Hijab Controversy HC Hearing: चूड़ी-बिंदी, रुद्राक्ष, क्रॉस…हिजाब विवाद पर सुनवाई के 4 दिन और 10 दलीलें h3>
बेंगलुरु: कर्नाटक हाई कोर्ट में हिजाब विवाद (Karnataka Hijab Controversy) पर सुनवाई के चार दिन हो गए हैं। चीफ जस्टिस रितुराज अवस्थी की फुल बेंच (Hijab Row HC Hearing) इस मामले में सुनवाई कर रही है। मुस्लिम छात्राओं के वकीलों की तरफ से हिजाब के पक्ष (Hijab Argument) में तमाम दलीलें दी जा रही हैं। बुधवार को वकील रविवर्मा कुमार ने कहा कि लोग तमाम धार्मिक प्रतीक जैसे लॉकेट, क्रॉस, चूड़ी-बिंदी और पगड़ी पहनते हैं। लेकिन सरकारी आदेश में सिर्फ हिजाब (Hijab Ban in Karnataka) पर ही सवाल क्यों उठ रहा है? चार दिन की सुनवाई में 10 अहम दलीलें क्या दी गईं, आइए आपको बताते हैं…
1- वकील रविवर्मा कुमार-मैं समाज के सभी तबकों में धार्मिक चिह्नों की विविधता के बारे में बता रहा हूं। सरकार सिर्फ हिजाब के पीछे क्यों पड़ी है और ऐसा शत्रुतापूर्ण भेदभाव क्यों कर रही है। क्या चूड़ियां धार्मिक प्रतीक नहीं हैं? सरकार अकेले हिजाब को क्यों मुद्दा बना रही है। चूड़ी पहने हिंदू लड़कियों और क्रॉस पहनने वाली ईसाई लड़कियों को स्कूल से बाहर नहीं भेजा जाता है। इस तरह की समिति (कॉलेज विकास समिति) का गठन हमारे लोकतंत्र को मौत का झटका देता है।
2- वकील रविवर्मा कुमार– मुस्लिम लड़कियों के खिलाफ पूरी तरह से धार्मिक आधार पर भेदभाव हुआ है। शासनादेश में किसी अन्य धार्मिक चिह्न पर कुछ नहीं कहा गया है। सिर्फ हिजाब ही क्यों? क्या यह उनके धर्म के कारण नहीं है? मुस्लिम लड़कियों के साथ भेदभाव विशुद्ध रूप से धर्म पर आधारित है। यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15 का उल्लंघन है। हमारी कोई सुनवाई नहीं होती है, सीधे सजा सुनाई जाती है। यह कठोर रवैया है।
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3- वकील रविवर्मा कुमार-कर्नाटक एजुकेशन ऐक्ट के नियम 11 के मुताबिक स्कूल-कॉलेजों को स्टूडेंट्स के माता-पिता को ड्रेस बदलने के लिए एक साल का अग्रिम नोटिस देना चाहिए। अगर हिजाब पर बैन लगाना था तो नोटिस एक साल पहले दिया जाना चाहिए था। एक तथ्य पर ध्यान देना बहुत जरूरी है कि कॉलेज विकास परिषद (CDC) एक प्राधिकरण नहीं है जो नियमों के तहत स्थापित या मान्यता प्राप्त है। सरकारी आदेश में घोषित किया गया है कि पीयू कॉलेजों के लिए कोई तय यूनिफॉर्म नहीं है। न तो एजुकेशन ऐक्ट के प्रावधान और न ही नियम कोई ड्रेस निर्धारित करते हैं। न तो कानून के तहत और न ही नियमों के तहत हिजाब पहनने पर प्रतिबंध है।
4- वकील यूसुफ मुच्छल-धर्म के अभिन्न अंग के बारे में सवाल तब उठता है जब अनुच्छेद 26 के तहत एक संप्रदाय की ओर से अधिकार का दावा किया जाता है, न कि तब जब कोई व्यक्ति अनुच्छेद 25 के तहत अंतरात्मा की स्वतंत्रता का दावा कर रहा हो।
