India Russia News :चीन, पाकिस्तान, तालिबान, तीनों रूस के साथ, क्या पुतिन पर भारत की चुप्पी बड़ी भूल? h3>
नई दिल्ली: रूस-यूक्रेन युद्ध (Russia Ukraine Crisis) में भारत अब तक किसी एक तरफ खड़ा होने से बचता आ रहा है। संयुक्त राष्ट्र में रूस के खिलाफ लाए गए प्रस्ताव पर वोटिंग से भी भारत अनुपस्थित रहा। वैसे तो, भारत के तटस्थ रहने की यह नीति पुरानी है लेकिन आज के बदले वैश्विक परिदृश्य में क्या यह सही अप्रोच है? सोशल मीडिया पर लोग अपने-अपने तर्क रख रहे हैं। ऐसे में आइए विदेश मामलों के जानकारों से समझते हैं कि भारत का यह फैसला कितना सही है और क्या भारत के लिए रूस के साथ अपने संबंधों पर पुनर्विचार करने का वक्त आ गया है? हमारे सहयोगी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया ने पक्ष और विपक्ष में दोनों विशेषज्ञों की राय प्रकाशित की है।
पक्ष: भारत को अपना हित देखना है
अशोक सज्जनहार मध्य एशिया और यूरोप में भारत के राजदूत रहे हैं। इस समय वह मनोहर पर्रिकर रक्षा अध्ययन एवं विश्लेषण संस्थान के एग्जीक्यूटिव काउंसिल के सदस्य हैं। उन्होंने भारत के रुख का समर्थन किया है। वह कहते हैं कि रूस-यूक्रेन विवाद में भारत ने संतुलित और बीच का रास्ता अपनाया है। यह अपनी सुरक्षा और विकास हितों को ध्यान में रखकर उठाया गया कदम है। भारत अपने सभी बयानों में सभी देशों की सुरक्षा हितों की बात करता रहा है। भारत ने सभी मसलों के शांतिपूर्ण समाधान के लिए डिप्लोमेसी और बातचीत की वकालत की है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से बात की तो उन्होंने संकट का समाधान बातचीत की टेबल पर निकालने को कहा था। पीएम मोदी और यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की के बीच बातचीत में भी इस पर जोर दिया गया।
शांति के सिद्धांत पर बढ़ते हुए भारत ने यह भी सुनिश्चित किया है कि अमेरिका और रूस दोनों देशों के साथ उसके संबंध मजबूत बने रहें। पिछले 22 वर्षों में अमेरिका कूटनीतिक, राजनीतिक, आर्थिक, रक्षा, तकनीक और जनता के बीच सहयोग के लिहाज से भारत का सबसे महत्वपूर्ण सहयोगी बनकर उभरा है। अमेरिका भारत का सबसे बड़ा ट्रेड पार्टनर है और तकनीक, रक्षा उपकरण और निवेश का प्रमुख आपूर्तिकर्ता है। चीन की विस्तारवादी हरकतों के जवाब में क्वाड और हिंद-प्रशांत में अमेरिका एक प्रमुख सहयोगी है।
रूस से आता है हथियार
उधर, भारत की विदेश नीति में रूस एक प्रमुख पिलर है। रूस भारत के करीब 60 प्रतिशत हथियारों की आपूर्ति करता है। हाल में 5.4 अरब डॉलर के एस-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम को रूस से आयात किया जा रहा है। इसके अलावा कई मेक इन इंडिया पहल में रूस शामिल है। इसमें AK-203 राइफलों और कामोव-226 T हेलिकॉप्टरों का घरेलू स्तर पर निर्माण शामिल है। इतना ही नहीं, रूस परमाणु ऊर्जा, हाइड्रोकार्बन, स्पेस आदि क्षेत्रों में भी महत्वपूर्ण साझेदार है। जून 2020 में चीन के साथ सैन्य झड़प के मद्देनजर भारत के लिए रूस के साथ मजबूत संबंध बनाए रखना महत्वपूर्ण है।
