Maharashtra Politics: चींटी ने मेरु पर्वत निगल लिया क्या ? राज्यसभा चुनाव के बाद शिवसेना का सामना संपादकीय में बीजेपी पर तंज

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Maharashtra Politics: चींटी ने मेरु पर्वत निगल लिया क्या ? राज्यसभा चुनाव के बाद शिवसेना का सामना संपादकीय में बीजेपी पर तंज

Maharashtra Politics: चींटी ने मेरु पर्वत निगल लिया क्या ? राज्यसभा चुनाव के बाद शिवसेना का सामना संपादकीय में बीजेपी पर तंज

मुंबई: हाल में संपन्न हुए राज्यसभा चुनाव (Rajyasabha) में बीजेपी (BJP) के धनंजय महाडिक ने शिवसेना के संजय पवार को कांटे की टक्कर के बाद चुनाव में हरा दिया है। बीजेपी के सभी तीन उम्मीदवार, पीयूष गोयल, अनिल बोंडे और धनंजय महाडिक चुनाव जीत गये हैं। इस बाद से ही शिवसेना की शिकस्त को लेकर चर्चा का बाजार गर्म है। इस हार पर शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना के जरिये बीजेपी पर जमकर निशाना साधा है। सामना संपादकीय (Samna Editorial ) में लिखा गया है कि राज्यसभा चुनाव में बीजेपी ने छठी सीट जीत ली है। इस परिणाम से महाविकास अघाड़ी (Mahavikas Aghadi) को बड़ा झटका लगा है। सरकार में हड़कंप मच गया है, ऐसा माहौल तैयार किया जा रहा है।

महाविकास अघाड़ी का उम्मीदवार नहीं जीता व फडणवीस (Devendra Fadnavis) का उम्मीदवार जीत गया, इससे राज्य में महाप्रलय तो नहीं आया न? सूर्य पश्चिम में तो नहीं निकला न? चींटी ने सुमेर पर्वत तो नहीं निगल लिया न? श्रीमान आप मतों का जुगाड़ करके जीते, इतना ही इस परिणाम का महत्व है। इस जुगाड़बाजी के गणित में महाविकास अघाड़ी को असफलता मिली। इससे दुनिया तो डूब नहीं गई न? एक साधारण विषय समझ लेना चाहिए।

जो जीता वही सिकंदर
सामना में लिखा है कि निर्दलीय व छोटे दलों की मदद से ही छठी सीट जीती जाए, ऐसी योजना जिस तरह से महाविकास अघाड़ी की थी, उसी तरह भारतीय जनता पार्टी की भी थी। राजनीति में ऐसा होता ही रहा है। चार-पांच निर्दलीय व वसई-विरार की बहुजन विकास अघाड़ी वालों का गणित भाजपा के पक्ष में गया और उनका उम्मीदवार मामूली अंतर से जीत गया। अर्थात जो जीता वही सिकंदर । इस नजरिए से सिकंदरों का उत्सव मनाया जा रहा है, मानो कोई बहुत बड़ा चमत्कार कर दिया है। इस तरह से धूप-अंगारे घुमाए जा रहे हैं।

MVA के पास 170 विधायकों का बल था
महाविकास अघाड़ी के पास सत्ता स्थापित करते समय 170 विधायकों का बल था। विधानसभा अध्यक्ष को सीधे मतदान में हिस्सा लेने की अनुमति नहीं लेने के कारण यह संख्या 169 पर आ जाती है। राज्यसभा चुनाव में महाविकास अघा़ड़ी की तरफ से 161 विधायकों ने मतदान किया। नवाब मलिक, अनिल देशमुख और जिनके वोट ‘रद्द’ कराए गए, उन सुहास कांदे को ले लिया जाए तो आंकड़ा 164 हो जाता है। शिवसेना के एक विधायक रमेश लटके का निधन हो गया है। पंढरपुर की एक सीट राष्ट्रवादी ने गवां दी है। इन सबका हिसाब किया जाए तो आज विधायकों की संख्या 166 जितनी है। मतलब विश्वास मत प्रस्ताव से संख्या 3 से ही कम है।

इन तीन मतों में से निर्दलियों के 2 वोट विश्वासमत प्रस्ताव के समय महाविकास अघाड़ी के समय नहीं थे इसलिए छठी सीट की जीत से महाराष्ट्र में चींटी ने मेरू पर्वत निगल लिया, ऐसी जो आवाज लगाई जा रही है, उसमें दम नहीं है। शिवसेना के सुहास कांदे का वोट रद्द कर दिया गया। ये गड़बड़ ही है लेकिन उसी तरह का आक्षेप सुधीर मुनगंटीवार के मतदान प्रक्रिया पर लिया गया था। चुनाव आयोग ने उसे नजरअंदाज कर दिया, इसे हमारे चुनाव आयोग का ‘स्वतंत्र’ व ‘निष्पक्ष’ बर्ताव माना जाए क्या? सच तो यह है कि चुनाव निर्णय अधिकारियों ने मतदान प्रक्रिया के तमाम आक्षेपों को निरस्त कर दिया। यह उनका अधिकार होने के बावजूद उन अधिकारों पर दिल्ली से अतिक्रमण किया गया।

किस्मत से मिली जीत
महाविकास अघाड़ी की सरकार मजबूत है और मजबूत रहेगी। छठी सीट पर जीत के लिए फडणवीस की चतुराई और उनका सूक्ष्म प्रबंधन काम आया, यह सत्य भी होगा। उन्होंने जिस तरह से वोटों की योजना बनाई, इससे दूसरे चक्र में छठी उम्मीदवार के वोटों की संख्या बढ़ गई। यह सच होगा तब भी इसमें राजनीतिक भाग्य का ही महत्व है। पहली पसंद के 33 वोट शिवसेना के उम्मीदवार संजय पवार को तो 27 वोट धनंजय महाडिक को मिले। फिर भी पवार हार गए। ऐसा गणित अन्य राज्यों में भी लगाया गया।

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