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5- वकील यूसुफ मुच्छल-स्कूल में किसी तरह की परेशानी से बचने के लिए पीटीए कमेटी का गठन किया गया, उनसे सलाह नहीं ली गई। निष्पक्षता के लिए जरूरी है कि नोटिस दिया जाना चाहिए। पीटीए कमेटी से परामर्श क्यों नहीं लिया गया? ऐसी क्या जल्दी थी? जब से उन्होंने स्कूलों में प्रवेश लिया तब से पहनने की प्रथा थी। बदलने की क्या जल्दी थी? स्टूडेंट्स इसी जल्दबाजी का विरोध कर रहे हैं। वे किसी भी धार्मिक अधिकार का दावा नहीं कर रहे हैं। लेकिन सिर्फ लड़कियों का विरोध हो रहा है। क्या यह निष्पक्षता है? दोनों पक्षों को सुना जाना चाहिए था और समाधान निकाला जाना चाहिए था। यह जाहिर तौर पर मनमानी का आधार है।
6- वकील यूसुफ मुच्छल-कर्नाटक सरकार का शासनादेश (जीओ) साफ तौर से मनमानी है। मैं शायरा बानो (ट्रिपल तालक केस) से तीन पैराग्राफ का जिक्र करूंगा और दिखाऊंगा कि कैसे लड़कियों को हेडस्कार्फ पहनने से रोकने वाला यह शासनादेश स्पष्ट रूप से मनमाना है।
7- वकील देवदत्त कामत-जब मैं स्कूल और कॉलेज में पढ़ता था तो रुद्राक्ष पहनता था। यह मेरी धार्मिक पहचान को दिखाने के लिए नहीं था। यह एक तरह से भरोसे का प्रतीक था क्योंकि इसने मुझे सुरक्षा प्रदान की। हम कई जज और सीनियर वकीलों को भी तमाम चीजें पहने हुए देखते हैं। इसका मुकाबला करने के लिए यदि कोई शॉल पहनता है तो आपको यह दिखाना होगा कि यह केवल धार्मिक पहचान का प्रदर्शन है या कुछ और है। यदि इसे हिंदू धर्म में हमारे वेदों या उपनिषदों ने मान्यता दी है तो अदालत इसकी रक्षा करने के लिए बाध्य है।
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8- वकील देवदत्त कामत-हम एक धर्मनिरपेक्ष राज्य हैं, हम तुर्की के सैनिक नहीं हैं। हमारे देश का संविधान सकारात्मक धर्मनिरपेक्षता का पालन करता है। यह तुर्की के धर्मनिरपेक्षता की तरह नहीं है। वह नकारात्मक धर्मनिरपेक्षता है। हमारी धर्मनिरपेक्षता सुनिश्चित करती है कि सभी के धार्मिक अधिकारों की रक्षा की जाए। यह आदेश वास्तव में संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों को निलंबित करता है। कृपया इस अंतरिम आदेश को जारी न रखें। मैं यह कहने का साहस करता हूं कि जिस व्यक्ति ने इस जीओ (शासनादेश) का मसौदा तैयार किया है, उसने संविधान के अनुच्छेद 25 को नहीं देखा है।
9- वकील देवदत्त कामत-अगर पवित्र कुरान के इस्लामी ग्रंथ कहते हैं कि यह प्रथा अनिवार्य है तो अदालतों को इसकी इजाजत देनी होगी। शायरा बानो मामले में सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक प्रथा को कुरान द्वारा मंजूरी नहीं दी थी। आखिरी दलील जो मैं देना चाहता हूं, वह यह है कि मुझे ईआरपी में बिल्कुल भी गहराई तक जाने की जरूरत नहीं है। क्योंकि ईआरपी सिद्धांत तब आता है जब धर्म के मौलिक अधिकारों का अभ्यास किसी और के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है। सिर पर दुपट्टे के संबंध में कुरान में ही ऐसा कहा गया है, इसलिए हमें किसी अन्य अधिकार के पास जाने की आवश्यकता नहीं है और यह संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत संरक्षित होगा।