अगर पक्ष लेते तो यूक्रेन में फंस जाते भारतीय
इसी सिद्धांत और मकसद से भारत रूस-यूक्रेन वॉर पर संयुक्त राष्ट्र में हुई वोटिंग से गैरहाजिर रहा है। भारत ने सबसे ज्यादा प्राथमिकता यूक्रेन में फंसे अपने नागरिकों को स्वदेश लाने को दी है। अगर भारत ने रूस या यूक्रेन में से किसी एक का साथ दिया होता तो वहां फंसे भारतीय छात्रों और अन्य को सुरक्षित बाहर निकालने में मुश्किल आ सकती थी। जब रूस ने यूक्रेन पर हमला किया तो वहां करीब 18 हजार भारतीय थे।
यह भी याद रखना चाहिए कि जब भारतीय यूक्रेन से बचकर निकल रहे थे तो तिरंगा झंडा गाड़ियों में लगा होने के कारण वे सुरक्षित रहे। हां, भारत लगातार शांति से समस्या का समाधान निकालने और देश की संप्रभुता की रक्षा की बात भी कर रहा है। भारत इस बात को लेकर भी सतर्क है कि वह एक देश के दूसरे क्षेत्र में घुसकर सैन्य कार्रवाई के ऐक्शन का सपोर्ट भी नहीं कर सकता है। हमारे पास चीन से अलग प्रेशर है, जो हमारे भूभाग पर अवैध तरीके से दावे करता रहता है। चीन न केवल लद्दाख बल्कि पूर्वी सेक्टर में 93,000 वर्ग किमी के अरुणाचल प्रदेश के क्षेत्र को अपना बताता रहता है। पश्चिमी फ्रंट पर भारत के सामने पाकिस्तान से ऐसे ही दबाव का सामना करना पड़ता है। ऐसे में संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता की बात भारत से बेहतर भला कौन समझ सकता है। UNSC में गैरहाजिर रहकर बातचीत और डिप्लोमेसी की वकालत करते हुए भारत संप्रभुता की रक्षा की बात भी कर रहा है। भारत सभी देशों के साथ शांति, सुरक्षा और स्थिरता की भावना के साथ अपने हितों को सुरक्षित रखना चाहता है।
विपक्ष: रूस से संबंधों के फायदे पर पुनर्विचार का वक्त है
डेरेक ग्रॉसमैन यूनिवर्सिटी ऑफ साउथ कैरोलिना के सहायक प्रोफेसर और एक एनजीओ में सीनियर डिफेंस एनालिस्ट हैं। वह कहते हैं कि मॉस्को के साथ नई दिल्ली के कोल्ड वॉर के समय से संबंधों को देखें तो संयुक्त राष्ट्र में वोटिंग से भारत का अनुपस्थित रहना हैरान करने वाला नहीं था। भारत रूसी हथियारों की खरीद के लिए उसके साथ संबंधों को खुला रखना चाहता है क्योंकि सेना के पास सोवियत काल की हथियार प्रणाली हैं। चीन से मिल रही रक्षा चुनौतियों को देखते हुए भी भारत रूस के साथ संबंधों को मजबूत करना चाहता है। रूस वैसे भी कश्मीर पर भारत के रुख के समर्थन में रहता है। लेकिन हाल के वर्षों में हवाओं का रुख बदला है, ऐसे में भारत को रूस के साथ घनिष्ठ संबंधों के फायदे पर फिर से विचार करना चाहिए।
रूस-चीन में बढ़ी दोस्ती
