Hijab Hearing Live: हिजाब पर रोक लगाने का फैसला गलत, कोई राज्य ऐसा नहीं कर सकता, हिजाब के पक्ष में वकील की दलील h3>
बेंगलुरु: हिजाब विवाद (Hijab Controversy) पर कर्नाटक हाई कोर्ट (Karnataka HC Hijab Hearing) में सुनवाई चल रही है। हाई कोर्ट में सीनियर वकील देवदत्त कामत (Devdutt Kamat) ने कुंडापुरा कॉलेज के दो स्टूडेंटस की अर्जी पर पैरवी करते हुए कहा कि सिर पर स्कार्फ लगाने से शांति व्यवस्था को कोई नुकसान नहीं हो सकता। हाई कोर्ट के आदेश के बाद सोमवार से ही राज्य में स्कूल-कॉलेज खोल दिए गए हैं। हाई कोर्ट ने अगले आदेश तक राज्य के स्कूल-कॉलेजों में हर तरह के धार्मिक पोशाक (Hijab Row Karnataka) पर रोक लगाई है। आज की सुनवाई का अपडेट जानने के लिए बने रहिए हमारे साथ…
कामत: कामत का कहना है कि शिक्षा अधिनियम में किसी छात्र को ड्रेस का पालन नहीं करने पर निष्कासित करने का कोई प्रावधान नहीं है। यदि आपको एक अतिरिक्त पोशाक के लिए निष्कासित कर दिया जाता है, तो आनुपातिकता का सिद्धांत आ जाएगा।
कामत: यह सिर पर दुपट्टा डालने और ड्रेस न बदलने की एक अहानिकर प्रथा है। यह भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का एक पहलू है। यदि सिर पर स्कार्फ पहनने के लिए छोटी छूट दी जाती है, तो यह वाक और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के अनुरूप होगा।
कामत: राज्य का कहना है कि हम एक धर्मनिरपेक्ष राज्य हैं, हम तुर्की के सैनिक नहीं हैं। हमारा संविधान सकारात्मक धर्मनिरपेक्षता प्रदान करता है और सभी धर्मों को मान्यता दी जानी चाहिए।
कामत: अगर राज्य कहता है कि अगर कोई सिर पर दुपट्टा पहनता है और इससे गलता होगा, तो हम इसकी अनुमति नहीं दे सकते, यह एक अनुचित तर्क है।
कामत ने न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ द्वारा लिखित उच्चतम न्यायालय के फैसले का उदाहरण दिया जिसमें बढ़ती असहिष्णुता के बारे में उल्लेख किया गया है।
कामत: राज्य एक सरल तर्क नहीं दे सकता है कि सार्वजनिक व्यवस्था बाधित है और उसे अधिकारों का आनंद लेने के लिए एक सकारात्मक वातावरण बनाना है।
कामत अब इस मुद्दे पर कि क्या यहां सार्वजनिक व्यवस्था लागू की जा सकती है।
कामत: कल मैं इस बात पर था कि राज्य यह नहीं कह सकता कि सार्वजनिक व्यवस्था भंग होगी…
कामत का कहना है कि वह कनाडा के फैसले का हवाला देना चाहते हैं।
चीफ जस्टिस: ये निर्णय इस मामले के मुद्दों के लिए कैसे प्रासंगिक हैं? हम अपने संविधान का पालन करते हैं।
कामत ने अब बताया कि कैसे साउथ अफ्रीका के कोर्ट ने स्कूल के इस तर्क को खारिज कर दिया कि नाक-स्टड की अनुमति देने से शरीर-छेदने और अन्य भयानक परेड के दावों की अनुमति मिल जाएगी। कोर्ट ने कहा कि स्कूल अपने धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व को समझने में विफल रहा है और उनका अनादर है।
कामत: प्रधान न्यायाधीश ने मुझसे यही पूछा कि क्या उन्होंने सिर पर स्कार्फ़ बांधा है? हां, उन्होंने पहन रखा है और छात्र स्कूल के अनुशासन का पालन कर रहे थे।
दक्षिण अफ़्रीकी अदालत ने कहा कि सुनाली ने दो साल से नाक-स्टड पहने हुए थे और स्कूल के अनुशासन पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं डाला।
