प्रतिक्रियाएं क्यों नहीं देखी जाती हैंं?
औरंगजेब के नाम पर राजनेताओं की प्रतिक्रिया
महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस ने अशांति के लिए ‘औरंगजेब के औलादों वाला बयान दिया था। इसके बाद संजय राउत ने कहा था कि मैं पूछना चाहता हूं कि गोडसे की औलाद कौन है? सामाजिक कार्यकर्ताओं का दावा है कि फडणवीस भड़काऊ भाषण देने वाले या डराने-धमकाने वाले नेताओं के खिलाफ उतना जोश क्यों नहीं दिखाते?
राकांपा की नवनियुक्त कार्यकारी अध्यक्ष सुप्रिया सुले ने कहा कि भाजपा-शिवसेना सरकार में हिंसक घटनाएं बढ़ी हैं। यह सरकार की पूरी तरह से विफलता है। शांति बनाए रखना गुड गवर्नेंस का हिस्सा है। इस सरकार के सत्ता में आने से पहले हिंसा की इतनी घटनाएं नहीं हुई थीं। कोल्हापुर के कागल से राकांपा विधायक हसन मुश्रीफ जोर देकर कहते हैं कि छत्रपति शिवाजी मुसलमानों के रक्षक थे और उन्होंने मुगलों का मुकाबला करने के लिए उनको ही सेना में भर्ती कराया। उन्होंने कहा, ‘औरंगजेब कभी भी हमारा नायक नहीं हो सकता है। उन्होंने सह-धर्मवादियों को विभाजनकारी एजेंडे का शिकार होने के प्रति आगाह करते यह बात कही। हालांकि एनसीपी नेतृत्व ने फडणवीस या उनके सहयोगियों को आड़े हाथों नहीं लिया है।’
कब-कब क्या हुआ?
6 जून, 2023: अहमदनगर के संगमनेर तालुका में औरंगजेब की तारीफ में लगे पोस्टर के खिलाफ बंद के बाद पथराव
7 जून: औरंगजेब और मैसूर शासक टीपू सुल्तान की तारीफ में सोशल-मीडिया पोस्ट के खिलाफ कोल्हापुर में बंद हिंसक हो गया
9 जून : बीड के आष्टी शहर में एक 14 वर्षीय लड़के के सोशल-मीडिया संदेश में औरंगजेब की तारीफ के विरोध में बंद
10 जून : छत्रपति संभाजीनगर में औरंगजेब के राज्याभिषेक की वर्षगांठ मनाने का सुझाव देने के लिए सोशल-मीडिया यूजर पर मामला दर्ज किया गया
11 जून: नवी मुंबई पुलिस ने 29 वर्षीय व्यक्ति को कथित रूप से औरंगज़ेब की छवि को अपनी प्रोफाइल तस्वीर के रूप में उपयोग करने के लिए केस दर्ज किया
12 जून: टीपू सुल्तान पर सोशल मीडिया पोस्ट के विरोध में कोल्हापुर के कागल शहर में बंद का आह्वान किया गया
12 जून: अहमदनगर के पारनेर तालुका के कुछ हिस्सों में 22 वर्षीय लड़के द्वारा सोशल मीडिया पोस्ट के विरोध में बंद रखा गया
12 जून: सांगली के नाबालिग पर बीजापुर के जनरल अफजल खान की तस्वीर को डीपी लगाने के आरोप में मामला दर्ज किया गया
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सोशल मीडिया पर पोस्ट बनी हिंसा की वजह
शांति और सामुदायिक संबंधों के लिए जाने वाले राज्य में एक पोस्टर से जन्मी हिंसा चिंता बढ़ाने वाली है। पूर्व पुलिस महानिदेशक सतीश माथुर ने कहा, ‘यह विश्वास करना मुश्किल है कि सोशल मीडिया पर एक पोस्ट या स्थिति महाराष्ट्र में बंद या हिंसा का कारण बन सकती है, जो राज्य सांप्रदायिक रूप से कभी इस तरह से नहीं दिखा। यहां तक कि देश के अन्य हिस्सों में भीषण साम्प्रदायिक घटनाओं के दौरान भी महाराष्ट्र काफी हद तक शांतिपूर्ण रहा। इससे साफ मालूम पड़ता है कि जरूर कोई जानबूझकर समुदायों को शांति भंग करने के लिए उकसाने की कोशिश कर रहा है।
औरंगाबाद का नाम बदलने से भड़की चिंगारी
औरंगाबाद का नाम बदलकर छत्रपति संभाजीनगर कर दिया गया, जिसे कि हिंसा की एक चिंगारी माना जा रहा है। खासकर जब सरकार के नेताओं ने इसे ऐतिहासिक गलती करार देते हुए महाराष्ट्र में औरंगजेब के सभी उल्लेखों को मिटा देने के कदम के रूप में पेश किया। हालांकि यह योजना उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली एमवीए सरकार के तहत ही काम कर रही थी। लेकिन भाजपा-शिवसेना सरकार ने फरवरी में इस पर अपनी मुहर लगा दी, जिसके बाद मई में छत्रपति संभाजी महाराज जयंती समारोह मनाया गया। बीते काफी समय से चले आ रहे इस आह्वान ने पुराने विवाद को फिर से ताजा कर दिया।
शिवाजी महाराज के पुत्र की हत्या पुराना घाव