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10- वकील संजय हेगड़े-1983 के कर्नाटक एजुकेशन ऐक्ट में ड्रेस या यूनिफॉर्म के बारे में कोई विशेष प्रावधान नहीं हैं। जब हम यूनिवर्सिटी में पढ़ते थे तब भी कोई यूनिफॉर्म नहीं होती थी। पहले के दिनों में यूनिफॉर्म सिर्फ स्कूल में होती थी। ड्रेस बहुत बाद में आई। कॉलेजों में यूनिफॉर्म का प्रचलन काफी बाद में शुरू हुआ।
हिजाब विवाद पर हाई कोर्ट में चल रही है सुनवाई
1- वकील रविवर्मा कुमार-मैं समाज के सभी तबकों में धार्मिक चिह्नों की विविधता के बारे में बता रहा हूं। सरकार सिर्फ हिजाब के पीछे क्यों पड़ी है और ऐसा शत्रुतापूर्ण भेदभाव क्यों कर रही है। क्या चूड़ियां धार्मिक प्रतीक नहीं हैं? सरकार अकेले हिजाब को क्यों मुद्दा बना रही है। चूड़ी पहने हिंदू लड़कियों और क्रॉस पहनने वाली ईसाई लड़कियों को स्कूल से बाहर नहीं भेजा जाता है। इस तरह की समिति (कॉलेज विकास समिति) का गठन हमारे लोकतंत्र को मौत का झटका देता है।
2- वकील रविवर्मा कुमार– मुस्लिम लड़कियों के खिलाफ पूरी तरह से धार्मिक आधार पर भेदभाव हुआ है। शासनादेश में किसी अन्य धार्मिक चिह्न पर कुछ नहीं कहा गया है। सिर्फ हिजाब ही क्यों? क्या यह उनके धर्म के कारण नहीं है? मुस्लिम लड़कियों के साथ भेदभाव विशुद्ध रूप से धर्म पर आधारित है। यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15 का उल्लंघन है। हमारी कोई सुनवाई नहीं होती है, सीधे सजा सुनाई जाती है। यह कठोर रवैया है।
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3- वकील रविवर्मा कुमार-कर्नाटक एजुकेशन ऐक्ट के नियम 11 के मुताबिक स्कूल-कॉलेजों को स्टूडेंट्स के माता-पिता को ड्रेस बदलने के लिए एक साल का अग्रिम नोटिस देना चाहिए। अगर हिजाब पर बैन लगाना था तो नोटिस एक साल पहले दिया जाना चाहिए था। एक तथ्य पर ध्यान देना बहुत जरूरी है कि कॉलेज विकास परिषद (CDC) एक प्राधिकरण नहीं है जो नियमों के तहत स्थापित या मान्यता प्राप्त है। सरकारी आदेश में घोषित किया गया है कि पीयू कॉलेजों के लिए कोई तय यूनिफॉर्म नहीं है। न तो एजुकेशन ऐक्ट के प्रावधान और न ही नियम कोई ड्रेस निर्धारित करते हैं। न तो कानून के तहत और न ही नियमों के तहत हिजाब पहनने पर प्रतिबंध है।
4- वकील यूसुफ मुच्छल-धर्म के अभिन्न अंग के बारे में सवाल तब उठता है जब अनुच्छेद 26 के तहत एक संप्रदाय की ओर से अधिकार का दावा किया जाता है, न कि तब जब कोई व्यक्ति अनुच्छेद 25 के तहत अंतरात्मा की स्वतंत्रता का दावा कर रहा हो।
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5- वकील यूसुफ मुच्छल-स्कूल में किसी तरह की परेशानी से बचने के लिए पीटीए कमेटी का गठन किया गया, उनसे सलाह नहीं ली गई। निष्पक्षता के लिए जरूरी है कि नोटिस दिया जाना चाहिए। पीटीए कमेटी से परामर्श क्यों नहीं लिया गया? ऐसी क्या जल्दी थी? जब से उन्होंने स्कूलों में प्रवेश लिया तब से पहनने की प्रथा थी। बदलने की क्या जल्दी थी? स्टूडेंट्स इसी जल्दबाजी का विरोध कर रहे हैं। वे किसी भी धार्मिक अधिकार का दावा नहीं कर रहे हैं। लेकिन सिर्फ लड़कियों का विरोध हो रहा है। क्या यह निष्पक्षता है? दोनों पक्षों को सुना जाना चाहिए था और समाधान निकाला जाना चाहिए था। यह जाहिर तौर पर मनमानी का आधार है।
