Loan EMI: तेल 100 डॉलर के नीचे, बाकी इंपोर्ट भी होगा सस्ता, RBI ने कहा.. अच्छे दिन आने वाले हैं h3>
नई दिल्ली: महंगाई से त्रस्त आम आदमी के लिए अच्छी खबर है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल (crude) की कीमत 100 डॉलर प्रति बैरल से नीचे आ गई है। दूसरी कमोडिटीज की कीमतों में भी गिरावट आई है। इससे आने वाले दिनों में इंपोर्ट सस्ता होने की उम्मीद है। अगर ऐसा होता है तो इससे देश में महंगाई से निजात मिल सकती है। आरबीआई (RBI) का भी कहना है कि अगर कमोडिटीज की कीमत में नरमी बनी रहती है और सप्लाई-चेन का दवाब कम होता है तो आने वाले दिनों में महंगाई से पीछा छूट सकता है। अभी अमेरिका और यूरोप के कई देशों में महंगाई चरम पर है। भारत में भी महंगाई इस साल जनवरी से ही आरबीआई की तय सीमा से ऊपर बनी हुई है। महंगाई से निपटने के लिए आरबीआई ने हाल में दो किस्तों में रेपो रेट में 90 बेसिस पॉइंट्स की बढ़ोतरी की थी। अगर महंगाई में कमी आती है तो आने वाले दिनों में ईएमआई (EMI) यानी किस्त में भी राहत मिल सकती है।
आरबीआई ने अपनी ताजा ‘State of the economy’ में कहा कि है कि सबसे बड़ी राहत की बात यह है कि महंगाई अपने चरम स्तर से थोड़ा नीचे आई है। हालांकि यह अब भी उच्च स्तर पर बनी हुई है। केंद्रीय बैंक का कहना है कि हाल के दिनों में कमोडिटीज की कीमत में गिरावट आई है। अगर यह स्थिति आगे भी जारी रहती है और इसके साथ ही सप्लाई-चेन की समस्याएं कम होती हैं तो महंगाई का चरम दौर पीछे छूट जाएगा। इससे भारतीय इकॉनमी वैश्विक महंगाई के मकड़जाल में फंसने से बच सकती है।
कब आएगी महंगाई में कमी
अमेरिका में जून में महंगाई 9.1 फीसदी पर पहुंच गई जो 41 साल का रेकॉर्ड है। दूसरी ओर भारत में जून में खुदरा महंगाई में मामूली गिरावट आई और यह 71. फीसदी रही। इससे पहले मई में यह 7.04 फीसदी और अप्रैल में 7.79 फीसदी रही थी। रिजर्व बैंक ने महंगाई के लिए 2-6 फीसदी की सीमा तय कर रखी है लेकिन इस साल जनवरी से ही यह इस स्तर से ऊपर बनी हुई है। आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने हाल में कहा था कि वित्त वर्ष 2022-23 की दूसरी छमाही से महंगाई में धीरे-धीरे कमी आने की उम्मीद है।
आरबीआई की रिपोर्ट में कहा गया है कि मॉनसून के जोर पकड़ने और बुवाई की गतिविधियों में तेजी से ग्रामीण इलाकों में मांग बढ़ने की उम्मीद बढ़ी है। इसके साथ ही देश का फाइनेंशियल सेक्टर मजबूत और स्थिर बना हुआ है। अंतरराष्ट्रीय कारणों से कई सेक्टरों में रिकवरी की रफ्तार सुस्त है। हालांकि कई सेक्टरों में तेजी के संकेत दिख रहे हैं और भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ने वाली इकॉनमी बनने की तरफ अग्रसर है।
क्रूड की कीमत में कमी
भारत के लिए कच्चे तेल की लागत अप्रैल के बाद पहली बार 100 डॉलर के नीचे आई है। यह रुपये के लिए उम्मीद की किरण है। इस हफ्ते कच्चे तेल में गिरावट इसलिए देखी जा रही है, क्योंकि ग्लोबल लेवल पर कीमतों में 5.5 फीसदी की गिरावट आई है। इसकी वजह मंदी की आशंका को बताया जा रहा है, जिससे डिमांड-सप्लाई में मिसमैच होने का अनुमान लगाया जा रहा है।अगर कीमतें 100 डॉलर प्रति बैरल से कम ही रहती हैं तो इससे रुपये पर पड़ने वाला दबाव भी कम होगा। ऐसे में डॉलर के मुकाबले रुपये को थोड़ी मजबूती मिलेगी, जो अभी करीब 80 रुपये प्रति डॉलर के लेवल पर पहुंच गया है। कीमतें घटने की वजह से कच्चा तेल खरीदने में कम डॉलर खर्च होगा, जिससे विदेशी मुद्रा की बचत होगी। हाल में एटीएफ की कीमत में कमी की गई है। क्रूड की कीमत में और कमी आती है तो आने वाले दिनों में पेट्रोल-डीजल की कीमत में भी कमी आ सकती है।
भारत के लिए वरदान बन सकती है मंदी
