Kanshiram Birth Anniversary: कांशीराम के वे उत्तेजक नारे, जिसने यूपी की सियासत में भूचाल ला दिया
सरकारी नौकरी छोड़ी
बाबा साहेब आंबेडकर से गहरे प्रभावित कांशीराम कोई बड़े विचारक नहीं थे लेकिन उनकी सांगठनिक और नेतृत्व क्षमता बेजोड़ थी। इसी के जरिए उन्होंने दलित मूवमेंट खड़ा किया और उत्तर प्रदेश की सत्ता की दहलीज तक पहुंचे। कांशीराम साल 1956 में ग्रेजुएट होने के बाद सरकारी नौकरी में चले गए। वह गोला-बारूद की फैक्ट्री की लैब में असिस्टेंट के पद पर तैनात थे। यहां उनके साथ जातीय स्तर पर भेदभाव हुआ तो वह इसे बर्दाश्त नहीं कर सके। 6 साल की सेवा के बाद उन्होंने नौकरी छोड़ दी।
बामसेफ से शुरू की राजनीति
दलित जातियों का आर्थिक, सामाजिक और शारीरिक शोषण होता देख कांशीराम बेहद व्यथित हुए। वह दलितों के लिए कुछ करना चाहते थे इसलिए वह रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया से जुड़ गए। यहां उन्होंने देखा कि दलितों की लड़ाई लड़ने का दावा करने वाले नेता लालची और भ्रष्ट हैं। वे एक-दूसरे को ही नीचा दिखाने की कोशिश में लगे हैं। कांशीराम तो देशभर के दलितों को एकजुट करना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने 1973 में बामसेफ यानी कि बैकवर्ड माइनॉरिटी कम्युनिटीज एम्प्लाइज फेडरेशन का गठन किया।
ठाकुर-बाभन-बनिया छोड़…
साल 1981 में कांशीराम बामसेफ को नए कलेवर में लेकर आए और दलित शोषित समाज संघर्ष समिति यानी कि डीएस-4 का गठन किया। इसके लिए उन्होंने नारा दिया- ‘ठाकुर-बनिया-बाभन छोड़। बाकी सब हैं डीएस-फोर।’ नारा इतना प्रभावशाली था कि भारी संख्या में दलित कांशीराम के पीछे लामबंद होने लगे। उन्होंने नासिक के बोट क्लब में डीएस-फोर की जन-संसद भी लगाई। साल 1983 में वह डीएस-फोर के 100 नेताओं को लेकर दिल्ली के आसपास के 7 जिलों में साइकिल से दर-दर पर दस्तक देते रहे।
तिलक-तराजू और तलवार
गांव में दलितों के साथ दमन और शोषण की स्थिति देखकर कांशीराम को बेहद क्षोभ हुआ। सवर्ण जातियों के दलित समुदाय के लोगों के साथ बर्ताव को देखकर उन्हें बेहद गुस्सा आया। कांशीराम ने इसके बाद ही नारा दिया- ‘तिलक-तराजू और तलवार। इनको मारो जूते चार।’ कांशीराम के इस विवादित नारे में तिलक ब्राह्मण, तराजू वैश्य और तलवार क्षत्रिय समुदाय को प्रदर्शित करता है। इस नारे में दलित समुदाय के साथ सदियों से जाति के नाम पर हो रहे शोषण को लेकर बेहद गुस्सा दिखाई देता है। इस नारे को सुनकर कथित ऊंची जाति के लोग हैरान रह गए।
वोट हमारा राज तुम्हारा, नहीं चलेगा-नहीं चलेगा
1983 से 1984 तक कांशीराम अपने संगठन की राजनैतिक स्थिति मजबूत करने में लगे रहे। वोट हमारा- राज तुम्हारा। नहीं चलेगा-नहीं चलेगा। जैसे नारों से उन्होंने दलित समुदाय की राजनैतिक चेतना को झकझोर दिया। इसके अलावा उन्होंने ऐलान किया- जिसकी जितनी संख्या भारी। उसकी उतनी हिस्सेदारी।
आरक्षण से लेंगे एसपी-डीएम
कांशीराम के बारे में एक कहावत खूब मशहूर है। अपनी राजनीति के शुरुआती दिनों में वह एक बात कहा करते थे, जिसे आज भी राजनीतिज्ञों द्वारा उद्धृत किया जाता है। कांशीराम कहते थे- पहला चुनाव हारने के लिए होता है। दूसरा हरवाने के लिए और तीसरा चुनाव जीतने के लिए होता है। दलित समुदाय के आरक्षण को लेकर भी कांशीराम का एक नारा बेहद प्रसिद्ध है। इसमें उन्होंने कहा- ‘वोट से लेंगे सीएम-पीएम। आरक्षण से लेंगे एसपी-डीएम।’
मायावती को दिया मार्गदर्शन
14 अप्रैल 1984 को कांशीराम ने बहुजन समाज पार्टी का गठन किया। यह पार्टी दलितों के अधिकारों की बात करती थी। इसके बाद उन्होंने कलेक्टर बनने का सपना देख रही एक युवा शिक्षिका को राजनैतिक मार्गदर्शन दिया। यही शिक्षिका बाद में न सिर्फ कांशीराम की राजनैतिक वारिस बनी बल्कि चार बार देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री भी बनी। नाम है मायावती, जो कांशीराम की दूरदृष्टि की अनुपम उदाहरण हैं।