डेरेक कहते हैं कि रूस और भारत का सबसे बड़ा दुश्मन चीन, अब मजबूत रणनीतिक साझेदारी की तरफ बढ़े हैं। यूक्रेन पर आक्रमण करने से पहले प्रेसिडेंट पुतिन ने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से बीजिंग में मुलाकात की थी। दोनों नेताओं ने रूस-चीन मित्रता को लेकर कहा था कि यह असीमित है। दूसरे शब्दों में कहें तो नई दिल्ली के मॉस्को के साथ अच्छे संबंध बीजिंग को किसी भी तरह से रोक नहीं सकते। मई 2020 में चीन ने भारत के साथ तनाव बढ़ाते हुए अपनी सेना तैनात कर दी और हाल के दशकों में पहली बार दोनों देशों के सैनिकों में झड़प हुई। रूस अब भारत के दुश्मन देशों के साथ अपने अच्छे रिश्ते बनाना चाहता है। पिछले हफ्ते जिस दिन रूस ने यूक्रेन पर हमला किया उसी समय पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान मॉस्को के दौरे पर थे। यह कोई छोटी घटना नहीं थी। पाकिस्तान का कोई पीएम 23 साल बाद रूस पहुंचा था। समझा जा रहा है कि खान की यात्रा के लिए पाकिस्तान के ‘आयरन ब्रदर’ चीन ने काफी मदद की थी। मॉस्को भी इस्लामाबाद के साथ आर्थिक और सुरक्षा सहयोग बढ़ाना चाहता है।
पाकिस्तान भी रूस की गोद में जा रहा
पाकिस्तान में इमरान की मॉस्को यात्रा की काफी चर्चा रही। इसे अमेरिका की छत्रछाया से बाहर निकलकर रूस के साथ संबंधों को मजबूत करना माना गया। ऐसे में रूस-पाकिस्तान के रिश्ते आने वाले वर्षों में मजबूत हो सकते हैं। पुतिन भी इस्लामाबाद जा सकते हैं। यह कदम भारत को कतई ठीक नहीं लगेगा। इतना ही नहीं, रूस, पाकिस्तान और चीन लगातार अफगानिस्तान पर काबिज आतंकी संगठन तालिबान के संपर्क में हैं। पाकिस्तान की शह पर आतंकियों की तरफ से भारत के खिलाफ हमलों को हवा दी जा सकती है। दरअसल, अमेरिका के अफगानिस्तान क्षेत्र से बाहर निकलने के बाद पैदा हुए स्पेस को रूस भरना चाहता है। वह तालिबान से भी संबंध बढ़ाना चाहेगा।
इधर, रूस से हथियार खरीदने के चलते अमेरिका भारत पर प्रतिबंध भी लगा सकता है। रूस के हाल के कदमों को देखते हुए भारत के लिए भी सोचने का वक्त आ गया है।
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पक्ष: भारत को अपना हित देखना है
अशोक सज्जनहार मध्य एशिया और यूरोप में भारत के राजदूत रहे हैं। इस समय वह मनोहर पर्रिकर रक्षा अध्ययन एवं विश्लेषण संस्थान के एग्जीक्यूटिव काउंसिल के सदस्य हैं। उन्होंने भारत के रुख का समर्थन किया है। वह कहते हैं कि रूस-यूक्रेन विवाद में भारत ने संतुलित और बीच का रास्ता अपनाया है। यह अपनी सुरक्षा और विकास हितों को ध्यान में रखकर उठाया गया कदम है। भारत अपने सभी बयानों में सभी देशों की सुरक्षा हितों की बात करता रहा है। भारत ने सभी मसलों के शांतिपूर्ण समाधान के लिए डिप्लोमेसी और बातचीत की वकालत की है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से बात की तो उन्होंने संकट का समाधान बातचीत की टेबल पर निकालने को कहा था। पीएम मोदी और यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की के बीच बातचीत में भी इस पर जोर दिया गया।