पूरी दुनिया मंदी (global recession) की आहट से सहमी हुई है। अमेरिका सहित कई विकसित देशों में मंदी की आशंका हर बीतते दिन के साथ भयावह होती जा रही है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने अमेरिकन इकॉनमी की ग्रोथ के अनुमान को घटाकर 2.9 फीसदी कर दिया है। लेकिन जानकारों का कहना है कि अमेरिका जैसे विकसित देशों में मंदी भारत के लिए फायदेमंद हो सकती है। उनका तर्क है कि विकसित देशों में मंदी से दुनियाभर में कमोडिटीज की कीमतों में कमी आएगी। इससे भारत में महंगाई से निपटने में मदद मिलेगी। भारत कमोडिटीज का नेट इम्पोर्टर है, इसलिए विकसित देशों में मंदी से भारत को महंगाई के मोर्चे पर राहत मिलनी चाहिए।
Price Hike:’हमारी आय घट गई’ महंगाई ने पीस दी चक्की वालों की कमाई
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आरबीआई ने अपनी ताजा ‘State of the economy’ में कहा कि है कि सबसे बड़ी राहत की बात यह है कि महंगाई अपने चरम स्तर से थोड़ा नीचे आई है। हालांकि यह अब भी उच्च स्तर पर बनी हुई है। केंद्रीय बैंक का कहना है कि हाल के दिनों में कमोडिटीज की कीमत में गिरावट आई है। अगर यह स्थिति आगे भी जारी रहती है और इसके साथ ही सप्लाई-चेन की समस्याएं कम होती हैं तो महंगाई का चरम दौर पीछे छूट जाएगा। इससे भारतीय इकॉनमी वैश्विक महंगाई के मकड़जाल में फंसने से बच सकती है।
कब आएगी महंगाई में कमी
अमेरिका में जून में महंगाई 9.1 फीसदी पर पहुंच गई जो 41 साल का रेकॉर्ड है। दूसरी ओर भारत में जून में खुदरा महंगाई में मामूली गिरावट आई और यह 71. फीसदी रही। इससे पहले मई में यह 7.04 फीसदी और अप्रैल में 7.79 फीसदी रही थी। रिजर्व बैंक ने महंगाई के लिए 2-6 फीसदी की सीमा तय कर रखी है लेकिन इस साल जनवरी से ही यह इस स्तर से ऊपर बनी हुई है। आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने हाल में कहा था कि वित्त वर्ष 2022-23 की दूसरी छमाही से महंगाई में धीरे-धीरे कमी आने की उम्मीद है।
आरबीआई की रिपोर्ट में कहा गया है कि मॉनसून के जोर पकड़ने और बुवाई की गतिविधियों में तेजी से ग्रामीण इलाकों में मांग बढ़ने की उम्मीद बढ़ी है। इसके साथ ही देश का फाइनेंशियल सेक्टर मजबूत और स्थिर बना हुआ है। अंतरराष्ट्रीय कारणों से कई सेक्टरों में रिकवरी की रफ्तार सुस्त है। हालांकि कई सेक्टरों में तेजी के संकेत दिख रहे हैं और भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ने वाली इकॉनमी बनने की तरफ अग्रसर है।
क्रूड की कीमत में कमी
भारत के लिए कच्चे तेल की लागत अप्रैल के बाद पहली बार 100 डॉलर के नीचे आई है। यह रुपये के लिए उम्मीद की किरण है। इस हफ्ते कच्चे तेल में गिरावट इसलिए देखी जा रही है, क्योंकि ग्लोबल लेवल पर कीमतों में 5.5 फीसदी की गिरावट आई है। इसकी वजह मंदी की आशंका को बताया जा रहा है, जिससे डिमांड-सप्लाई में मिसमैच होने का अनुमान लगाया जा रहा है।अगर कीमतें 100 डॉलर प्रति बैरल से कम ही रहती हैं तो इससे रुपये पर पड़ने वाला दबाव भी कम होगा। ऐसे में डॉलर के मुकाबले रुपये को थोड़ी मजबूती मिलेगी, जो अभी करीब 80 रुपये प्रति डॉलर के लेवल पर पहुंच गया है। कीमतें घटने की वजह से कच्चा तेल खरीदने में कम डॉलर खर्च होगा, जिससे विदेशी मुद्रा की बचत होगी। हाल में एटीएफ की कीमत में कमी की गई है। क्रूड की कीमत में और कमी आती है तो आने वाले दिनों में पेट्रोल-डीजल की कीमत में भी कमी आ सकती है।
भारत के लिए वरदान बन सकती है मंदी
पूरी दुनिया मंदी (global recession) की आहट से सहमी हुई है। अमेरिका सहित कई विकसित देशों में मंदी की आशंका हर बीतते दिन के साथ भयावह होती जा रही है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने अमेरिकन इकॉनमी की ग्रोथ के अनुमान को घटाकर 2.9 फीसदी कर दिया है। लेकिन जानकारों का कहना है कि अमेरिका जैसे विकसित देशों में मंदी भारत के लिए फायदेमंद हो सकती है। उनका तर्क है कि विकसित देशों में मंदी से दुनियाभर में कमोडिटीज की कीमतों में कमी आएगी। इससे भारत में महंगाई से निपटने में मदद मिलेगी। भारत कमोडिटीज का नेट इम्पोर्टर है, इसलिए विकसित देशों में मंदी से भारत को महंगाई के मोर्चे पर राहत मिलनी चाहिए।
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