कामत साउथ अफ्रीका के फैसले के बारे में बताते हैं। कोर्ट ने इस सवाल पर विचार किया कि क्या सुनाली पर स्टड के महत्व को देखते हुए उसे स्टड पहनने की अनुमति देना स्कूल पर बहुत अधिक बोझ डालेगा।
देवदत्त कामत- सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार यदि कोई धार्मिक प्रथा घृणित है तो राज्य सार्वजनिक व्यवस्था, स्वास्थ्य या नैतिकता के आधार पर उसे रोक सकता है। लेकिन यह मामला अलग है। सिर पर स्कार्फ पहनने से कोई नुकसान नहीं हो सकता। कर्नाटक शिक्षा अधिनियम में संविधान की धारा 25 के तहत गारंटीकृत अधिकारों पर अंकुश लगाने का कोई इरादा नहीं था। ड्रेस कोड पर 5 फरवरी का सार्वजनिक आदेश औचित्यहीन है, जो हिजाब पहनने पर प्रतिबंध लगाने का प्रयास करता है।
देवदत्त कामत- राज्य का कहना है कि सरकारी आदेश में शब्द सावरजनिक सुव्यवस्ते का अर्थ सार्वजनिक व्यवस्था नहीं है। संविधान का आधिकारिक कन्नड़ अनुवाद सार्वजनिक व्यवस्था के लिए सार्वजनिक सुव्यवस्थ शब्द का उपयोग करता है। मुझे आश्चर्य है कि राज्य ने यह तर्क दिया।
जस्टिस कृष्ण दीक्षित- एक सरकारी आदेश में इस्तेमाल किए गए शब्दों को एक कानून के शब्दों की तरह नहीं पढ़ा जा सकता है।
देवदत्त कामत- मैं आदरपूर्वक मानता हूं कि सरकारी आदेश में लिखे गए सार्वजनिक सुव्यवस्थ का दो अर्थ नहीं बनता है और इसका मतलब सार्वजनिक व्यवस्था ही है।
एडवोकेट मोहम्मद ताहिर- अदालत के आदेश का दुरुपयोग हो रहा है। मुस्लिम छात्राओं से जबरन हिजाब उतरवाया जा रहा है। गुलबर्गा के एक उर्दू स्कूल में अधिकारियों ने शिक्षकों और मुस्लिम छात्राओं पर जोर-जबरदस्ती डालते हुए हिजाब उतारने को कहा। अधिकारियों की ओर से हाई कोर्ट के आदेश का गलत इस्तेमाल हो रहा है। मैंने सारी मीडिया रिपोर्ट को कोर्ट में पेश कर दिया है।
चीफ जस्टिस- हम इस पर सभी की राय जानने के बाद निर्देश जारी करेंगे।
एडवोकेट जनरल- हलफनामा स्पष्ट नहीं है। वे उचित अप्लीकेशन लेकर आएं फिर हम जवाब देंगे। हलफनामा किसी याचिकाकर्ता की ओर से नहीं फाइल किया गया है।
चीफ जस्टिस- हलफनामा किसने फाइल किया है?
एडवोकेट मोहम्मद ताहिर- हलफनामा मैंने फाइल किया है।
चीफ जस्टिल- वकील हलफनामा नहीं दाखिल कर सकता। यह मिसकंडक्ट है।
हिजाब विवाद पर फुल बेंच में सुनवाई शुरू
दोपहर ढाई बजेके बाद कर्नाटक हाई कोर्ट में हिजाब मामले पर सुनवाई शुरू हुई। चीफ जस्टिस रितुराज अवस्थी, जस्टिस कृष्ण एस दीक्षित और और जस्टिस जेएम खाजी की तीन सदस्यीय फुल बेंच हिजाब मामले में सुनवाई कर रही है।
संविधान के आर्टिकल 14, 19 और 25 का कोर्ट में हवाला
सोमवार को छात्राओं के वकील देवदत्त कामत ने हिजाब के पक्ष में तमाम दलीलें रखीं। कामत ने अदालत में कहा कि हिजाब पहनना इस्लाम में जरूरी धार्मिक प्रथा है। संविधान में हर को आर्टिकल 14, 19 और 25 के तहत जो अधिकार दिए गए हैं, राज्य सरकार को उसमें दखल देने का कोई अधिकार नहीं है।
हिजाब पर सरकारी आदेश अवैध: छात्राओं के वकील
