Longest treatment of Covid: मेरठ की अर्चना ने सौ दिन बाद दी कोविड को मात, देश के सबसे लंबा कोरोना ट्रीटमेंट में से एक h3>
हाइलाइट्स
- मेरठ की अर्चना को मेडिकल कॉलेज में कराया गया था भर्ती
- 30 पर्सेंट तक पहुंच गया था ऑक्सिजन स्तर
- इलाज के दौरान कई बार जिंदगी से टूटी आस, परिवारवालों ने भी खो दी थी उम्मीद
- कोविड ट्रीटमेंट के समय ही हो गया ब्लैक फंगस भी, जिसने डॉक्टरों की बढ़ाई चिंता
मेरठ
45 साल की अर्चना देवी को उत्तर प्रदेश के मेरठ की रहने वाली हैं। उन्हें कोविड के गंभीर लक्षणों के साथ लाला लाजपत राय मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया था। वह सांस नहीं ले पा रही थीं। उनका सौ दिनों तक इलाज चला और अब उन्हें अस्पताल से छुट्टी दे दी गई। अर्चना देवी देश की उन मरीजों मे से एक हैं जिनका कोविड का ट्रीटमेंट इतना लंबा चला और वह ठीक भी हो गईं।
21 अप्रैल का दिन था अर्चना की हालत बिगड़ती जा रही थी और परिवार ने उनके बचने की उम्मीद छोड़ दी थी। डिस्चार्ज होने के बाद अर्चना ने कहा, ‘मैं अपने परिवार के लिए जीवित हूं। मुझे वह दिन याद है जब बहुत दर्द हो रहा था। मैं बहुत रो रही थी और जिंदा रहने की आस छोड़ दी थी लेकिन मेरे बेटे ने मुझे कहा कि सब ठीक हो जाएगा।’
30 था ऑक्सिजन लेवल
अर्चना के बड़े बेटे पुनीत कुमार ने कहा, ‘वार्ड में आने वाले लगभग हर मरीज की कुछ ही हफ्तों में मौत हो रही थी। हमने उम्मीद खो दी थी। जब मां को अस्पातल में भर्ती कराया गया, तब उनका ऑक्सिजन स्तर 30 था। धड़कनें बहुत तेज चल रही थीं, तेज बुखार भी था और वह होश में नहीं थीं।’
पांच डॉक्टरों की टीम लगातार कोविड वार्ड में रही
अस्पताल के पांच डॉक्टर चौबीसों घंटे कोविड वार्ड में ड्यूटी कर रहे थे। डॉ. योगिता सिंह ने कहा, ‘अप्रैल और मई बहुत कठिन थे। मरीज मर रहे थे, परिवार वाले हम लोगों का सहयोग नहीं कर रहे थे। लेकिन अर्चना के साथ उनके परिवार ने बड़ी मदद की।’
सौ फीसदी FiO2 पर रखना पड़ा
डॉ. योगिता ने बताया कि जैसे ही अर्चना अंदर आईं, उन्हें बीआईपीएपी (बाईलेवल पॉजिटिव एयरवे प्रेशर) पर रखा गया, जो फेफड़ों और हृदय की गंभीर बीमारियों वाले लोगों के लिए एक श्वास सहायता का एक उपकरण होता है। उन्हें इस रेस्पिरेटरी सपॉर्ट पर दो महीने तक रखना पड़ा। एक समय चीजें इतनी गंभीर हो गईं कि उन्हें 100 फीसदी FiO2 पर रखना पड़ा। हम जिस प्राकृतिक हवा में सांस लेते हैं, उसमें 21 फीसदी FiO2 है।’
हो गया ब्लैक फंगस भी
धीरे-धीरे अर्चना की हालत में सुधार होने लगा लेकिन जून के मध्य में, एक और समस्या आ गई। उन्हें ब्लैक फंगस हो गया। उनकी नाक और आंखों के आसपास निशान और फुंसी हो गई थी। डॉक्टर अर्चना के स्टेरॉयड बंद नहीं कर सकते थे। स्टेरॉयड शरीर की इम्युनिटी कम करता है और इससे शरीर में ब्लैक फंगस जैसी बीमारी पनपती है। इस बीच, उनके फेफड़ों को साफ करने के लिए, डॉक्टरों ने दो सप्ताह पहले छाती की फिजियोथेरेपी शुरू की।
डॉक्टरों ने बताया कि यह दुर्लभ मामलों में से एक है कि अर्चना को सीधे आईसीयू से छुट्टी के दे दी गई। अर्चना के पति बीर सिंह, एक किसान हैं। उनके दो बेटे पुनीत और कुणाल, दोनों फार्मेसी के छात्र हैं।
