अब तो खत भी लिखना हो गया महंगा ।

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अब तो खत भी लिखना हो गया महंगा ।

खत, जो कि पहले के समय और फिल्मो में नायक और नायिका अपने जज्बातों को एक-दूसरे तक पहुंचाने का जरिया रहा है । लेकिन रियल लाइफ में भी लोग दिल की बात पहुंचाने के लिए अलग-अलग माध्यमों का सहारा लेते हैं। ये बात अलग है कि खत का स्वरूप बदल चुका है। नए कलेवर में अब लोग इंस्टैंट माध्यम ई-मेल्स, व्हाट्सएप और फेसबुक के जरिए अपनी भावनाओं का इजहार कर रहे हैं। लेकिन आधुनिक साधनों के बाद भी 60-70 के दशक के लोग अब भी या नए जमाने में बहुत से लोग पोस्टकॉर्ड, अंतर्देशीय पत्रों के जरिए अपनी भावनाओं का इजहार करते हैं। लेकिन खतों के जरिए अब अपने प्रिय तक संदेशा पहुंचाना महंगा हो जाएगा। इसके पीछे वजह यह है कि डाक विभाग को नुकसान हो रहा है। डाक विभाग अपने नुकसान की भरपाई के लिए पोस्टकार्ड और दूसरे साधनों के दामों में इजाफा करने की योजना पर काम कर रहा है।

खत लिखना होगा महंगा
डाक विभाग ने पोस्टकार्ड, अंतर्देशीय और लिफाफे आदि की कीमत बढ़ाने की तैयारी कर ली है। इस आशय का प्रस्ताव पीएमओ को मंजूरी के लिए भेजा गया है। मंजूरी मिलते ही डाक की नई दरें लागू हो जाएंगी। यदि डाक विभाग की योजना को हरी झंडी मिलती है तो 25 पैसे वाला पोस्टकार्ड एक रुपये में, 50 पैसे वाला मेघदूत पोस्टकार्ड दो रुपये में, छह रुपये वाला बिजनेस पोस्टकार्ड सात रुपये में, ढाई रुपये वाला अंतर्देशीय पत्र चार रुपये में और पांच रुपये वाला लिफाफा सात रुपये में मिलेगा। पत्र-पत्रिकाओं के लिए पंजीकृत डाक दरों में भी संशोधन का प्रस्ताव है। अभी प्रत्येक 50 ग्राम वजन के लिए 25 पैसे पंजीकृत डाक शुल्क लिया जाता है। इसे बढ़ाकर एक रुपये किया जाएगा। फायदे के बजाय नुकसान की आशंका के मद्देनजर पार्सल दरों में वृद्धि के विचार को फिलहाल छोड़ दिया गया है।

डाक घटी, इंफ्रास्ट्रक्चर वही
ई-मेल और सोशल मीडिया के प्रचार-प्रसार के कारण आम जनता के बीच डाक का इस्तेमाल घटा है। जहां 2001-02 में देश में सालाना 1424.34 करोड़ पत्रों की आवाजाही होती थी। वहीं 2010-11 में यह आंकड़ा 661.82 करोड़ पत्रों पर आ गया। मनी आर्डरों की संख्या भी आधी हो गई है। दूसरी ओर डाक इंफ्रास्ट्रक्चर लगभग उतना ही बना हुआ है। वर्ष 2001-02 में देश में 1,54,919 डाकघर और 5,95,286 लेटर बॉक्स थे। 2010-11 में भी इनकी संख्या क्रमश: 1,54,866 तथा 5,73,749 बनी हुई थी।

ई-कामर्स ने बढ़ाई आमदनी
पार्सल के जरिए 2013-14 में डाक विभाग की आमदनी केवल 100 करोड़ रुपये थी। लेकिन ई-कामर्स कंपनियों के आगमन ने विभाग की इज्जत बचा ली। इन कंपनियों द्वारा सामान घर-घर पहुंचाने से विभाग की आमदनी जो 2014-15 में 500 करोड़ थी, 2015-16 में 1,300 करोड़ रुपये पर पहुंच गई। लेकिन जीएसटी की वजह से ई-कामर्स में गिरावट की आशंका है। इससे विभाग को आमदनी में फिर से गिरावट का डर सता रहा है।

डाक दरें बढ़ाना क्यों जरूरी
संचार मंत्रालय के एक अधिकारी के अनुसार 16 साल से डाक दरों में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है। इससे पहले इनमें 2001-02 में संशोधन किया गया था। तब से वही दरें लागू हैं। जबकि इस दौरान हर चीज के दाम बढ़ गए हैं। जिन आइटमों को डाक के जरिये एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाया जाता है, वे सब महंगी हो गई हैं। डाक विभाग के खर्चे भी ढाई गुना से ज्यादा बढ़ गए हैं। इससे डाक विभाग को घाटा हो रहा है।