सोमवार को हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता कामत ने कोर्ट को बताया कि एक सरकारी आदेश में कहा गया है कि हिजाब पहनना अनुच्छेद 25 का हिस्सा नहीं है और इस पर फैसला कॉलेज विकास समिति पर छोड़ा है। उन्होंने इसे पूरी तरह से अवैध बताया। वकील ने हिजाब विवाद पर मीडिया और सोशल मीडिया पर हो रही टिप्पणियों बैन लगाने का आदेश मांगा।नकोर्ट ने कहा कि वह मीडिया को प्रतिबंधित नहीं कर सकता।
कहां से शुरू हुआ विवाद
हिजाब विवाद की शुरुआत हुई देश की राजधानी नई दिल्ली से लगभग 2 हजार किलोमीटर दूर कर्नाटक के उडुपी जिले से। अक्टूबर 2021 में सरकारी पीयू कॉलेज की कुछ छात्राओं ने हिजाब पहनने की मांग शुरू कर दी। इसके बाद 31 दिसंबर को छह छात्राओं को हिजाब पहनने के कारण कॉलेज में नहीं जाने दिया गया। छात्राओं ने कॉलेज के बाहर प्रदर्शन शुरू कर दिया।
कॉलेज प्रशासन ने 19 जनवरी 2022 को छात्राओं, उनके माता-पिता और अधिकारियों के साथ बैठक की थी। लेकिन इस बैठक का कोई परिणाम नहीं निकला था। इसके बाद 26 जनवरी को एक बार फिर बैठक की। उडुपी के विधायक रघुपति भट ने कहा कि जो छात्राएं बिना हिजाब के स्कूल नहीं आ सकती हैं वो ऑनलाइन पढ़ाई करें। तीन फरवरी को पीयू कॉलेज में हिजाब पहनकर आने वाली छात्राओं को फिर से रोका गया। इसके बाद पांच फरवरी को कांग्रेस पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी हिजाब पहनकर स्कूल आने वाली मुस्लिम छात्राओं के समर्थन में आए। छात्राओं ने कर्नाटक हाई कोर्ट को दरवाजा खटखटाया।
पांच फरवरी को यूनिफॉर्म का आदेश जारी हुआ
पांच फरवरी को राज्य सरकार ने कर्नाटक शिक्षा अधिनियम 1983 की धारा 133(2) लागू कर दी। इसके अनुसार सभी छात्र-छात्राओं के लिए कॉलेज में तय यूनिफॉर्म पहनना अनिवार्य कर दिया गया। यह आदेश सरकारी और निजी, दोनों कॉलेजों पर लागू किया गया। कई राजनीतिक दलों ने राज्य सरकार के इस फैसले की आलोचना भी की।
आठ फरवरी को विवाद ने ले लिया हिंसक रूप
आठ फरवरी को विवाद ने हिंसक रूप से लिया। कर्नाटक में कई जगहों पर झड़पें हुईं। कई जगहों से पथराव की खबरें भी सामने आईं। शिवमोगा का एक वीडियो सामने आया जिसमें एक कॉलेज छात्र तिरंगे के पोल पर भगवा झंडा लगा रहा था। मांड्या में बुरका पहने हुई एक लड़की के साथ अभद्रता की गई। फिलहाल यह मामला हाईकोर्ट में है।
हिजाब बनाम भगवा शॉल
उडुपी जिले के एमजीएम कॉलेज में हिजाब और भगवा की लड़ाई शुरू हो गई। कुछ हिजाब पहने छात्राएं कॉलेज में पहले आईं। दूसरा पक्ष भगवा पगड़ी और शॉल डालकर कॉलेज आया।
हाईकोर्ट की बड़ी बेंच के पास भेजा गया मामला
हाईकोर्ट में गुरुवार (10 फरवरी) को जस्टिस कृष्णा दीक्षित की एकल पीठ ने मामले को बड़ी बेंच के पास भेज दिया है। इससे पहले मंगलवार (8 फरवरी) को हाई कोर्ट ने पहली सुनवाई की। सीएम बसवराज बोम्मई ने राज्य में सभी हाईस्कूलों और कॉलेजों को तीन दिनों के लिए बंद करने का आदेश जारी किया था। उन्होंने छात्रों और स्कूल-कॉलेज प्रबंधन से शांति बनाए रखने की अपील की थी।
हिजाब विवाद पर तुरंत सुनवाई से सुप्रीम कोर्ट का इनकार
हिजाब विवाद का मसला शुक्रवार 11 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट भी पहुंचा, जहां शीर्ष अदालत ने इस मामले में तुरंत सुनवाई से इनकार कर दिया। कोर्ट ने कहा कि मामले की सुनवाई ‘उचित समय’ पर की जाएगी।
हिजाब को लेकर प्रदेश सरकार का क्या मत है?
