Jhatka Startup: हलाल, हलाल, हलाल के शोर के बीच झटका बाजार पर नजर, समझिए कितना बड़ा है ये मार्केट h3>
नई दिल्ली: पिछले साल मार्च में जब सुदर्शन बूसुपल्ली (Sudarshan Boosupalli) ने बेंगलुरु में झटका मीट बेचने के लिए ऑनलाइन प्लेटफॉर्म मीमो (Meamo) शुरू किया, तो उन्हें अच्छी प्रतिक्रिया नहीं मिली। हालांकि, पिछले करीब 15 दिनों में झटका मूवमेंट को बढ़ावा मिलने के चलते मीमो की सेल्स करीब 27 फीसदी बढ़ी है, जबकि मीमो ऐप के डाउनलोड दोगुने हो गए हैं।
वैसे तो अधिकतर शहरों में झटका मीट की दुकानें हैं, लेकिन मीमो एक स्टार्टअप है जो झटका मीट पर फोकस कर रहा है। कुछ साल पहले बिग बास्केट ने भी झटका की एक अलग कैटेगरी शुरू की थी, लेकिन वह सिर्फ दिल्ली तक सीमित थी। हलाल मीट को लेकर उठे विवादों के बीच कर्नाटक में राइट विंग ने हलाल मीट का बहिष्कार करने का फैसला किया है, जिससे भी झटका मीट का बाजार बढ़ रहा है। सुदर्शन अपने बिजनस मीमो को अब दिल्ली एनसीआर और चंडीगढ़ में जुलाई तक लाने की तैयारी कर रहे हैं।
विकल्प ना होने के चलते खा रहे हलाल मीट
जो लोग झटका मीट के अधिक विकल्पों की बात कर रहे हैं, उनका मानना है कि हिंदू और सिखों को मजबूरी में हलाल मीट खाना पड़ रहा है, क्योंकि विकल्प नहीं हैं। हलाल वह मीट है, जिसमें जानवर को धीरे-धीरे कर के मारा जाता है। वहीं झटका के तहत एक झटके में जानवर का सिर धड़ से अलग कर दिया जाता है। हिंदू धर्म में जानवर का सिर धड़ से अलग करने को लेकर कोई प्रतिबंध नहीं है, जबकि खालसा कोड ऑफ कंडक्ट (रेहत मर्यादा) के तहत सिखों को धर्मिक रूप से काटे गए जानवर को खाने की मनाही है।
पंजाब मराठा भी सप्लाई करता है झटका मीट
इसके अलावा एक और झटका मीट ब्रांड है, जिसका नाम है पंजाब मराठा। यह मुख्य तौर पर मुंबई में सेवाएं देता है। इसके फाउंडर एशविंदर सेठी कहते हैं कि जब 2015 में उन्होंने ये बिजनस शुरू किया था तो उन्हें काफी फीका रेस्पॉन्स मिला। रेस्टोरेंट और फास्ट फूड चेन से भी उन्हें अच्छी प्रतिक्रिया नहीं मिली। वह कहते हैं कि अभी कोई बड़ा बदलाव तो नहीं दिख रहा है, लेकिन आने वाले दिनों में जागरूकता बढ़ने के साथ-साथ बदलाव देखने को मिलेगा।
कितना बड़ा है मीट का बाजार?