1680 के दशक में छत्रपति शिवाजी महाराज की मृत्यु के बाद औरंगजेब ने दक्कन को अधीन करने के लिए अभियान चलाया। यह उसका पुराना सपना था। यहां तक कि औरंगजेब ने अपने सेनापतियों की सलाह के खिलाफ अपना दरबार औरंगाबाद स्थानांतरित कर दिया और आक्रमणों की बौछार शुरू कर दी। इस दौरान बीजापुर और गोलकुंडा राज्यों ने जल्दी ही घुटने टेक दिए। फिर मराठों ने पकड़ बनाई, जिसके बाद 1689 में मुगल-मराठा आमने-सामने का सबसे खूनी अध्याय आया। शिवाजी के पुत्र और उत्तराधिकारी संभाजी को मुगलों ने पकड़ लिया गया, उन्हें प्रताड़ित कर क्रूरता से मौत के घाट उतार दिया गया। विद्रोही मराठों को दबाने के बजाय, इस कदम ने आक्रोश फैलाया और मराठा समुदाय के इतिहास का यह सबसे बड़ा घाव बन गया।
अधूरे सपने के साथ मरा औरंगजेब
औरंगजेब अपने अधूरे सपने के साथ मर गया, जिसके बाद उसके नाम पर बसे शहर औरंगाबाद के पास खुल्दाबाद में दफनाया गया। इतिहासकारों का कहना है कि दक्कन को जीतने के औरंगजेब के अभियान ने मुगल साम्राज्य को कमजोर कर दिया था। मुस्लिम सत्यशोधक मंडल के अध्यक्ष शमसुद्दीन तंबोली कहते हैं कि औरंगजेब कभी भी क्षेत्र के मुसलमानों के लिए सांस्कृतिक या धार्मिक शख्सियत नहीं रहा। वह मुसलमानों के जरिए मूर्तिमान नहीं है। यह महज किसी के फायदे के लिए समुदायों को भड़काने की साजिश है। अगर औरंगजेब से जुड़े संदेशों पर इतनी तीखी प्रतिक्रियाएं हैं, तो नाथूराम गोडसे के महिमामंडन पर ऐसी ही प्रतिक्रियाएं क्यों नहीं देखी जाती हैंं?
औरंगजेब के नाम पर राजनेताओं की प्रतिक्रिया
महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस ने अशांति के लिए ‘औरंगजेब के औलादों वाला बयान दिया था। इसके बाद संजय राउत ने कहा था कि मैं पूछना चाहता हूं कि गोडसे की औलाद कौन है? सामाजिक कार्यकर्ताओं का दावा है कि फडणवीस भड़काऊ भाषण देने वाले या डराने-धमकाने वाले नेताओं के खिलाफ उतना जोश क्यों नहीं दिखाते?
राकांपा की नवनियुक्त कार्यकारी अध्यक्ष सुप्रिया सुले ने कहा कि भाजपा-शिवसेना सरकार में हिंसक घटनाएं बढ़ी हैं। यह सरकार की पूरी तरह से विफलता है। शांति बनाए रखना गुड गवर्नेंस का हिस्सा है। इस सरकार के सत्ता में आने से पहले हिंसा की इतनी घटनाएं नहीं हुई थीं। कोल्हापुर के कागल से राकांपा विधायक हसन मुश्रीफ जोर देकर कहते हैं कि छत्रपति शिवाजी मुसलमानों के रक्षक थे और उन्होंने मुगलों का मुकाबला करने के लिए उनको ही सेना में भर्ती कराया। उन्होंने कहा, ‘औरंगजेब कभी भी हमारा नायक नहीं हो सकता है। उन्होंने सह-धर्मवादियों को विभाजनकारी एजेंडे का शिकार होने के प्रति आगाह करते यह बात कही। हालांकि एनसीपी नेतृत्व ने फडणवीस या उनके सहयोगियों को आड़े हाथों नहीं लिया है।’
कब-कब क्या हुआ?
6 जून, 2023: अहमदनगर के संगमनेर तालुका में औरंगजेब की तारीफ में लगे पोस्टर के खिलाफ बंद के बाद पथराव
7 जून: औरंगजेब और मैसूर शासक टीपू सुल्तान की तारीफ में सोशल-मीडिया पोस्ट के खिलाफ कोल्हापुर में बंद हिंसक हो गया
9 जून : बीड के आष्टी शहर में एक 14 वर्षीय लड़के के सोशल-मीडिया संदेश में औरंगजेब की तारीफ के विरोध में बंद
10 जून : छत्रपति संभाजीनगर में औरंगजेब के राज्याभिषेक की वर्षगांठ मनाने का सुझाव देने के लिए सोशल-मीडिया यूजर पर मामला दर्ज किया गया
11 जून: नवी मुंबई पुलिस ने 29 वर्षीय व्यक्ति को कथित रूप से औरंगज़ेब की छवि को अपनी प्रोफाइल तस्वीर के रूप में उपयोग करने के लिए केस दर्ज किया
12 जून: टीपू सुल्तान पर सोशल मीडिया पोस्ट के विरोध में कोल्हापुर के कागल शहर में बंद का आह्वान किया गया
12 जून: अहमदनगर के पारनेर तालुका के कुछ हिस्सों में 22 वर्षीय लड़के द्वारा सोशल मीडिया पोस्ट के विरोध में बंद रखा गया
12 जून: सांगली के नाबालिग पर बीजापुर के जनरल अफजल खान की तस्वीर को डीपी लगाने के आरोप में मामला दर्ज किया गया
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