Landfill Sites: बिना आग के भी कूड़े के पहाड़ों से 5 किमी तक फैल रहा है प्रदूषण, जहरीली गैस कर रही है लोगों को बीमार h3>
विशेष संवाददाता, नई दिल्लीः बीते छह दिनों से भलस्वा लैंडफिल साइट सुलग रही है, जिससे आसपास के लोग धुंए से परेशान हैं। वहीं एक्सपर्ट के अनुसार इन कूड़े के पहाड़ों पर आग न भी लगे तो भी यह अपने आसपास के पांच किलोमीटर दायरे में प्रदूषण बढ़ा रहे हैं। इसलिए इन्हें जल्द खत्म करना होगा। हालांकि जिस हिसाब से काम चल रहा है अगले कुछ सालों तक इससे छुटकारा नहीं मिलने वाला है।
एक्सपर्ट के अनुसार तेज हवाओं के साथ इन लैंडफिल साइट से उठने वाली गैस पांच किलोमीटर के दायरे में असर डालती हैं। फिर चाहे आग लगे या न लगे। इन कूड़े के पहाड़ों से ग्रीन हाउस गैस का उत्सर्जन होता रहा है। इनसे कार्बन डायऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड जैसी गैस निकलती हैं, जो जलवायु परिवर्तन की वजह हैं। गौरतलब है कि मीथेन कार्बन डायऑक्साइड से भी अधिक खतरनाक है। यह सूर्य की किरणों को कार्बन डायऑक्साइड की तुलना में 84 प्रतिशत तक सोखकर गर्मी बढ़ाती है।
प्रदूषण के हॉट स्पॉट में शामिल हैं ये साइटें: एक्सपर्ट के अनुसार इन लैंडफिल साइट के निकटवर्ती जगहों पर गौर करें तो यह राजधानी में प्रदूषण का हॉट स्पॉट हैं। राजधानी में इस समय 13 हॉट स्पॉट हैं। भलस्वा लैंडफिल साइट का निकटवर्ती स्टेशन जहांगीरपुरी, गाजीपुर लैंडफिल साइट का निकटर्ती स्टेशन आनंद विहार और ओखला लैंडफिल साइट का निकटवर्ती स्टेशन ओखला फेज-2 है। यह तीनों ही स्टेशन राजधानी के सबसे गंभीर हॉट स्पॉट में शामिल हैं।
वैज्ञानिक आधार पर नहीं बनीं ये साइटें: सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) की एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर अनुमिता राय चौधरी के अनुसार इन साइटों के पास के एयर क्वालिटी स्टेशनों के आंकलन से यह साफ होता है कि इस प्रदूषण को कम करने के लिए वेस्ट मैनेजमेंट को दुरुस्त करना जरूरी है। सीएसई की वेस्ट मैनेजमेंट प्रोग्राम ऑफिसर रिचा सिंह के अनुसार राजधानी की तीनों लैंडफिल साइट वैज्ञानिक आधार पर बनी ही नहीं हैं। न ही यहां कोई प्रॉपर मैनेजमेंट सिस्टम या गैस सकिंग सिस्टम है। रिचा के अनुसार यहां छोटी मोटी आग पूरे साल में कई बार लगती हैं। साथ ही आसपास रहने वाले लोग स्वास्थ्य संबंधी खतरे की चपेट में रहते हैं।
लोगों की हेल्थ पर हो रहा बुरा असर: ग्रीन पीस के कैंपेन मैनेजर अविनाश चंचल के अनुसार दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण की वजहों में लैंडफिल साइट पर लगने वाली आग का बड़ा योगदान है। इससे मीथेन का रिसाव भी होता है। इसका सीधा असर जलवायु परिवर्तन पर पड़ता है। कार्बन डायऑक्साइड का स्तर इस तरह की आग में काफी अधिक होता है। इससे न सिर्फ कार्बन डायऑक्साइड, कार्बन मोनोआक्साइड गैस निकलती हैं, बल्कि हाइड्रोजन सल्फाइड जैसी जहरीली गैसें भी निकलती हैं जो सालों तक हवा में बनी रहती हैं। लोगों के स्वास्थ्य पर भी इसका बुरा असर होता है।
