Holi 2025: बिहार की इस होली ने संजो रखी है परंपरा-सामाजिक सद्भाव की अनूठी मिसाल, बनगांव की ‘घुमौर होली’ समझें

9
Holi 2025: बिहार की इस होली ने संजो रखी है परंपरा-सामाजिक सद्भाव की अनूठी मिसाल, बनगांव की ‘घुमौर होली’ समझें

Holi 2025: बिहार की इस होली ने संजो रखी है परंपरा-सामाजिक सद्भाव की अनूठी मिसाल, बनगांव की ‘घुमौर होली’ समझें


बिहार की सांस्कृतिक धरती पर जब फाल्गुन की बयार बहती है, तो उसके साथ-साथ उमंग, उल्लास और सामाजिक समरसता की मिसाल पेश करता है सहरसा जिले का बनगांव। जहां की ‘घुमौर होली’ न सिर्फ एक पर्व है, बल्कि एक सांस्कृतिक विरासत और सामाजिक सौहार्द का जीवंत प्रतीक भी है। जिले के कहरा प्रखंड के इस ऐतिहासिक गांव की होली में कंधों पर सवार होकर खेली जाने वाली अनोखी होली देशभर के लोगों को अपनी ओर खींचती है।

यह भी पढ़ें- Holi-juma Controversy:मेयर अंजुम आरा ने जताया खेद, कहा- शांतिपूर्ण होली और जुमे की नमाज को लेकर दिया था सुझाव

 

बनगांव की होली: एक विरासत, एक परंपरा, एक पर्व

बनगांव की होली को सामान्य होली से अलग पहचान दिलाता है इसका बल प्रदर्शन और प्रेम का अनूठा संगम, जो मानव श्रृंखला के रूप में देखने को मिलता है। लोग एक-दूसरे के कंधे पर सवार होकर न केवल उत्सव मनाते हैं बल्कि यह दृश्य सामाजिक सहयोग और अपनत्व की प्रतीक तस्वीर बनकर सामने आता है। इस साल भी यह उत्सव 13 मार्च को पारंपरिक उल्लास और धार्मिक भाव से मनाया जाएगा।

 




Trending Videos

Holi 2025: Ghumour Holi of Bangaon, Bihar has preserved tradition-a unique example of social harmony

2 of 4

बनगांव की घुमौर होली
– फोटो : अमर उजाला


संत लक्ष्मीनाथ गोसाईं की परंपरा से शुरू हुआ यह उत्सव

इस अद्भुत परंपरा की शुरुआत 18वीं शताब्दी में मिथिलांचल के महान संत शिरोमणि लक्ष्मीनाथ गोसाईं द्वारा की गई थी। तब से आज तक यह होली अपने मूल स्वरूप में निरंतर आगे बढ़ती जा रही है। मान्यता है कि यह परंपरा भगवान श्रीकृष्ण के काल से ही प्रेरित है। इसका अद्वितीय स्वरूप इसे ब्रज की लठमार होली की तरह प्रसिद्ध बना चुका है।

यह भी पढ़ें- Holi 2025: “गांवों-बस्तियों में जाकर खेलें होली, इससे समरसता बढ़ेगी”, विश्व संवाद केंद्र से दिया गया यह संदेश

 

उत्सव, भक्ति और बल का अनुपम संगम

बनगांव की गलियों में जब टोली निकलती है तो शरीर पर तेल, चेहरे पर मुस्कान और हृदय में प्रेम की भावना लेकर लोग एक-दूसरे के दरवाजे पर पहुंचते हैं। पांच प्रमुख स्थलों पर खेली जाने वाली यह होली भगवती स्थान तक पहुंचती है, जहां सबसे ऊंची मानव श्रृंखला बनती है। लोग भजनों, जोगीरा और फगुआ गीतों की गूंज के साथ वातावरण को रंगों से नहीं, भावनाओं से सराबोर कर देते हैं।

 


Holi 2025: Ghumour Holi of Bangaon, Bihar has preserved tradition-a unique example of social harmony

3 of 4

बनगांव की घुमौर होली
– फोटो : अमर उजाला


हिंदू-मुस्लिम एकता का भी संदेश देती है बनगांव की होली

इस उत्सव में न जाति का भेद होता है, न धर्म का बंधन। हिंदू-मुस्लिम सभी एक साथ इस होली में सम्मिलित होते हैं, यही इसकी सबसे बड़ी विशेषता है। आईएएस, आईपीएस, सांसद, विधायक, व्यवसायी और प्रवासी ग्रामीण भी इस पर्व में भाग लेते हैं, जिससे यह उत्सव सामाजिक और सांस्कृतिक समरसता का भव्य उदाहरण बन जाता है।

 

बुजुर्गों और युवाओं का साझा उत्सव

यह होली पीढ़ियों का संगम भी है। बुजुर्ग बच्चों को कंधे पर बैठाकर सामाजिक जिम्मेदारी का पाठ पढ़ाते हैं, तो युवा बुजुर्गों को कंधे पर उठाकर आदर और उत्तरदायित्व का परिचय देते हैं। यह नजारा केवल एक परंपरा नहीं बल्कि जीवन मूल्यों की जीवंत शिक्षा बन जाता है।

 


Holi 2025: Ghumour Holi of Bangaon, Bihar has preserved tradition-a unique example of social harmony

4 of 4

बनगांव की घुमौर होली
– फोटो : अमर उजाला


इस होली में जब लोग ‘जे जीबे से खेले फाग’ और ‘होरी है…’ जैसे उद्घोष लगाते हैं, तो पूरा माहौल प्रेम, अपनत्व और एकता के रंग में रंग जाता है। यह होली किसी आडंबर या दिखावे की नहीं, समर्पण और आत्मीयता की होली है।

 

होली महोत्सव से सजीव होती है बनगांव की सांस्कृतिक विरासत

हर साल पर्यटन विभाग और जिला प्रशासन द्वारा तीन दिवसीय महोत्सव का आयोजन भी किया जाता है, जिसमें सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ बनगांव की पारंपरिक होली को सहेजने और प्रस्तुत करने का कार्य किया जाता है।


बिहार की और खबर देखने के लिए यहाँ क्लिक करे – Bihar News