इस मामले के तूल पकड़ने के बाद सीएम बसावराज बोम्मई और माध्यमिक शिक्षा मंत्री बीवी नागेश ने एडवोकेट जनरल के साथ बैठक की। इसके बाद मंत्री बीवी नागेश ने कहा कि मामला पहले ही हाई कोर्ट के समक्ष है और सरकार फैसले का इंतजार कर रही है। तब तक सभी स्कूल और कॉलेजों को अपना यूनिफॉर्म कोड फॉलो करना चाहिए। उन्होंने कहा कि कर्नाटक एजुकेशन ऐक्ट के तहत सभी शैक्षिक संस्थानों को अपना यूनिफॉर्म तय करने का अधिकार दिया गया है। शर्त बस इतनी है कि यूनिफॉर्म कोड की घोषणा सत्र शुरू होने से काफी पहले करनी होगी और उसमें पांच साल तक बदलाव नहीं होना चाहिए।
Karnataka Hijab Ban: ‘हिजाब का काम खूबसूरती छुपाना, ये नहीं होता तभी होते हैं रेप’, कांग्रेस नेता के बेतुके बोल
हिजाब के पक्ष में छात्राओं का क्या तर्क है?
उडुपी कॉलेज में हिजाब के पक्ष में प्रदर्शन कर रहीं छात्राओं का कहना है कि उन्होंने बीते साल दिसंबर में ही हिजाब पहनना शुरू किया था। कॉलेज ज्वाइन करते वक्त उन्हें लगा था कि उनके अभिभावकों ने हिजाब न पहनने को लेकर कोई फॉर्म साइन किया है, इस वजह से वो हिजाब नहीं पहनती थीं। हालांकि, जो फॉर्म इन छात्राओं के पेरेंट्स ने साइन किया था उसमें हिजाब का कोई जिक्र नहीं था।
छात्राओं का ये भी कहना है कि कॉलेज में बीते साल हिंदू त्योहार मनाए गए थे। हिंदू लड़कियों को बिंदी लगाने से नहीं रोका जाता है, तो फिर मुस्लिम लड़कियों को हिजाब पहनने से क्यों रोका जा रहा है? छात्राओं का कहना है कि दो महीने में उनकी परीक्षाएं शुरू हो जाएंगी, उन्हें उसकी भी तैयारियां करनी हैं। लेकिन फिलहाल तो उन्हें पढ़ने से ही रोका जा रहा है।
कर्नाटक हिजाब
कामत: यह सिर पर दुपट्टा डालने और ड्रेस न बदलने की एक अहानिकर प्रथा है। यह भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का एक पहलू है। यदि सिर पर स्कार्फ पहनने के लिए छोटी छूट दी जाती है, तो यह वाक और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के अनुरूप होगा।
कामत: राज्य का कहना है कि हम एक धर्मनिरपेक्ष राज्य हैं, हम तुर्की के सैनिक नहीं हैं। हमारा संविधान सकारात्मक धर्मनिरपेक्षता प्रदान करता है और सभी धर्मों को मान्यता दी जानी चाहिए।
कामत: अगर राज्य कहता है कि अगर कोई सिर पर दुपट्टा पहनता है और इससे गलता होगा, तो हम इसकी अनुमति नहीं दे सकते, यह एक अनुचित तर्क है।
कामत ने न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ द्वारा लिखित उच्चतम न्यायालय के फैसले का उदाहरण दिया जिसमें बढ़ती असहिष्णुता के बारे में उल्लेख किया गया है।
कामत: राज्य एक सरल तर्क नहीं दे सकता है कि सार्वजनिक व्यवस्था बाधित है और उसे अधिकारों का आनंद लेने के लिए एक सकारात्मक वातावरण बनाना है।
कामत अब इस मुद्दे पर कि क्या यहां सार्वजनिक व्यवस्था लागू की जा सकती है।
कामत: कल मैं इस बात पर था कि राज्य यह नहीं कह सकता कि सार्वजनिक व्यवस्था भंग होगी…
कामत का कहना है कि वह कनाडा के फैसले का हवाला देना चाहते हैं।