शांति के सिद्धांत पर बढ़ते हुए भारत ने यह भी सुनिश्चित किया है कि अमेरिका और रूस दोनों देशों के साथ उसके संबंध मजबूत बने रहें। पिछले 22 वर्षों में अमेरिका कूटनीतिक, राजनीतिक, आर्थिक, रक्षा, तकनीक और जनता के बीच सहयोग के लिहाज से भारत का सबसे महत्वपूर्ण सहयोगी बनकर उभरा है। अमेरिका भारत का सबसे बड़ा ट्रेड पार्टनर है और तकनीक, रक्षा उपकरण और निवेश का प्रमुख आपूर्तिकर्ता है। चीन की विस्तारवादी हरकतों के जवाब में क्वाड और हिंद-प्रशांत में अमेरिका एक प्रमुख सहयोगी है।
रूस से आता है हथियार
उधर, भारत की विदेश नीति में रूस एक प्रमुख पिलर है। रूस भारत के करीब 60 प्रतिशत हथियारों की आपूर्ति करता है। हाल में 5.4 अरब डॉलर के एस-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम को रूस से आयात किया जा रहा है। इसके अलावा कई मेक इन इंडिया पहल में रूस शामिल है। इसमें AK-203 राइफलों और कामोव-226 T हेलिकॉप्टरों का घरेलू स्तर पर निर्माण शामिल है। इतना ही नहीं, रूस परमाणु ऊर्जा, हाइड्रोकार्बन, स्पेस आदि क्षेत्रों में भी महत्वपूर्ण साझेदार है। जून 2020 में चीन के साथ सैन्य झड़प के मद्देनजर भारत के लिए रूस के साथ मजबूत संबंध बनाए रखना महत्वपूर्ण है।
अगर पक्ष लेते तो यूक्रेन में फंस जाते भारतीय
इसी सिद्धांत और मकसद से भारत रूस-यूक्रेन वॉर पर संयुक्त राष्ट्र में हुई वोटिंग से गैरहाजिर रहा है। भारत ने सबसे ज्यादा प्राथमिकता यूक्रेन में फंसे अपने नागरिकों को स्वदेश लाने को दी है। अगर भारत ने रूस या यूक्रेन में से किसी एक का साथ दिया होता तो वहां फंसे भारतीय छात्रों और अन्य को सुरक्षित बाहर निकालने में मुश्किल आ सकती थी। जब रूस ने यूक्रेन पर हमला किया तो वहां करीब 18 हजार भारतीय थे।
यह भी याद रखना चाहिए कि जब भारतीय यूक्रेन से बचकर निकल रहे थे तो तिरंगा झंडा गाड़ियों में लगा होने के कारण वे सुरक्षित रहे। हां, भारत लगातार शांति से समस्या का समाधान निकालने और देश की संप्रभुता की रक्षा की बात भी कर रहा है। भारत इस बात को लेकर भी सतर्क है कि वह एक देश के दूसरे क्षेत्र में घुसकर सैन्य कार्रवाई के ऐक्शन का सपोर्ट भी नहीं कर सकता है। हमारे पास चीन से अलग प्रेशर है, जो हमारे भूभाग पर अवैध तरीके से दावे करता रहता है। चीन न केवल लद्दाख बल्कि पूर्वी सेक्टर में 93,000 वर्ग किमी के अरुणाचल प्रदेश के क्षेत्र को अपना बताता रहता है। पश्चिमी फ्रंट पर भारत के सामने पाकिस्तान से ऐसे ही दबाव का सामना करना पड़ता है। ऐसे में संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता की बात भारत से बेहतर भला कौन समझ सकता है। UNSC में गैरहाजिर रहकर बातचीत और डिप्लोमेसी की वकालत करते हुए भारत संप्रभुता की रक्षा की बात भी कर रहा है। भारत सभी देशों के साथ शांति, सुरक्षा और स्थिरता की भावना के साथ अपने हितों को सुरक्षित रखना चाहता है।
विपक्ष: रूस से संबंधों के फायदे पर पुनर्विचार का वक्त है
