18+ के लिए वैक्सीन की कमी बन सकती है बच्चों के लिए खतरा, जानें कैसे?
हाइलाइट्स:
- कई टीचर्स और स्टूडेंट्स भी कोरोना की दूसरी लहर में बीमार पड़ गए हैं
- वायरस के कई म्यूटेशन के बाद अभी तक बच्चों पर नहीं पड़ा है ज्यादा असर
- पेरेंट्स के वैक्सीन लगाने के बाद बच्चों के लिए वायरस संक्रमण का खतरा कम
नई दिल्ली
आदि पिछली बार क्लास 5 के फाइनल एग्जाम देने के लिए स्कूल गया था। क्लास 6 की पढ़ाई लैपटॉप स्क्रीन के सामने ही पूरी हो गई। अब वह क्लास 7 में है। लेकिन इस गर्मियों की शुरुआत में ऑनलाइन स्कूल भी बंद हो गए हैं क्योंकि स्कूल के कई टीचर्स और स्टूडेंट्स भी कोरोना की दूसरी लहर में बीमार पड़ गए हैं। कुछ टीचर्स की तो जान भी जा चुकी है। ऐसा कब तक चलेगा? स्कूल सिर्फ पढ़ने, लिखने और सवाल करने के लिए नहीं है। स्कूल में बच्चे एक साथ समय बिताते हैं और महत्वपूर्ण स्किल्स भी सीखते हैं।
बच्चों पर अभी तक नहीं पड़ा है अधिक असर
ये सभी स्किल्स बच्चे सिर्फ एक दूसरे के साथ सीखते हैं ना कि पेरेंट्स से। लेकिन यह दूसरा साल चल रहा है, देश में बच्चे हाउस अरेस्ट हैं। इस स्थिति से निकलने का एक सबसे तेज तरीका है जल्द से जल्द पेरेंट्स वैक्सीन लगवाएं। अच्छी बात है कि वायरस के इतने म्यूटेशन के बाद अभी तक बच्चों के लिए यह बहुत खतरनाक साबित नहीं हुआ है। अटलांटिक में पब्लिश एक लेख के अनुसार देश में अभी सिर्फ 0.008% बच्चों को ही कोरोना की वजह से अस्पताल में एडमिट कराने की जरूरत पड़ी है। उदाहरण के लिए यदि 12500 बच्चों को कोरोना हुआ तो उनमें से सिर्फ 1 को अस्पताल में एडमिट कराने की जरूरत पड़ी। एक्सपर्ट का कहना है कि इसका खतरा फ्लू के समान है।
पेरेंट्स को लगेगी वैक्सीन तो बच्चों को खतरा कम
देश में कोरोना वैक्सीन की कमी को लेकर कई सेंटर बंद करने पड़े हैं। ऐसे में 18+ एज ग्रुप के लिए वैक्सीन की कमी बच्चों के लिए मुश्किलें पैदा कर सकती है। यदि पेरेंट्स को वैक्सीन लगा दी जाएगी दो इससे बच्चों को होने वाले संभावित संक्रमण का खतरा कम हो जाएगा। ऐसे में बच्चे घर से स्कूल में कोरोना वायरस संक्रमण लेकर नहीं जा पाएंगे। ऐसे में हम फिर से सुरक्षित रूप से स्कूलों को खोल सकेंगे। अमेरिका में इसी सप्ताह 12-15 साल के बच्चों के लिए फाइजर की वैक्सीन को अनुमति दी गई है। अटलांटिक के इसी आर्टिकल में साइंटिस्ट ट्रेसी बी हॉग, विनय प्रसाद और मोनिका गांधी ने अमेरिका में बच्चों की वैक्सीन को रोकर कर कोरोना महामारी की मार झेल रहे भारत जैसे देशों को वैक्सीन की अतिरिक्त डोज उपलब्ध कराने की बात कही है। वैज्ञानिकों का कहना है कि व्यस्कों को वैक्सीन लगाकर दुनिया को महामारी से अधिक सुरक्षित किया जा सकता है।
व्यस्कों से फैलता है अधिक संक्रमण
इजरायल और यूके में कोरोना वायरस संक्रमण के मामलों में तेजी से कमी देखने को मिली है। इन देशों ने अपने यहां आधे से अधिक व्यस्कों को वैक्सीन की कम से कम एक डोज लगा दी है। साइंटिस्टों का कहना है कि अमेरिका में कोरोना वायरस का 70 फीसदी संक्रमण के पीछे 20-49 एज ग्रुप वाले लोगों की भूमिका रही। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि हर एक व्यस्क औसतन एक से अधिक लोगों को संक्रमित करता है। बच्चों से कोरोना संक्रमण उतना नहीं फैलता है। ऐसे में स्कूल खुलने में बच्चों के आपस में मिलने से उतना खतरा नहीं है जितना कि पेरेंट्स से है।
तीसरी लहर में बच्चों के लिए अधिक खतरा
साइंटिस्टों का कहना है कि कोरोना महामारी की तीसरी लहर कुछ महीनों में दस्तक दे सकती है। अगली बार वायरस किसी नए रूप में होगा जिसमें बच्चों के लिए खतरा अधिक होगा। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका में 14-17 साल वाले पहले से ही दूसरे सबसे अधिक संक्रमित हैं। अमेरिका में पहले ही बड़ी संख्या में व्यस्क आबादी को कोरोना वैक्सीन लगाई जा चुकी है। एनपीआर के अनुसार अमेरिका में कुल मामलों में 22 फीसदी संक्रमण बच्चों में हैं। पिछले साल ऐसे मामलों में इनकी संख्या 3 परसेंट थी।
बच्चों के लिए ICU बेड की व्यवस्था करना होगा मुश्किल
कोरोना की तीसरी लहर में यदि बच्चे मुख्य रूप से निशाना बनते हैं तो ऐसे में कैसे बिना वैक्सीन लिए पेरेंट्स अपने बच्चों की देखभाल कर पाएंगे। कार्डिएक सर्जन देवी शेट्टी ने टाइम्स ऑफ इंडिया के एक लेख में कहा था कि देश में 12 साल से कम उम्र के 16.5 करोड़ बच्चे हैं। यदि एक हजार में एक बच्चा भी गंभीर रूप से बीमार पड़ गया तो हम बच्चों को लिए 2000 आईसीयू बेड्स की व्यवस्था कैसे कर पाएंगे? इसके अलावा बच्चों को पूरी तरह से नर्स की देखभाल पर भी नहीं छोड़ा जा सकता है। बच्चों को खिलाने के लिए पेरेंट्स का होना बहुत जरूरी है। इसके अलावा ऑक्सिजन मास्क आदि की देखभाल के लिए भी हर समय बच्चे के पास किसी ना किसी का होना जरूरी है।
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