Jaipur Lit Fest- दक्षिण भारत के शासकों को नहीं मिली इतिहास में जगह | Jaipur Lit Fest#The Lords of Deccan’# | Patrika News h3>
देश के इतिहास में दक्षिण भारत के शासकों को वह जगह नहीं दी गई जो उत्तर भारत के शासकों को मिली है। यह कहना है अनिरूद्ध कनिसेत्ती का। जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के आठवें दिन मुगल टैंट में अपनी किताब The Lords of Deccan’को लेकर मनु ए पिल्लई से बात करते हुए उन्होंने कहा कि उनकी यह किताब मध्यकालीन भारत के इतिहास को दर्शाने का प्रयास है जिसमें उस समय की कला, सैन्य क्षमता, वंश्ववाद, साहित्य और व्यापार के बारे में बताया गया है।
जयपुर
Published: March 12, 2022 09:44:33 pm
देश के इतिहास में दक्षिण भारत के शासकों को वह जगह नहीं दी गई जो उत्तर भारत के शासकों को मिली है। यह कहना है अनिरूद्ध कनिसेत्ती का। जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के आठवें दिन मुगल टैंट में अपनी किताब The Lords of Deccan’को लेकर मनु ए पिल्लई से बात करते हुए उन्होंने कहा कि उनकी यह किताब मध्यकालीन भारत के इतिहास को दर्शाने का प्रयास है जिसमें उस समय की कला, सैन्य क्षमता, वंश्ववाद, साहित्य और व्यापार के बारे में बताया गया है। यह किताब चोल, पल्ल्व, राष्ट्रकूट से चालुक्य वंश के शासकों का इतिहास बताती है। उन्होंने कहा कि दक्षिण भारत में कई राजा और राजघराने ऐसे हुए हैं जिन्होंने लंबे समय तक राज किया और अपनी कीर्ति फहराई लेकिन उन्हें उत्तर भारत के शासकों के मुकाबले अनदेखा किया गया। उन्होंने बताया कि डेक्कन का अर्थ दक्षिण होता है और कभी-कभी नर्मदा के दक्षिण में पूरे भारत को कवर करने के लिए विस्तारित किया जाता है। मनु ने सोमश्वर का उदाहरण देते हुए कहा कि दक्षिण के राजा सोमेश्वर ने अपना राज साउथ ईस्ट एशिया तक फैलाया, उन्हें सिर्फ चोल वंश ही टक्कर दे सका। चोल वंशीय शासकों ने उन्हें काफी नुकसान पहुंचाया। इतना ही नहीं दक्षिण में चालुक्यों का भी शासन रहा जो खुद को ईश्वर की संतान मानते थे। चालुक्य वंश के शासकों ने देश के मध्यकालीन इतिहास को नया जन्म दिया। का कहना था कि उन्हें नारायण और शिव का आर्शीवाद प्राप्त है। खुद को भगवान का संदेश वाहक मानने वाले इस शासकों ने दक्षिण में बड़ी संख्या में मंदिर बनवाए। यह वह समय था जबकि दक्षिण भारत में हिंदुज्म भी पनप रहा था। इतना ही नहीं दक्षिण में जैन धर्म भी काफी फलाफूला। श्रावणकोर में आज भी महावीर स्वामी की मूर्ति लगी गई है। कनिसेट्टी बताते हैं मध्यकालीन भारत के शक्तिशाली साम्राज्य कैसे बने? कैसे मंदिर.निर्माण और भाषा के हेरफेर को राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया गया और जैन और बौद्ध,शैव और वैष्णवों के बीच धार्मिक संघर्षों में राजघरानों ने खुद को कैसे शामिल किया।
Jaipur Lit Fest- दक्षिण भारत के शासकों को नहीं मिली इतिहास में जगह
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देश के इतिहास में दक्षिण भारत के शासकों को वह जगह नहीं दी गई जो उत्तर भारत के शासकों को मिली है। यह कहना है अनिरूद्ध कनिसेत्ती का। जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के आठवें दिन मुगल टैंट में अपनी किताब The Lords of Deccan’को लेकर मनु ए पिल्लई से बात करते हुए उन्होंने कहा कि उनकी यह किताब मध्यकालीन भारत के इतिहास को दर्शाने का प्रयास है जिसमें उस समय की कला, सैन्य क्षमता, वंश्ववाद, साहित्य और व्यापार के बारे में बताया गया है।
जयपुर
Published: March 12, 2022 09:44:33 pm
देश के इतिहास में दक्षिण भारत के शासकों को वह जगह नहीं दी गई जो उत्तर भारत के शासकों को मिली है। यह कहना है अनिरूद्ध कनिसेत्ती का। जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के आठवें दिन मुगल टैंट में अपनी किताब The Lords of Deccan’को लेकर मनु ए पिल्लई से बात करते हुए उन्होंने कहा कि उनकी यह किताब मध्यकालीन भारत के इतिहास को दर्शाने का प्रयास है जिसमें उस समय की कला, सैन्य क्षमता, वंश्ववाद, साहित्य और व्यापार के बारे में बताया गया है। यह किताब चोल, पल्ल्व, राष्ट्रकूट से चालुक्य वंश के शासकों का इतिहास बताती है। उन्होंने कहा कि दक्षिण भारत में कई राजा और राजघराने ऐसे हुए हैं जिन्होंने लंबे समय तक राज किया और अपनी कीर्ति फहराई लेकिन उन्हें उत्तर भारत के शासकों के मुकाबले अनदेखा किया गया। उन्होंने बताया कि डेक्कन का अर्थ दक्षिण होता है और कभी-कभी नर्मदा के दक्षिण में पूरे भारत को कवर करने के लिए विस्तारित किया जाता है। मनु ने सोमश्वर का उदाहरण देते हुए कहा कि दक्षिण के राजा सोमेश्वर ने अपना राज साउथ ईस्ट एशिया तक फैलाया, उन्हें सिर्फ चोल वंश ही टक्कर दे सका। चोल वंशीय शासकों ने उन्हें काफी नुकसान पहुंचाया। इतना ही नहीं दक्षिण में चालुक्यों का भी शासन रहा जो खुद को ईश्वर की संतान मानते थे। चालुक्य वंश के शासकों ने देश के मध्यकालीन इतिहास को नया जन्म दिया। का कहना था कि उन्हें नारायण और शिव का आर्शीवाद प्राप्त है। खुद को भगवान का संदेश वाहक मानने वाले इस शासकों ने दक्षिण में बड़ी संख्या में मंदिर बनवाए। यह वह समय था जबकि दक्षिण भारत में हिंदुज्म भी पनप रहा था। इतना ही नहीं दक्षिण में जैन धर्म भी काफी फलाफूला। श्रावणकोर में आज भी महावीर स्वामी की मूर्ति लगी गई है। कनिसेट्टी बताते हैं मध्यकालीन भारत के शक्तिशाली साम्राज्य कैसे बने? कैसे मंदिर.निर्माण और भाषा के हेरफेर को राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया गया और जैन और बौद्ध,शैव और वैष्णवों के बीच धार्मिक संघर्षों में राजघरानों ने खुद को कैसे शामिल किया।
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