अर्चना देवी
हाइलाइट्स
- मेरठ की अर्चना को मेडिकल कॉलेज में कराया गया था भर्ती
- 30 पर्सेंट तक पहुंच गया था ऑक्सिजन स्तर
- इलाज के दौरान कई बार जिंदगी से टूटी आस, परिवारवालों ने भी खो दी थी उम्मीद
- कोविड ट्रीटमेंट के समय ही हो गया ब्लैक फंगस भी, जिसने डॉक्टरों की बढ़ाई चिंता
45 साल की अर्चना देवी को उत्तर प्रदेश के मेरठ की रहने वाली हैं। उन्हें कोविड के गंभीर लक्षणों के साथ लाला लाजपत राय मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया था। वह सांस नहीं ले पा रही थीं। उनका सौ दिनों तक इलाज चला और अब उन्हें अस्पताल से छुट्टी दे दी गई। अर्चना देवी देश की उन मरीजों मे से एक हैं जिनका कोविड का ट्रीटमेंट इतना लंबा चला और वह ठीक भी हो गईं।
21 अप्रैल का दिन था अर्चना की हालत बिगड़ती जा रही थी और परिवार ने उनके बचने की उम्मीद छोड़ दी थी। डिस्चार्ज होने के बाद अर्चना ने कहा, ‘मैं अपने परिवार के लिए जीवित हूं। मुझे वह दिन याद है जब बहुत दर्द हो रहा था। मैं बहुत रो रही थी और जिंदा रहने की आस छोड़ दी थी लेकिन मेरे बेटे ने मुझे कहा कि सब ठीक हो जाएगा।’
30 था ऑक्सिजन लेवल
अर्चना के बड़े बेटे पुनीत कुमार ने कहा, ‘वार्ड में आने वाले लगभग हर मरीज की कुछ ही हफ्तों में मौत हो रही थी। हमने उम्मीद खो दी थी। जब मां को अस्पातल में भर्ती कराया गया, तब उनका ऑक्सिजन स्तर 30 था। धड़कनें बहुत तेज चल रही थीं, तेज बुखार भी था और वह होश में नहीं थीं।’
पांच डॉक्टरों की टीम लगातार कोविड वार्ड में रही
अस्पताल के पांच डॉक्टर चौबीसों घंटे कोविड वार्ड में ड्यूटी कर रहे थे। डॉ. योगिता सिंह ने कहा, ‘अप्रैल और मई बहुत कठिन थे। मरीज मर रहे थे, परिवार वाले हम लोगों का सहयोग नहीं कर रहे थे। लेकिन अर्चना के साथ उनके परिवार ने बड़ी मदद की।’
सौ फीसदी FiO2 पर रखना पड़ा
डॉ. योगिता ने बताया कि जैसे ही अर्चना अंदर आईं, उन्हें बीआईपीएपी (बाईलेवल पॉजिटिव एयरवे प्रेशर) पर रखा गया, जो फेफड़ों और हृदय की गंभीर बीमारियों वाले लोगों के लिए एक श्वास सहायता का एक उपकरण होता है। उन्हें इस रेस्पिरेटरी सपॉर्ट पर दो महीने तक रखना पड़ा। एक समय चीजें इतनी गंभीर हो गईं कि उन्हें 100 फीसदी FiO2 पर रखना पड़ा। हम जिस प्राकृतिक हवा में सांस लेते हैं, उसमें 21 फीसदी FiO2 है।’
हो गया ब्लैक फंगस भी
धीरे-धीरे अर्चना की हालत में सुधार होने लगा लेकिन जून के मध्य में, एक और समस्या आ गई। उन्हें ब्लैक फंगस हो गया। उनकी नाक और आंखों के आसपास निशान और फुंसी हो गई थी। डॉक्टर अर्चना के स्टेरॉयड बंद नहीं कर सकते थे। स्टेरॉयड शरीर की इम्युनिटी कम करता है और इससे शरीर में ब्लैक फंगस जैसी बीमारी पनपती है। इस बीच, उनके फेफड़ों को साफ करने के लिए, डॉक्टरों ने दो सप्ताह पहले छाती की फिजियोथेरेपी शुरू की।
डॉक्टरों ने बताया कि यह दुर्लभ मामलों में से एक है कि अर्चना को सीधे आईसीयू से छुट्टी के दे दी गई। अर्चना के पति बीर सिंह, एक किसान हैं। उनके दो बेटे पुनीत और कुणाल, दोनों फार्मेसी के छात्र हैं।
अर्चना देवी