डेरेक ग्रॉसमैन यूनिवर्सिटी ऑफ साउथ कैरोलिना के सहायक प्रोफेसर और एक एनजीओ में सीनियर डिफेंस एनालिस्ट हैं। वह कहते हैं कि मॉस्को के साथ नई दिल्ली के कोल्ड वॉर के समय से संबंधों को देखें तो संयुक्त राष्ट्र में वोटिंग से भारत का अनुपस्थित रहना हैरान करने वाला नहीं था। भारत रूसी हथियारों की खरीद के लिए उसके साथ संबंधों को खुला रखना चाहता है क्योंकि सेना के पास सोवियत काल की हथियार प्रणाली हैं। चीन से मिल रही रक्षा चुनौतियों को देखते हुए भी भारत रूस के साथ संबंधों को मजबूत करना चाहता है। रूस वैसे भी कश्मीर पर भारत के रुख के समर्थन में रहता है। लेकिन हाल के वर्षों में हवाओं का रुख बदला है, ऐसे में भारत को रूस के साथ घनिष्ठ संबंधों के फायदे पर फिर से विचार करना चाहिए।
रूस-चीन में बढ़ी दोस्ती
डेरेक कहते हैं कि रूस और भारत का सबसे बड़ा दुश्मन चीन, अब मजबूत रणनीतिक साझेदारी की तरफ बढ़े हैं। यूक्रेन पर आक्रमण करने से पहले प्रेसिडेंट पुतिन ने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से बीजिंग में मुलाकात की थी। दोनों नेताओं ने रूस-चीन मित्रता को लेकर कहा था कि यह असीमित है। दूसरे शब्दों में कहें तो नई दिल्ली के मॉस्को के साथ अच्छे संबंध बीजिंग को किसी भी तरह से रोक नहीं सकते। मई 2020 में चीन ने भारत के साथ तनाव बढ़ाते हुए अपनी सेना तैनात कर दी और हाल के दशकों में पहली बार दोनों देशों के सैनिकों में झड़प हुई। रूस अब भारत के दुश्मन देशों के साथ अपने अच्छे रिश्ते बनाना चाहता है। पिछले हफ्ते जिस दिन रूस ने यूक्रेन पर हमला किया उसी समय पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान मॉस्को के दौरे पर थे। यह कोई छोटी घटना नहीं थी। पाकिस्तान का कोई पीएम 23 साल बाद रूस पहुंचा था। समझा जा रहा है कि खान की यात्रा के लिए पाकिस्तान के ‘आयरन ब्रदर’ चीन ने काफी मदद की थी। मॉस्को भी इस्लामाबाद के साथ आर्थिक और सुरक्षा सहयोग बढ़ाना चाहता है।
पाकिस्तान भी रूस की गोद में जा रहा
पाकिस्तान में इमरान की मॉस्को यात्रा की काफी चर्चा रही। इसे अमेरिका की छत्रछाया से बाहर निकलकर रूस के साथ संबंधों को मजबूत करना माना गया। ऐसे में रूस-पाकिस्तान के रिश्ते आने वाले वर्षों में मजबूत हो सकते हैं। पुतिन भी इस्लामाबाद जा सकते हैं। यह कदम भारत को कतई ठीक नहीं लगेगा। इतना ही नहीं, रूस, पाकिस्तान और चीन लगातार अफगानिस्तान पर काबिज आतंकी संगठन तालिबान के संपर्क में हैं। पाकिस्तान की शह पर आतंकियों की तरफ से भारत के खिलाफ हमलों को हवा दी जा सकती है। दरअसल, अमेरिका के अफगानिस्तान क्षेत्र से बाहर निकलने के बाद पैदा हुए स्पेस को रूस भरना चाहता है। वह तालिबान से भी संबंध बढ़ाना चाहेगा।
इधर, रूस से हथियार खरीदने के चलते अमेरिका भारत पर प्रतिबंध भी लगा सकता है। रूस के हाल के कदमों को देखते हुए भारत के लिए भी सोचने का वक्त आ गया है।