2018 में बाला मुरली नटराजन और सूरज जैकब की एक स्टडी से पता चलता है कि 80 फीसदी भारतीय या करीब 90 करोड़ लोग मीट खाते हैं। हालांकि, बहुत ही कम हिंदू हैं जो झटका मीट पर जोर देते हैं। वहीं दूसरी ओर मुस्लिम लोग झटका मीट नहीं खाते। यहां तक कि रेस्टोरेंट भी हलाल मीट ऑफर कर रहे हैं। हलाल सर्टिफिकेशन के जरिए कंपनियों के लिए पश्चिम एशिया में एक्सपोर्ट करना भी आसान हो गया है। झटका मीट की वकालत करने वाले लोग कहते हैं कि यूरोप में बहुत से देश जैसे डेनमार्क, स्वीडन, नॉर्वे और स्विटजरलैंड ने धार्मिक तरीके से काटे जाने वाले मीट को खाना बैन किया हुआ है।
बढ़ गया आपकी गाड़ी का खर्चा और रसोई का बजट, CNG व PNG दोनों हुई महंगी
राजनीति की और खबर देखने के लिए यहाँ क्लिक करे – राजनीति
News
वैसे तो अधिकतर शहरों में झटका मीट की दुकानें हैं, लेकिन मीमो एक स्टार्टअप है जो झटका मीट पर फोकस कर रहा है। कुछ साल पहले बिग बास्केट ने भी झटका की एक अलग कैटेगरी शुरू की थी, लेकिन वह सिर्फ दिल्ली तक सीमित थी। हलाल मीट को लेकर उठे विवादों के बीच कर्नाटक में राइट विंग ने हलाल मीट का बहिष्कार करने का फैसला किया है, जिससे भी झटका मीट का बाजार बढ़ रहा है। सुदर्शन अपने बिजनस मीमो को अब दिल्ली एनसीआर और चंडीगढ़ में जुलाई तक लाने की तैयारी कर रहे हैं।
विकल्प ना होने के चलते खा रहे हलाल मीट
जो लोग झटका मीट के अधिक विकल्पों की बात कर रहे हैं, उनका मानना है कि हिंदू और सिखों को मजबूरी में हलाल मीट खाना पड़ रहा है, क्योंकि विकल्प नहीं हैं। हलाल वह मीट है, जिसमें जानवर को धीरे-धीरे कर के मारा जाता है। वहीं झटका के तहत एक झटके में जानवर का सिर धड़ से अलग कर दिया जाता है। हिंदू धर्म में जानवर का सिर धड़ से अलग करने को लेकर कोई प्रतिबंध नहीं है, जबकि खालसा कोड ऑफ कंडक्ट (रेहत मर्यादा) के तहत सिखों को धर्मिक रूप से काटे गए जानवर को खाने की मनाही है।
पंजाब मराठा भी सप्लाई करता है झटका मीट
इसके अलावा एक और झटका मीट ब्रांड है, जिसका नाम है पंजाब मराठा। यह मुख्य तौर पर मुंबई में सेवाएं देता है। इसके फाउंडर एशविंदर सेठी कहते हैं कि जब 2015 में उन्होंने ये बिजनस शुरू किया था तो उन्हें काफी फीका रेस्पॉन्स मिला। रेस्टोरेंट और फास्ट फूड चेन से भी उन्हें अच्छी प्रतिक्रिया नहीं मिली। वह कहते हैं कि अभी कोई बड़ा बदलाव तो नहीं दिख रहा है, लेकिन आने वाले दिनों में जागरूकता बढ़ने के साथ-साथ बदलाव देखने को मिलेगा।
कितना बड़ा है मीट का बाजार?
2018 में बाला मुरली नटराजन और सूरज जैकब की एक स्टडी से पता चलता है कि 80 फीसदी भारतीय या करीब 90 करोड़ लोग मीट खाते हैं। हालांकि, बहुत ही कम हिंदू हैं जो झटका मीट पर जोर देते हैं। वहीं दूसरी ओर मुस्लिम लोग झटका मीट नहीं खाते। यहां तक कि रेस्टोरेंट भी हलाल मीट ऑफर कर रहे हैं। हलाल सर्टिफिकेशन के जरिए कंपनियों के लिए पश्चिम एशिया में एक्सपोर्ट करना भी आसान हो गया है। झटका मीट की वकालत करने वाले लोग कहते हैं कि यूरोप में बहुत से देश जैसे डेनमार्क, स्वीडन, नॉर्वे और स्विटजरलैंड ने धार्मिक तरीके से काटे जाने वाले मीट को खाना बैन किया हुआ है।
बढ़ गया आपकी गाड़ी का खर्चा और रसोई का बजट, CNG व PNG दोनों हुई महंगी
News