चीफ जस्टिस: ये निर्णय इस मामले के मुद्दों के लिए कैसे प्रासंगिक हैं? हम अपने संविधान का पालन करते हैं।
कामत ने अब बताया कि कैसे साउथ अफ्रीका के कोर्ट ने स्कूल के इस तर्क को खारिज कर दिया कि नाक-स्टड की अनुमति देने से शरीर-छेदने और अन्य भयानक परेड के दावों की अनुमति मिल जाएगी। कोर्ट ने कहा कि स्कूल अपने धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व को समझने में विफल रहा है और उनका अनादर है।
कामत: प्रधान न्यायाधीश ने मुझसे यही पूछा कि क्या उन्होंने सिर पर स्कार्फ़ बांधा है? हां, उन्होंने पहन रखा है और छात्र स्कूल के अनुशासन का पालन कर रहे थे।
दक्षिण अफ़्रीकी अदालत ने कहा कि सुनाली ने दो साल से नाक-स्टड पहने हुए थे और स्कूल के अनुशासन पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं डाला।
कामत साउथ अफ्रीका के फैसले के बारे में बताते हैं। कोर्ट ने इस सवाल पर विचार किया कि क्या सुनाली पर स्टड के महत्व को देखते हुए उसे स्टड पहनने की अनुमति देना स्कूल पर बहुत अधिक बोझ डालेगा।
देवदत्त कामत- सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार यदि कोई धार्मिक प्रथा घृणित है तो राज्य सार्वजनिक व्यवस्था, स्वास्थ्य या नैतिकता के आधार पर उसे रोक सकता है। लेकिन यह मामला अलग है। सिर पर स्कार्फ पहनने से कोई नुकसान नहीं हो सकता। कर्नाटक शिक्षा अधिनियम में संविधान की धारा 25 के तहत गारंटीकृत अधिकारों पर अंकुश लगाने का कोई इरादा नहीं था। ड्रेस कोड पर 5 फरवरी का सार्वजनिक आदेश औचित्यहीन है, जो हिजाब पहनने पर प्रतिबंध लगाने का प्रयास करता है।
देवदत्त कामत- राज्य का कहना है कि सरकारी आदेश में शब्द सावरजनिक सुव्यवस्ते का अर्थ सार्वजनिक व्यवस्था नहीं है। संविधान का आधिकारिक कन्नड़ अनुवाद सार्वजनिक व्यवस्था के लिए सार्वजनिक सुव्यवस्थ शब्द का उपयोग करता है। मुझे आश्चर्य है कि राज्य ने यह तर्क दिया।
जस्टिस कृष्ण दीक्षित- एक सरकारी आदेश में इस्तेमाल किए गए शब्दों को एक कानून के शब्दों की तरह नहीं पढ़ा जा सकता है।
देवदत्त कामत- मैं आदरपूर्वक मानता हूं कि सरकारी आदेश में लिखे गए सार्वजनिक सुव्यवस्थ का दो अर्थ नहीं बनता है और इसका मतलब सार्वजनिक व्यवस्था ही है।
एडवोकेट मोहम्मद ताहिर- अदालत के आदेश का दुरुपयोग हो रहा है। मुस्लिम छात्राओं से जबरन हिजाब उतरवाया जा रहा है। गुलबर्गा के एक उर्दू स्कूल में अधिकारियों ने शिक्षकों और मुस्लिम छात्राओं पर जोर-जबरदस्ती डालते हुए हिजाब उतारने को कहा। अधिकारियों की ओर से हाई कोर्ट के आदेश का गलत इस्तेमाल हो रहा है। मैंने सारी मीडिया रिपोर्ट को कोर्ट में पेश कर दिया है।
चीफ जस्टिस- हम इस पर सभी की राय जानने के बाद निर्देश जारी करेंगे।
एडवोकेट जनरल- हलफनामा स्पष्ट नहीं है। वे उचित अप्लीकेशन लेकर आएं फिर हम जवाब देंगे। हलफनामा किसी याचिकाकर्ता की ओर से नहीं फाइल किया गया है।
चीफ जस्टिस- हलफनामा किसने फाइल किया है?