6- वकील यूसुफ मुच्छल-कर्नाटक सरकार का शासनादेश (जीओ) साफ तौर से मनमानी है। मैं शायरा बानो (ट्रिपल तालक केस) से तीन पैराग्राफ का जिक्र करूंगा और दिखाऊंगा कि कैसे लड़कियों को हेडस्कार्फ पहनने से रोकने वाला यह शासनादेश स्पष्ट रूप से मनमाना है।
7- वकील देवदत्त कामत-जब मैं स्कूल और कॉलेज में पढ़ता था तो रुद्राक्ष पहनता था। यह मेरी धार्मिक पहचान को दिखाने के लिए नहीं था। यह एक तरह से भरोसे का प्रतीक था क्योंकि इसने मुझे सुरक्षा प्रदान की। हम कई जज और सीनियर वकीलों को भी तमाम चीजें पहने हुए देखते हैं। इसका मुकाबला करने के लिए यदि कोई शॉल पहनता है तो आपको यह दिखाना होगा कि यह केवल धार्मिक पहचान का प्रदर्शन है या कुछ और है। यदि इसे हिंदू धर्म में हमारे वेदों या उपनिषदों ने मान्यता दी है तो अदालत इसकी रक्षा करने के लिए बाध्य है।
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8- वकील देवदत्त कामत-हम एक धर्मनिरपेक्ष राज्य हैं, हम तुर्की के सैनिक नहीं हैं। हमारे देश का संविधान सकारात्मक धर्मनिरपेक्षता का पालन करता है। यह तुर्की के धर्मनिरपेक्षता की तरह नहीं है। वह नकारात्मक धर्मनिरपेक्षता है। हमारी धर्मनिरपेक्षता सुनिश्चित करती है कि सभी के धार्मिक अधिकारों की रक्षा की जाए। यह आदेश वास्तव में संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों को निलंबित करता है। कृपया इस अंतरिम आदेश को जारी न रखें। मैं यह कहने का साहस करता हूं कि जिस व्यक्ति ने इस जीओ (शासनादेश) का मसौदा तैयार किया है, उसने संविधान के अनुच्छेद 25 को नहीं देखा है।
9- वकील देवदत्त कामत-अगर पवित्र कुरान के इस्लामी ग्रंथ कहते हैं कि यह प्रथा अनिवार्य है तो अदालतों को इसकी इजाजत देनी होगी। शायरा बानो मामले में सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक प्रथा को कुरान द्वारा मंजूरी नहीं दी थी। आखिरी दलील जो मैं देना चाहता हूं, वह यह है कि मुझे ईआरपी में बिल्कुल भी गहराई तक जाने की जरूरत नहीं है। क्योंकि ईआरपी सिद्धांत तब आता है जब धर्म के मौलिक अधिकारों का अभ्यास किसी और के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है। सिर पर दुपट्टे के संबंध में कुरान में ही ऐसा कहा गया है, इसलिए हमें किसी अन्य अधिकार के पास जाने की आवश्यकता नहीं है और यह संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत संरक्षित होगा।
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10- वकील संजय हेगड़े-1983 के कर्नाटक एजुकेशन ऐक्ट में ड्रेस या यूनिफॉर्म के बारे में कोई विशेष प्रावधान नहीं हैं। जब हम यूनिवर्सिटी में पढ़ते थे तब भी कोई यूनिफॉर्म नहीं होती थी। पहले के दिनों में यूनिफॉर्म सिर्फ स्कूल में होती थी। ड्रेस बहुत बाद में आई। कॉलेजों में यूनिफॉर्म का प्रचलन काफी बाद में शुरू हुआ।
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