Good News- अब निचले स्तर पर भी योजनाओं में समय पर मिलेगा पैसा | Central government decision to implement Treasury Single Account Model | Patrika News h3>
मध्यप्रदेश को इसी मॉडल के तहत 500 करोड़ रुपए से ज्यादा की रकम विभिन्न सरकारी एजेंसी-विभाग में जारी करने के लिए कहा गया है। इससे न केवल रियल टाइम मॉनीटरिंग होगी, बल्कि योजनाओं में पैसा समय पर पहुंचेगा। साथ ही बजट आवंटन की देरी से योजनाओं के काम अटकने पर लगाम लगेगी। एक मद का पैसा दूसरी मद में खर्च करने की प्रवृत्ति भी खत्म होगी।
ये होगा बड़ा फायदा… दूसरी मदों में खर्च करने की प्रवृत्ति पर लगेगी लगाम
ऐसा रहेगा सिस्टम-
: केंद्रीय योजनाओं मेेंं 500 करोड़ से ज्यादा की राशि के आवंटन पर सिंगल ट्रेजरी सिस्टम रहेगा। केंद्रीय नोडल एजेंसी के जरिए बाकी विभाग या एजेंसी को पैसा ट्रांसफर होगा।
: प्रत्येक नोडल एजेंसी ई-कुबेर में आरबीआइ के साथ खाता खोलेगी। हर केंद्रीय योजना के लिए ई-कुबेर में अलग खाता होगा। खातों को आइएसए मॉड्यूल में मैप करेंगे।
: इसके परिणामस्वरूप नोडल एजेंसी व सरकारी विभाग दूसरे बैंक खाते नहीं खोल सकेंगे। आरबीआइ से यह खाते जुड़े रहेंगे, इसलिए ये असाइनमेंट अकाउंट्स होंगे।
: केंद्रीय मद के मामले में वेतन-भत्तों के खाते इसके तहत आएंगे। इसका पूरा ई-रिकार्ड तैयार होगा। सिस्टम डिजिटल होगा। इसका ई-वेरीफिकेशन और ऑडिट होगा।
कवायद इसलिए
केंद्र सरकार सरकारी विभागों के आर्थिक व्यवहार को स्पेशल बजट अकाउंटिंग सिस्टम के जरिए ऑनलाइन कर रही है। आर्थिक लेन-देन की हर स्तर पर अपलोडिंग शुरू की है। इसी कड़ी में यह नया कदम उठाया जा रहा है। इससे राशि का ट्रांसफर तेज होगा।
अब ये होगा फायदा
: केंद्रीय फंड के उपयोग की बेहतर निगरानी हो सकेगी।
: एक मद का पैसा दूसरी मद में खर्च करने की प्रवृत्ति पर रुकेगी।
: समय पर योजनाओं का पैसा निचले स्तर तक पहुंच सकेगा।
: ऑडिट में आसानी होगी, समय पर लेखा-जोखा मिल सकेगा।
: उपयोगिता प्रमाण-पत्र व अन्य दस्तावेज में आसानी रहेगी।
: योजनाओं का काम तेज होगा। अप्रत्यक्ष रूप से जनता को लाभ।
: अलग-अलग ढेरों बैंक खाते रखने की प्रवृत्ति पर भी रोक।
अभी ये सिस्टम
1. वर्तमान में केंद्र से मिलने वाले फंड को विभागों के स्तर पर मुख्यालय से दूसरी जगह एजेंसियों या जिलों में पहुंचने में समय लगता है। कई बार इनके लेप्स होने या वित्तीय सत्र के आखिरी समय में पहुंचने की लापरवाही उजागर हुई है।
2. एक मद का पैसा दूसरी मद में खर्च करने की प्रवृत्ति भी इसी कारण बढ़ी है। राशि के तुरंत ट्रांसफर न होकर लंबे समय बाद देने से दिक्कतें होती हैं।
3. योजनाओं में निचले स्तर तक पैसा देर से पहुंचता है, जिससे काम प्रभावित होते हैं। दूसरा ऑडिट में लंबा समय लगता है। उपयोगिता प्रमाण-पत्र केंद्र को समय पर नहीं पहुंच पाते, जिससे आगे की किश्तों पर असर पड़ता है।
