Jet Injector Explained: बिना सूई घोंपे लग जाएगी जायकोव-डी की वैक्सीन, जानें क्या है जेट इंजेक्टर की पूरी कहानी

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Jet Injector Explained: बिना सूई घोंपे लग जाएगी जायकोव-डी की वैक्सीन, जानें क्या है जेट इंजेक्टर की पूरी कहानी


Jet Injector Explained: बिना सूई घोंपे लग जाएगी जायकोव-डी की वैक्सीन, जानें क्या है जेट इंजेक्टर की पूरी कहानी

हाइलाइट्स:

  • भारतीय दवा निर्माता कंपनी जायडस कैडिला की वैक्सीन बिना सूई घोंपे लगाई जाएगी
  • इसके लिए जेट इंजेक्टर का इस्तेमाल किया जाएगा जो 150 साल पुरानी तकनीक है
  • पहले के टीकाकरण अभियान में अमेरिका और पाकिस्तान में जेट इंजेक्टर का उपयोग हुआ है

नई दिल्ली
देश में 12 से 18 वर्ष के बच्चों के लिए जायडस कैडिला की नीडल फ्री कोरोना वैक्सीन को आपातकालीन उपयोग की अनुमति दिए जाने पर इसी हफ्ते विचार हो सकता है। गुजरात के अहमदाबाद की दवा निर्माता कंपनी जायडस कैडिला (Zydus Cadila) ने जायकोव-डी (ZyCoV-D) के लिए अनुमति की मांग की थी। ऐसे में इस बात की चर्चा हो रही है आखिर जब सूई नहीं चुभोई जाएगी और पोलियो दवा की तरह इसे मुंह में भी नहीं दिया जाएगा तो फिर यह शरीर में जाएगी कैसे।

फार्माजेट से हुई है जायडस कैडिला की डील

दरअसल, इसके लिए जेट इंजेक्टर का सहारा लिया जाता है। ये इंजेक्टर स्प्रिंग, कंप्रेस्ड गैस या बिजली के करंट पर काम करते हैं। इंजेक्टर बनाने वाली अमेरिकी राज्य कोलोराडो (Colorado) की कंपनी ने जायडस कैडिला के साथ डील की है। उसका कहना है कि उसका इंजेक्टर स्प्रिंग पर काम करता है जो सेकंड के 10वें हिस्से में वैक्सीन को चमड़े के अंदर डाल देता है। यह सुनने में भले ही अटपटा लग रहा हो, लेकिन जेट इंजेक्शन की तकनीक महात्मा गांधी के जन्म से भी पहले आ गई थी।

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150 साल पहले आ गई थी जेट इंजेक्टर की तकनीक

फ्रांस के खोजकर्ता गैलांटे (Galante) ने दिसंबर 1866 में पैरिस यूनिवर्सिटी में हाइड्रोपंक्चर के काम आने वाले एक छोटे से औजार का प्रजेंटेशन दिया था। उन्होंने दिखाया कि कैसे लिक्विड की धार काफी तेज गति से चमड़ी पर डालने पर वह अंदर चला जाता है। यह तकनीक आने से 20 वर्ष पहले सूई का आविष्कार हो चुका था। तब सूई आज से ज्यादा मोटी हुआ करती थी, इसलिए ज्यादा दर्द भी हुआ करता था। इस कारण गैलांटे के जेट इंजेक्टर को मान्यता मिल गई और 1950 आते-आते बड़े पैमाने पर टीकाकरण अभियान चलाने के लिए इसका तेजी से इस्तेमाल होने लगा।

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कब उफान पर आया इंजेक्टर, क्यों चलन से हटा

यूएस सेंटर्स फॉर डिजीज कंट्रोल ऐंड प्रिवेंशन (CDC) का कहना है कि जेट इंजेक्टर ने चेचक एवं अन्य बीमारियों को खत्म करने में बड़ी भूमिका निभाई। वहां सैनिकों को भी जेट इंजेक्टर के जरिए वैक्सीन लगाई जाती रही। 1966 में 19 वर्ष की उम्र में जेट इंजेक्टर से टीका लेने वाले एक सैनिक ने अमेरिकी अखबार द वॉशिंगटन पोस्ट को बताया कि सैनिकों के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला जेट इंजेक्टर थोड़ा खतरनाक था। उससे लिक्विड की धार इतनी गति से निकलती थी कि कभी-कभार चमड़ी को फाड़ देती थी और खून निकलकर इंजेक्टर पर लग जाता था। चूंकि इंजेक्टर की साफ-सफाई किए बिना ही दूसरों को वैक्सीन देने में इस्तेमाल किया जाता था, इससे संक्रामक बीमारियां एक से दूसरे में फैलने लगीं। उन्होंने बताया कि 1980 में वजन घटाने वाले एक क्लीनिक में संक्रमित जेट इंजेक्टर के इस्तेमाल से कई लोगों को हेपटाइटिस बी हो गया। उसी के बाद जेट इंजेक्टर की काफी बदनामी हुई और उसका इस्तेमाल घट गया।

क्या जेट इंजेक्टर अब भी खतरनाक हो सकता है

तो क्या जेट इंजेक्टर के साथ यह खतरा अब भी बना रहेगा? दरअसल, तकनीक के जमाने में अब जेट इंजेक्टर भी अडवांस हो गए हैं। जिस जेट इंजेक्टर से जायडसकोव-डी की डोज दी जाएगी, उसका एक बार ही इस्तेमाल होगा जैसे कि प्लास्टिक सिरिंज का होता है। फार्माजेट के इंजेक्टर में भी सिरिंज लगा होगा, लेकिन सूई के बिना। जैसे ही एक व्यक्ति को वैक्सीन डोज दी जाएगी, इंजेक्टर में लगा यह सिरिंज बेकार हो जाएगा जिससे इसका दुबारा इस्तेमाल नहीं हो सकेगा। यानी, संक्रमण के प्रसार का खतरा खत्म।

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अमेरिका, पाकिस्तान में हो चुका इस्तेमाल, अब ऑस्ट्रेलिया, भारत की बारी
दरअसल, अमेरिका में 18 से 64 वर्ष के लोगों को फ्लू वैक्सीन लगाने के लिए जेट इंजेक्टर का इस्तेमाल किया गया था। पाकिस्तान भी बच्चों को पोलियो वैक्सीन लगाने के लिए इसका इस्तेमाल कर रहा है। कोरोना वैक्सीन कोविशील्ड का उत्पादन कर रही पुणे स्थित कंपनी सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया (SII) ने भी 2017 में मीजल्स वैक्सीन के लिए फार्माजेट से डील की थी। अगर कोरोना वैक्सीन की बात की जाए तो ऑस्ट्रेलिया की कोविजेन (Covigen) वैक्सीन का जून महीने में पहले चरण का ट्रायल शुरू हुआ था। उसकी डोज भी फार्माजेट के इंजेक्टर के जरिए ही दी जाती है। वहीं, अमेरिकी कंपनी इनोविओ (Inovio) का तीसरे चरण का ट्रायल चल रहा है। उसकी डोज के लिए भी इलेक्ट्रॉनिक इंजेक्टर का उपयोग किया जाता है जिसका नाम सेलेक्ट्रा (Cellectra) है।

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1976 में एक अमेरिकी महिला को जेट इंजेक्टर के जरिए वैक्सीन डोज दिए जाने की तस्वीर।



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