एडवोकेट मोहम्मद ताहिर- हलफनामा मैंने फाइल किया है।
चीफ जस्टिल- वकील हलफनामा नहीं दाखिल कर सकता। यह मिसकंडक्ट है।
हिजाब विवाद पर फुल बेंच में सुनवाई शुरू
दोपहर ढाई बजेके बाद कर्नाटक हाई कोर्ट में हिजाब मामले पर सुनवाई शुरू हुई। चीफ जस्टिस रितुराज अवस्थी, जस्टिस कृष्ण एस दीक्षित और और जस्टिस जेएम खाजी की तीन सदस्यीय फुल बेंच हिजाब मामले में सुनवाई कर रही है।
संविधान के आर्टिकल 14, 19 और 25 का कोर्ट में हवाला
सोमवार को छात्राओं के वकील देवदत्त कामत ने हिजाब के पक्ष में तमाम दलीलें रखीं। कामत ने अदालत में कहा कि हिजाब पहनना इस्लाम में जरूरी धार्मिक प्रथा है। संविधान में हर को आर्टिकल 14, 19 और 25 के तहत जो अधिकार दिए गए हैं, राज्य सरकार को उसमें दखल देने का कोई अधिकार नहीं है।
हिजाब पर सरकारी आदेश अवैध: छात्राओं के वकील
सोमवार को हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता कामत ने कोर्ट को बताया कि एक सरकारी आदेश में कहा गया है कि हिजाब पहनना अनुच्छेद 25 का हिस्सा नहीं है और इस पर फैसला कॉलेज विकास समिति पर छोड़ा है। उन्होंने इसे पूरी तरह से अवैध बताया। वकील ने हिजाब विवाद पर मीडिया और सोशल मीडिया पर हो रही टिप्पणियों बैन लगाने का आदेश मांगा।नकोर्ट ने कहा कि वह मीडिया को प्रतिबंधित नहीं कर सकता।
कहां से शुरू हुआ विवाद
हिजाब विवाद की शुरुआत हुई देश की राजधानी नई दिल्ली से लगभग 2 हजार किलोमीटर दूर कर्नाटक के उडुपी जिले से। अक्टूबर 2021 में सरकारी पीयू कॉलेज की कुछ छात्राओं ने हिजाब पहनने की मांग शुरू कर दी। इसके बाद 31 दिसंबर को छह छात्राओं को हिजाब पहनने के कारण कॉलेज में नहीं जाने दिया गया। छात्राओं ने कॉलेज के बाहर प्रदर्शन शुरू कर दिया।
कॉलेज प्रशासन ने 19 जनवरी 2022 को छात्राओं, उनके माता-पिता और अधिकारियों के साथ बैठक की थी। लेकिन इस बैठक का कोई परिणाम नहीं निकला था। इसके बाद 26 जनवरी को एक बार फिर बैठक की। उडुपी के विधायक रघुपति भट ने कहा कि जो छात्राएं बिना हिजाब के स्कूल नहीं आ सकती हैं वो ऑनलाइन पढ़ाई करें। तीन फरवरी को पीयू कॉलेज में हिजाब पहनकर आने वाली छात्राओं को फिर से रोका गया। इसके बाद पांच फरवरी को कांग्रेस पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी हिजाब पहनकर स्कूल आने वाली मुस्लिम छात्राओं के समर्थन में आए। छात्राओं ने कर्नाटक हाई कोर्ट को दरवाजा खटखटाया।
पांच फरवरी को यूनिफॉर्म का आदेश जारी हुआ
पांच फरवरी को राज्य सरकार ने कर्नाटक शिक्षा अधिनियम 1983 की धारा 133(2) लागू कर दी। इसके अनुसार सभी छात्र-छात्राओं के लिए कॉलेज में तय यूनिफॉर्म पहनना अनिवार्य कर दिया गया। यह आदेश सरकारी और निजी, दोनों कॉलेजों पर लागू किया गया। कई राजनीतिक दलों ने राज्य सरकार के इस फैसले की आलोचना भी की।
आठ फरवरी को विवाद ने ले लिया हिंसक रूप