मध्यप्रदेश को इसी मॉडल के तहत 500 करोड़ रुपए से ज्यादा की रकम विभिन्न सरकारी एजेंसी-विभाग में जारी करने के लिए कहा गया है। इससे न केवल रियल टाइम मॉनीटरिंग होगी, बल्कि योजनाओं में पैसा समय पर पहुंचेगा। साथ ही बजट आवंटन की देरी से योजनाओं के काम अटकने पर लगाम लगेगी। एक मद का पैसा दूसरी मद में खर्च करने की प्रवृत्ति भी खत्म होगी।
ये होगा बड़ा फायदा… दूसरी मदों में खर्च करने की प्रवृत्ति पर लगेगी लगाम
ऐसा रहेगा सिस्टम-
: केंद्रीय योजनाओं मेेंं 500 करोड़ से ज्यादा की राशि के आवंटन पर सिंगल ट्रेजरी सिस्टम रहेगा। केंद्रीय नोडल एजेंसी के जरिए बाकी विभाग या एजेंसी को पैसा ट्रांसफर होगा।
: प्रत्येक नोडल एजेंसी ई-कुबेर में आरबीआइ के साथ खाता खोलेगी। हर केंद्रीय योजना के लिए ई-कुबेर में अलग खाता होगा। खातों को आइएसए मॉड्यूल में मैप करेंगे।
: इसके परिणामस्वरूप नोडल एजेंसी व सरकारी विभाग दूसरे बैंक खाते नहीं खोल सकेंगे। आरबीआइ से यह खाते जुड़े रहेंगे, इसलिए ये असाइनमेंट अकाउंट्स होंगे।
: केंद्रीय मद के मामले में वेतन-भत्तों के खाते इसके तहत आएंगे। इसका पूरा ई-रिकार्ड तैयार होगा। सिस्टम डिजिटल होगा। इसका ई-वेरीफिकेशन और ऑडिट होगा।
कवायद इसलिए
केंद्र सरकार सरकारी विभागों के आर्थिक व्यवहार को स्पेशल बजट अकाउंटिंग सिस्टम के जरिए ऑनलाइन कर रही है। आर्थिक लेन-देन की हर स्तर पर अपलोडिंग शुरू की है। इसी कड़ी में यह नया कदम उठाया जा रहा है। इससे राशि का ट्रांसफर तेज होगा।
अब ये होगा फायदा
: केंद्रीय फंड के उपयोग की बेहतर निगरानी हो सकेगी।
: एक मद का पैसा दूसरी मद में खर्च करने की प्रवृत्ति पर रुकेगी।
: समय पर योजनाओं का पैसा निचले स्तर तक पहुंच सकेगा।
: ऑडिट में आसानी होगी, समय पर लेखा-जोखा मिल सकेगा।
: उपयोगिता प्रमाण-पत्र व अन्य दस्तावेज में आसानी रहेगी।
: योजनाओं का काम तेज होगा। अप्रत्यक्ष रूप से जनता को लाभ।
: अलग-अलग ढेरों बैंक खाते रखने की प्रवृत्ति पर भी रोक।
अभी ये सिस्टम
1. वर्तमान में केंद्र से मिलने वाले फंड को विभागों के स्तर पर मुख्यालय से दूसरी जगह एजेंसियों या जिलों में पहुंचने में समय लगता है। कई बार इनके लेप्स होने या वित्तीय सत्र के आखिरी समय में पहुंचने की लापरवाही उजागर हुई है।
2. एक मद का पैसा दूसरी मद में खर्च करने की प्रवृत्ति भी इसी कारण बढ़ी है। राशि के तुरंत ट्रांसफर न होकर लंबे समय बाद देने से दिक्कतें होती हैं।
3. योजनाओं में निचले स्तर तक पैसा देर से पहुंचता है, जिससे काम प्रभावित होते हैं। दूसरा ऑडिट में लंबा समय लगता है। उपयोगिता प्रमाण-पत्र केंद्र को समय पर नहीं पहुंच पाते, जिससे आगे की किश्तों पर असर पड़ता है।