पूरे देश की है यह समस्या: सीपीसीबी के सेवानिवृत्त अधिकारी डॉ. डी. साहा ने बताया कि लैंडफिल साइट सामान्य की तुलना में कहीं अधिक गर्म होती हैं। प्रकृतिक तौर पर इन साइटों से कई तरह के रिएक्शन होते हैं और इनकी वजह से डाइऑक्साइन्स और फुरान निकलते हैं। ऐसे में लैंडफिल साइट की समस्या को सिर्फ क्षेत्रीय या एक शहर से जोड़कर नहीं देखा जा सकता, बल्कि यह पूरे देश की समस्या है।
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प्रदूषण के हॉट स्पॉट में शामिल हैं ये साइटें: एक्सपर्ट के अनुसार इन लैंडफिल साइट के निकटवर्ती जगहों पर गौर करें तो यह राजधानी में प्रदूषण का हॉट स्पॉट हैं। राजधानी में इस समय 13 हॉट स्पॉट हैं। भलस्वा लैंडफिल साइट का निकटवर्ती स्टेशन जहांगीरपुरी, गाजीपुर लैंडफिल साइट का निकटर्ती स्टेशन आनंद विहार और ओखला लैंडफिल साइट का निकटवर्ती स्टेशन ओखला फेज-2 है। यह तीनों ही स्टेशन राजधानी के सबसे गंभीर हॉट स्पॉट में शामिल हैं।
वैज्ञानिक आधार पर नहीं बनीं ये साइटें: सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) की एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर अनुमिता राय चौधरी के अनुसार इन साइटों के पास के एयर क्वालिटी स्टेशनों के आंकलन से यह साफ होता है कि इस प्रदूषण को कम करने के लिए वेस्ट मैनेजमेंट को दुरुस्त करना जरूरी है। सीएसई की वेस्ट मैनेजमेंट प्रोग्राम ऑफिसर रिचा सिंह के अनुसार राजधानी की तीनों लैंडफिल साइट वैज्ञानिक आधार पर बनी ही नहीं हैं। न ही यहां कोई प्रॉपर मैनेजमेंट सिस्टम या गैस सकिंग सिस्टम है। रिचा के अनुसार यहां छोटी मोटी आग पूरे साल में कई बार लगती हैं। साथ ही आसपास रहने वाले लोग स्वास्थ्य संबंधी खतरे की चपेट में रहते हैं।
लोगों की हेल्थ पर हो रहा बुरा असर: ग्रीन पीस के कैंपेन मैनेजर अविनाश चंचल के अनुसार दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण की वजहों में लैंडफिल साइट पर लगने वाली आग का बड़ा योगदान है। इससे मीथेन का रिसाव भी होता है। इसका सीधा असर जलवायु परिवर्तन पर पड़ता है। कार्बन डायऑक्साइड का स्तर इस तरह की आग में काफी अधिक होता है। इससे न सिर्फ कार्बन डायऑक्साइड, कार्बन मोनोआक्साइड गैस निकलती हैं, बल्कि हाइड्रोजन सल्फाइड जैसी जहरीली गैसें भी निकलती हैं जो सालों तक हवा में बनी रहती हैं। लोगों के स्वास्थ्य पर भी इसका बुरा असर होता है।
पूरे देश की है यह समस्या: सीपीसीबी के सेवानिवृत्त अधिकारी डॉ. डी. साहा ने बताया कि लैंडफिल साइट सामान्य की तुलना में कहीं अधिक गर्म होती हैं। प्रकृतिक तौर पर इन साइटों से कई तरह के रिएक्शन होते हैं और इनकी वजह से डाइऑक्साइन्स और फुरान निकलते हैं। ऐसे में लैंडफिल साइट की समस्या को सिर्फ क्षेत्रीय या एक शहर से जोड़कर नहीं देखा जा सकता, बल्कि यह पूरे देश की समस्या है।