आठ फरवरी को विवाद ने हिंसक रूप से लिया। कर्नाटक में कई जगहों पर झड़पें हुईं। कई जगहों से पथराव की खबरें भी सामने आईं। शिवमोगा का एक वीडियो सामने आया जिसमें एक कॉलेज छात्र तिरंगे के पोल पर भगवा झंडा लगा रहा था। मांड्या में बुरका पहने हुई एक लड़की के साथ अभद्रता की गई। फिलहाल यह मामला हाईकोर्ट में है।
हिजाब बनाम भगवा शॉल
उडुपी जिले के एमजीएम कॉलेज में हिजाब और भगवा की लड़ाई शुरू हो गई। कुछ हिजाब पहने छात्राएं कॉलेज में पहले आईं। दूसरा पक्ष भगवा पगड़ी और शॉल डालकर कॉलेज आया।
हाईकोर्ट की बड़ी बेंच के पास भेजा गया मामला
हाईकोर्ट में गुरुवार (10 फरवरी) को जस्टिस कृष्णा दीक्षित की एकल पीठ ने मामले को बड़ी बेंच के पास भेज दिया है। इससे पहले मंगलवार (8 फरवरी) को हाई कोर्ट ने पहली सुनवाई की। सीएम बसवराज बोम्मई ने राज्य में सभी हाईस्कूलों और कॉलेजों को तीन दिनों के लिए बंद करने का आदेश जारी किया था। उन्होंने छात्रों और स्कूल-कॉलेज प्रबंधन से शांति बनाए रखने की अपील की थी।
हिजाब विवाद पर तुरंत सुनवाई से सुप्रीम कोर्ट का इनकार
हिजाब विवाद का मसला शुक्रवार 11 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट भी पहुंचा, जहां शीर्ष अदालत ने इस मामले में तुरंत सुनवाई से इनकार कर दिया। कोर्ट ने कहा कि मामले की सुनवाई ‘उचित समय’ पर की जाएगी।
हिजाब को लेकर प्रदेश सरकार का क्या मत है?
इस मामले के तूल पकड़ने के बाद सीएम बसावराज बोम्मई और माध्यमिक शिक्षा मंत्री बीवी नागेश ने एडवोकेट जनरल के साथ बैठक की। इसके बाद मंत्री बीवी नागेश ने कहा कि मामला पहले ही हाई कोर्ट के समक्ष है और सरकार फैसले का इंतजार कर रही है। तब तक सभी स्कूल और कॉलेजों को अपना यूनिफॉर्म कोड फॉलो करना चाहिए। उन्होंने कहा कि कर्नाटक एजुकेशन ऐक्ट के तहत सभी शैक्षिक संस्थानों को अपना यूनिफॉर्म तय करने का अधिकार दिया गया है। शर्त बस इतनी है कि यूनिफॉर्म कोड की घोषणा सत्र शुरू होने से काफी पहले करनी होगी और उसमें पांच साल तक बदलाव नहीं होना चाहिए।
Karnataka Hijab Ban: ‘हिजाब का काम खूबसूरती छुपाना, ये नहीं होता तभी होते हैं रेप’, कांग्रेस नेता के बेतुके बोल
हिजाब के पक्ष में छात्राओं का क्या तर्क है?
उडुपी कॉलेज में हिजाब के पक्ष में प्रदर्शन कर रहीं छात्राओं का कहना है कि उन्होंने बीते साल दिसंबर में ही हिजाब पहनना शुरू किया था। कॉलेज ज्वाइन करते वक्त उन्हें लगा था कि उनके अभिभावकों ने हिजाब न पहनने को लेकर कोई फॉर्म साइन किया है, इस वजह से वो हिजाब नहीं पहनती थीं। हालांकि, जो फॉर्म इन छात्राओं के पेरेंट्स ने साइन किया था उसमें हिजाब का कोई जिक्र नहीं था।
छात्राओं का ये भी कहना है कि कॉलेज में बीते साल हिंदू त्योहार मनाए गए थे। हिंदू लड़कियों को बिंदी लगाने से नहीं रोका जाता है, तो फिर मुस्लिम लड़कियों को हिजाब पहनने से क्यों रोका जा रहा है? छात्राओं का कहना है कि दो महीने में उनकी परीक्षाएं शुरू हो जाएंगी, उन्हें उसकी भी तैयारियां करनी हैं। लेकिन फिलहाल तो उन्हें पढ़ने से ही रोका जा रहा है।
कर्नाटक हिजाब